27 रजब-ईदे मबअस

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ईश्वरीय दूत बनने की औपचारिक घोषणा से पहले प्रत्येक वर्ष एक महीने के लिए हिरा पहाड़ में वक़्त गुज़ारते थे।

 

एक बड़े पत्थर पर बैठकर मक्के के सुन्दर एवं तारों से भरे हुए आसमान की ओर देखा करते थे। सूर्यो उदय एवं सूर्यास्त के सुन्दर दृश्यों का नज़ारा वहीं से करते थे। इंसान, ज़मीन, वृक्ष, वनस्पति, जानवर, पर्वत, जंगल और ठाठे मारते हुए विशाल समुद्र के बारे में चिंतन करते थे और संसार के रचयिता की शक्ति के समक्ष नतमस्तक होते थे। लोगों की अज्ञानता पर जो संसार के रचयिता को छोड़कर बेजान मूर्तियों की पूजा करते थे, अफ़सोस किया करते थे। अमीरों के अत्याचारों एवं पीड़ितों की दयनीय स्थिति को लेकर दुखी होते थे और इसके लिए कोई समाधान खोजते थे। इस तरह के निराशजनक वातावरण को देखकर, ईश्वर की शरण में पहुंचते थे और इबादत में व्यस्त हो जाते थे और वैचारिक, सामाजिक और नैतिक समस्याओं के समाधान के लिए उससे मदद मांगते थे।

एक महीने की इबादत और तपस्या के बाद, शांतिपूर्ण एवं प्रकाशमय हृद्य के साथ मक्का वापस लौटकर काबे का तवाफ़ करते थे और उसके बाद अपने घर का रुख़ करते थे। ऐसी ही एक रात में जब हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा अपनी उम्र के चालीसवें पड़ाव में थे, ईश्वरीय संदेश लेकर आने वाला फ़रिश्ता जबरईल नाज़िल हुआ और उनसे कहा कि उस संदेश को पढ़ें। उन्होंने जवाब दिया कि मैं पढ़ना नहीं जानता हूं। जिबरईल ने फिर कहा, पढ़ो, लेकिन उन्होंने वही जवाब दिया। तीसरी बार जब जिबरईल ने पुनः बल दिया तो उन्होंने पूछा कि क्या पढ़ूं? जिबरईल ने कहा, अपने रब का नाम लेकर पढ़ो, जो सृष्टिकर्ता है, उसने इंसान को ख़ून के जमे हुए लोथड़े से पैदा किया, पढ़ो और तुम्हारा रब बड़ा कृपालु है, जिसने क़लम द्वारा ज्ञान सिखाया, इंसान को वह ज्ञान दिया, जो उसके पास नहीं था।

यह जिबरईल की वाणी थी जिसने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा से कहा, ईश्वर ने मुझे तुम्हारे पास भेजा है, ताकि में तुम्हें ईश्वरीय दूत बनने की शुभ सूचना दूं। वे वह्यी या ईश्वरीय वाणी का भार अपने शरीर पर महसूस कर रहे थे, उनका शरीर लरज़ रहा था और उनके माथे से पसीने की बूंदे टपक रही थीं, वे पहाड़ से नीचे उतरे। जिबरईल को देखना और ईश्वरीय वाणी को सहन करना मोहम्मद मुस्तफ़ा के लिए इतना मुश्किल था कि वे किसी बुख़ार के रोगी की भांति कांप रहे थे। लेकिन जैसे ही वे इस स्थिति से बाहर निकले उन्होंने देखा कि पहाड़, पत्थर और रास्ते में मिलने वाली हर चीज़ उन्हें सलाम कर रही की थी। बधाई हो ईश्वर ने तुम्हें सदाचार और सौंदर्य प्रदान किया और समस्त इंसानों पर वरीयता दी। विशिष्ट वह है, जिसे ईश्वर ने विशिष्टता प्रदान की हो और वह सम्मानित है, जिसे ईश्वर ने सम्मान दिया हो। चिंता मत करो, ईश्वर तुम्हें शीघ्र ही उच्चतम स्थान प्रदान करेगा।

हां, ईश्वर ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा का सबसे अधिक योग्य एवं पूर्ण इंसान के रूप में चयन कर लिया। वे एक ऐसे पूर्ण एवं संतुलित इंसान थे कि जो किसी भी काम में अतिवाद से काम नहीं लेते थे। हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा इसलिए ईश्वरीय दूत बने, ताकि इंसानों को अनेकेश्वरवाद की दलदल से निकाल कर एकेश्वरवाद के मार्ग पर अग्रसर करें। एकेश्वरवाद उनका मूल संदेश था। यह सिद्धांत इतना अधिक विस्तृत है कि इस्लाम को एकेश्वरवादी धर्म कहा गया। पूर्व ईश्वरीय दूतों ने भी दुनिया को यही संदेश दिया। जैसा कि सूरए अंबिया की 25वीं आयत में उल्लेख है कि तुमसे पहले हमने कोई दूत नहीं भेजा, लेकिन यह कि उसे संदेश नहीं दिया हो कि मेरे अलावा कोई पूजनीय नहीं है, अतः केवल मेरी इबादत करो।

एकेश्वरवाद केवल अज्ञानता के संकट का समाधान नहीं था, बल्कि एकेश्वरवाद नफ़रत और साम्राज्यवादी शक्तियों को नकारने का नाम था, अर्थात किसी भी प्रकार के अन्याय को सहन नहीं करना, ईश्वर के अलावा किसी और की शक्ति पर भरोसा न करना, आज इंसान को इस एकेश्वरवाद की सबसे अधिक ज़रूरत है।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ईश्वरीय दूत चुने जाने के उद्देश्यों में से एक समाज में न्याय की स्थापना करना है। क़ुरान कहता है, हमने अपने दूतों को स्पष्ट चमत्कारों के साथ भेजा, और उन्हें किताब और पैमाना लेकर भेजा, ताकि लोग न्याय की स्थापना के लिए प्रयास करें। समाज में न्याय की स्थापना के लिए पहले न्याय को पहचानना होगा और उसके बाद समाज को उसके लिए तैयार करना होगा। पैग़म्बरे इस्लाम ने इन दोनों चीज़ों को एक साथ व्यवहारिक करके दिखाया। यहां तक कि वे लोगों पर बराबर नज़र डालते थे। लोगों की बात सुनने में भी न्याय से काम लेते थे। उनके साथियों का कहना है कि वे हमारी बातों को इतने ध्यान से सुनते थे कि मानो हमने कोई ऐसी बात कही है, जिसे वे नहीं जानते थे और अब उन्हें इस बात से लाभ पहुंचा है। हालांकि वे स्वयं एक पूर्ण इंसान थे और ईश्वरीय फ़रिश्ता जिबरईल उनके साथ रहता था।

परवरिश और पालन-पोषण किसी भी व्यक्ति या समाज के कल्याण के लिए एक बुनियादी चीज़ है। समस्त ईश्वरीय दूत लोगों के मार्गदर्शन के लिए भेजे गए। वे इंसानों के सबसे विशिष्ट गुरु और प्रशिक्षक थे जो अपने कथन और कर्म से लोगों को ईश्वरीय शिक्षा प्रदान किया करते थे और समाज से बुराई समाप्त किया करते थे। अंतिम ईश्वरीय दूत ने भी ज़िंदगी भर लोगों का मार्गदर्शन किया। ओहद युद्ध में जब वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे तो उनके कुछ साथियों ने उनसे कहा कि हे ईश्वरीय दूत, अपने दुश्मनों को अभिशाप दे दीजिए, आप उनकी भलाई और कल्याण के लिए प्रयास कर रहे हैं और वे इस प्रकार से आप से युद्ध कर रहे हैं। पैग़म्बर ने अपने टूटे हुए दांतों को हथेली पर रखा और आसमान की ओर देखकर कहा, हे ईश्वर उन्हें सही मार्ग दिखा, वे नहीं जानते हैं।

दूसरा उदाहरण बद्र युद्ध का है। जब बंदियों के हाथ बांधकर उन्हें आपकी सेवा में लाया गया, तो पैग़म्बर के होंटो पर मुस्कराहट थी। एक बंदी ने पैग़म्बर से कहा, अब तो तुम्हें हंसना चाहिए, इसलिए कि हमें पराजित कर दिया है और बंदी बने तुम्हारे सामने खड़े हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, ग़लत मत सोचो, मेरी मुस्कराहट विजय और फ़तह के कारण नहीं है, बल्कि इसलिए है कि तुम जैसे लोगों को इन ज़ंजीरों के साथ स्वर्ग में लेकर जाऊं। मेरा उद्देश्य तुम्हें मुक्ति दिलाना और तुम्हारा विकास करना है, लेकिन तुम मेरा मुक़ाबला कर रहे हो और मुझ पर तलवार उठा रहे हो।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने लोगों की सामाजिक एवं राजनीतिक संस्कृति को बदल कर रख दिया। उन्होंने लोगों को सम्मान दिया और उनके अन्दर ज़िम्मेदारी का एहसास जगाया। वे फ़रमाते थे, ऐसा नहीं है कि मैं समाज का नेता हूं और आप लोग कुछ नहीं हैं, आप सब लोग अपनी जगह एक ज़िम्मेदार इंसान हैं और सभी से उसके मातहतों के बारे में पूछा जाएगा। पुरुष परिवार का संरक्षक है, उससे उसके बारे में पूछा जाएगा। महिला घर, पति और बच्चों की ज़िम्मेदार है, उससे उनके बारे में मालूम किया जाएगा। इसलिए जान लो कि तुम सभी ज़िम्मेदार हो और तुमसे तुम्हारी ज़िम्मेदारी के बारे में पूछा जाएगा।

ईश्वर ने इंसान को विशेष योग्यताओं और प्रतिभाओं के साथ पैदा किया है और उसे बुद्धि प्रदान की है, ताकि भौतिक एवं आध्यात्मिक गुणों को प्राप्त कर सके। लेकिन ईश्वरीय लक्ष्य तक पहुंचने के लिए केवल बुद्धि काफ़ी नहीं है, इसीलिए ईश्वर ने मार्गदर्शक के रूप में अपने दूतों को भेजा। हालांकि इससे बुद्धि का महत्व कम नहीं हो जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम ने ज्ञान और बुद्धि को विशेष महत्व दिया है। इतिहास में है कि पैग़म्बरे इस्लाम के कुछ साथियों ने उनके सामने किसी व्यक्ति की प्रशंसा की और उसके गुणों का बखान किया। पैग़म्बरे इस्लाम ने पूछा कि उसकी बुद्धि कैसी है? उन्होंने कहा, हे ईश्वरीय दूत, हम आपके सामने उसके प्रयासों और इबादत के बारे में बात कर रहे हैं और आप उसकी बुद्धि के बारे में सवाल कर रहे हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया, मूर्ख इंसान, अपनी मूर्खता के कारण, पापी इंसान से अधिक पाप में लिप्त हो जाता है। कल प्रलय के दिन लोगों को ईश्वरीय निकटता उनकी बुद्धि के स्तर के आधार पर प्राप्त होगी।

कुल मिलाकर आज दुनिया को किसी भी समय से अधिक पैग़म्बरे इस्लाम की शिक्षाओं की ज़रूरत है। आज दुनिया में जो कुछ हो रहा है और लोकतंत्र के नाम पर व्यापक अत्याचार हो रहा है और बच्चों एवं महिलाओं समेत निर्दोषों का नरसंहार किया जा रहा है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ईश्वरीय दूत चुने जाने की वर्षगांठ एक अच्छा अवसर है कि हम उनकी सुन्नत परम्मरा और शिक्षाओं का अनुसरण करें और समस्त बुराईयों से मुक्ति हासिल करके उनके दिखाए हुए मार्ग पर आगे बढ़ें।

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