इमाम अली (अ) अपनी सेना से ख़िताब
इमाम अली (अ) अपनी सेना से ख़िताब
तुम हक़ क़े क़ायम करने में मेरे नासिर व मददगार (सहायक) हो एक दूसरे के भाई भाई हो और सख़्तियों (कठिनाइयों) में मेरे सिपर (ढ़ाल) हो, और तमाम लोगों को छोड़ कर तुम ही मेरे राज़दार (भेद जानने वाले) हो। तुम्हारी मदद से रूगर्दानी (अवज्ञा) करने वाले पर मैं तलवार चलाता हूं और पैश क़दमी करने वाले की इताअत (आज्ञाकारित) की तवक़्क़ो (आशा) रखता हूं। ऐसी ख़ैर ख़्वाही (शुभ चिन्ता) के साथ मेरी मदद करो कि जिस में धोका फ़रेब (छल कपट) ज़रा न हो और शक व बद गुमानी का शायबा (अंश) तक न हो। इस लिये कि मैं ही लोगों की इमामत के लिये सब से अवला व मुक़द्दम (मुख़्य एवं प्रधान) हूं।
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नहजुल बलाग़ा ख़ुत्बा-116
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