सातवीं मोहर्रम हुसैनी क़ाफ़िले के साथ

मोहर्रम की सातवीं तारीख़ को "उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद" ने एक पत्र लिखकर "उमरे साद" को आदेश दिया कि वह अपने सिपाहियों के लेकर जाए और हुसैन एवं फ़ुरात के बानी के बीच रुकावट बनके पानीं को हुसैन और उनके बच्चों तक पहुंचने से रोके और, सचेत रहे कि किसी भी अवस्था मे

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

मोहर्रम की सातवीं तारीख़ को "उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद" ने एक पत्र लिखकर "उमरे साद" को आदेश दिया कि वह अपने सिपाहियों के लेकर जाए और हुसैन एवं फ़ुरात के बानी के बीच रुकावट बनके पानीं को हुसैन और उनके बच्चों तक पहुंचने से रोके और, सचेत रहे कि किसी भी अवस्था में पानी हुसैनी ख़ैमों तक न पहुंचने पाए। (1)

उमरे साद को जैसे ही इबने ज़ियाद का यह पत्र मिला उसने बिना किसी देरी के तुरन्त "उमर बिन हज्जाज" को 500 घुड़सवारों के साथ फ़ुरात पर लगा दिया और इस प्रकार उसने हुसैनी ख़ैमों तक पानी पहुँचने न दिया।

इस दिन यानी सात मोहर्रम को एव व्यक्ति जिसका नाम "उबैदुल्लाह बिन हसीन अज़दी" था और जो "बजीला" क़बीले से संबंधित था ने चिल्लाकर कहाः अब तुम पानी को आसमान के रंग की तरह नही देख पाओगे, ईश्वर की सौगंध उसका एक क़तरा भी तुम न पी पाओगे, यहां तक कि तुम प्यास से जान दे दोगे।

इमाम हुसैन (अ) ने जब इस व्यक्ति की यह अपमानजनक बातें सुनीं तो आपने फ़रमायाः

"हे ईश्वर उसको प्यास से मार दे और उसको कदापि अपनी कृपा का पात्र न बना।"

हमीद बिन मुसलिम कहता हैः ईश्वर की सौगंध इमाम हुसैन की इस बद दुआ के बार उससे भेंट के लिये गया, जब्कि वह बीमार था, (हमीद कहता है) मुझे क़सम है उस अल्लाह की जिसके अतिरिक्त कोई ईश्वर नहीं है। "मैंने देखा कि उबैदुल्लाह बिन हसीन, इतना पानी पीता था कि उसका पेट फूल जाता था और उलटी कर देता था और चिल्लाता थाः प्यास, प्यास, उसके बाद फिर पानी पीता था लेकिन उसकी प्यास नहीं बुझती थी, और उसके साथ ऐसा ही रहा यहां तक कि वह प्यास से मर गया"।(2)

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(1)    अंसाबुल अशराफ़, जिल्द 3, पेज 180

(2)    इरशाद, शेख़ मुफ़ीद, जिल्द 2, पेज 86

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