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इमाम रज़ा (अ.) की मार्गदर्शक हदीसें
रिवायत में आया है कि अहलेबैत ने फ़रमाया कि हमारी हदीसों और कथनों को सुनों और दूसरों को सुनाओ क्योंकि यह दिलों को रौशन करती हैं।
शियों के लिए इमाम रज़ा (अ.) का संदेश
हे अब्दुल अज़ीम मेरी तरफ़ से मेरे दोस्तों के यह संदेश देना और उनसे कहना कि शैतान को स्वंय पर नियंत्रण ना करने दें और उनको आदेश देना कि बोलने और अमानत में सच्चाई रखें, और जो चीज़ उनके काम की ना हो उसमें ख़ामोश रहें, आक्रमकता को छोड़ दें, एक दूसरे के क़रीब
सैरो तफ़रीह इमाम रज़ा (अ.) की निगाह में
इस दुनिया में हर व्यक्ति को सैर, तफ़रीह और ख़ुशी की आवश्यक्ता होती है हर इन्सान अपने जीवन में प्रसन्न रहना चाहता है और अगर यह सैर, तफ़रीह और प्रसन्नता अपनी हद से आगे ना निकल जाए और इन्सान किसी गुनाह और पाप में ना पड़ जाए तो यह इन्सान के लिए बहुत ही सुखद ह
इमाम हसन (अ.)की दया एवं दानशीलता
इतिहास में आया है कि किसी भी ग़रीब व फ़क़ीर को उन्होने अपने पास से बिना उसकी समस्या का समाधान किये जाने नहीं दिया। किसी ने सवाल किया कि आप किसी मांगने वाले को कभी ख़ाली हाथ क्यों नहीं लौटाते। तो उन्होने जवाब दिया“ मैं ख़ुद अल्लाह के दरवाज़े का भिखारी हूं
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम का संक्षिप्त जीवन परिचय
हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम तथा आपकी माता हज़रत फ़ातिमा ज़हरा थीं। आप अपने माता पिता की प्रथम संतान थे।
वह शर्तें जिनके आधार पर इमाम हसन ने मोआविया से सुलह की
मोआविया के बाद सत्ता इमाम हसन अलैहिस्सलाम की ओर हस्तान्त्रित होगी व इमाम हसन अलैहिस्सलाम के न होने की अवस्था में सत्ता इमाम हुसैन को सौंपी जायेगी। मोआविया को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने बाद किसी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करे।
पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का संसारिक जीवन
इमाम अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं अपने पवित्र नबीं का अनुसरण करो! पैग़म्बर ने इस संसार में केवल आवश्यकता भर चीज़ों का उपयोग किया, अपनी निगाहों को उस पर नहीं टिकाया, अपने मुंह को उससे नहीं भरा, दुनिया की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया
पैग़म्बरे अकरम (स.) की भविष्यवाणी
पैग़म्बरे अकरम ने फ़रमाया कि मेरे बाद जब दनिया में....
इमाम हसन (अ) की हदीसें
निःसंदेह सबसे अधिक देखने वाली आखें वह है जो नेक रास्ते को देख लें, और सबसे अधिक सुनने वाले कान वह हैं जो नसीहत सुने और उसने फ़ायदा उठाएं, सबसे स्वस्थ दिल वह हैं जो संदेह से पवित्र हो।
पैग़म्बरे इस्लाम के छः विशेषताएं
पैग़म्बरे इस्लाम के छः विशेषताएं
नाना की वफ़ात और नवासे की शहादत एक ही दिन
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा अपने स्वर्गवास से पहले इस्लाम को परिपूर्ण धर्म के रूप में मानवता के सामने पेश कर चुके थे।
पैग़म्बरे इस्लाम और इमाम हसन की शहादत पर विशेष
पैग़म्बरे इस्लाम (स) का स्वर्गवास हुए चौदह सौ वर्ष का समय बीत रहा है परंतु आज भी दिल उनकी याद व श्रृद्धा में डूबे हुए हैं। डेढ अरब से अधिक मुसलमान प्रतिदिन अपनी नमाज़ों में पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की गवाही देते हैं, उन पर दुरूद व सलाम भेजते हैं और उ
हज़रत इमाम रज़ा का संक्षित्प परिचय
हज़रत इमाम रज़ा का संक्षित्प परिचय
इमाम रज़ा (अ) की शहादत पर खास
पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम अपने समय में ज्ञान, समस्त सदगुणों और ईश्वरीय भय व सदाचारिता के प्रतीक थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम भी दूसरे इमामों की भांति अत्याचारी शासकों की कड़ी निगरानी में थे। अधिकांश लोग इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का मह
जानें कौन हैं हज़रत अबू तालिब
हज़रत अबू तालिब के ईमान के बारे में सवाल उठाकर उनके कैरेक्टर को गिराने की नाकाम कोशिश शुरू कर दी कि क्या अबूतालिब अल्लाह की वहदानियत (एकेश्वरवाद) और रसूल की नुबूव्वत पर ईमान लाये थे या नहीं? यह सवाल उस महान हस्ती के बारे में में उठाया गया जिनकी गोद में
इमाम हुसैन (अ) और करबला
इमाम हुसैन (अ) की शहादत के बाद से मोहर्रम केवल एक महीने का नाम नहीं रह गया बल्कि यह एक दुखद घटना का नाम है, एक उसूल व सिद्धांत का नाम है और सबसे बढ़कर सच्चाई व झूठ, ज़ुल्म तथा बहादुरी की कसौटी का नाम है।
कर्बला इमाम ख़ुमैनी की नज़र में
सय्यदुश्शोहदा हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने कुछ साथियों, क़रीबी रिश्तेदारों औऱ घर की औरतों के साथ यज़ीद के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया। चूँकि आपका आंदोलन अल्लाह के लिये था इस लिये उस दुष्ट की हुकूमत की बुनियादें (नींव) भी हिल गईं।
सातवें इमाम की विलादत के अवसर पर विशेष
129 हिजरी शताब्दी सात सफ़र को जब इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) अपने परिवार के साथ हज के बाद मदीना वापस लौट रहे थे तो, उनकी पत्नी हमीदा ने एक बच्चे को जन्म दिया, जिसका नाम छठे इमाम ने मूसा रखा। इस शुभ अवसर पर इमाम (अ) ने फ़रमाया, मेरा यह बेटा मेरे बाद इस संसार का
इमाम हुसैन (अ) के क़ातिलों का अंजाम
शियों की मोतबर किताब कामिलुज़ ज़ियारत में ज़िक्र हुआ है कि जो लोग भी इमाम हुसैन (अ) के क़त्ल में शरीक थे, इन तीन बीमारियों में से एक में ज़रूर फँसेंगें, दीवानगी, बर्स और कोढ़।
इमाम हुसैन ने मोआविया के ज़माने में आन्दोलन क्यों नहीं किया?
इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम ने मुआविया के ज़माने में आन्दोलन के लिए कोई क़दम क्यों नहीं उठाया? क्या वजह थी कि इमाम हुसैन ने मोआविया के विरुद्ध क़याम नहीं किया?

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