اهل بیت علیهم السلام

इंमाम हुसैन
तीसरी हिजरी कमरी वर्ष के शाबान महीने की तीन तारीख थी। इसी दिन हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घर में प्रकाश के चांद हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ।
पैग़म्बर की बेसत क्या है
वह एक रहस्यमय रात थी। चांद का मंद प्रकाश नूर नामक पर्वत और उसके दक्षिण में स्थित मरूस्थल पर फैला हुआ था। मक्का और उसके आसपास की प्रकृति पर गहरी निद्रा छायी हुई थी।
27 रजब
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ईश्वरीय दूत बनने की औपचारिक घोषणा से पहले प्रत्येक वर्ष एक महीने के लिए हिरा पहाड़ में वक़्त गुज़ारते थे।
इमाम मोहम्मद तक़ी
दस रजब सन 195 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ और मानव जाति के मार्गदर्शन का एक और सूर्य जगमगाने लगा
इमाम अली नक़ी की शहादत
वर्ष 254 हिजरी क़मरी के रजब महीने की तीसरी तारीख़ पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के एक अन्य पौत्र की शहादत की याद दिलाती है।
फ़ातेमा ज़हरा
फ़ातेमा एक बेटी थीं, एक ऐसी बेटी जिनकी कोई मिसाल नहीं है। शिष्टाचार के शिखर पर विराजमान, पवित्रता और गुणों से सुसज्जित। वे रचना और इंसानियत की पहेली का रहस्य थीं। उनकी उपाधी उम्मे अबीहा अपने बाप की मॉ की, यह उपाधी पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें प्रदान किया था
शहादते हज़रत ज़हरा
आज पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की तिथि है। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा वह हस्ती हैं जिन्होंने महानता व परिपूर्णता का मार्ग अत्यधिक उचित ढंग से तय किया और संसार वासियों के लिए मूल
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा आदर्श बेटी, माँ और पत्नी
नौ वर्ष की आयु तक हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा अपने पिता के घर पर रहीं।जब तक उनकी माता हज़रत ख़दीजा जीवित रहीं वह गृह कार्यों मे पूर्ण रूप से उनकी साहयता करती थीं। तथा अपने माता पिता की अज्ञा का पूर्ण रूप से पालन करती थीं
फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा का जीवन परिचय
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा के पिता पैगम्बर हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा व आपकी माता हज़रत ख़दीजातुल कुबरा पुत्री श्री ख़ोलद हैं। हज़रत ख़दीजा वह स्त्री हैं,जिन्होने सर्व- प्रथम इस्लाम को स्वीकार किया। आप अरब की एक धनी महिला थीं तथा आप का व्यापार पूरे अरब मे
 हज़रत फ़ातेमा ज़हरा की फ़ज़ीलतें अहले सुन्नत की किताबों से
रसूले की इकलौती बेटी और इमामत एवं रिसालत को मिलाने वाली कड़ी, वह महान महिला जिसकों सारी दुनियां की औरतों का सरदार कहा गया, रसूल जिसका इतना सम्मान करते थे कि आपने म्मेअबीहा यानी अपने बाप की मां कहा, इमामत की सुरक्षा में शहीद होने वाली पहली महिला, वह महिला
सही बुख़ारी
अगर मान भी लिया जाए कि बीबी ज़हरा कुछ समय के लिए शेख़ैन नाराज भी हुईं थीं, लेकिन यह भी अपने स्थान पर साबित है कि बीबी ज़हरा के जीवन के अंतिम दिनों में शेख़ैन बीबी के पास आए और उनसे क्षमा मांग कर उन्हें प्रसन्न कर लिया था, जैसा कि बयाकी और दूसरों ने नकल कि
ग़दीर का संदेश
१८ ज़िलहिज्जा सन दस हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने ईश्वर के आदेश पर हज़रत अली अलैहिस्सलाम को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था। आज ही के दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने
ग़दीर क्या है
ग़दीर का मतलब है इल्म, सदाचार, परहेज़गारी और अल्लाह के रास्ते में क़ुर्बानी और बलिदान और इस्लाम के मामले में दूसरों से आगे बढ़ना और उन्हीं चीज़ों के आधार पर समाज की सत्ता का निर्माण करना, यह एक मूल्य सम्बंधी मुद्दा है। इन मानों में गदीर केवल शियों के लिए
आयतुल्लाह ख़ामेनेई
एक हदीस है जिसे हम (हदीसे उख़ूवत) के नाम से पहचानते हैं वह हज़रत अली (अ) के बुलंद मक़ाम की गवाही देती है। इस हदीस का माजरा कुछ इस तरह है कि जब रसूले ख़ुदा तमाम मुहाजिर व अंसार को एक दूसरे का भाई बना रहे थे तब आपने हज़रत अली (अ) को अपना भाई बनाया
ग़दीर का महत्व
सूले इस्लाम को मालूम था कि इस सफ़र के अंत में उन्हें एक महान काम को अंजाम देना है जिस पर दीन की इमारत तय्यार होगी और उस इमारत के ख़म्भे उँचे होंगे कि जिससे आपकी उम्मत सारी उम्मतों की सरदार बनेगी, पूरब और पश्चिम में उसकी हुकूमत होगी मगर इसकी शर्त यह है कि
विलायत
इस्लाम में विलायत अर्थात संरक्षण एवं सरपरस्ती पैग़म्बरी की निरंतरता एवं ऐसे दीप की भांति है कि जो अंधेरों को छांट देता है और सच्चाई एवं वास्तविकता के प्रतीक के रूप में मनुष्यों का मार्गदर्शन करता है। जिस किसी पर भी विलायत का प्रकाश पड़ जाता है तो मानो वह
ग़दीर के आमाल
ग़दीर का दिन वह महान दिन है जिसमें सभी शिया बल्कि सच्चाई को चाहने वाला हर व्यक्ति प्रसन्न होता है यह वही दिन है जिस दिन रसूले इस्लाम (स) ने जह से पलटते समय ग़दीर के मैदान में इस्लामी दुनिया के सबसे बड़ा और महत्व पूर्ण संदेश दिया यही वह दिन है जिस दिन...
ग़दीर
ग़दीर मक्के से 64 किलोमीटर दूरी पर स्थित अलजोहफ़ा घाटी से तीन से चार किलोमीटर दूर एक स्थान था जहां पोखरा था। इसके आस पास पेड़ थे। कारवां वाले इसकी छाव में अपनी यात्रा की थकान उतारते और स्वच्छ पानी से अपनी प्यास बुझाते थे। समय बीतने के साथ यह छोटा का पोखरा
ग़दीर का महत्व
दसवीं हिजरी क़मरी का ज़माना था। पैग़म्बरे इस्लाम ने हज का एलान किया और लोगों को यह कहलवा भेजा कि जिस जिस व्यक्ति में हज करने की क्षमता है वह ज़रूर हज करे क्योंकि ईश्वर के दो संदेश अभी भी संपूर्ण रूप में लोगों तक नहीं पहुंचे थे। एक हज और दूसरा पैग़म्बरे इस
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) की शहादत
पैग़म्बरे इस्लाम सललल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों में सबसे कम आयु हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को मिली। वे एक कथन के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के नब्बे दिन के बाद शहीद हो गयीं। आज भी मदीन की गलियों में उनके अस्तित्व की सुगंध का आभास होता

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