27 रजब के आमाल

यह बड़ी मुबारक रातों में से है क्योंकि यह रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) के मबअस (तबलीग़ पर मामूर होने) की रात है और इस रात के कुछ विशेष अमाल हैं

 

यह बड़ी मुबारक रातों में से है क्योंकि यह रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) के मबअस (तबलीग़ पर मामूर होने) की रात है और इस रात के कुछ विशेष अमाल हैं

1        मिस्बाह में शेख़ ने इमाम अबू जाफ़र जवाद (अ:स) से नक़ल किया है कि आपने फ़रमाया : रजब महीने में एक रात है जो उन सब चीज़ों से बेहतर है जिन पर सूरज चमकता है और वो 27 रजब की रात है की जिसकी सुबह रसूले आज़म (स:अ:व:व) मब'ऊस ब रिसालत हुए! हमारा अनुयायी में जो इस रात अमल करेगा तो इसको 60 साल के अमल का सवाब हासिल होगा! मैंने अर्ज़ किया, "इस रात का अमल क्या है?" आप (अ:स) ने फ़रमाया : नमाज़े इशा के बद सो जाए और फिर आधी रात से पहले उठ कर 12 रक्'अत नमाज़ 2-2 रक्'अत करके पढ़े और हर रक्'अत में सुराः अल-हम्द के बाद क़ुरआन की आखरी मुफ़स्सिल सूरतों (सुराः मोहम्मद से सुराः नास) में से कोई एक सुराः पढ़े! नमाज़ का सलाम देने के बाद यह सूरे पढ़े :

सुराः हम्द

7 मर्तबा

सुराः फ़लक़

7 मर्तबा

सुराः नास

7 मर्तबा

सुराः तौहीद

7 मर्तबा

सुराः काफेरून

7 मर्तबा

सुराः क़द्र

7 मर्तबा

आयतुल कुर्सी

7 मर्तबा

और इन सब क़ो पढ़ने के बाद यह दुआ पढ़े :

َالْحَمْدُ لِلّهِ الَّذى لَمْ یَتَّخِذْ وَلَداً وَلَمْ یَکُنْ لَهُ شَریکٌ فى الْمُلْکِ وَلَمْ یَکُنْ لَهُ وَلِىُّ مِنَ الذُّلِّ وَکَبِّرْهُ تَکْبیراً اَللّهُمَّ اِنّى اَسئَلُکَ بِمَعاقِدِ عِزِّکَ عَلَى اَرْکانِ عَرْشِکَ وَمُنْتَهَى الرَّحْمَةِ مِنْ کِتابِکَ وَبِاسْمِکَ الاْعْظَمِ الاْعْظَمِ، الاْعْظَمِ وَذِکْرِکَ الاْعْلىَ الاْعْلىَ الاْعْلى وَبِکَلِماتِکَ التّامّاتِاَنْ تُصَلِّىَ عَلى مُحَمَّدٍ وَآلِهِ وَاَنْ تَفْعَلَ بى ما اَنْتَ اَهْلُهُ

अलहम्दु लील'लाहिल लज़ी लम यात्ताखिज़' वालादन व लम याकुल'लहू शरीकुन फ़िल मुल्की व लम याकुल'लहू शरीकुन फ़िल मुल्की व लम याकुल'लहू वली'युन मिनज़'ज़ुल्ली व कब'बिरहु तक्बीरा, अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुका बीमा-आकीदी इज्ज़िका अ'अला अर्कानी अर्शिका व मुन्तहर रहमती मिन किताबेका व बिस्मिकल आ'-ज़मील आ'-ज़मील आ'-ज़म व ज़िक'रिकल आ'-लल आ'-लल आ'-ला व बी-कलिमातिकत ताम्मातिका अन तू'सल्लिया अला मुहम्मदीन व आलीही व अन तफ़-अला बीमा अन्ता अहलुह

अनुवादः प्रशंसा है इस ख़ुदा के लिये जिस ने किसी क़ो अपना बेटा नहीं बनाया और न कोई इसकी हुकूमत में इसका शरीक है और न वो कमज़ोर है के कोई इसका समर्थक हो और तुम इसकी बड़ाई खूब बयान करो, ऐ माबूद! मै सवाल करता हूँ तुझ से अर्श पर तेरे इज़्ज़त के मक़ाम के वसते से और इस इन्तेहाई रहमत के वास्ते से जो तेरे क़ुरआन में है और वास्ता तेरे नाम का जो बहुत बड़ा, बहुत बड़ा और बहुत ही बड़ा है , ब वास्ता तेरे ज़िक्र के जो बुलंद'तर, बुलंद'तर और बहुत बुलंद'तर है और ब वास्ता तेरे कामिल कलमात के सवाली हूँ के तू हज़रत मोहम्मद और इनकी आल (अ:स) पर रहमत फ़रमा और मुझ से वो सुलूक फ़रमा जो तेरे शायाने शान है

 शेख़ कफ़'अमी ने बलादुल'आमीन में फ़रमाया है की बे'सत की रात (27 रजब की रात) यह दुआ भी पढ़ी जाए !

اَللّهُمَّ اِنّى اَسئَلُکَ بِالتَّجَلِىِ الاْعْظَمِ فى هذِهِ اللَّیْلَةِمِنَ الشَّهْرِ الْمُعَظَّمِ وَالْمُرْسَلِ، الْمُکَرَّمِ اَنْ تُصَلِّىَ عَلى مُحَمَّدٍ وَآلِهِ وَاَنْ تَغْفِرَ َنا مااَنْتَ بِهِ مِنّا اَعْلَمُ یا مَنْ یَعْلَمُ وَلا نَعْلَمُ اَللّهُمَّ بارِکْ لَنا فى لَیْلَتِنا هذِهِالَّتى بِشَرَفِ الرِّسالَةِ فَضَّلْتَها وَبِکَرامَتِکَ اَجْلَلْتَها وَبِالْمَحَلِّ الشَّریفِ اَحْلَلْتَها

 

اَللّهُمَّ فَاِنّا نَسْئَلُکَ بِالْمَبْعَثِ الشَّریفِ وَالسَّیِّدِ اللَّطیف ِالْعَفیفِ اَنْ تُصَلِّىَ عَلى مُحَمَّدٍ وَآلِهِ وَ اَنْ تَجْعَلَ اَعْمالَنافى اللَّیْلَةِ وَفى سایِرِ اللَّیالى مَقْبُولَةًوَذُنُوبَنا مَغْفُورَةًمَشْکُورَةً وَسَیِّئاتِنا مَسْتُورَةً وَقُلوُبَنا بِحُسْنِ الْقَوْلِمَسْرُورَةً وَاَرْزاقَنا مِنْ لَدُنْکَ بِالْیُسْرِ مَدْرُورَةً اَللّهُمَّ اِنَّکَ تَرىوَلا تُرىو وَاَنْتَ بِالْمَنْظَرِ الاْعْلى وَاِنَّ اِلَیْکَ الرُّجْعى وَالْمُنْتَهىوَاِنَّ لَکَو الْمَماتَ وَالْمَحْیا وَاِنَّ لَکَ الاْخِرَةَ وَالاُْولى اَللّهُمَّ اِنّانَعُوذُ بِکَ اَنْ نَذِلَّ وَنَخْزى وَاَنْ نَاءتِىَ ما عَنْهُ تَنْهى

 

اَللّهُمَّ اِنّانَسْئَلُکَ الْجَنَّةَ بِرَحْمَتِکَ وَنَسْتَعیذُ بِکَ مِنَ النّارِ فَاَعِذْنا مِنْها بِقُدْرَتِ کَوَنَ سْئَلُکَ مِنَ الْحُورِ الْعینِ فَارْزُقْنا بِعِزَّتِکَ وَاجْعَلْ اَوْسَعَ اَرْزاقِناعِنْدَ کِبَرِ سِنِّنا وَاَحْسَنَ اَعْمالِنا عِنْدَ اقْتِرابِ اجالِنا وَاَطِلْ فى طاعَتِکَ وَمایُقَرِّبُ اِلَیْکَ وَیُحْظى عِنْدَکَ وَیُزْلِفُ لَدَیْکَ اَعْمارَنا وَاَحْسِنْ فىجَمیعِ اَحْوالِنا وَاُمُورِنا مَعْرِفَتَنا وَلا تَکِلْنا اِلى اَحَدٍ مِنْ خَلْقِکَفَیَمُنَّ عَلَیْنا وَتَفَضَّلْ عَلَیْنا بجَمیعِ حَوایِجِنا لِلدُّنْیا وَالاْخِرَةِ وَابْدَاْبِاباَّئِنا وَاَبْناَّئِنا وَجَمیعِ اِخْوانِنَا الْمُؤْمِنینَ فى جَمیعِ ما سَئَلْناکَ لاِنْفُسِنا یااَرْحَمَ الرّاحِمینَ

 

اَللّهُمَّ اِنّا نَسْئَلُکَ بِاسْمِکَ الْعَظیمِ وَمُلْکِک َالْقَدیمِ اَنْ تُصَلِّىَ عَلى مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ وَاَنْ تَغْفِرَ لَنَا الذَّنْبَالْعَظیمَ اِنَّهُ لا یَغْفِرُ الْعَظیمَ اِلا الْعَظیمُ اَللّهُمَّ وَهذا رَجَبٌ الْمُکَرَّمُالَّذى اَکْرَمْتَنابِهِ اَوَّلُ اَشْهُرِ الْحُرُمِ اَکْرَمْتَنا بِهِ مِنْ بَیْنِ الاُْمَمِ فَلَکَ الْحَمْدُ یا ذَاالْجُودِ وَالْکَرَمِ فَاَسْئَلُکَ بِهِ وَبِاسْمِکَ الاْعْظَمِ الاْعْظَمِ الاْعْظَمِالاْجَلِّ الاْکْرَمِ الَّذى خَلَقْتَهُ فَاسْتَقَرَّ فى ظِلِّکَ فَلا یَخْرُجُ مِنْکَ اِلى غَیْرِکَاَنْ تُصَلِّىَ عَلى مُحَمَّدٍ وَاَهْلِ بَیْتِهِ الطّاهِرینَ وَاَنْ تَجْعَلَنا مِنَالْعامِلینَ فیهِ بِطاعَتِکَ وَالاْمِلینَ فیهِ لِشَفاعَتِکَ

 

اَللّهُمَّ اهْدِنا اِلى سَواَّءِالسَّبیلِ وَاجْعَلْ مَقیلَنا عِنْدَکَ خَیْرَ مَقیلٍ فى ظِلٍّ ظَلیلٍ وَمُلْکٍ جَزیلٍفَاِنَّکَ حَسْبُنا وَنِعْمَ الْوَکیلُ اَللّهُمَّ اقْلِبْنا مُفْلِحینَ مُنْجِحینَ غَیْرَ مَغْضُوبٍ عَلَیْنا وَلا ضاَّلّینَ بِرَحْمَتِکَ یا اَرْحَمَ الرّاحِمینَ اَللّهُمَّاِنّى اَسئَلُکَ بِعَزاَّئِمِ مَغْفِرَتِکَ وَبِواجِبِ رَحْمَتِکَ السَّلامَةَ مِنْ کُلِّاِثْمٍ وَالْغَنیمَةَ مِنْ کُلِّ بِرٍّ وَالْفَوْزَ بِالْجَنَّةِ وَالنَّجاةَ مِنَ النّارِاَللّهُمَّ دَعاکَ الدّاعُونَ وَدَعَوْتُکَ وَسَئَلَکَ السّاَّئِلُونَ وَسَئَلْتُکَ وَطَلَبَ اِلَیْکَ الطّالِبُونَ وَطَلَبْتُ اِلَیْکَ اَللّهُمَّ اَنْتَ الثِّقَةُ وَالرَّجاَّءُ وَاِلَیْکَ مُنْتَهَى الرَّغْبَةِ فِى الدُّعاَّءِ اَللّهُمَّ فَصَلِّ عَلى مُحَمَّدٍ وَآلِهِ وَاجْعَلِ الْیَقینَ فىقَلْبى وَالنُّورَ فى بَصَرى وَالنَّصیحَةَ فى صَدْرى وَذِکْرَکَ بِاللَّیْلِ وَالنَّهارِ عَلى لِسانى وَرِزْقاً واسِعاً غَیْرَ مَمْنُونٍ وَلا مَحْظُورٍفَارْزُقْنى وَبارِکْ لى فیما رَزَقْتَنى وَاجْعَلْ غِناىَ فى نَفْسى وَرَغْبَتىفیما عِنْدَکَ بِرَحْمَتِکَ یا اَرْحَمَ الرّاحِمینَ

अल्लाहुम्मा इन्नी अस'अलुका बीत'तजल्ली अल-आज़मी फ़ि हाज़िहिल अल-लैलती मिनस-शहरी अल-मु'अज़-ज़मो वल मुरसली अल-मुकर-रमी अन तू'सल्ले अला मोहम्मदीन व आलिहि व अन त्ग'फ़िर लना मा अन्ता बिही मिन्ना आ'लमू या मन या'लमू व ला ना'लमू अल्लाहुम्मा बारीक लना फ़ी लै'लतीना हा'ज़िही अल-लती बे'शराफ़ी अल-रिसालती फज़ल'तहा व बे करामातिका अजल'तहा व बिल'महल्ली अल-शरिफ़ी अहलल'तहा अल्लाहुम्मा फ़'इन्ना नस'अलुका बिल'मब-असी अलश'शरिफ़ी वल सैय'यदी अल-लतीफ़ी वल उन्सुरी अल'अफीफ़ी अन तू'सल्ली अला मोहम्मदीन व आलिहि व अन तज'अला अ'मलाना फ़ी हाज़िही अल'लैलती व फ़ी सा-इरी अल-लियाली मक़'बूलतन व ज़ुनुबना मग़'फरातन व हसनातिना मशकू'रतन व सय्यी-आतिना मस्तुरतन व क़ुलुब्ना बी'हुस्नी अल-कौली मसरू'रतन व अरज़क'ना मिन लादुनका बिल'युसरी मदरू'रतन अल्लाहुम्मा इन्नका तरदव ला तुरदव व अन्ता बिल-मंज़री अला'ला  व इन्ना एलैकाल रजआ वल मुनतहदव व इन्ना लकल ममता वल महया व इन्ना लकल आख़ेरत वल ऊला, अल्लाहुम्मा इन्ना नऊज़ो बेका अन नज़िल्ला व नख़ज़ा व अन नातिया मा अनहो नहया अल्लाहुम्मा इन्ना नसअलोकाल जन्नता बेरहमतेका व नसतईज़ो बेक़ा मिनन नारे वअइज़ना मिनहा बेक़ुदरतेका कवन असअलोका मिनल हूरिल ईने फ़रज़ुक़ना बेइज़्ज़तेका वजअल अवसअ अरज़ाक़ना इन्दा केबरे सिन्नेना व अहसना आमालना इन्दक़तेराबे आजालेना व अतिल फ़ी ताअतेका वमा योक़र्रेबे एलैका व योहज़ा इन्दका व युज़लेफ़ो लदैका आमारना व अहसिन फ़जमीए अहवालेना व उमूरेना मारेफ़तेना वला तकिलना एला अहदिम मिन ख़लक़ेक़ा फ़यमुन्ना अलैना व तफ़ज़्ज़ल अलैना बेजमीए हवाएजेना लिद्दुनया वल आख़ेरा वबदा बेआबाएना व अबनाएना व जमीए इख़वानेना अलमोमिनीना फ़ी जमीए मा सअलना ले अनफ़ोसना या अरहमर्राहेमीन, अल्लाहुम्मा इन्ना नसअलोका बिस्मेकल अज़ीमे व मुलकेकल क़दीमे अन तोसल्ले अला मोहम्मद व आले मोहम्मद व अन तग़फ़ेरा लना ज़नबनल अज़ीमा इन्नहु ला युग़फ़रुल अज़ीमा इल्लल अज़ीमो, अल्लाहुम्मा व हाज़ा रजबुल मुकर्रमुल लज़ी अकरमतना बिही अव्वलो अशहुरिल होरोमे अकरमतना बिही मिम बैनिल उममे फ़लकल हम्दे या ज़लजूदे वल करम फ़स्अलोका बिही व बिस्मेकाल आअज़मिल आअज़मिल आअज़मिल अजल्लिल अक़रम अल्लज़ी ख़लक़तहु फ़स्तक़र्रा फ़ी ज़िल्लेका फ़ला यख़रोज़ो मिनका एला ग़ैरे काना तोसल्ले अला मोहम्मद व अहलेबैतेहित ताहेरीना व अन तजअला मिन्नल आलमीना फ़ीहे बेताअतेका वलअमेलीना फ़ीहे ले शिफ़ाअतेका अल्लाहुम्मा इहदेना एला सव्वाइस सबील वजअल मक़ीलना इन्दका ख़ैरा मक़ील फ़ी ज़िल्लिन ज़लीलिन व मुलकिन जज़ीलिन फ़ इन्नका हसबोना व नेमल वकील अल्लाहुम्मा अक़बिलना मुफ़लेहीना मुनजेहीना ग़ैरा मग़ज़ूबिन अलैना वला ज़ाल्लीना बेरहमतेका या अरहमर्राहेमीन, अल्लाहुम्मा इन्नी असअलोका बेअजाएमे मग़फ़िरतेका व बेवाजिबे रहमतेका अस्सलामता मिन कुल्ले इस्मिन वल ग़नीमता मिन कुल्ले बिर्रिन वल फ़ौज़ा बिल जन्नते वन्नजाता मिनन्नारे, अल्लाहुम्मा दआकद्दाऊना व दऔतोका व सअलकस्साएलूना व सअलतोका व तलब एलैकत्तालेबूना व तलबतो एलैका, अल्लाहुम्मा अन्ता अस्सेक़ते वर्रजाओ व एलैका मुनतहर रग़बते फ़िद्दुआए, अल्लाहुम्मा फ़सल्ले अला मोहम्मदिन वआलेही वजअलिल यक़ीना फ़ी क़लबी वन्नूरा फ़ी बसरी वन्नसीहता फ़ी सदरी व ज़िकरेका बिल्लैले वन्नहारे अला लेसानी व रिज़क़न वासेआ ग़ैरा ममनून वला महज़ूरिन फ़रज़ुक़नी व बारिक ली फ़ीमा रज़क़तनी वजअल ग़नाया फ़ी नफ़्सी व रग़बती फ़ीमा इन्दका बे रहमतेका या अर्हमर्राहेमीन

अनुवादः

ऐ माबूद! मै तुझ से सवाल करता हूँ, तुझ से ब'वास्ता बहुत बड़ी नूरानियत के जो आज की रात इस बुज़ुर्गतर महीने में ज़ाहिर हुई है और ब'वास्ता इज़्ज़त वाले रसूल (स:अ:व:व) के , यह की तू मोहम्मद (स:अ:व:व) और इनकी आल (अ:स) पर रहमत फ़रमा और हैमें वो चीज़ें अता फ़रमा की तू इन्हें हम से ज़्यादा जानता है, ऐ वो जो जानता है और हम नहीं जानते, ऐ माबूद! बरकत दे हमें आज की रात में की जिसे तुने आगाज़े रिसालत से फ़ज़ीलत बख्शी , अपनी बुज़ुर्गी से इसे बरतरी दी , और मोकाम बुलंद देकर इस क़ो ज़ीनत बख्शी है! ऐ माबूद! बस हम तेरे सवाली हैं ब'वास्ता बेसत शरीफ़, और मेहरबान , और पाकीज़ा सरदार और पारसा ज़ात के यह के तू मोहम्मद (स:अ:व:व) और इनकी आल (अ:स) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और आज की रात और तमाम रातों में हमारे अमाल क़ो क़बूल फ़रमा, हमारे गुनाहीं क़ो बख्श दे, हमारी नेकियों क़ो पसंदीदा क़रार दे, हमारी खताओं क़ो ढांप दे, हमारे दिलों क़ो अपने उम्दा कलाम से खुद सनद फ़रमा और हमारी रोज़ी में अपनी बारगाह से आसानी और इज़ाफा कर दे! ऐ माबूद! तू देखता है और खुद नज़र नहीं आता की तू मोकामे नज़र से बाला व बुल्न्द्तर है और जाए आख़िर व बाज़'गुज़श्त तेरी ही तरफ़ है और मौत देना और ज़िंदा करना तेरे ही अखत्यार में है और तेरे ही लिये है आगाज़ व अंजाम! ऐ माबूद! हम ज़िल्लत व ख्वारी में पड़ने से तेरी पनाहके तालिब हैं और वो काम करने से जिससे तुने मना किया है! ऐ माबूद! हम तेरी रहमत के ज़रिये तुझ से जन्नत के तलबगार हैं और दोज़ख से तेरी पनाह चाहते हैं, तू हमें इस से पनाह दे, अपनी क़ुदरत के साथ और हम तुझ से ज़ेबा'तरीन हूरों की ख़्वाहिश करते हैं, वो बा'वास्ता अपनी इज़्ज़त के अता फ़रमा और बुढापे के वक़्त हमारी रोज़ी में इज़ाफा फ़रमा, मौत के वक़्त हमारे अमाल क़ो पसंदीदा क़रार दे हमें अपनी अता'अत और अपनी नज़दीकी के असबाब में तरक्क़ी अता फ़रमा दे अपने यहाँ हिस्से और मंज़ेलत की ख़ातिर हमारी उमरें दराज़ कर दे, तमाम हालात और तमाम मामलों में हमें बेहतरीन मारेफ़त अता फ़रमा, हमें अपनी मख्लूक़ में से किसी के हवाले न फ़रमा की वो हम पर एहसान रखे . और दुन्या व आख़ेरत की तमाम ज़रूरतों और हाजतों के लिये हम पर एहसान फ़रमा. और हम ने तुझ से जिन चीज़ों का सवाल किया है इनकी अता में हमारे पहले बुज़ुर्गों, हमारी औलाद , और दीनी भाइयों क़ो भी ; शामिल फ़रमा ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले! ऐ माबूद! हम सवाली हैं ब'वास्ता तेरे अज़ीम नाम और तेरी अज़्ली हुकूमत के की तू मोहम्मद (स:अ:व:व) और आले मोहम्मद (अ:स) पर रहमत फ़रमा और हमारे सारे के सारे गुनाह बख्श दे क्योंकि कसीर गुनाहों क़ो बुज़ुर्गतर ज़ात के इलावा कोई नहीं बख्श सकता! ऐ माबूद! यह इज़्ज़त वाला महीना रजब है जिसे तुने हुरमत वाले महीनों में अव्वालियत देकर हमें सर'फ़राज़ किया, तुने इसके ज़रिये हमें दूसरी उम्मतों में मुमताज़ किया बस तेरे ही लिये हम्द है ऐ अता , व बख्शीश करने वाले, बस तेरा सवाली हूँ, ब'वास्ता इस माह के और तेरे बहुत बड़े, बहुत बड़े और बहुत ही बड़े नाम के जो रौशन व बुज़ुर्गी वाला है, इसे तुने खलक किया वो तेरे ही ज़ेरे साया क़ायेम है, बस वो तेरे यहाँ से दुसरे की तरफ़ नहीं जाता वास्ता इसके सवाली हूँ की तू हज़रत मोहम्मद (स:अ:व:व) और इनके पाकीज़ा अहलेबैत (अ:स) पर रहमत फ़रमा यह की इस महीने में हमें अपनी फरमाबरदारी में रहनेवाले और अपनी शफ़ा'अत का उम्मीदवार क़रार दिया! ऐ माबूद! हमें राहे रास्त की हिदायत दे और अपने यहाँ हमार क़याम बेहतरीन जगह पर अपने बुलंद साया और अपनी अज़ीम हुकूमत में क़रार दे, बस ज़रूर तू हमारे लिये काफ़ी और बेहतरीन सरपरस्त है! ऐ माबूद! हमें फ़लाह पाने और कामयाबी वाले बना दे न हम पर ग़ज़ब किया जाए और न हम गुमराह हों, वास्ता है तेरी रहमत का ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले! ऐ माबूद! मै सवाल करता हूँ तेरी यक़ीनी बख्शीश और तेरी हतमी रहमत के वास्ते से हर गुनाह से बचाए रखने, हर नेकी से हिस्सा पाने, जन्नत में दाखिले की कामयाबी, और जहन्नम से निजात पाने का! ऐ माबूद! दुआ करने वालों ने तुझ से दुआ की और मै भी दुआ करता हूँ! सवाल किया तुझ से सवाल करने वालों ने, मै भी सवाली हूँ, तुझ से तलब किया तलब करने वालों ने, मै भी तुझ से तलब करता हूँ, माबूद, तुही मेरा सहारा और उम्मीदगाह है और दुआ में तेरी ही तरफ़ इन्तेहाई रगबत है, ऐ माबूद! बस तू मोहम्मद (स:अ:व:व) और इनकी आल (अ:स) पर रहमत नाज़िल फ़रमा, और मेरे दिल में यक़ीन, मेरी आँखों में नूर,  मेरे सीने में नसीहत,  मेरी ज़बान पर दिन रात अपना ज़िक्र व अफ़कार क़रार दे, किसी के एहसान और किसी रुकावट के बगैर ज़्यादा रोज़ी दे, बस जो रिज्क़ तुने मुझे दिया इसमें मेरे लिये बरकत अता कर और मेरे दिल क़ो सैर फ़मा दे, वास्ता तेरी रहमत का ऐ सब से ज़्यादा रहम करनेवाले

फिर सजदे में जाएँ और इस दुआ क़ो 100 मर्तबा पढ़ें:

اَلْحَمْدُ لِلّهِ الَّذى هَدانا لِمَعْرِفَتِهِ وَخَصَّنا بِوِلایَتِهِ،وَوَفَّقَنا لِطاعَتِهِ شُکْراً شُکْراً

अलहम्दु लील'लाहिल लज़ी हदाना ले'मारे'फ़तेही व ख़ास'सना बी'विलायातेही व वफ़'फ़क्ना ली'ता-अतेही शुकरन शुकरन

अनुवादः हम्द है इस ख़ुदा के लिये जिसने अपनी मारेफ़त  की, अपनी सर'परस्ती में ख़ास किया ,और अपनी इता'अत की तौफीक़ दी. शुक्र है इसका बहुत बहुत शुक्र.

जब सजदा पूरा हो जाए तो अपना सर उठायें और पढ़ें :

اَللّهُمَّ اِنّى قَصَدْتُکَ بِحاجَتى وَاعْتَمَدْتُ عَلَیْکَ بِمَسْئَلَتى وَتَوَجَّهْتُ اِلَیْکَ بِاَئِمَّتى وَسادَتى اَللّهُمَّ انْفَعْنا بِحُبِّهِمْ وَاَوْرِدْنا مَوْرِدَهُمْ وَارْزُقْنا مُرافَقَتَهُمْ وَاَدْخِلْنَا الْجَنَّةَ فى زُمْرَتِهِمْ بِرَحْمَتِکَ یا اَرْحَمَ الرّاحِمینَ.

अलाहुम्मा इन्नी क़सद'तुका बे'हाजती व-अ तमाद्तु इलैका बे'मस'अलाती व तवज'जह्तु इलैका बे'अ-इम्माती व सा'दती अलाहुम्मा अनफ़ा'अना बे'हुबबे'हिम व औ'रिदना मौ'रादाहुम वर'ज़ुक़ना मोरा'फ़क़'तहुम व अद्खिलना अल जन्नता फ़ी ज़ूम'रतिहीम बे'रहमतिका या अर्हमर राहेमीन

ऐ माबूद! मै अपनी हजात लिये तेरी तरफ़ आया और अपने सवाल में तुझ पर भरोसा किया है, मै अपने इमामों (अ:स) और सरदारों के ज़रिया तेरी तरफ़ मुतवज्जाह हुआ! ऐ माबूद! हमें इनके मुक़ाम तक पहुंचा दे, हमें इनकी रीफ़ाक़त अता कर, और हमें इनके साथ जन्नत में दाख़िल फ़रमा, वास्ता तेरी रहमत का ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले

अमीरुल मोमिनीन (अ:स) की ज़ियारत पढ़ना के जो इस रात के तमाम अमाल में बेहतर व अफ़ज़ल है, इस रात में इमाम (अ:स) की तीन ज़ियारातें हैं जिनके बारे में मफ़ातीहुल जनान में देखा जा सकता है

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