सलवाते शाबानिया

اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ شَجَرَةِ النُّبُوَّةِ وَ مَوْضِعِ الرِّسَالَةِ وَ مُخْتَلَفِ الْمَلائِكَةِ وَ مَعْدِنِ الْعِلْمِ وَ أَهْلِ بَيْتِ الْوَحْيِ

सलवाते शाबानिया

اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ شَجَرَةِ النُّبُوَّةِ وَ مَوْضِعِ الرِّسَالَةِ وَ مُخْتَلَفِ الْمَلائِكَةِ وَ مَعْدِنِ الْعِلْمِ وَ أَهْلِ بَيْتِ الْوَحْيِ اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ الْفُلْكِ الْجَارِيَةِ فِي اللُّجَجِ الْغَامِرَةِ يَأْمَنُ مَنْ رَكِبَهَا وَ يَغْرَقُ مَنْ تَرَكَهَا الْمُتَقَدِّمُ لَهُمْ مَارِقٌ وَ الْمُتَأَخِّرُ عَنْهُمْ زَاهِقٌ وَ اللازِمُ لَهُمْ لاحِقٌ اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ الْكَهْفِ الْحَصِينِ وَ غِيَاثِ الْمُضْطَرِّ الْمُسْتَكِينِ وَ مَلْجَإِ الْهَارِبِينَ وَ عِصْمَةِ الْمُعْتَصِمِينَ اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ صَلاةً كَثِيرَةً تَكُونُ لَهُمْ رِضًى وَ لِحَقِّ مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ أَدَاءً وَ قَضَاءً بِحَوْلٍ مِنْكَ وَ قُوَّةٍ يَا رَبَّ الْعَالَمِينَ اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ الطَّيِّبِينَ الْأَبْرَارِ الْأَخْيَارِ الَّذِينَ أَوْجَبْتَ حُقُوقَهُمْ وَ فَرَضْتَ طَاعَتَهُمْ وَ وِلايَتَهُمْ اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَ اعْمُرْ قَلْبِي بِطَاعَتِكَ وَ لا تُخْزِنِي بِمَعْصِيَتِكَ وَ ارْزُقْنِي مُوَاسَاةَ مَنْ قَتَّرْتَ عَلَيْهِ مِنْ رِزْقِكَ،

या अल्लाह मोहम्मद और मोहम्मद के ख़ानदान पर दुरूद भेज, जो नुबूवत का दरख़्त, रिसालत स्थान, फ़रिश्तों के आने जाने का स्थान, इल्म का कान, और वही का परिवार हैं, या अल्लाह मोहम्मद और मोहम्मद के ख़ानदान पर सलवात भेज, जो गहरे समुद्र में चलती हुई कश्ती है कि जो भी उनसे मिल गया सुरक्षित हो गया, और जिसने उनको छोड़ दिया डूब गया, उन से आगे बढ़ जाने वाला दीन से बाहर (विधर्मी) है और उनसे पीछे रह जाने वाला हलाक होने वाला है और उनके साथ चलने वाला हक़ के साथ है।

या अल्लाह मोहम्मद और मोहम्मद की आल पर सलवात भेज, जो मज़बूत पनाहगाह, बेकसों की फ़रियाद सुनने वाले, भागने वालों की पनाह, और पकड़े वालों के लिये मज़बूत दस्तावेज़ हैं, या अल्लाह मोहम्मद और उनकी आल पर सलवात भेज, वह सलवात जो उनकी प्रसन्नता और हमारे लिये मोहम्मद और मोहम्मद की आल के हक़ को अदा करने वाली हो, तेरी शक्ति और ताक़त के माध्यम से हे सृष्टि के रचयता।

या अल्लाह मोहम्मद और मोहम्मद के ख़ानदान पर सलवात भेज वह पवित्र, नेक, और अच्छे हैं जिनके हक़ को तू ने सब पर वाजिब किया है, और जिनके अनुसरण को सब के लिये अनिवार्य किया है।

या अल्लाह मोहम्मद और मोहम्मद का ख़ानदान पर सलवात भेज और मेरे दिल को अपने इताअत से आबाद कर दे और अपने नाफ़रमानी से मुझे ज़लील न कर और उसके साथ से जिसके लिये तूने अपने रिज्क़ को तंग कर दिया है

بِمَا وَسَّعْتَ عَلَيَّ مِنْ فَضْلِكَ وَ نَشَرْتَ عَلَيَّ مِنْ عَدْلِكَ وَ أَحْيَيْتَنِي تَحْتَ ظِلِّكَ وَ هَذَا شَهْرُ نَبِيِّكَ سَيِّدِ رُسُلِكَ شَعْبَانُ الَّذِي حَفَفْتَهُ مِنْكَ بِالرَّحْمَةِ وَ الرِّضْوَانِ الَّذِي كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَ آلِهِ وَ [سَلَّمَ ] يَدْأَبُ فِي صِيَامِهِ وَ قِيَامِهِ فِي لَيَالِيهِ وَ أَيَّامِهِ بُخُوعا لَكَ فِي إِكْرَامِهِ وَ إِعْظَامِهِ إِلَى مَحَلِّ حِمَامِهِ اللَّهُمَّ فَأَعِنَّا عَلَى الاسْتِنَانِ بِسُنَّتِهِ فِيهِ وَ نَيْلِ الشَّفَاعَةِ لَدَيْهِ اللَّهُمَّ وَ اجْعَلْهُ لِي شَفِيعا مُشَفَّعا وَ طَرِيقا إِلَيْكَ مَهْيَعا وَ اجْعَلْنِي لَهُ مُتَّبِعا حَتَّى أَلْقَاكَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ عَنِّي رَاضِيا وَ عَنْ ذُنُوبِي غَاضِيا قَدْ أَوْجَبْتَ لِي مِنْكَ الرَّحْمَةَ وَ الرِّضْوَانَ وَ أَنْزَلْتَنِي دَارَ الْقَرَارِ وَ مَحَلَّ الْأَخْيَارِ

उसकी सहायता से जिसमें तूने अपनी कृपा से मेरे लिये रिज़्क़ को बढ़ाया है, और अपने न्याय से मुझ पर फैलाया है, और अपनी रहमत के साए में मुझे ज़िंदा रखा मुझे रोज़ी दे, यह तेरे नबी का महीना है, वह नबियों में सबसे अफ़ज़ल, शाबान जिसे तूने अपनी रहमत और मर्ज़ी के साए में ले लिया है, वह महीना जिस के दिन और रात को रसूले ख़ुदा रोज़ेदारी और नमाज़ में गुज़ारा और अपनी मौत तक अपनी पूरी क्षमता के साथ उसके लिये प्रयत्न किया केवल तेरे सामने झुकने और शाबान के सम्मान के लिये,

या अल्लाह हम को इस महीने में उनकी शैली के अनुसरण और उनकी शिफ़ाअत (सिफ़ारिश) को पाने में सहायता कर, या अल्लाह उनके मेरे लिया क़ुबूल की जाने वाली शिफ़ाअत का शफ़ी बना और अपनी तरफ़ जाने वाला रौशन रास्ता बना, हम को उनका अनुयायी बना दे ताकि जब मैं क़यामत के दिन तुझ से मुलाक़ात करूँ तो तू मुझ से प्रसन्न हो, और मेरे पापों को अनदेखा कर दे और अपनी रहमत और कृपा को मुझ पर वाजिब करे और मुझे स्वर्ग और अच्छे लोगों के बीच स्थान दे दिया हो।

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