ادعیه و مناجات
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ شَجَرَةِ النُّبُوَّةِ وَ مَوْضِعِ الرِّسَالَةِ وَ مُخْتَلَفِ الْمَلائِكَةِ وَ مَعْدِنِ الْعِلْمِ وَ أَهْلِ بَيْتِ الْوَحْيِ
यह बड़ा बा-बरकत दिन है! शेख़ ने मिस्बाह में फ़रमाया है की ईस रोज़ ईमाम हुसैन (अस:) की विलादत हुई, ईमाम अस्करी (अ:स) के वकील क़ासिम बिन अल-हमादानी की तरफ़ से फ़रमान जारी हुआ की जुमारात 3 शाबान क़ो ईमाम हुसैन (अस:) की विलादत बा-सआदत हुई है! बस ईस दिन का रोज़ा
यह बड़ी मुबारक रातों में से है क्योंकि यह रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) के मबअस (तबलीग़ पर मामूर होने) की रात है और इस रात के कुछ विशेष अमाल हैं
उम्मे दाऊद कहती है कि मंसूर दवानेक़ी ने मदीने में सेना भेजी और हसने मुसन्ना और उनके भाई इब्राहीम को शहीद कर दिया और हसने मुसन्ना, इब्राहीम के पिता को कुछ लोगों के साथ गिरफ़्तार कर लिया, मेरा बेटा दाऊद भी उन लोगों में था।
ग़ौरतलब है कि इस्लामी कैलेंडर में रजब, शाबान और रमज़ान के महीनों को बहुत अहमियत हासिल है और बहुत सी रिवायतों में इनकी श्रेष्ठता और फ़ज़ीलत के बारे में बयान हुई हैं। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया है कि रजब का महीना ईश्वर के नज़दीक बहुत महत्वता...
रजब के महीने की 13, 14 और 15 तारीख़ के अय्यामे बीज़ कहा जाता है, इन दिनों की बहुत फज़ीलत बयान की गई है, इन दिनों के कुछ ख़ास आमाल है जिनको अंजाम देना बहुत सवाब रखता है।
रजब के महीने में यह दुआ रोज़ाना की नमाज़ों के बाद ताक़ीबात के तौर पर पढ़ी जाती है
रजब के महीने की पहली रात बहुत ही बरकतों वाली है, इस रात में कुछ आमाल बताए गए हैं जिनको करने का बहुत सवाब है, वह आमाल यह हैं...
रजब महीने की पहली शबे जुमा (गुरुवार की रात) को लैलतुर रग़ाएब कहा जाता है यानी आर्ज़ूओं और कामनाओं की रात ...
इसके बाद दो रकअत नमाज़े ज़्यारते आशूरा सुबह की नमाज़ की तरह पढ़े फिर दो रकअत नमाज़, ज़्यारते इमाम हुसैन अ. इस तरह कि क़ब्रे इमाम हुसैन अ. की तरफ़ इशारा करे और नियत करे कि दो रकअत नमाज़े ज़्यारत इमाम हुसैन अ. पढ़ता हूँ क़ुरबतन इलल्लाह नमाज़ तमाम करने के बा
मोहर्रम की पहली क़मरी साल का पहला दिन है। इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) से रिवायत हैः जो भी इस दिन रोज़ा रखे, ईश्वर उसकी प्रार्थना को स्वीकार करता है, जिस प्रकार उसने ज़करिया (अ) की दुआ को क़ुबूल किया। (8)
फिर आपने अपने चेहरे और आँखों को आसमान की तरफ़ उठाया और आपकी दोनों आँखों से दो मश्कों की तरह आँसू जारी थे फिर आपने बुलंद आवाज़ में कहाः
यह दुआ इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की दुआओं की प्रसिद्ध किताब सहीफ़ए सज्जादिया की 47वीं दुआ है जिसकों इमाम (अ) ने अरफ़ा के दिन पढ़ा है इसलिये मोमिनों को चाहिए कि इस दिन बहुत अधिक समय दुआ और तौबा व इस्तेग़फ़ार में बिताएं और यह दुआ पढ़ें