मुहर्रम खास दिन और आमाल
बुशरा अलवी
मासूमीन (अ) की नज़र में मोहर्रम
इमाम रज़ा (अ) से रिवायत हैः
जब मोहर्रम का महीना आ जाता था तो मेरे पिता हंसते दिखाई नहीं देते थे, गंम और दुख उनपर पहले दस दिन तक गालिब रहता था, और आशूरा का दिन, ग़म मुसीबत और उनके रोने का दिन था। (1)
इसी प्रकार इमाम रज़ा (अ) आशूरा के बारे में इस प्रकार फ़रमाते हैं:
जो भी आशूरा के दिन ग़मगीन और रोता हुआ रहे, ईश्वर क़यामत के दिन को उसके लिये प्रसन्नता और ख़ुशी का दिन बनाएगा। (2)
चाँद रात के आमाल
1. नमाज़ः इस रात में कई नमाज़ें हैं कि जिनमें से एक इस प्रकार हैः
दो रकअत नमाज़, जिसकी हर रकअत में अलहम्द के बाद ग्यारह बार सूरा क़ुलहुवल्लाह पढ़ा जाए।
इस नमाज़ की फ़ज़ीलत के बारे में आया हैः
इस नमाज़ को पढ़ना और उस दिन रोज़ा रखना अमनियत का कारण है और जो भी इस अमल को अंजाम दे वह ऐसा है कि जैसे उसने पूरे साल नेक कार्य किये हो। (3)
2. इस रात में जागना।
3. दुआ और प्रार्थना।
पहली मोहर्रम
मोहर्रम की पहली क़मरी साल का पहला दिन है। इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ) से रिवायत हैः जो भी इस दिन रोज़ा रखे, ईश्वर उसकी प्रार्थना को स्वीकार करता है, जिस प्रकार उसने ज़करिया (अ) की दुआ को क़ुबूल किया। (4)
1. दो रअकत नमाज़ पढ़ी जाए और उसके बाद तीन बार इस दुआ को पढ़ा जाए।
«اللّهم انت الاله القديم و هذه سنةٌ جديدةٌ فاسئلك فيها العصمة من الشيطان و القوَّة علي هذه النّفس الامّارة بالسُّوء»(5)
हे सदैव बाक़ी रहने वाले ईश्वर और यह साल, नया साल है और मैं तुझसे प्रार्थना करता हूँ कि मुझ इस साल में शैतान से सुरक्षित रखना और नफ़्से अम्मारा (बुराई की तरफ़ बुलाने वाला) की बुराई पर सफ़लता दे।
दूसरी मोहर्रम
इसी दिन इमाम हुसैन (अ) का काफ़िला 61 हिजरी में कर्बला की जलती हुई धरती पर आया था और हुर की सेना द्वारा रोके जाने के बाद आप कर्बला में रुकने पर विवश हुए थे। (6)
तीसरी मोहर्रम
पैग़म्बरे इस्लाम (स) से रिवायत हैः जो भी इस दिन रोज़ा रखे ख़ुदा उसकी दुआ को स्वीकार करता है। (7)
इसी दिन उमरे साद की सेना कर्बला में आई थी।
चौथी मोहर्रम
इस दिन इमाम हुसैन (अ) ने उमरे साद और उसकी सेना को युद्ध से दूर रहने और उसको उसकी सेना के साथ इस्लामी सेना में प्रवेश के लिया कहा लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला।
सातवीं मोहर्रम
इस दिन के बारे में कहा जाता है कि इसी दिन इमाम हुसैन (अ) पर पानी बंद किया गया या फिर इसी दिन से इमाम हुसैन (अ) के ख़ैमों में पानी समाप्त हो गया।
इस दिन रोज़ा रखना मुस्तहब है।
नवी मोहर्रम
इस दिन को तासूआ भी कहा जाता है इस दिन इमाम हुसैन (अ) और उनके साथियों को शिमर की सेना ने घेरा था। (8)
शबे आशूर के आमाल
1. इस रात में कई नमाज़ों के बारे में बयान आया है जिनमें से एक यह हैः
चार रकअत नमाज़ कि जिसकी हर रकअत में अलहम्द के बाद 50 बार सूरा क़ुल हुवल्लाह पढ़ा जाये। नमाज़ के बाद 70 बार «سبحان الله والحمدالله و لا اله الاّ الله و الله اكبر ولا حول ولا قوة الاّ بالله العليّ العظيم» पढ़ें (9)
2. इमाम हुसैन (अ) की क़ब्र के पास सारी रात जागना। (10)
3. दुआ और प्रार्थना। (11)
आशूरा का दिन
यह बहुत की क़यामत का दिन है यही वह दिन है कि जब पैग़म्बर का घर उजड़ गया, यहीं वह दिन है कि जब पैग़म्बर का छोटा नवासा अपने छः महीने के बच्चे के लिये पानी मांगता रहा लेकिन किसी ने एक बूंद पानी नहीं दिया बल्कि उसकी प्यास के लिये एक तीन भाल का तीर चला और बच्चा बाप के हाथों पर........
1. इमाम हुसैन और कर्बला के शहीदों पर अज़ादारी की जाए। इस बारे में इमाम रज़ा (अ) फ़रमाते हैं:
जो भी इस दिन कारोबार को छोड़ दे, ईश्वर उसकी इच्छाओं को पूरा करेगा और जो भी इस दिन दुख़ी और ग़मगीन रहे ख़ुदा क़यामत के दिन को उसके लिये ख़ुशी का दिन बनाएगा। (12)
2. ज़ियारते इमाम हुसैन (अ) (13)
3. इस दिन रोज़ा रखना मकरूह है, लेकिन बेहतर यह है कि फ़ाक़ा करे और अस्र की नमाज़ तक कुछ भी खाने पीने के परहेज़ करे। (14)
4. इमाम हुसैन (अ) के ज़ाएरों (श्रद्धालुओं) को पानी पिलाना। (15)
5. एक हज़ार बार सूरा क़ुल हुवल्लाह पढ़ना। (16)
6. ज़ेयारते आशूरा पढ़ना। (17)
7. हज़ार बरा यह कहना اللّهم العن قتلة الحسين(عليه السلام) (18)
बारह मोहर्रम
इसी दिन इमाम हुसैन (अ) का लुटा हुआ क़ाफ़िला कर्बला से क़ूफ़ा की तरफ़ चला और एक रिवायत के अनुसार इसी दिन इमाम सज्जदा (अ) की सन 94 हिजरी में शहादत हुई।
एक्कीस मोहर्रम
1. इस दिन रोज़ा रखना अच्छा है। (19)
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1. वसाएलुश शिया, जिल्द 5, पेज 394, हदीस 8
2. वसाएलुश शिया, जिल्द 5, पेज 394, हदीस 7
3. बिहारुल अनवार, जिल्द 98, पेज 333
4. मिसबाहुल मुजतहिद, पेज 783
5. बिहारुल अनवार, जिल्द 98, पेज 324
6. उरवतुल वुस्क़ा, जिल्द 2, पेज 243
7. बिहारुल अनवार जिल्द 98, पेज 334
8. फ़रहंगे आशूरा, पेज 406
9. उरवतुल वुस्क़ा, जिल्द 2, पेज 242
10. वसाएलुश शिया, जिल्द 7, पेज 339, हदीस 1
11. वसाएलुश शिया, जिल्द 7, पेज 339, हदीस 4 और 5
12. बिहारुल अनवार, जिल्द 98, पेज 340
13. बिहारुल अनवार, जिल्द 98, पेज 338
14. बिहारुल अनवार, जिल्द 98, पेज 43
15. कामेलुज़ ज़ियारात, पेज 174, हदीस 5 और 6
16. वसाएलुश शिया, जिल्द 7, पेज 338, हदीस 7
17. कामेलुज़ ज़ियारात, पेज 174, हदीस 5
18. वसाएलुश शिया, जिल्द 7, पेज 339, हदीस 8
19. कामेलुज़ ज़ियारात, पेज 174
20. मफ़ातीहुल जनान, पेज 298
21. बिहारुल अनवार, जिल्द 98, पेज 345, हदीस 1
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