فرق

सऊदी अरब की महिलाएं
यह घटना केवल एक विचार और अवधारणा नहीं है बल्कि यह काम 2002 में सऊदी अरब में हो चुका है।
वहाबियत की सच्चाई
मुसलमान वही है जो दूसरो कि सहायता करता है, यहीं से ये बात भी समझ में आती है कि मुसलमान किसी को नुक़सान नही पहुँचाता, अब अगर कोई किसी को नुक़सान पहुँचाकर ये समझता रहे कि वो मुसलमान है तो ये ग़लत है, इस हदीस के आधार पर वो मुसलमान नहीं हो सकता।
ट्रंप
जर्मनी के एस समाचार पत्र ने ट्रंप द्वारा सात मुसलमान देशों के नागरिकों के अमरीका में प्रवेश पर प्रतिबंध अरब देशों की चुप्पी और उसके विरुद्ध कुछ पूरोपीय देशों की प्रतिक्रिया रिपोर्ट पेश की है।
तीसरा ख़लीफ़ा कौन?
अल्लाह के शहर मक्के में मैं टहल रहा था कि देख कुछ वहाबी मेरी तरफ़ आ रहे हैं मैं समझ गया कि कोई चक्कर है, वह मेरे पास आए और कुछ सवाल जवाब के बाद पूछाः बताओ पहला ख़लीफ़ा कौन है? मैं: हज़रत अबू बक्र। वहाबीः शाबाश। दूसरा ख़लीफ़ा कौन है? मैं: हज़रत उमर
क्या पैग़म्बरे इस्लाम पर सलाम पढ़ना शिर्क है?
आज के युग में यह वहाबी टोला और उसके साथियों ने क़सम खा रखी है कि मुसलमानों की हर आस्था और उनके हर विश्वास पर टिप्पणी अवश्य करेंगे चाहे वह सही हो या न हो, और कितने आश्चर्य की बात है कि यह सब करने के बाद भी यह वहाबी अपने आप को मुसलमान कहते हैं,
वहाबियत का काला इतिहास मदीने पर हमला
मक्के पर अतिग्रहण के बाद सऊद ने पवित्र नगर मदीने पर क़ब्ज़ा करने के बारे में सोचा और इस पवित्र नगर का भी परिवेष्टन कर लिया किन्तु वहाबियों की भ्रष्ट आस्थाओं व हिंसाओं से अवगत, मदीनावासियों ने उनके मुक़ाबले में कड़ा प्रतिरोध किया।
अपने जैसे मुसलमान तैयार करने का मिशन
वहाबी विचारधारा रखने वालों की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह अपने अतिरिक्त किसी भी दूसरे को काफिर मानते हैं चाहे वह इस्लाम के किसी भी समुदाय से ही संबंध क्यों न रखता हो, चाहे वह सुन्नी हो या शिया या किसी और पंथ का मानने वाला, और यही कारण है कि कुछ लोग वहाबी
वहाबियों का मक्के पर हमला
अब्दुल अज़ीज़ इब्ने सऊद ने वहाबी क़बीलों के सरदारों की उपस्थिति में अपने पहले भाषण में कहा कि हमें सभी नगरों और समस्त आबादियों पर क़ब्ज़ा करना चाहिए...
वहाबियत और मक़बरों की तामीर
इस्लाम धर्म की निशानियों की सुरक्षा और उनका सम्मान महान ईश्वर की सिफारिश है। पवित्र क़ुरआन के सूरये हज की ३२वीं आयत में महान ईश्वर ने ईश्वरीय चिन्हों की सुरक्षा के लिए मुसलमानों का आह्वान किया है। इस संबंध में महान ईश्वर कहता है” जो भी ईश्वर की निशानियों
वहाबियत के बारे में पैग़म्बर (स.) की भविष्यवाणी
पूर्व की तरफ़ से कुछ लोग निकलेंगे जो क़ुरआन पढ़ते हैं लेकिन वह उनके गलों से आगे नहीं बढ़ता है, वह धर्म से बाहर (विधर्मी) होंगे जिस प्रकार तीर कमान से बाहर हो जाता है, उनकी निशानी सर मूंड़ना है।
आयतुल्लाह सीस्तानी ज़ाकिर नाईक और ईद का चाँद
आज जहां सारी दुनिया के मुसलमान यह जान चुकी हैं कि इस्लाम के आंड़ में वहाबियत की बढ़ती गतिविधियां जहां इस्लाम को नुक़सान पहुँचा रही हैं वहीं पूरी दुनिया में इस्लाम के चेहरे को कुरूप कर रहीं है और ज़ाकिर नाईक भारत में उसी वहाबियत का एक चेहरा मात्र है जिसको
यमन पर सऊदी अरब के अत्याचारों की आंखों देखी कहानी
बच्चों के वीरान हो चुके वार्ड में हमको दिल बैठा देने वाला दृश्य दिखाई दिया, बर्थडे की रंग बिरंगी टोपियां केक के कुछ टुकड़े और मोमबत्तियां ज़मीन पर बिखरी पड़ी थी। अस्पताल प्रमुख ने बतायाः जब सऊदी विमानों ने बमबारी की तो बच्चे बर्थडे मना रहे थे!
वहाबियत के ख़तरे सुन्नियों की नज़र में
सुन्नी जमाअत में सबसे पहले आला हज़रत ने देओबंदी आलिमों की गुस्ताखाना किताबों पर फतावे लगाये और आम मुसलमानों को इनके वहाबी अकीदे के बारे में अवगत कराया! हसमुल हरामेंन लिखकर अपने साफ़ किया की दारुल उलूम देओबंद हकीक़त में वहाबी विचारधारा को मानने वाला स्कूल
फ़तवा कमेटी के स्थाई सदस्य सालेह बिन फ़ौज़ान ने अपनी किताब के एक भाग जिसका शीर्षक “वहाबियों के पहशीपन का ख़ुदा” में दूसरों की तकफ़ीर और दीन से बाहर जाने वाले कारणों का अध्ययन किया है और उनके राजनीतिकरण के बाद सऊदी अरब की सत्ता के अस्तित्व में आने के बारे
ज़ाकिर नाईक यज़ीद का भारतीय चेहरा
हमने ज़ाकिर नाईक को भारतीय यज़ीद इसलिये कहा है कि यज़ीद भी इस्लाम के नाम पर ही तख़्ते हुकूमत पर पैठा था, वह भी दिखावे के लिये मुसलमान ही था लेकिन जैसे ही वह हुकूमत में आया सबसे पहला ऐलान यह किया कि न कोई धर्म आया और...
आले सऊद व आले यहूद के बीच है ख़ून का रिश्ता
अब्दुल वह्हाब का जन्म 1115 हिजरी में "ऐनिया" शहर में हुआ, उसका दादा "शूलमान क़रक़ूज़ी" तुर्की की "यहूद दूग़ा" नामक यहूदी नस्ल से था, वहाबी गुट के लोग पहले यहूदी थे जो बाद में दिखावे के लिये मुसलमान हो गए ताकि तुर्की के उस्मानी साम्राज्य में घुसपैठ कर सकें
तकफ़ीरी वहाबी विचारधारा सु्न्नियों की नज़र में
आज यह तकफ़ीरी वहाबी टोला अपने अक़ीदों से अलग हर अक़ीदा रखने वाले समुदाय को काफ़िर कह रहा है और उनकी हत्या को जायज़ ठहरा रहा है लेकिन स्वंय सुन्नी विचारधारा में कौन काफ़िर है और दीन से कौन निकल गया है हम अपने इस लेख में आपके सामने पेश कर रहे हैं