हमेशा बाक़ी रहने वाली नेकी

नेकी और भलाई यह नहीं है कि तुम्हारे पास अधिक दौलत और औलाद हो, बल्कि भलाई ज्ञान और इल्म की अधिकता और अमल एवं व्यवहार अच्छा होने में है, और यह इन्सान के धैर्य एवं विवेक से सम्बंधित है,

 

عن امیر المومنین علیہ السلام

لَيْسَ الْخَيْرُ أَنْ يَكْثُرَ مَالُكَ وَوَلَدُكَ ، وَلَكِنَّ الْخَيْرَ أَنْ يَكْثُرَ عِلْمُكَ و عملک ، وَأَنْ يَعْظُمَ حِلْمُكَ وَأَنْ تُبَاهِيَ النَّاسَ بِعِبَادَةِ رَبِّكَ ، فَإِنْ أَحْسَنْتَ حَمِدْتَ اللَّهَ وَإِنْ أَسَأْتَ اسْتَغْفَرْتَ اللَّهَ

अमीरूल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने फ़रमायाः

नेकी और भलाई यह नहीं है कि तुम्हारे पास अधिक दौलत और औलाद हो, बल्कि भलाई ज्ञान और इल्म की अधिकता और अमल एवं व्यवहार अच्छा होने में है, और यह इन्सान के धैर्य एवं विवेक से सम्बंधित है,

और ख़ुदा की इबादत पर फ़ख़्र करना है, और अगर तुमसे कोई एहसान या (किसी की) सेवा हो तो ख़ुदा का शुक्र करो और उसको धन्यवाद दो, और अगर पाप हो जाए और उसके आदेशों की अवहेलना हो जाए तो उससे क्षमा मांगों और इस्तेग़्फ़ार करो।

(बिहारुल अनवार जिल्द 75, पेज 140, नहजुल बलाग़ा, हिकमत 94)

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