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राजा ने यूसुफ़ को आज़ाद करने का आदेश दिया लेकिन हज़रत यूसुफ़ ने कहा कि वे उस समय आज़ाद होना पसंद करेंगे जब उन पर लगे आरोपों की जांच हों और वे निर्दोष साबित हो जाएं। अंततः ज़ुलेख़ा ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और कहा, अब सत्य सिद्ध हो चुका है, मैंने काम व
यह दुआ इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की दुआओं की प्रसिद्ध किताब सहीफ़ए सज्जादिया की 47वीं दुआ है जिसकों इमाम (अ) ने अरफ़ा के दिन पढ़ा है इसलिये मोमिनों को चाहिए कि इस दिन बहुत अधिक समय दुआ और तौबा व इस्तेग़फ़ार में बिताएं और यह दुआ पढ़ें
कितने आश्चर्य की बात है कि इन्सान को अपनी मौत की ख़बर नहीं है इसके बावजूद वह इतनी बुराईया, झूठ, चोरी अत्याचार, रिश्वतख़ोरी आदि करता है तो अगर उसको पता चल जाता कि उसकी मौत कब आएगी जैसे अगर उसको मालूम होता की अभी 20 साल वह और जीवित रहेगा तो क्या नहीं करता!
शिया समुदाय का विश्वास यही है कि ईश्वर के अलावा कोई और प्रभावी नहीं है और अगर ईश्वर के अतिरिक्त किसी और में कुछ करने की क्षमता है तो वह इसलिए है कि उन्हें यह सब कुछ अल्लाह ने प्रदान किया है अस्तित्व का स्रोत केवल ईश्वर है जिसके संदर्भ में अहले बैत
आज के ज़माने में नारी को पुरूष के बराबर होने का नारा लगाया जा रहा है और इस्लाम पर तरह तरह के आरोप लगाने वाले इस वास्तविक्ता को भूल जाते हैं कि नारी के लिए इस प्रकार की सही सोंच और उनके सम्मान एवं अधिकार की बातें इस्लाम की ही देन है
मुहम्मद (स) अरब में छठी शताब्दी में पैदा हुए, मगर इससे बहुत पहले उनके आगमन की भविष्यवाणी वेदों में की गई हैं। महाऋषि व्यास के अठारह पुराणों में से एक पुराण ‘भविष्य पुराण’ हैं। उसका एक श्लोक यह हैं:
कुछ रिवायतों में मिलता है कि सबसे पहला ज़ुल्म कुफ़्र व शिर्क है, जब हज़रत इमाम महदी (अ) की अदालत कायम होगी तो इस तरह का ज़ुल्म का दुनिया से नाम व निशान मिट जायेगा। इस बारे में अबु बसीर की रिवायत है...
आपका जन्म 3 शाबान, सन 4 हिजरी, 8 जनवरी 626 ईस्वी को पवित्र शहर मदीना, सऊदी अरब) में हुआ था और आपकी शहादत 10 मुहर्रम 61 हिजरी (करबला, इराक) 10 अक्टूबर 680 ई. में वाके हुई!
फारसी भाषा और साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डाक्टर हद्दाद आदिल जिनकी लड़की आयतुल्लाह ख़ामेनेई की बहू है की शादी के बारे में बयान करते हुए कहते हैं: उस समय मेरी बेटी ने डिप्लोमा किया था और कम्पटीशन परीक्षा दी थी...
गर्भवती महिला को गर्भधारण के दौरान यदि ख़ून दिखाई दे तो उसे अवश्य ही आराम करना चाहिए और खड़े मसूर, अनार के फूल और छिलके का प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार से कि इन वस्तुओं को एक साथ उबाल कर उबले हुए पानी में बैठना चाहिए
हम जानते हैं कि ईश्वरीय दरबार से शैतान के निकाले जाने का मुख्य कारण अहंकार ही था। इब्लीस फ़रिश्तों में नहीं था किन्तु ईश्वरीय आदेश के पालन के कारण वह उस स्थान पर पहुंच गया था जो फ़रिशतों से विशेष था किन्तु उसने जो स्थान प्राप्त किया था उसे अहंकार के कारण
जब हुकूमती यातनाओं से तंग आकर हज़रत इमाम हुसैन (अस) मदीना छोड़ने पर मजबूर हुये तो उन्होने अपने आंदोलन के उद्देश्यों को इस तरह स्पष्ट किया। कि मैं अपने व्यक्तित्व को चमकाने या सुखमय ज़िंदगी बिताने या फ़साद करने के लिए आंदोलन नहीं कर रहा हूँ। बल्कि...
क़ुरआने मजीद के अल्फ़ाज़ व इबारात और बयानात की तफ़सीर उस के नाज़िल होने के ज़माने से ही शुरु गो गई थी और ख़ुद पैग़म्बरे अकरम (स) क़ुरआन की तालीम उस के मअनों के बयानात और आयतों के मक़सद की वज़ाहत किया करते थे जैसा कि ख़ुदा वंदे आलम का इरशाद है...
ईद के दिन और हज की विशेष पोशाक में, तेज़ धूप में प्यास की दशा में असहाय होकर हज़ारों हाजी मारे गये थे और उससे कुछ पहले भी काबे में उपासना और परिक्रमा व नमाज़ के दौरान बहुत से हाजियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था
स्वस्थ मनोरंजन एवं ख़ाली समय को भरने के लिए इस्लाम व्यायाम एवं खेलकूद की सिफ़ारिश करता है। आप एक दिन में या एक सप्ताह में या एक महीने में अपना कितना समय व्यायाम एवं खेलकूद में बिताते हैं...
आज कुछ वहाबी मुल्कों की घिनौनी हरकतों की वजह से पूरे इस्लामिक जगत के मुल्कों के बारे में आम जनता के बीच में कुछ गलत धारणाएं बन गयी हैं जो कि बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है। कुछ चंद देशों की गलत करतूतों की वजह से...
इब्ने तैमिया और दूसरे वहाबियों ने ईश्वर के सम्बंध में ऐसी ऐसी बातें कहीं है कि जिनके बारे में एक मुसलमान तो दूर की बत ग़ैर मुसलमान भी सोंच नहीं सकता है जैसे उनका कहना है कि ईश्वर मच्छर पर बैठकर सवारी करता है...
ज़ीक़ादा का अन्तिम दिन पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम के पौत्र इमाम जवाद की शहादत का दिन है। सन 220 हिजरी क़मरी को आज ही के दिन अब्बासी शासक “मोतसिम” के आदेश पर इमाम मुहम्मद बिन अली को शहीद कर दिया गया।
चाँद का देखा जाना इस्लामी फ़िक़्ह का बहुत ही अहम मसअला है जिसके बारे में हमारे मराजे और विद्वानों ने बहुत सी किताबें लिखी हैं, और इस्लामी शरीअत के बहुत से काम जैसे रमज़ान के रोज़े, हज, ईद, बक़्रईद शबे क़द्र जैसी चीज़ें चाँद से ही साबित होती हैं
आयतुल्लाह सीस्तानी 1930 में ईरान के शहर मशहद में पैदा हुए, पाँच साल की आयु से ही अपने क़ुरआन की तालीम हासिल करना शुरू कर दिया, और धार्मिक शिक्षा के लिये दारुत्तालीम नामी मदरसे में दाख़िला लिया। 1941 में आपने अपने पिता की मर्ज़ी के अनुसार धार्मिक शिक्षा...