मोहर्रम के सदाबहार नौहे + एलबम
जब भी इमाम हुसैन के ग़म और उन पर सोगवारी की बात आती है तो दुनिया का हर इंसान अपने अपने अंदाज़ में अलग अलग तरह से फ़ातेमा ज़हरा को उनके लाल हुसैन का पुरसा देता है कोई उन पर किताब लिखता है तो कोई लेख और कोई पेंटिग या किसी और तरह से अपने ग़म को बयान करता है
- मैं गा़ज़ी हाँ
- बस राज करेगी करबोबला
- सख़ी अब्बास अलमदार
- अइ अलम अफ़राश्ते
- भाई अब्बास तेरे ग़म में
- रो ले सकीना रो ले
- दो बार नमाज़ शहीद हुई एक मस्जिद में
- रो कर सकीना शाम के ज़िंदां में मर गई
- ऐ मदीना ग़ज़ब हो गया
- ऐ शिम्र ज़रा कुछ रहम कर
- सकीना मर गई
- हाय मेरी वीर हुसैन
- हाय हाय अली अकबर कहती थी यह अम्मा
- अना अबी इब्नुल हुसैन
- वादए दीदार नज़दीक है
- ऐ मेरी लाडली ज़ैनब
- कैसे दरबार गई
- आशूर का मंज़र है
- काफ़ेला जा रहा है
- बराए दिले दुख़्तर
- कैेसे भूले तुझे उम्मे लैला अकबर
- नन्हे मुजाहिद रन में जाकर
- चले आओ ऐ ज़ुव्वारों
- ग़ाज़ी उठ देख
- कर कर के याद सकीना को बग़दाद का क़ैदी रोता है
- याद आई न तुम्हें फ़ातेमा सुग़रा बाबा
- दुर मेरे आबिद को न लगाए कोई
- मैं हुसैन हूँ
- क़ाफेला सादात का है
- ज़ैनब आ गई भाई
- मुझ नौकर हुसैन नू
- ज़िन्दा रहना है तो शब्बीर पे मरना होगा
- लोरी (पंजाबी)
- पैकान बरस रहे हैं ताबूत पे हुसैन के
- मोहम्मद हमारे बड़ी शान वाले
- या ग़रीब हुसैन
- शामे ग़रीबां
- आ जाएं बाबा जान
- या अली
- शामे ग़रीबां में
- अलमदार ग़ाज़ी
- अम्मां मैं घर बार लुुटा के आ गई
- इतनी भी क्या जल्दी इब्ने ज़हरा
- बैलुन हरमैन बैनुल हरमैन
- बिन्ते रसूल अल्लाह
- चलो चलो करबला चलो
- दिया जलाए रखना
- फरियाद करो फ़िरयाद करो
- करबला रस्म नहीं
- गूंज रही है यह सदा या हुसैन
- हाय ज़हरा हाय बाली सकीना
- क़ैदी बनी खड़ी है करबल में सानिये ज़हरा
- हम हैं हुसैनी
- हुसैन मज़लूम करबला दा
- इश्क़ हैदर मदद मदद
- यह ख़त में बाबा को कहती
- हुसैन हुसैन मौला
- महलन महला यबनज़ ज़हरा
- मैं चुप दियां
- सच है सफ़र से मेरे बाबा हुसैन आए
- न कर क़ुबूत तू हम बेकसों के आने को
- बीबी फ़िज़्ज़ा का है मरसिया काफेला आ गया
- रब जाने हुसैन जानें
- बाब तुम या आए
- ज़हरा की बेटियों की रिदाएं उतर गईं
- सकीना के ताबूत पर
- ज़िंदा दे विच पई आ के ज़ैनब
- सारी दुनिया की शीअत का एक ही नारा
- है मेहदीए दौरां की यह आवाज़
- शामे ग़रीबां शामें ग़रीबां
- मातम हुसैन जू
- तेरी ज़हरा पे मुसीबत की घड़ी है
- इब्ने अली तेरी क़सम अज़्म जवां है
- वावैला वावैला करो वावैला
- अस्सलाम अलैका या अबा अब्दिल्लाह
- या हबीब या ग़रीब या हुसैन
जब भी इमाम हुसैन के ग़म और उन पर सोगवारी की बात आती है तो दुनिया का हर इंसान अपने अपने अंदाज़ में अलग अलग तरह से फ़ातेमा ज़हरा को उनके लाल हुसैन का पुरसा देता है कोई उन पर किताब लिखता है तो कोई लेख और कोई पेंटिग या किसी और तरह से अपने ग़म को बयान करता है लेकिन तमाम चीज़ों में नौहे और मरसियों का अपना अलग मक़ाम है जिसकी तारीख़ हमको मासूमीन के ज़माने से आज तक मिलती है। इसी तारीख़ को आगे बढ़ाते हुए हम आपके सामने हुसैन की मज़लूमिय और को बयान करने वाले सदाबहार नौहे लेकर आए है
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