रमज़ान का महीना अहलेबैत (अ) की दुआओं में

रमज़ान का महीना अहलेबैत की दुआओं में

पवित्र रमज़ान का महीन ईश्वर से प्रार्थना करने का महीना है। यह वह महीना है जिसमें स्वयं ईश्वर ने अने दासों को प्रायश्चित करने के लिए प्रेरित किया है। इस पवित्र महीने में वह अपने बंदों को अपनी मेहमानी की दावत देता है। अब एक बार फिर वही पवित्र महीना आ पहुंचा है।

एक महापुरुष का कहना है कि सौभाग्यशाली है वह फूल जो पानी के गुज़रने के रास्ते पर स्थित है। सदैव बहने वाले पानी के कारण यह फूल ताज़ा रहता है और उसे देखकर प्रसन्नता का आभास होता है। जब मनुष्य उसके निकट जाता है तो उसे विशेष प्रकार की खुशी प्राप्त होती है। इसके विपरीत दुर्भाग्यशाली है वह फूल जो पानी से दूर रहता है और इसी कारण वह बहुत ही जल्दी सूखकर मुरझा जाता है।

मनुष्य भी एक फूल की भांति है और ईश्वर उसके लिए उस पानी की भांति है जिसके कारण उसमें प्रभुल्लता पाई जाती है। भाग्यशाली हैं वे लोग जो ईश्वर के मार्गदर्शन को स्वीकार करते हैं। लेकिन कितने बुरे हैं वे लोग जो ईश्वर से दूर हैं। वे एसे फूल की भांति हैं जो पानी से दूर है और प्रकाश से वंचित है। वह चीज़ जो मनुष्य को ईश्वर के मार्ग पर लाती है वह उसका अनुसरण है।

रमज़ान व दुआ

मनुष्य को सदैव ही ईश्वर की बातों का अनुसरण करना चाहिए ताकि उसके भीतर विश्वास और पहचान पैदा हो। यदि इस प्रकार से ईश्वर की उपासना की जाए तो फिर मनुष्य के भीतर तक़वा या ईश्वरीय भय उत्पन्न होता है। तक़वे का अर्थ है स्वयं पर नियंत्रण करके ईश्वरीय भय पैदा करना। मुत्तक़ी उसे कहते हैं जो उन बातों से दूर रहे जिसने दूर रहने का ईश्वर ने आदेश दिया है।

तक़वे या ईश्वरीय भय के बहुत से लाभ हैं जिनमें से एक, जीवन में आसानी है। सूरए तलाक़ की आयत संख्या 2 में ईश्वर कहता है कि जो भी तक़वे को अपनाता है, ईश्वर उसके लिए मुक्ति और सरलता का मार्ग प्रशस्त करता है।

यहां पर सरलता और आसानी से तात्पर्य यह नहीं है कि इससे जीवन की समस्त कठिनाइयां समाप्त हो जाएंगी बल्कि कहने का अर्थ यह है कि कठिनाइयों के समय मनुष्य को कठिनाई का आभास नहीं होगा। इस प्रकार बड़ी सरलता से कठिनाइयों का मुक़ाबला करना संभव हो जाएगा। तक़वे की विशेषता यह है कि वह मनुष्य को ऐसा दक्ष बना देता है कि वह कठिनाइयों पर सरलता से नियंत्रण प्राप्त कर ले। तक़वा या ईश्वरीय भय का एक अन्य लाभ यह है कि वह कभी भी दुविधा की स्थिति में नहीं पड़ता। पवित्र क़ुरआन में ईश्वर कहता है कि जो भी ईश्वरीय भय अपनाता है ईश्वर उसकी मुक्ति के लिए कोई मार्ग अवश्य निकालता है।

अब मनुष्य को यह देखना होगा कि यदि कठिन परिस्थितियों में घिरकर वह दुविधा में पड़ जाए और उसके पास कोई मार्ग न बचे तो उसे समझ लेना चाहिए कि उसके भीतर पाया जाने वाला ईश्वरीय भय, कमज़ोर हो गया है।

रमज़ान के पवित्र महीने को इस्लाम में विशेष महत्व प्राप्त है। इसे ईश्वरीय आतिथ्य के नाम से संबोधित किया गया है। यह एसा पवित्र महीना जिसमें रोज़े रखे जाते हैं और अधिक से अधिक क़ुरआन पढ़ने का इसमें आह्वान किया गया है, इसी महीने में ईश्वर से अधिक से अधिक प्रार्थना करने और प्रायश्चित पर भी बल दिया गया है। प्रार्थना, हृदय में ईश्वर की याद को जीवित रखती है। यही विषय हृदय में आस्था को सुदृढ़ बनाता है। यही कारण है कि ईश्वरीय दूत और महापुरूष, अपना अधिकतर समय ईश्वर की प्रार्थना और उपासना में व्यस्त किया करते थे। इस प्रकार वे दिन-प्रतिदिन ईश्वर से निकट होते जाते थे। ईश्वर के महान बंदों में से एक इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम थे जो पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र थे। अत्यधिक उपासना करने के कारण उन्हें ज़ैनुल आबेदीन या सज्जाद कहा जाता है। उनके एक साथी का नाम था ताऊसे यमानी। वे कहते हैं कि एक बार मैंने इमाम सज्जाद को काबे में देखा। वे रात भर ईश्वर की उपासना में लीन रहे। अपनी प्रार्थना में ईश्वर को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, हे ईश्वर! आकाश के तारे ओझिल हो चुके हैं, लोग सो गए हैं। इस समय मांगने वालों के लिए उचित समय है। प्रायश्चित की आशा में मुझ जैसा भिखारी अब तेरी शरण में आया है। मुझको इस बात की आशा है कि प्रलय के दिन तू मुझको पैग़म्बरे इस्लाम के दर्शन से वंचित नहीं रखेगा।

उसके बाद इमाम सज्जाद की आंखों से आंसू बहने लगे। उन्होंने इसी स्थित में कहा हे ईश्वर! तू हर प्रकार की बुराई से दूर है। लोग पापों में इतना डूबे हुए हैं कि तुझसे दूर हो गए हैं हालांकि तू इतना महान है कि मानो उन्होंने तेरी अवज्ञा की ही नहीं।

तू अपनी प्रजा या अपने दासों के साथ इस प्रकार से व्यवहार करता है जैसे कि तुझको उनकी आवश्यकता है जबकि तू आवश्कयता मुक्त है। इतना कहने के बाद इमाम सज्जाद सजदे में चले गए।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन इस भावना के साथ पवित्र रमज़ान में ईश्वर की उपासना करते थे कि उन्हें पुनः इस पवित्र महीने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वे ईश्वर से इस प्रकार से प्रार्थना करते थे, प्रशंसनीय है वह ईश्वर जिसने हमें अपना धर्म प्रदान किया।

आभार है उस ईश्वर का जिसने हमें पुनः पवित्र रमज़ान का सौभाग्य प्रदान किया। तूने इस महीने मे पवित्र क़ुरआन नाज़िल किया जो लोगों का मार्गदर्शक तथा सच और झूठ के बीच मापदंड है। इस प्रकार तूने वर्ष के अन्य महीनों पर रमज़ान को वरीयता प्रदान की है। जो कुछ अन्य महीनों में हलाल था उसे हराम घोषित किया। रमज़ान के सम्मान के उद्देश्य से ईश्वर ने खाने पीन की चीज़ों को एक निर्धारित समय के लिए वर्जित किया।

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