اسلام

ख़ुत्ब ए ग़दीर
ग़दीर का पूरा ख़ुत्बा, मौज़ूआत के साथ
 नमाज़े ग़ुफ़ैला पढ़ने का तरीक़ा
मुस्तहब्बी नमाज़ों में से एक नमाज़े ग़ुफ़ैला है, जो मग़रिब व इशा की नमाज़ के बीच पढ़ी जाती है। इसका वक़्त नमाज़े मग़रिब के बाद पश्चिम की तरफ़ की सुर्ख़ी ख़त्म होने तक है।
माँ बाप की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी नमाज़ सिखाना
रिवायत मे बयान किया गया है कि बच्चों को नमाज़ सिखाना माँ बाप की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। माता पिता को चाहिए कि जब बच्चा तीन साल का हो जाये तो इसको ला इलाहा इल्लल्लाह जैसे वाक्य याद कराएं। और फिर कुछ समय के बाद उसको अपने साथ नमाज़ मे खड़ा करें
चेहुलम, इमाम हुसैन के ज़ाएरों के लिये इमाम सादिक़ की अजीब दुआ
इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के आते ही इमाम हुसैन (अ) के चाहने वालों और शियों के बीच एक अलग ही प्रकार का जोश भर जाता है और उनके दिल हुसैन (अ) की मोहब्बत में और भी तीव्रता से धड़कने लगते हैं। आख़िर क्या कारण हैं कि इमाम हुसैन (अ) के चेहलुम के लिये उनके चाहने
पैदल कर्बला तक.
करबला तक पैदल यात्रा समय के बदलने के साथ साथ बदलती गई और जितना समय बीतता गया विभिन्न अवसरों पर इमाम हुसैन के ज़ाएरों का जमवाड़ा इराक़ के करबला में बढ़ता गया और इमाम हुसैन के ज़ाएर पैदल करबला का सफ़र तै करते रहे लेकिन इन तमाम अवसरों में इमाम हुसैन के
इमाम हुसैन की ज़ियारत पर जाने का सवाब
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम पदयात्रा करते हुए इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के सवाब के बारे में फ़रमाते हैं: जो भी पद यात्रा करते हुए इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को जाये ईश्वर उसके द्वारा उठाये गये हर क़दम के बदले में उसको एक नेकी लिखता है और एक पाप मिटा देता है...
हुसैन आज भी अकेले हैं!!
इन्सान आज भी जब इतिहास में झांक कर देखता है तो उसे दूर तक रेगिस्तान में दौड़ते हुए घोड़ें की टापों से उठती हुई धूल के बीच खिंची हुई तलवारों, टूटी हुए ढालों और टुकड़े टुकड़े लाशों के बीच में टूटी हुई तलवार से टेक लगाकर बैठा हुआ एक ऐसा व्यक्ति दिखाई देता, ज
अल्लाह कहां है?
आत्मबोध, ईश्वरवाद तक पहुंचने का मार्ग है और वास्तव में ईश्वरवाद का मार्ग आत्मबोध द्वारा तय होता है। जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा हैः जिसने स्वयं को पहचान लिया उसने अपने पालनहार को पहचान लिया है। अर्थात जो यह यह समझ ले कि किस प्रकार वह एक तुच्छ अस्
हुसैन पर मातम इबादत या मात्र परम्परा
आमपौर पर हमारी ज़बानों से एक वाक्य सुनने को मिलता है रवासिमे अज़ा मरासिमे अज़ा (प्रथाऐं) जिसका अर्थ हर वह कार्य होता है जिसका सम्बन्ध अज़ादारी से हो। शाब्दिक दृष्टि से रस्म के विभिन्न अर्थ होते हैं इनमें शक्ल, सूरत, निशान, अलामत के साथ साथ तरीक़ा क़ानून,
आसमान, करबला, इमाम हुसैन
'एंग्लो सैक्सन के युग की घटनाएं' नमाक पुस्तक जो कि 1996 में प्रकाशित हुई है ने आशूरा के दिन सन 61 हिजरी में -जो कि एक एहतिहासिक और सदैव याद की जाने वाली घटना है- इग्लैंड में ख़ून की बारिश का ज़िक्र किया है।
अरफ़ा के आमाल
यह बहुत पवित्र रात है, यह अल्लाह से दुआ मांगने की रात है, इस रात तौबा स्वीकार और दुआ क़ुबूल होती है। जो व्यक्ति भी इस रात में इबादत करेगा उसके लिए 170 साल की इबादत का सवाब लिखा जाएगा। इस रात के कुछ विशेष आमाल हैं: