شهداء و علماء و اولیاء الهی

उम्मुल बनीन
यह एक तरह का चिल्ला है जो किताबे “इल्मे जिफर” में लिखा है जिस को नमाज़े सुबह के बाद या फिर नमाज़े इशा के बाद या अगर महीने के अरम्भ में करे तो सब से अच्छा है ।
उम्मुल बनीन का मज़ार
जनाबे उम्मुल बनीन (स.अ) के पिता हज़्ज़ाम बिन ख़ालिद बिन रबी कलाबिया थे तथा आप को अरब के प्रसिद्ध बहादुरों मे गिना जाता था एवं अपने क़बीले के सरदार भी थे और आपकी माता का नाम तमामा था।
उम्मुल बनीन की वफ़ात
रिवायत में आया है कि अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाहे अलैहा की शहादत के बाद अपने भाई अक़ील से जो कि अरब के नसबों और उनके जीवन को बहुत अच्छी तरह से जानते थे फ़रमायाः मैं चाहता हूँ कि आप मेरे लिए किसी ऐसी महिला को तलाश करें जो..
या ज़ैनब
इंसान जब दुनिया में आता है तो उसके पास न इल्म होता है और न तजुर्बा। जैसे-जैसे ज़िन्दगी की कठिनाईयों से गुज़रता है इल्म व तजुर्बे की वजह से उसके अंदर कमाल पैदा हो जाता है। वैसे तो इंसान के नेचर में यह बात पाई जाती है कि वह कमाल चाहता है
रफसंजानी
इसमें कोई संदेह नहीं है कि हाशमी रफसंजानी ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद ईरानी राजनीतिक के बहुत बड़े खिलाड़ी रहे हैं जिनकी सियासत इस प्रकार की रही है कि हमेशा लोग उनके समर्थन या फिर विरोध में खड़े दिखाई देते है, क्योंकि उनकी सिसायत का सबसे बड़ा पहलू यह है
शेख़ निम्र
मोहम्मद अन्निम्र शेख़ निम्र के साथ अंतिम मुलाक़ात के बारे में कहते हैं: मैं, मेरी माँ, हमारे भाई और मेरी बहन शेख़ निम्र की बेटी सकीना के साथ सुबह ही रियाज़ की जेल हाएर पहुँच गए, लेकिन उन्होंने हमको 12 बजे दिन तक मिलने नहीं दिया मेरी माँ और भाई अबू मूसा पर
शेख़ निम्र
निम्र बाक़िर अलनिम्र 1959 ईसवी में सऊदी अरब के अलअवामिया में एक धार्मिक घराने में पैदा हुए (1) आप एक शिया मुज्तहिद (2) और सऊदी अरब के सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता थे (3) आपने अपनी आरम्भिक शिक्षा अलअवामिया में ही ग्रहण की उसके बाद 1989 में धार्मिक शिक्षा..
हज़रत मोहसिन की शहादत कैसे हुई, जानें शिया और सुन्नी किताबों से
शिया और सुन्नी स्रोतों में मौजूद ऐतिहासिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि हज़रत मोहसिन इमाम अली और हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.) की संतान थे जो दूसरे ख़लीफ़ा उमर या क़ुनफ़ुज़ द्वारा हज़रत फ़ातेमा ज़हरा को दरवाज़े और दीवार की बीच दबा दिए जाने के कारण शहीद हो गए..
जानें कौन हैं हज़रत अबू तालिब
हज़रत अबू तालिब के ईमान के बारे में सवाल उठाकर उनके कैरेक्टर को गिराने की नाकाम कोशिश शुरू कर दी कि क्या अबूतालिब अल्लाह की वहदानियत (एकेश्वरवाद) और रसूल की नुबूव्वत पर ईमान लाये थे या नहीं? यह सवाल उस महान हस्ती के बारे में में उठाया गया जिनकी गोद में
हज़रत ज़ैनब (स) के जीवन के कुछ पहलू
इस में कोई शक नहीं है कि इमाम हुसैन (अ) के सारे सहाबी और बनी हाशिम इस शहादत के मर्तबे में और पड़ने वाली मुसीबतों में हुसैन (अ) के साथ बराबर के शरीक थे। लेकिन इमाम और दूसरों में फ़र्क़ यह है कि हुसैन (अ) सदाए हक़ बुलंद करने वाले थे जबकि दूसरे इमाम हुसैन
रोक़य्या बिन्तुल हुसैन ऐतेहासिक दस्तावेज़ों में
इमाम हुसैन (अ) की एक तीन साल की बेटी थी इमाम हुसैन (अ) के सर को एक तश्त में रखा था और उसपर एक कपड़ा डाल रखा था, वह उनके सामने लाए और उस पर से कपड़ा हटा दिया। इमाम हुसैन (अ) की बेटी ने उस सर को देखा और पूछा यह किसका सर है? कहाः यह तुम्हारे पिता का सर है
यज़ीद के दरबार में हज़रत ज़ैनब का ऐतिहासिक खुतबा
हे यज़ीद! क्या अब जब कि ज़मीन और आसमान को तूने (विभिन्न दिशाओं से) हम पर तंग कर दिया और और क़ैदियों की भाति हम को हर दिशा में घुमाया, तू समझता है कि हम ईश्वर के नज़दीक अपमानित हो गए और तू उसके नज़दीक सम्मानित हो जाएगा?
करबला में इमाम हुसैन (अ) के इतने भाई हुए शहीद
कर्बला में जिन नेक और अच्छे इंसानों ने सही और कामयाब रास्ते को अपनाया और अपने ज़माने के इमाम के नेतृत्व में बुरे लोगों के मुक़ाबले, अपनी ख़ुशी के साथ जंग की और शहीद हुए उनमें से कुछ वीर ह़ीज़रत अली (अ) के बेटे भी थे जो अमीरूल मोमिनीन (अ) की तरफ़ से इमाम
हिज़्बुल्लाह महासचिव हसन नसरुल्लाह की जीवनी
हिज़्बुल्लाह के महासचिव और शिया धर्मगुरु सैय्यद हसन नसरुल्लाह 31 अक्तूबर 1960 को बैरूत के ग़रीब महल्ले अलबाज़ूरिया में पैदा हुए और इस्राईली सेना द्वारा सैय्यद अब्बास मूसवी की हत्या के बाद 1992 में हिज़्बुल्लाह के महासचिव का पद संभला।
 करबला के बहत्तर शहीद और उनकी संक्षिप्त जीवनी
करबला के बहत्तर शहीद और उनकी संक्षिप्त जीवनी
हबीब इब्ने मज़ाहिर एक बूढ़ा आशिक़
हबीब इस्लामी इतिहास की वह महान हस्ती हैं जिनका चेहरा सूर्य की भाति इस्लामी इतिहास में सदैव चमकता रहेगा, क्योंकि आप पैग़म्बर (स) के सहाबियों में से थे और आपने बहुत सी हदीसें पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सुन रखीं थी, और दूसरी तरफ़ आपने 75 साल की आयु में कर्बला क
इब्ने ज़ियाद के दरबार में हज़रत ज़ैनब (स) का ख़ुत्बा
जब असीरों का क़ाफ़ेला दरबारे इब्ने ज़ेयाद में पहुंचा तो इब्ने ज़ेयाद ने पूछा के वह औरत कौन है जो अपनी कनीज़ों के हमराह एक गोशे में बैठी है? आपने जवाब न दिया उसने दो तीन बार इस्तेफसार किया मगर कोई जवाब न पाया फिर कनीज़ों ने जवाब दिया के यह नवासीए रसूल
करबला जाने से पहले काबे की छत पर हज़रत अब्बास का ख़ुत्बा
आठ ज़िलहिज्जा सन साठ हिजरी यानी हुसैनी काफ़िले के कर्बला की तरफ़ कूच करने से ठीक एक दिन पहले क़मरे बनी हाशिम हज़रत अबुल फ़ज़लिल अब्बास (अ) ने ख़ान –ए- काबा की छत पर जाकर एक बहुत ही भावुक और क्रांतिकारी ख़ुत्बा दिया।
कर्बला के बाद यज़ादे के विरुद्ध पहला विद्रोह “क़यामे तव्वाबीन”
करबला की दुखद घटना के बाद यज़ीद की हुकूमत के विरुद्ध होने वाला पहला आन्दोलन "क़यामे तव्वाबीन" ने नाम से जाना जाता है जो इमाम हुसैन के ख़ून का इन्तेक़ाम लेने के लिए 65 हिजरी में अहलेबैत के चाहने वालों के माध्यम से यज़ीद की सेना के विरुद्ध ऐनुल वरदा में सुल
ज़ैनब करबला की नायिका
ज़ैनब, शहीदों के ख़ून का संदेश लानी वाली, अबाअब्दिल्लाहिल हुसैन (अ) की क्रांति की सूरमा, अत्याचारियों और उनके हामियों को अपमानित करने वाली, सम्मान, इज़्ज़त, लज्जा, सर बुलंदी और श्रेष्ठता की उच्चतम चोटी पर स्थित महिला का नाम है।

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