करबला

लो क़मा और ज़ंजीर के बाद अब गोलियों का मताम आ गया
अज़ादारी को अगर अहलेबैत की बताई हुई सीमाओं में रखा गया तो उसका सवाब जन्नत होता है, एक आँसू की क़ीमत यह हो जाती है कि सय्यदए कौनैन उसके अपने रूमाल में जगह देती हैं, लेकिन जब वह अहलेबैत की बताई हुई सीमाओं से आगे निकल जाती है तो कभी हमको हज़रत क़ासिम की शादी
दस मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
सुबह की नमाज़ के बाद इमाम हुसैन (अ) ने अपनी सेना को व्यवस्थित करना आरम्भ किया आपने ख़ैमों के सामने अपनी सेना को जिसमें 32 घुड़सवार और 40 पैदल सैनिक थे को तीन हिस्सों में बांटा, और दाहिने भाग के लिये "ज़ोहैर इबने क़ैन" को सेनापति बनाया,
नवीं मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
शिम्र इमाम हुसैन (अ) के ख़ैमों के पास आया और उसने हज़रत उम्मुल बनीन के बेटो हज़रत अब्बास, अब्दुल्लाह, जाफ़र और उस्मान को बुलाया, यह लोग बाहर आये तो उसने कहा कि मैंने तुम लोगों के लिये इबने ज़ियाद के अमान ले ली है। सभी ने कहाः ईश्वर तुम्हारी अमान और...
हज़रत अब्बास (अ) का जीवन परिचय
इस विडियो में हज़रत अब्बास (अ) के जीवन से सम्बन्धित कुछ चीजों पर (जीवन परिचय) प्रकाश डाला गया है जिससे आपको पहचानने में आसानी हो सके।
आठवी मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
उमरे साद ने सर झुका लिया और कहाः हे हमदानी मैं जानता हूँ कि इस ख़ानदान को दुख देना हराम है, मैं एक बहुत ही भावनात्मक मोड़ पर हूँ मैं नहीं जानता कि मुझे क्या करना चाहिए, रय की हुकूमत को छोड़ दूँ? वह हुकूमत जिसके शौक़ में मैं जल रहा हूँ...
 सातवीं मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
मोहर्रम की सातवीं तारीख़ को "उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद" ने एक पत्र लिखकर "उमरे साद" को आदेश दिया कि वह अपने सिपाहियों के लेकर जाए और हुसैन एवं फ़ुरात के बानी के बीच रुकावट बनके पानीं को हुसैन और उनके बच्चों तक पहुंचने से रोके और, सचेत रहे कि किसी भी अवस्था मे
हुर्र बिन यज़ीदे रियाही के जीवन पर एक नज़र
हुर्र बिन यज़ीद बिन नाजिया बिन क़अनब बिन अत्ताब बिन हारिस बिन उमर बिन हम्माम बिन बनू रियाह बिन यरबूअ बिन हंज़ला, तमीम नामक क़बीले की एक शाख़ा से संबंधित हैं (1) इसीलिये उनको रियाही, यरबूई, हंज़ली और तमीमी कहा जाता है (2) हुर्र का ख़ानदान जाहेलीयत और इस्ला
कर्बला पर चढ़ाई गई रेत की परत, माहौल हुआ और सोगवार + तस्वीरें
करबला में मोहर्रम को दिनों को और अधिक सोगवार बनाने के लिए बैनुन हरमैन और इमाम हुसैन (अ.) एवं हज़रत अब्बास (अ.) के रौज़ों पर रेत की परत चढ़ाई गई है।
तीन मोहर्रम हुसैनी क़ाफिले के साथ
आज के ही दिन उमरे सअद 6 या 9 हज़ार की सेना के साथ पैग़म्बर के नवासे हुसैन इब्ने अली की हत्या के लिये कर्बला पहुँचता है, और आपके खैमे के सामने कैंप लगाता है (2) कुछ इतिहासकारों का कहना है कि उमरे सअद के कबीले वाले (बनी ज़ोहरा) उसके पास आते हैं और उसके क़सम
करबला में मुहर्रमे हुसैनी का एक दिलफ़रेब मंज़र
इमाम हुसैन पर रोने का सवाब
हुसैन पर रोना क़ब्र में सुकून, मौत के समय ख़ुशहाली, हश्र में कब्र से निकलते समय कपड़ों के साथ और खुशी से निकलने का कारण बनता है वह ख़ुश होगा और फ़रिश्ते उसको जन्नत और सवाब की ख़ुश्ख़बरी देंगे।
दूसरी मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ
प्रसिद्ध यह है कि इमाम हुसैन का काफ़िला मदीने से मक्के होता हुआ दूसरी मुहर्रम को करबला की तपती हुई रेती पर पहुँचा है आपके साथ इस काफ़िले में आपके अहले हरम, बच्चे और आपके साथी भी थे।
आ गया आँसुओं का महीना
वास्तव में करबला की नींव उसी समय पड़ गई थी कि जब शैतान ने आदम से पहली बार ईर्ष्या का आभास किया था और यह प्रतिज्ञा की थी कि वह ईश्वर के बंदों को उसके मार्ग से विचलित करता रहेगा। समय आगे बढ़ता गया। विश्व के प्रत्येक स्थान पर ईश्वर के पैग़म्बर आते रहे
मोहर्रम के मौक़े पर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के मशहूर और भुलाए न जा सकने वाले नौहों की एलबम
मुसलिम के शहज़ादे, नौहा + वीडियो
मुसलिम के शहज़ादे मीर हसन मीर का इस साल का नया नौहा
इमाम हुसैन (अ) के महान इन्सानी गुण
हम शियों का अक़ीदा और विश्वास है कि मासूमीन (अ) हर गुण के उच्चतम बिंदु तक और हर फ़ज़ीलत के कमाल पर पहुँचे हुए हैं, और इस मामले में कोई भी उनके बराबर का नहीं है। लेकिन हर मामूस के युग के विशेष समाजिक हालात इस बात का कारण बने कि एक विशेष गुण उन हालात के आधा
करबला में अरफ़ा की कुछ मनमोहक तस्वीरें
इराक़ में आतंकवाद के विरुद्ध जारी लड़ाई और सुरक्षा ख़तरों के बावजूद लाखों इमाम हुसैन के आशिक़ अरफ़ा के दिन इमाम हुसैन की प्रसिद्ध दुआ ए अरफ़ा पढ़ने के लिये करबला पहुँचे हैं।
इमाम हुसैन (अ) कौन थे?
आपका जन्म 3 शाबान, सन 4 हिजरी, 8 जनवरी 626 ईस्वी को पवित्र शहर मदीना, सऊदी अरब) में हुआ था और आपकी शहादत 10 मुहर्रम 61 हिजरी (करबला, इराक) 10 अक्टूबर 680 ई. में वाके हुई!
इन कारणों से लड़ी गई कर्बला की जंग
जब हुकूमती यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन (अस) मदीना छोड़ने पर मजबूर हुये तो उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि...

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