वहाबियत का काला इतिहास मदीने पर हमला

मक्के पर अतिग्रहण के बाद सऊद ने पवित्र नगर मदीने पर क़ब्ज़ा करने के बारे में सोचा और इस पवित्र नगर का भी परिवेष्टन कर लिया किन्तु वहाबियों की भ्रष्ट आस्थाओं व हिंसाओं से अवगत, मदीनावासियों ने उनके मुक़ाबले में कड़ा प्रतिरोध किया।

मदीने पर हमला

मक्के पर अतिग्रहण के बाद सऊद  ने पवित्र नगर मदीने पर क़ब्ज़ा करने के बारे में सोचा और इस पवित्र नगर का भी परिवेष्टन कर लिया किन्तु वहाबियों की भ्रष्ट आस्थाओं व हिंसाओं से अवगत, मदीनावासियों ने उनके मुक़ाबले में कड़ा प्रतिरोध किया। अंततः वर्ष 1806 में पवित्र नगर पर क़ब्ज़ा कर लिया। वहाबियों ने पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम के रौज़े में मौजूद समस्त मूल्यवान चीज़ों को लूट लिया किन्तु समस्त मुसलमानों के विरोध के भय से रसूले इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के पवित्र रौज़े को ध्वस्त न कर सके। वहाबियों ने चार पेटियों में भरे हीरे और मूल्यवान रत्नों से बनी विभिन्न प्रकार की चीज़ों को लूट लिया। इसी प्रकार मूल्यवान ज़मुर्रद से बने चार शमादान को जिनमें मोमबत्ती के बदले रात में चमकने वाले और प्रकाशमयी हीरे रखे जाते थे, चुरा लिया। उन्होंने इसी प्रकार सौ तलवारों को भी चुरा लिया जिनका ग़ेलाफ़ शुद्ध सोने का बना हुआ था और जो याक़ूत और हीरे जैसे मूल्यवान पत्थरों से सुसज्जित थीं जिनका दस्ता ज़मुर्रद और ज़बरजद जैसे मूल्यवान पत्थरों का था। सऊद इब्ने अज़ीज़ ने मदीने पर क़ब्ज़ा करने के बाद समस्त मदीना वासियों को मस्जिदुन्नबी में एकत्रित किया और इस प्रकार से अपनी बातों को आरंभ किया। हे मदीनावासियों, आज हमने धर्म को तुम्हारे लिए परिपूर्ण कर दिया। तुम्हारे धर्म और क़ानून परिपूर्ण हो गये और तुम इस्लाम की विभूतियों से तृप्त हो गये, ईश्वर तुम से राज़ी व प्रसन्न हुआ, अब पूर्वजों के भ्रष्ट धर्मों को अपने से दूर कर दो और कभी भी उसे भलाई से न याद करो और पूर्वजों पर सलवात भेजने से बहुत बचो क्योंकि वे सबके सब अनेकेश्वरवादी विचारधरा अर्थात शिरक में मरे हैं।

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सऊद ने अपनी सैन्य चढ़ाइयों में बहुत से लोगों का नरसंहार किया। उसकी और उस समय के वहाबी पंथ की भीषण हिंसाओं से अरब जनता और शासक भय से कांपते थे। इस प्रकार से कि कोई मारे जाने के भय से हज या ज़ियारत के लिए मक्के और मदीने की यात्रा करने का साहस भी नहीं करता था। मक्के के शासक ने अपनी जान के भय से, सऊद की इच्छानुसार, मक्के और मदीने में पवित्र स्थलों और जन्नतुल बक़ीअ क़ब्रिस्तान को ध्वस्त करने का आदेश दिया। उसने हिजाज़ में वहाबी धर्म को औपचारिकता दी और जैसा कि वहाबी चाहते थे, अज़ान से पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम पर सलवात भेजने को हटा दिया। अरब शासकों और हेजाज़ के प्रतिष्ठित लोगों ने जो इस पथभ्रष्ट पंथ की आस्थाओं और ज़ोरज़बरदस्तियों को सहन करने का साहस नहीं रखते थे, सबसे उच्चाधिकारी अर्थात उस्मानी शासक को पत्र लिखकर वहाबियों की दिन प्रतिदिन बढ़ती हुई शक्ति के ख़तरों से सचेत किया।  उन्होंने बल दिया कि वहाबी पंथ केवल सऊदी अरब तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसका इरादा समस्त मुसलमानों पर वर्चस्व जमाना और पूरे उस्मानी शासन पर क़ब्ज़ा करना है।

जलती लाइब्रेरियां

वहाबियत ने अपने घिनौने इतिहास में जहां बहुत से अपराध किये हैं उनमें से एक उनका घिनौना कृत्य  “मकतबतुल अरबिया” नामक महान लाइब्रेरी को आग के हवाले करना है कि जिसमें 60 हज़ार से अधिक बहुमूल्य व अद्वितीय पुस्तकें और 40 हज़ार से अधिक अद्वितीय हस्तलिपियां मौजूद थी कि जिन्में से कुछ हस्तलिपियां इस्लाम से पहले के युग (जाहेलीयत), यहूदियों और क़ुरैश के नास्तिकों से सम्बंधित थी इसी प्रकार उसमें इमाम अली (अ) अबू बक्र, उमर, ख़ालिद बिन वलीद, तारिक़ बिन ज़ियाद, और पैग़म्बर के कुछ दूसरे सहाबियों द्वारा लिखी पुस्तकें मौजूद थी और “अब्दुल्लाह बिन मसऊद” के हाथों का लिखा क़ुरआन भी उस लाइब्रेरी में मौजूद था।

एक इतिहासकार के कथन से “नासिर अलसईद” कहते हैं: “जब वहाबियों ने नगर पर क़ब्ज़ा किया तो तो इस लाइब्रेरी को काफ़िरों से सम्बंधित पुस्कतें होने के बहाने से आग के हवाले कर दिया”।

(तारीख़े आले सऊद, जिल्द 1, पेज 158, कश्फ़ुल इरतियाब पेज 55, 187, 324)

बक़ी क़ब्रिस्तान का विनाश

1965 में वहाबियों ने मक्के पर क़ब्ज़ा करने के बाद मदीने का रुख़ किया और घेराव करने के बाद शहर में प्रवेश किया, उसके बाद ऐतिहासिक क़ब्रिस्तान बक़ी में दफ़्न इमामों की क़ब्रों और दूसरी क़ब्रों जैसे पैग़म्बर की पत्नियों और बेटे इब्राहीम की क़ब्र, हज़रत अब्बास (अ) की माता उम्मुल बनीन की क़ब्र, पैग़म्बर के पिता अब्दुल्लाह की गुंबद, इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के बेटे इस्माईल की क़ब्र और दूसरे सहाबियों एवं ताबईन की सारी क़ब्रों को ध्वस्त कर दिया।

इमाम हसन (अ), इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ), इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) और इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) की पवित्र समाधियों से ज़रीह को उखाड़ कर ले गए और पैग़म्बर के चचा अब्बास और अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) की माता फ़ातेमा बिन्ते असद जो इन चारों इमामों के साथ एक गुंबद के नीचे दफ़्न थे को वीरान कर दिया।

(फ़िरक़ए वहाबियत पुस्तक पर दवानी की प्रस्तावना, पेज 56)

इन वहाबियों ने मदीने में इमाम हसन (अ) और इमाम हुसैन (अ) के जन्मस्थान, बद्र के शहीदों की क़ब्रों और बैतुल अहज़ान को जिसे अमीरुल मोमिनीन (अ) ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) के लिये बनाया था भी ध्वस्त कर दिया।

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