10 रजब इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्मदिवस

दस रजब सन 195 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ और मानव जाति के मार्गदर्शन का एक और सूर्य जगमगाने लगा

हिजरी क़मरी कैलेंडर के सातवें महीने रजब को उपासना और अराधना का महीना कहा जाता है जबकि इस पवित्र महीने के कुछ दिन पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों में कुछ महान हस्तियों से जुड़े हुए हैं जिनसे इस महीने की शोभा और भी बढ़ गई है। इस प्रकार की तारीख़ें बड़ा अच्छा अवसर होती हैं कि इंसान इन हस्तियों की जीवनी पर दृष्टि डाले और उनके आचरण से मिलने वाले पाठ को अपने जीवन में उतारे और सफल जीवन गुज़ारने का गुण सीखे।

दस रजब सन 195 हिजरी क़मरी को पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ और मानव जाति के मार्गदर्शन का एक और सूर्य जगमगाने लगा। हमें ईश्वर का आभर व्यक्त करना चाहिए कि उसने इस प्रकार के प्रकाशमय आदर्शों के माध्यम से संसार को ज्योति प्रदान की ताकि लोग जीवन के विभिन्न चरणों और परीक्षाओं में ज्ञान और शिष्टाचार के इन ख़ज़ानों का सहारा ले सकते हैं तथा उनके चरित्र और जीवनशैली को अपना उदाहरण बना सकते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन केवल मुसलमानों नहीं बल्कि उन सभी इंसानों के लिए महान पथप्रदर्शक हैं जो कल्याण और मोक्ष की जिज्ञासा में रहते हैं।  इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस पर हम उनके जीवन के कुछ आयामों की समीक्षा करेंगे तथा लोगों के बीच आपसी संबंधों को मज़बूत बनाने के लिए अपनाए गए उपायों पर एक नज़र डालेंगे।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम अपने पिता इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम के शहीद हो जाने के बाद बहुत कम आयु में ही इस्लामी जगत के आध्यात्मिक नेता और मार्गदर्शक बन गए। उस समय इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की आयु मात्रा 17 साल थी। उन्होंने अपना पूरा जीवन इस्लामी ज्ञान और शिक्षाओं को सही रूप में प्रचारित करने में लगा दिया। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने यह बताया कि लोगों से मिलने जुलने और बात करने लिए क्या शैली अपनाई जाए।

इंसान समाजी प्राणी है और उसे अपनी भौतिक तथा आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे इंसानों से सहयोग की आवश्यकता होती है वह दूसरों की सहायता और संपर्क के बग़ैर अपनी क्षमताओं और योग्यताओं पर निखार भी नहीं ला सकता। जीवन में हर मनुष्य को दूसरों से संबंध रखना पड़ता है और संबंध का उत्तम मार्ग दोस्ती करना है। जो व्यक्ति दोस्त और दोस्ती जैसी विभूति से वंचित हो वह सबसे बड़ा ग़रीब और सबसे अकेला है। एसे व्यक्ति की बुद्धि भी विकसित नहीं हो पाती और उसकी गतिविधियों में उत्साह का अभाव होता है। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि मित्रों से मुलाक़ात करते रहना और संपर्क रखना उत्साह और बुद्धि के विकास का मार्ग है चाहे यह मुलाक़ात बहुत छोटी ही क्यों न हो।

दूसरों से दोस्ती अगर ईश्वर के लिए हो, सांसारिक लोभ के तहत न हो तो टिकाऊ होती है क्योंकि इसका आधार ईश्वर की इच्छा और प्रसन्नता है। इस प्रकार की मित्रता समाज के लोगों के विकास व उत्थान का मार्ग प्रशस्त करती है। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम सच्ची दोस्ती के बारे में कहते हैः जो भी ईश्वर की राह में किसी को दोस्त बनाए वह स्वर्ग में अपने आवास का निर्माण करता है।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के कथनों से यह तथ्य पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि यदि मित्रता ईश्वर की प्रसन्नता को दृष्टिगत रखकर की जाए तो इससे सदाचारी व मोमिन मनुष्य को स्वर्ग और ईश्वरीय विभूतियां मिलती हैं। इंसान अगर भले लोगों के साथ उठता बैठता है तो उसके अस्तित्व में अच्छाई और भलाई की प्रवृत्ति प्रबल होती है और इसका परिणाम कल्याण और सफलता है। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के कथनों से यह निष्कर्ष भी निकलता है कि एसे लोगों से दोस्ती करना चाहिए जिन पर ईश्वर की कृपा हो। ईमान से रिक्त और अभद्र लोगों से दूर रहने पर इस लिए बहुत अधिक बल दिया गया है कि इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के अनुसार यह दूरी तलवार के घाव से मुक्ति पाने के समान है।

उनका कथन है कि बुरे लोगों के साथ से बचो क्योंकि वह खिंची हुई तलवार की भांति होता है जिसका विदित रूप तो चमकीला है मगर उसका काम ख़तरनाक और अप्रिय है। एक अन्य स्थान पर भी इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम लोगों को बुरे तत्वों से दूर रहने की सलाह देते हुए कहा है कि बुरे लोगों के साथ उठना बैठना अच्छे लोगों के बारे में भी ग़लत सोच और ग़लत दृष्टिकोण का कारण बनता है।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम मित्रता को मज़बूत करने के लिए अपने कथनों और व्यवहार में कई बिंदुओं को रेखांकित किया है। इस संदर्भ में वे कहते हैं कि मोमिन इंसान को चाहिए कि एसे हर कार्य से बचे जिससे यह लगे कि वह दूसरों पर किए गए उपचार को जताना चाहता है। एक व्यक्ति इमाम के पास आय बड़ ख़ुश दिखाई दे रहा था।

इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम उससे उसकी ख़ुशी का कारण पूछा तो उसने उत्तर दिया कि मैंने पैग़म्बरे इस्लाम से सुना है कि मनुष्य के लिए ख़ुशी मनाने का सबसे उचित दिन वह है जिस दिन वह अपने मित्रों पर उपकार करे। आज मेरे पास दस ग़रीब दोस्त बाए और मैंने उनमें से हर किसी को कुछ न कुछ प्रदान किया। इसी लिए मैं इतना ख़ुश हैं। इमाम ने कहा कि यह तो बहुत अच्छी बात है कि ख़ुश रहो किंतु इस शर्त पर कि अपने इस उपकार को जताकर इस ख़ुशी का विनाश न करो। इसके बाद इमाम ने सूरए बक़रह आयत नंबर २६४ की तिलावत की जिसमें ईश्वर कहता है कि हे ईमान लाने वालो अपने आर्थिक उपकारों को जताकर और दूसरों को परेशान करके नष्ट न करो।

सलाह लेना और परामर्श करना भी मित्रता को मज़बूत करने का एक मार्ग है। कभी एसा होता है कि इंसान फ़ैसला लेने की स्थिति में नहीं होता एसे में उसे चाहिए कि भले लोगों से परामर्श ले और अपने लक्ष्य की प्राप्ति में उनके विचारों और सुझावों का प्रयोग करे। इस बारे में इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम  कहते हैं कि जिस व्यक्ति के भीतर भी तीन आदतें कभी भी अपने किसी काम पर पछताने पर विवश नहीं होगा। काम में जल्दबाज़ी न करे। मित्रों और निकटवर्ती लोगों से परामर्श लेता हो और जब कोई फ़ैसला कर रहा हो ईश्वर पर भरोसा करके फ़ैसला करे। जब हम किसी से सलाह लेते हैं तो उसके विचार से हमें लाभ भी पहुंचता है और हम एक प्रकार से उसका सम्मान भी कर रहे होते हैं इससे हमारे प्रति उसके भीतर भी आदरभाव उत्पन्न होता है और हमसे उसका प्रेम भी बढ़ता है।

दोस्तों को अपनी ओर आकर्षित करने और मित्रता को मज़बूत करने का एक तरीक़ा अच्छा स्वभाव भी है। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि तुम धन देकर तो लोगों को संतुष्ट नहीं कर सकते अतः प्रयास करो कि उनसे अच्छे स्वभाव से मिलो ताकि वे तुमसे ख़ुश रहें। अच्छा बर्ताव बारिश के पानी की भांति हरियाली और ताज़गी बिखेर देता है। मैत्रीपूर्ण व्यवहार कभी कभी चमत्कार का काम करता है और गहरे परिवर्तन उत्पन्न कर देता है और यह क्रम जारी रहे तो इससे मित्रता और दोस्ती की जड़ें गहरी तथा मज़बूत होती हैं और समाज के भीतर लोगों के बीच सहयोग बढ़ता है। इस्लाम धर्म की महान हस्तियां लोगों से मैत्रीपूर्ण और हार्दिक संबंध रखने को विशेष महत्व देते थे अतः उनकी ओर लोग खिंचे चले आते थे।

बहुत से लोग अपनी समस्याओं के बारे में इमामों से सहायता और मार्गदर्शन लेते थे। बक्र बिन सालेह नामक एक व्यक्ति का कहना है कि मैंने इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को पत्र लिखा कि मेरे पिता मुसलमान नहीं हैं और बड़े कठोर स्वभाव के हैं तथा मुझे बहुत परेशान करते हैं। आप मेरे लिए दुआ कीजिए और मुझे बताइए के मैं क्या करूं। क्या मैं हर हाल में अपने पिता की सेवा करूं या उनके पास से हट जाऊं। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने उसके जवाब में लिखा कि मैंने पिता के बारे में तुम्हारा पत्र पढ़ा। मैं तुम्हारे लिए नियमित रूप से दुआ करूंगा। तुम अपने पिता के साथ सहनशीलता का बर्ताव करो यही बेहतर है।

कठिनाई के साथ आसानी भी होती है, धैर्य रखो कि अच्छा अंजाम नेक लोगों की क़िस्मत है। तुम जिस मार्ग पर चल रहे ईश्वर तुम्हें उस पर अडिग रखे। बक्र बिन सालेह कहते हैं कि मैंने इमाम के सुझाव का पालन किया और अपने पिता की और सेवा करने लगा। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की दुआ का परिणाम यह निकला कि मेरे पिता मेरे लिए बहुत कृपालु हो गए और कभी मुझ पर कोई सख़ती नहीं करते थे। लोगों के साथ अच्छा बर्ताव, पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की विशेषताओं में रहा है। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम भी इस मामले में उदाहरणीय थे। वह कहते थे कि इंसान तीन विशेषताओं की सहायता से ईश्वर को प्रसन्न कर सकता है। एक यह कि बार बार ईश्वर के समक्ष क्षमायाचना करे। दूसरे यह कि नर्म स्वभाव रखे और तीसरे यह कि बहुत अधिक दान दे।

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