इमाम अली (अ) ने अपनी हुकूमत में फ़िदक वापस क्यों नहीं लिया?
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
हम जानते हैं कि जब हज़रते ज़हरा से फ़िदक छीना गया और आपने उसे पाने का प्रयत्न किया, उसके न मिलने पर आपने मस्जिद में ख़ुत्बा दिया उसके बाद किसी ने कहा कि अगर अली पहले आते तो हम अली की बैअत करते तो फ़ातेमा कहती हैं कि ग़दीर के बाद किसी के पास कोई बहाना नहीं रह जाता है, और आपकी इस बात से हमको पता चलता है कि फ़िदक एक ज़मीन के टुकड़े की लड़ाई नहीं थी बल्कि यह मसअला था इमामत, जानशीनी और पैग़म्बर के उत्तराधिकारी का।
विशेषकर हारून के ज़माने में जब इमाम मूसा काज़िम (अ) से हारून रशीद कहता है कि आप मुझे फ़िदक की सीमाएं बताएं ताकि मैं आपको फ़िदक वापस कर दूँ, तो उस समय आप उस समय के सारी इस्लामी देशों का नाम लेते हैं और कहते हैं कि फ़िदक यह है। जिसका अर्थ यह है कि फ़िदक, ख़िलाफ़त और विलायत की बहस है।
और ख़ुद जब फ़ातेमा ज़हरा फ़िदक की बात कहती हैं तो लोग कहते हैं कि अगर अली पहले आए होते तो हम उनकी बैअत करते, लोगों द्वारा बैअत के शब्द का प्रयोग करना बता रहा है कि फ़िदक किसी ज़मीन के टुकड़े पर लड़ी जाने वाली लड़ाई नहीं थी बल्कि फ़ातेमा फ़िदक की आंड़ में ख़िलाफ़त को उसके वास्तविक स्थान पर पलटाना चाह रहीं थीं।
फ़िदक के संदर्भ में बहुत से प्रश्न किये जाते हैं, हम इस लेख में उनमें से कुछ प्रश्नों को बयान करेंगे।
प्रश्न किया जाता है कि अगर फ़िदक फ़ातेमा का हक़ था तो अमीरुल मोमिनीन (अ) ने अपनी हुकूमत के ज़माने में उसको क्यों नहीं दिया? और दूसरी बात इमाम अली ने ख़ुम्स और मुता को नबी की सुन्नत के अनुसार उसके वास्तविक स्थान पर क्यों नहीं पलटाया?
इसके बारे में बहुत सारे उत्तर दिए जा सकते हैं
उनमें से एक यह है कि जैसा कि हमने बताया कि फ़िदक मसअला है विलायत और इमामत का, उस ज़माने में अली स्वंय ख़लीफ़ा हैं, फ़िदक उनके हाथों में है, आप किस को पलटाएं!
यहां पर बहुत से प्रश्न हैं लेकिन हम अपने इस लेख में एक अलग दृष्टिकोण से इसको देखने का प्रयत्न करेंगे, आईये हम और आप यहीं प्रश्न स्वंय इमाम अली से करते हैं कि
हे मौला आपने अपनी हुकूमत के ज़माने में फ़िदक को क्यों नहीं पलटाया?
आज वहाबी चैनल यह प्रश्न उठाते हैं कि क्या अली ने कहा था कि ख़ुम्स दिया जाए क्या इमाम हसन और हुसैन ने ख़ुम्स लिया था क्या इमाम सज्जाद ने ख़ुम्स लिया था?
यह वहाबी कहते हैं कि इन इमामों के युग में ख़ुम्स नाम की कोई चीज़ नहीं थी, या अली ने फ़रमाया है कि मुता करो?
इस चीज़ को पूरी तरह समझने के लिए हमको देखना होगा कि आख़िर ऐसा क्या हुआ कि वह अमीरुल मोमिनीन जिनकी ग़दीर के मैंदान में एक लाख से आधिक लोगों ने बैअत की थी उसी अली के हाथों से पैगम़्बर की वफ़ात के बाद ख़िलाफ़त निकल जाती हैं।
जो इस बात को सही प्रकार से समझना चाहता है कि उसको चाहिए कि वह बनी इस्राईल की कहानी को ध्यान पूर्वक पढ़े कि वह हज़रते मूसा जिन्होंने लोगों से हारून के लिए बैअत ली थी, वही जब कुछ दिनों के लिए अपनी कौम से बाहर चले जाते हैं तो उनकी क़ौम के मुनाफ़िक़ लोग हारून को हटा देते हैं और पूरी क़ौम को ख़ुदा परस्ती से गाय की पूजा पर ला कर खड़ा कर देते हैं।
दूसरी बात जिस पर ध्यान देना आवश्यक है वह यह है कि जब अली ख़लीफ़ा बनाए जाते हैं तो क्या उनको इतना अधिकार था कि वह जो चाहते वह कर सकते थे?
प्रश्न यह है कि अब जब्कि अली ख़लीफ़ा बन गए है तो क्या उनको यह अधिकार है कि वह नबी की सुन्नत के अनुसार कार्य करें या फिर उनकी ख़िलाफ़त से पहले धर्म से कुछ चीज़ें बाहर जा चुकी और कुछ नहीं चीज़ें प्रवेश कर चुकी थी?
जैसे दूसरे ख़लीफ़ा कहते हैं कि
متعتان کانتا علي عهد رسول الله و انا احرمهما و اعاقب
पैग़म्बर के ज़माने में दो मुता हलाल थे और मैं उनको हराम कर रहा हूँ और उनको करने वालों को सज़ा दूँगा।
दूसरे ख़लीफ़ा ने दीन में कुछ सुन्नतें पैदा कर दी थी और जब अली ख़लीफ़ा बनते हैं तो उनके सामने यह प्रश्न है कि वह क्या करें पैग़म्बर की सुन्नत के अनुसार कार्य करें या फिर दूसरे ख़लीफ़ा की सुन्नत के अनुसार क्यों कि यह दोनों सुन्नतें एक दूसरे के विरुद्ध थी।
प्रश्न यह किया जाता है कि अमीरुल मोमीनीन ने ख़ुम्स लिया था या नहीं अगर नहीं लिया था तो तो ख़ुम्स लेने की क्या दलील है?
अमीरुल मोमिनीन ने अपनी हुकूमत के ज़माने में फ़िदक को वापस क्यों नहीं पलटाया ?
क़िताबे काफ़ी अपनी सही सनद के साथ जिसमें हम्माद बिन ईसा जैसा व्यक्ति है जिसको असहाबे इजमा में रखा जाता है (असबाहे अजमा वह लोग हैं जिनकी कहीं हुआ हर रिवायत सही है) से इमाम अली का एक ख़ुतबा नक़्ल किया है जिसका सारांश यह है कि अमीरुल मोमिनीन ने कहा है कि जब जब मैंने इस्लाम में कुछ करने का प्रयत्न किया जब जब किसी बुराई को हटाने की कोशिश की तो यही लोग जिन्होंने मुझे ख़लीफ़ा बनाया था मेरे विरुद्ध खड़े हो जाते थे और उनकी ज़बाने विरोध में खुल जाती थीं।
अमीरुल मोमिनीन अपने इस ख़ुत्बे में 26 चीज़ों को बयान करते हैं और कहते हैं कि अगर मैं इनको सही करता तो तुम लोग क्या करते और तुम्हारी प्रतिक्रिया क्या होती
फ़िर उसमे बाद आप एक मिसाल देते हैं कि
وَ اللَّهِ لَقَدْ أَمَرْتُ النَّاسَ أَنْ لَا یَجْتَمِعُوا فِی شَهْرِ رَمَضَانَ إِلَّا فِی فَرِیضَةٍ وَ أَعْلَمْتُهُمْ أَنَّ اجْتِمَاعَهُمْ فِی النَّوَافِلِ بِدْعَةٌ فَتَنَادَى بَعْضُ أَهْلِ عَسْکَرِی مِمَّنْ یُقَاتِلُ مَعِی یَا أَهْلَ الْإِسْلَامِ غُیِّرَتْ سُنَّةُ عُمَرَ
मैं ने लोगों को यह आदेश दिया कि रमज़ान में जमाअत से नमाज़ न पढ़ें मगर वाजिब नमाज़ों में, यानी केवल वाजिब नमाज़ों को जमाअत से पढ़ो मुस्तहेब को नहीं..... यह बिदअत है तो मेरी सेना को वह लोग जो मेरे साथ दुश्मनों से लड़ते थे जो मेरे आदेश पर अपनी जान क़ुर्बान करने के लिए तैयार थे वहीं मेरे विरुद्ध खड़े हो गए और कहने लगे हे मुसलमानों उमर की सुन्नत बदल दी गई
अमीरुल मोमिनीन ख़लीफ़ा तो बन गए लेकिन इस ऐतेबार से नहीं कि वह ऐसे इमाम हों जिनका अनुसरण करना वाजिब हो, जो नफ़्से पैग़म्बर हो, इस ऐतेबार से नहीं कि वह ख़ुदा की तरफ़ से इन लोगों के लिए इमाम बनाए गए हों, नहीं! मुसलमानों ने आपको ख़लीफ़ा बनाया था इस ऐतेबार से कि तीसरे ख़लीफ़ा के बाद कोई ख़लीफ़ा नहीं था तो अली को बना दिया गया, इन मुसलमानों के कानों में पहले ख़लीफ़ा की यह बात अभी भी गूंज रही थी कि जब उन्होंने कहा कि अगर मैं कोई ग़लत कार्य करूँ तो मुझे सीधा कर देना।
यह मुसलमानों के दिल में बस चुका था कि ख़लीफ़ा ग़ल्ती कर सकता है और हमको उसे सीथा करना चाहिए।
हम अपने इस लेख में यही साबित करेंगे कि पहले और दूसरे ख़लीफ़ा ने दीन में कुछ ऐसी चीज़ों को शामिल कर दिया था जो दीन का अंग नहीं थीं और कुछ ऐसी चीज़ों को दीन से बाहर कर दिया था जो दीन का हिस्सा थीं और लोगों को इसी बात की आदत हो चुकी थी और लोग इसी को वास्तविक दीन समझने लगे थे।
अमीरुल मोमिनीन किसी चीज़ को वापस पलटाते
फ़िदक को पलटाते?
उसके बारे में तो पहले ही कहा जा चुका था कि वह आपकी सम्पत्ती नहीं है, मुतआ को अपने स्थान पर पलटाते, जिसके बारे में यह कहा जा चुका था कि यह इस्लाम का हिस्सा नहीं है, वुज़ू, ग़ुस्ल अहकाम को अपने स्थान पर पलटाते जिसके बारे में यह कहा जा चुका था कि इस्लाम मे यह चीज़ें हैं ही नहीं, ख़लीफ़ाओं के जम़ानें में इस्लाम उस स्थान पर पहुंच चुका था कि लोग समझने लगे थे कि इस्लाम यही है और अगर अली इसके विरुद्ध कार्य करते तो वह दीन से बाहर थे।
अली कहते हैं लोगों ने चिल्लाना शुरू कर दिया
یَنْهَانَا عَنِ الصَّلَاةِ فِی شَهْرِ رَمَضَانَ تَطَوُّعاً
यह हमको रमज़ान में नमाज़ पढ़ने से रोक रहे हैं
बात कहा से कहा पहुंच गई थी इमाम अली उनको नमाज़ पढ़ने से नहीं रोक रहे थे वह केवल इतना कह रहे थे कि मुस्तहेब नमाज़ को जमाअत से न पढ़ो
फिर अली फ़रमाते हैं
وَ لَقَدْ خِفْتُ أَنْ یَثُورُوا فِی نَاحِیَةِ جَانِبِ عَسْکَرِی
देखने वाली बात है कि जब इमाम अली की सेना वालों का यह हाल है कि वह आपके विरुद्ध खड़े हो रहे हैं तो दूसरों की क्या बात कही जाए।
अली ने अपनी हुकूमत में तीन बड़ी जंगे की उनके मुक़ाबले में आने वाले देखने में सब के सब मुसलमान थे, अब ख़ुद सोंचने वाली बात है कि जब स्वंय मुसलमान आपके विरुद्ध खड़े हो रहे हैं तो क्या आपको इतना अधिकार था कि वह सुधार कर सकते वह दीन को अपनी वास्तविक सूरत में पलटा सकते?
अब इमाम अली स्वंय उन प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं
أَلَا إِنَّ أَخْوَفَ مَا یُخَافُ عَلَیْکُمْ خَصْلَتَانِ اتِّبَاعُ الْهَوَى وَ طُولُ الْأَمَلِ
मैं तुम्हारे बारे में दो चीज़ों से डरता हूँ एक हैं वहा व हवस का अनुसरण जो इन्सान को हक़ से दूर करता है और लंबी लंबी आरज़ुएं जो आख़ेरत को भुला देती हैं
إِنَّ الدُّنْيَا قَدِ ارْتَحَلَتْ مُدْبِرَةً وَ إِنَّ الْآخِرَةَ قَدِ ارْتَحَلَتْ مُقْبِلَةً وَ لِكُلِّ وَاحِدَةٍ مِنْهُمَا بَنُونَ فَكُونُوا مِنْ أَبْنَاءِ الْآخِرَةِ وَ لَا تَكُونُوا مِنْ أَبْنَاءِ الدُّنْيَا
दुनिया समाप्त हो रही है और आख़ेरत आ रही है दुनिया और आख़ेरत हर दोनों के बच्चे हैं तो दुम आख़ेरत के बच्चों में रहो और दुनिया की औलाद न हो जाओ
فَإِنَّ الْيَوْمَ عَمَلٌ وَ لَا حِسَابَ وَ غَداً حِسَابٌ وَ لَا عَمَل
जान लो कि आज (दुनिया) अमल है हिसाब नहीं लेकिन कल हिसाब है अमल नहीं
फ़िर आप फ़ितनों की जड़ की तरफ़ इशारा करते हैं
وَإِنَّمَا بَدْءُ وُقُوعِ الْفِتَنِ مِنْ أَهْوَاءٍ تُتَّبَعُ، وَأَحْكَامٍ تُبْتَدَعُ
फ़ितनों का आरम्भ हवाए नफ़्स की पैरवी और बिदअतों के अनुसरण से है
फिर आप फ़रमाते हैं
إِنِّي سَمِعْتُ رَسُولَ اللَّهِ صلى الله عليه وآله يَقُولُ: كَيْفَ أَنْتُمْ إِذَا لَبَسَتْكُمْ فِتْنَةٌ يَرْبُو فِيهَا الصَّغِيرُ، وَيَهْرَمُ فِيهَا الْكَبِيرُ
मैंने पैगम्बरे इस्लाम से सुना कि आप फ़रमाते थेः उस समय तुम्हारा क्या होगा कि जब फ़ितने आरम्भ होंगे कि जिसमें बच्चे बड़े होंगे
आप स्वंय सोंचे अली 25 साल तक घर में एकांत में रहे यानी वह बच्चे जो पैग़म्बर की वफ़ात के समय 15 साल के थे वह अली की ख़िलाफ़त के जम़ाने में 40 साल के हो चुके थे इन लोगों ने अपनी 25 साल की ज़िन्दगी में सदैव यही सुना की मुतआ हराम है, तरावीह पढ़ी जानी चाहिए ख़ुम्स हराम है.... आदि तो जिसने अपना पूरा जीवन इस प्रकार बिताया हो उसके सामने अब अगर अली वास्तविक इस्लाम को लाएं उनसे कहें कि मुतआ जायज़ है ख़ुम्स वाजिब है... आदि तो यह यही पलट कर कहेगा कि आप कोई नया दीन लाए हैं, यह कौन सा इस्लाम है? इस प्रकार का इस्लाम तो हमने कभी नही देखा?
उसके बाद आप फ़रमाते हैं
يَجْرِي النَّاسُ عَلَيْهَا وَ يَتَّخِذُونَهَا سُنَّةً
लोग इसी फ़ितने पर पलेंगे और इसी को सुन्नत समझेंगे
فَإِذَا غُيِّرَ مِنْهَا شَيْءٌ قِيلَ قَدْ غُيِّرَتِ السُّنَّةُ
जब यह लोग इसी के अनुसार पले बढ़ें हैं और हमेशा इसी को देखा है अब अगर कोई हाकिम आता है और उसको बदलना चाहता है तो कहते हैं कि सुन्नत बदल दी गई और लोग इस सही काम को बुरा समझते हैं।
उसके बाद इमाम फ़रमाते हैं
قَدْ عَمِلَتِ الْوُلاةُ قَبْلِي أَعْمَالاً خَالَفُوا فِيهَا رَسُولَ اللَّهِ ( صلى الله عليه وآله ) مُتَعَمِّدِينَ لِخِلافِهِ نَاقِضِينَ لِعَهْدِهِ مُغَيِّرِينِ لِسُنَّتِهِ وَ لَوْ حَمَلْتُ النَّاسَ عَلَى تَرْكِهَا
मुझसे पहले तो इस इस्लामी दुनिया के हाकिम और शासक थे उन्होंने कुछ ऐसे कार्य किए हैं जो पैग़म्बर की सुन्नत के विरुद्ध हैं उन्होंने यह कार्य जानबूझ कर किये...
और यह मैला ने एक ऐसी चीज़ कही है जो बिलकुल स्पष्ट हैं और इस्लामी इतिहास की थोड़ी सी जानकारी रखने वाला भी इस बात को जानता है और कोई इसका इन्कार नहीं कर सकता है।
जैसे क़ुरआन ने शादी के समय गवाह का होना वाजिब नहीं किया है लेकिन तलाक़ के समय दो गवाह होना वाजिब किया है अब यह बात देखने वाली है कि इस्लामी सम्प्रदायों में कौन सा ऐसा मज़हब है जिसने क़ुरआन की बात को स्वीकार किया है और निकाह के समय गवाह का होना वाजिब नहीं रखा है लेकिन तलाक़ के समय वाजिब रखा है, शिया मज़हब के अतिरिक्त कोई भी इस्लामी सम्प्रदाय ऐसा नहीं है, हर मज़हब में क़ुरआन के आदेश के उलट शादी और निकाह के समय गवाह होना वाजिब हैं जब्कि तलाक़ के समय नहीं।
मैला कहते हैं कि अगर मैंने लोगों को इस चीज़ को छोड़ने का आदेश दिया जब मैंने लोगों से यह कहा कि तुम लोग यह कार्य न करो वह चिल्लाने लगे कि सुन्नत बदल दी गई
وَ حَوَّلْتُهَا إِلَى مَوَاضِعِهَا وَ إِلَى مَا كَانَتْ فِي عَهْدِ رَسُولِ اللَّهِ ( صلى الله عليه وآله ) لَتَفَرَّقَ عَنِّي جُنْدِي حَتَّى أَبْقَى وَحْدِي أَوْ قَلِيلٌ مِنْ شِيعَتِيَ
और अगर मैं उसके उसकी वास्तविक हालत पर पलटा दूँ कि जहां पर पैग़म्बर के ज़माने में था तो मेरी सेना मुझसे दूर हो जाएगी, और मैं अकेला रह जाऊँगा या बहुत कम जो मेरे शिया होंगे वह मेरे साथ रह जाएंगे, वह लोग जो मेरे साथ अपना ख़ून बहाने आए हैं वह दूर हो जाएंगे, तो जब अपनों का यह हाल है तो विरोधियों के बारे में क्या कहा जाए।
इसके बाद आप 26 मसलों को बयान करते हैं कि अगर मैंने इनको बदला होता और इनको इनके वास्तविक स्थान पर पहुंचाया होता तो तुम लोग क्या करते
1. أَ رَأَيْتُمْ لَوْ أَمَرْتُ بِمَقَامِ إِبْرَاهِيمَ ( عليه السلام ) فَرَدَدْتُهُ إِلَى الْمَوْضِعِ الَّذِي وَضَعَهُ فِيهِ رَسُولُ اللَّهِ ( صلى الله عليه وآله
अगर मक़ामे इब्राहीम जो जिस स्थान पर पैग़म्बर ने रखा था वहां रख देता
2. وَ رَدَدْتُ فَدَكاً إِلَى وَرَثَةِ فَاطِمَةَ ( عليها السلام
और फ़िदक को फ़ातेमा के वारिसों को पलटा देता (तो सभी यही कहते कि यह तो केवल दुनिया के लिए हुकूमत कर रहे हैं यह केवल माल पाना चाहते हैं)
3. وَ رَدَدْتُ صَاعَ رَسُولِ اللَّهِ ( صلى الله عليه وآله ) كَمَا كَانَ
गुस्ल के पानी को जैसा था उसके स्थान पर पलटा देता तो क्या होता।
4. وَ أَمْضَيْتُ قَطَائِعَ أَقْطَعَهَا رَسُولُ اللَّهِ ( صلى الله عليه وآله ) لأقْوَامٍ لَمْ تُمْضَ لَهُمْ وَ لَمْ تُنْفَذْ
अगर मैंने जो ज़मीन के टुकड़े पैग़म्बर ने क़ौमों के दिए थे दे देता तो।
5. وَ هَدَمْتُهَا مِنَ الْمَسْجِدِ وَ رَدَدْتُ دَارَ جَعْفَرٍ إِلَى وَرَثَتِه
और अगर मैं जाफ़र के घर को उनके वारिसों को वापस पलटा देता तो।(जाफ़र का घर उनके वारिसों से छीन कर मस्जिद का भाग बना दिया गया था) अगर मैं उसको मस्जिद के निकाल देता तो... (यहीं लोग कहते कि अली ने मस्जिद को गिरा दिया)
6. وَ رَدَدْتُ قَضَايَا مِنَ الْجَوْرِ قُضِيَ بِهَا
और वह फ़ैसले जो ग़लत किये गए अगर उनको सही की तरफ़ पलटा देता तो...
मालिक इबने नुवैरा को क़िस्से में ख़ालिद बिन वलीद ने मालिक को शहीद किया और उनकी पत्नी के साथ बलात्कार किया। लेकिन उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नही की गई अगर अली इन ग़लत फ़ैसलों को सही की तरफ़ पलटा देते तो क्या होता।
7. وَ نَزَعْتُ نِسَاءً تَحْتَ رِجَالٍ بِغَيْرِ حَقٍّ
वह औरतें जो ग़रत तरीक़े से दूसरे आदमियों की पत्नियां बना दी गई थी अगर उन आदमियों से दूर कर देता तो....
8. فَرَدَدْتُهُنَّ إِلَى أَزْوَاجِهِنَّ وَ اسْتَقْبَلْتُ بِهِنَّ الْحُكْمَ فِي الْفُرُوجِ وَ الأحْكَامِ
और उन औरतों को उनके वास्तविक पतियों की तरफ़ पलटा देता तो.... और उनके बारे में इस्लामी क़ानून को जारी करता तो....
9. وَ سَبَيْتُ ذَرَارِيَّ بَنِي تَغْلِبَ
वह लोग जो इस्लाम जो जिज़या दिया करते थे, लेकिन वह इस जिज़ये से आज़ाद हो गए अगर उनको दोबारा मैं उस जिज़ये में लाता तो....
10. رَدَدْتُ مَا قُسِمَ مِنْ أَرْضِ خَيْبَرَ
पैग़म्बरे इस्लाम ने ख़ैबर की ज़मीनों को कुछ लोगों के बीच बांटा था ताकि समाज में अमीर और ग़रीब का तबक़ा अलग अलग न हो अगर मैं उनको उनके मालिकों की तरफ़ पलटा देता तो..........
11. وَ مَحَوْتُ دَوَاوِينَ الْعَطَايَا وَ أَعْطَيْتُ كَمَا كَانَ رَسُولُ اللَّهِ (صلى الله عليه وآله ) يُعْطِي بِالسَّوِيَّةِ وَ لَمْ أَجْعَلْهَا دُولَةً بَيْنَ الأغْنِيَاءِ
वह लेख और दस्तावेज़ दो अता करने के लिए थे उनको समाप्त कर देता और उसी प्रकार बांटता जैसे पैग़म्बर दिया करते थे और सबको बराबर देता और मालदारों के हाथों में न देता तो.........
12. وَ أَلْقَيْتُ الْمَسَاحَةَ وَ سَوَّيْتُ بَيْنَ الْمَنَاكِحِ
ज़मीन पर टैक्स को अगर समाप्त कर देता, केवल ज़मीन होना टैक्स का कारण नही बन सकता है टैक्स उसपर होना चाहिए जो अपनी ज़मीन से लाभ उठा रहा हो, वरना कितना संभव है कि किसी के पास ज़मीन हो लेकिन उसको उपजाउ बनाने के लिए उसके पास धन न हो अगर ऐसे व्यक्ति पर ज़मीन होने के लिए टैक्स लगाया जाए तो उसका क्या होगा।
और अगर मैंने निकाह, शादी विवाह को बराबर कर दिया होता, क्योंकि अरब में यह रीत थी कि वह किसी बाहर वाले से शादी नहीं कर सकते थे इमाम कहते हैं कि अगर मैंने यह रीत समाप्त कर दी होती तो...
पैग़म्बर ने कहा था कि किसी भी काले को गोरे या गोरे को काले पर बरतरी नहीं है कोई ग़ुलाम और आज़ाद नहीं है लेकिन आपके बाद सब बदल गया अब क़ानून यह हो चुका था कि एक अरब गैर अरब से शादी नहीं कर सकता था।
13. وَ أَنْفَذْتُ خُمُسَ الرَّسُولِ كَمَا أَنْزَلَ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ وَ فَرَضَهُ
अगर मैं पैग़म्बर के द्वारा नियुक्त किए गए ख़ुम्स को बचा लेता और उसको डूबने न देता जैसा कि अल्लाह ने नाज़िल और उसको वाजिब किया था तो....
14. وَ رَدَدْتُ مَسْجِدَ رَسُولِ اللَّهِ ( صلى الله عليه وآله ) إِلَى مَا كَانَ عَلَيْهِ
अगर मैं पैग़म्बर की मस्जिद को उसी स्थान पर वापस पलटा देता कि जहां पर वह थी तो.......
15. وَ سَدَدْتُ مَا فُتِحَ فِيهِ مِنَ الأبْوَابِ وَ فَتَحْتُ مَا سُدَّ مِنْهُ
और जो द्वार उसमें खोले गए हैं उनको बंद कर देता और जो बंद किये गये हैं उनको बंद कर देता तो...
16. وَ حَرَّمْتُ الْمَسْحَ عَلَى الْخُفَّيْنِ
अगर मोज़े और जूते पर से मस्ह करने को हराम कर देता तो....
17. وَ حَدَدْتُ عَلَى النَّبِيذِ
और अगर मैं शराब पीने पर इस्लाम द्वारा निश्चित किया गया दंड देता तो.....
18. وَ أَمَرْتُ بِإِحْلالِ الْمُتْعَتَيْنِ
अगर मैं दोनों मुतओ को हलाल कर देता तो.....
जैसा कि सभी जानते हैं कि दूसरे ख़लीफ़ा उमर ने अपने युग में उन दोनों मुतओं को जो कि पैग़म्बर के ज़माने में हलाल थे को हराम कर दिया था और कहा था कि इनके करने वालों को मैं दंड दूगा, (متعتان كانتا على عهد رسول الله وأنا احرمهما واعاقب عليهما) इमाम अली कहते हैं कि अगर मैं इन दोनों मुतओं को उनके सही स्थान यानी हलाल पर पहुंचा देता तो क्या होता, यही होता कि वह लोग जिन्होंने 25 साल तक एक हुकूमत के मुह से यह सुना था कि यह दोनों मुतआ हराम हैं अब अगर किसी ख़लीफ़ा के मुंह से यह सुनते कि यह हलाल हैं तो यही कहते कि यह कैसा इस्लाम है यह कैसा ख़लीफ़ा है जिसने ज़िना को हलाल कर दिया है, जब्कि वास्तविक्ता कुछ और थी यह उन पहले वाली ख़लीफ़ाओं की ग़ल्ती थी जिन्होंने उसको हराम कर दिया था।
19. وَ أَمَرْتُ بِالتَّكْبِيرِ عَلَى الْجَنَائِزِ خَمْسَ تَكْبِيرَاتٍ
और अगर मैं आदेश देता कि जनाज़ों पर पाँच तकबीरें कहो तो....
20. وَ أَلْزَمْتُ النَّاسَ الْجَهْرَ بِبِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ
और अगर लोगों पर अनिवार्य करता कि वह बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम को बुलंद आवाज़ के साथ पढ़े तो... कितने आश्चर्य की बात है कि बिस्मिल्लाह जो कि क़ुरआन का अंग है वह नमाज़ में नहीं पढ़ा जाता है जब्कि अगर कोई जानबूझ कर नमाज़ में किसी सूरे का कुछ भाग छोड़ दे तो उसकी नमाज़ बातिल है, लेकिन आज खुलेआम बिस्मिल्लाह को नही पढ़ा जाता है।
21. وَ أَخْرَجْتُ مَنْ أُدْخِلَ مَعَ رَسُولِ اللَّهِ (صلى الله عليه وآله ) فِي مَسْجِدِهِ مِمَّنْ كَانَ رَسُولُ اللَّهِ ( صلى الله عليه وآله ) أَخْرَجَهُ وَ أَدْخَلْتُ مَنْ أُخْرِجَ بَعْدَ رَسُولِ اللَّهِ ( صلى الله عليه وآله ) مِمَّنْ كَانَ رَسُولُ اللَّهِ (صلى الله عليه وآله ) أَدْخَلَهُ
अगर मैं बाहर कर देता उसको जो पैग़म्बर की मस्जिद में दाख़िल हो गया जब्कि पैग़म्बर ने उसको बाहर कर दिया था और दाख़िल कर दूँ उसको जिसको पैग़म्बर ने दाख़िल किया था लेकिन पैग़म्बर के बाद उसको बाहर कर दिया गया।
22. وَ حَمَلْتُ النَّاسَ عَلَى حُكْمِ الْقُرْآنِ وَ عَلَى الطَّلاقِ عَلَى السُّنَّةِ
अगर लोगों के लिए क़ुरआन का हुक्म और तलाक़े सुन्नत को अनिवार्य करता तो... तलाक़े सुन्नत वह लताक़ है जिसमें तलाक़ देने के लिए गवाह का होना आवश्यक है, लेकिन शादी के लिए गवाह का होना ज़रूरी नहीं है, लेकिन नबीं की आँख बंद होते ही उलटा हो गया अब शादी के लिए गवाह होना चाहिए और तलाक़ के लिए गवाह की शर्त समाप्त हो गई।
23. وَ أَخَذْتُ الصَّدَقَاتِ عَلَى أَصْنَافِهَا وَ حُدُودِهَا
और अगर मैं सदक़े और ज़कात तो उसके वास्तविक आधार पर पलटा देता तो क्या होता...
24. وَ رَدَدْتُ الْوُضُوءَ وَ الْغُسْلَ وَ الصَّلاةَ إِلَى مَوَاقِيتِهَا وَ شَرَائِعِهَا وَ مَوَاضِعِهَا
और अगर वुज़ू ग़ुस्ल और नमाज़ को उसके समय स्थान और शरीअत के अनुसार कर देता तो क्या होता...
25. وَ رَدَدْتُ أَهْلَ نَجْرَانَ إِلَى مَوَاضِعِهِمْ وَ رَدَدْتُ سَبَايَا فَارِسَ وَ سَائِرِ الأمَمِ إِلَى كِتَابِ اللَّهِ وَ سُنَّةِ نَبِيِّهِ
और अगर नजरान वासियों को उनके स्थान पर पलटा देता (कि यह लोग पहले जिज़या दिया करते थे, और यह जिज़या इस्लाम की बरतरी की निशानी था) और फ़ारस और दूसरी क़ौमें को क़ैदियों को ईश्वर की पुस्तक क़ुरआन और पैग़म्बर की सुन्नत के आधार पर लपटा देता तो......
इमाम अली अलैहिस्सला इन सारी चीज़ों को बयान करते हैं अगर हम इन चीज़ों को ग़ौर से देख़ें तो हमको पता चलता है कि पैग़म्बर की वफ़ाते के बाद इस्लाम में कोई भी ऐसी चीज़ नहीं रह गई थी जिसको बदला न गया हो और जिसका चेहरा न बिगाड़ दिया गया हो और इमाम अली अलैहिस्सलाम को इस चीज़ का एहसास था कि इन चीज़ों को बदला जाना चाहिए लेकिन आपके सामने कुछ समस्याएं थी जिनके कारण आप इनको बदल न सके आप उसी समस्या की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमाते हैं कि अगर मैं इन चीज़ों को बदल देते तो
إِذاً لَتَفَرَّقُوا عَنِّي
तुम सबके सब मुझसे दूर हो जाते और मुझे अकेला छोड़ देते।
फ़िर इसलिए कि कोई इस बात का इन्कार न कर सके आप एक मिसाल भी देते हैं
26. وَ اللَّهِ لَقَدْ أَمَرْتُ النَّاسَ أَنْ لا يَجْتَمِعُوا فِي شَهْرِ رَمَضَانَ إِلا فِي فَرِيضَةٍ وَ أَعْلَمْتُهُمْ أَنَّ اجْتِمَاعَهُمْ فِي النَّوَافِلِ بِدْعَةٌ فَتَنَادَى بَعْضُ أَهْلِ عَسْكَرِي مِمَّنْ يُقَاتِلُ مَعِي يَا أَهْلَ الإِسْلامِ غُيِّرَتْ سُنَّةُ عُمَرَ يَنْهَانَا عَنِ الصَّلاةِ فِي شَهْرِ رَمَضَانَ تَطَوُّعاً
ख़ुदा की क़सम मैंने लोगों को आदेश दिया कि रमज़ान के महीने में वाजिब नमाज़ों के अतिरिक्त दूसरी नमाज़ों को जमाअत से न पढ़ों नाफ़िला को जमाअत से पढ़ना बिदअत है, तो मेरी सेना के ही कुछ लोग जो मेरे साथ जंग लड़ते थे चिल्ला पड़े और कहा कि हे मुसलमानों उमर की सुन्नत बदल दी गई यह हमको रमज़ान के महीने में मुस्तहेब नमाज़ पढ़ने से रोक रहे हैं।
وَ لَقَدْ خِفْتُ أَنْ يَثُورُوا فِي نَاحِيَةِ جَانِبِ عَسْكَرِي
यहां तक कि मुझे डर हुआ की मेरी सेना में विद्रोह फैल जाए
फ़िर आप फ़रमाते हैं
مَا لَقِيتُ مِنْ هَذِهِ الأمَّةِ مِنَ الْفُرْقَةِ وَ طَاعَةِ أَئِمَّةِ الضَّلالَةِ وَ الدُّعَاةِ إِلَى النَّارِ
मैंने इस क़ौम के मदभेदों से क्या नहीं देखा और बुरे रहबरों की पैरवी और नर्की की तरफ़ बुलाने वालों से मैंने क्या दिन नहीं देखे।
इसके बाद प्रश्न किया जाता है कि अमीरुल मोमिनीन ने अपने ज़माने में ख़ुम्स क्यों नही लिया, सोंचने वाली बात है क्या अली को यह सब करने का समय दिया गया? इधर आप ख़लीफ़ा बने और उधर जंगे आरम्भ हो गई।
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