जानें किस प्रकार जी रहे हैं सऊदी अरब के शिया

जानें किस प्रकार जी रहे हैं सऊदी अरब के शिया

सऊदी अरब का क्षेत्रफल 21 लाख 49 हज़ार वर्गकिलोमीटर है और यह पश्चिम एशिया में अलजीरिया के बाद दूसरा सबसे बड़ा अरब देश है। दो करोड़ 70 लाख से अधिक इस देश की जनसंख्या है जिसमें से एक करोड़ 60 लाख इस देश की जनसंख्या के मूल निवासी हैं और शेष विदेशी हैं। सऊदी अरब एक धार्मिक देश है जिसके कानूनों का आधार वह्हाबी संप्रदाय है। वह्हाबी संप्रदाय सऊदी अरब में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है और व्यवहारिक रूप से इस देश की समस्त नीतियों का आधार वह्हाबी संप्रदाय है क्योंकि वह्हाबी संप्रदाय सऊदी अरब का आधिकारिक धर्म है। इस आधार पर सऊदी अरब में दूसरे धर्मों यहां तक कि शिया-सुन्नी¬- मुसलमानों को भी विकास व प्रगति के लिए स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है विशेषकर शिया मुसलमानों को इस देश में विभिन्न प्रकार के भेदभाव एवं अत्याचार का सामना है।

सऊदी अरब में शिया मुसलमानों की मौजूदगी का संबंध पहली हिजरी क़मरी से है। सऊदी अरब के अधिकांश शिया मुसलमान इस देश के अलक़तीफ़, ज़हरान, अलअवामिया, अलएहसा और पवित्र नगर मदीना के आस- पास के क्षेत्रों में रहते हैं और इनकी जनसंख्या सऊदी अरब की कुल जनसंख्या का लगभग 16 प्रतिशत है। अगर इसमें ज़ैदी, इस्माइली और अलवी मुसलमानों को भी मिला दिया जाये तो शिया मुसलमानों की जनसंख्या सऊदी अरब की कुल संख्या का लगभग 22 प्रतिशत हो जायेगी। सऊदी अरब के अधिकांश शिया मुसलमान इस देश के पूर्वी क्षेत्रों में रहते हैं। अश्शरक़िया सऊदी अरब में शिया मुसलमानों का गढ़ है। इसमें अलक़तीफ़ और अलएहसा शामिल है।

प्राप्त रिपोर्ट और प्रमाण भलिभांति इस बात के सूचक हैं कि सऊदी अरब में धार्मिक अल्पसंख्यक शिया मुसलमानों को सदैव भेदभाव का सामना रहा है और वे अपने मूल अधिकारों से भी वंचित रहे हैं। सऊदी अरब में रहने वाले शिया मुसलमानों की सदैव एक मांग यह रही है कि शिया धर्म को मान्यता प्रदान की जाये परंतु वह्हाबी, पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों से सिफारिश करने (तवस्सुल का अक़ीदा रखने) के कारण शिया मुसलमानों को काफिर, धर्म से फिर जाने वाला और पार्सी कहते हैं।

 

“वरिष्ठ धर्मगुरूओं की परिषद” का सदस्य शैख़ अब्दुल्लाह बिन जिब्रैन कहता है” एक राफ़ज़ी के हाथ से काटी गयी भेड़ का मांस हलाल नहीं है क्योंकि सभी राफज़ी अनेकेश्वरवादी हैं”

इसके अलावा सऊदी समाज में शिया मुसलमानों को यहूदियों और ईसाईयों से भी नीचा समझा जाता है क्योंकि यहूदियों और ईसाईयों को एकेश्वरवादी माना जाता है और शिया मुसलमानों पर नयी चीज़ को धर्म में जोड़ने (बिदअत) का आरोप लगाया जाता है और इसी तरह उन्हें धर्म से फिर जाने वाला कहा जाता है। अतिवादी वह्हाबी, शिया मुसलमानों को दुश्मन समझते हैं और वे शिया मुसलमानों के साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार करते हैं। इसी कारण कुछ वह्हाबी, शिया मुसलमानों की हत्या करने और उनके धन को ज़ब्त करने को वैध समझते हैं।

मानवाधिकार के घोषणापत्र के 18वें अनुच्छेद में स्पष्ट किया गया है कि हर व्यक्ति को स्वतंत्र ढंग से सोचने और धर्म से लाभ उठाने का अधिकार है। इस अधिकार के अंतर्गत इंसान को धर्म या आस्था के परिवर्तन, इसी प्रकार धर्म या आस्था को बयान करने में आज़ादी, धार्मिक शिक्षाओं के परिप्रेक्ष्य में उपासना व धार्मिक कार्यक्रमों को व्यक्तिगत, सामूहिक या सार्वजनिक रूप से अंजाम देने में इंसान पूर्णरूप से स्वतंत्र है।

आज सऊदी अरब में रहने वाले शिया मुसलमान क्षेत्र के दूसरे शीयों की अपेक्षा अपने अधिकारों से अधिक वंचित हैं। शिया होने के अपराध में उन्हें विभिन्न प्रकार से सताया जाता है और उन्हें विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा कुछ अवसरों पर उन्हें अपनी जान और माल दोनों के खतरे का भी सामना होता है, सऊदी अरब के वह्हाबी मुफ्ती उनके धर्म से फिर जाने और उनकी हत्या का फतवा देते हैं। यह कठिनाइयां व समस्याएं इस बात का कारण बनी हैं कि सऊदी अरब के रहने वाले शिया मुसलमान जहां तक संभव हो सकता है अपने को शिया बताने से बचते हैं विशेषकर पवित्र नगर मक्का में शिया मुसलमानों की बहुत ही बुरी स्थिति है। वे अपने धार्मिक कार्यक्रमों को लोगों की नज़रों से दूर अपने घरों में आयोजित करने के लिए बाध्य हैं। शिया धर्मगुरूओं को व्यक्तिगत रूप में भी धार्मिक शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार नहीं है। इस आधार पर बहुत से धर्मगुरू इराक़ और ईरान में धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद सऊदी अरब वापस लौट जाते हैं। सऊदी अरब की सरकार इसी प्रकार शिया धर्मगुरूओं और उनके अनुयाइयों पर हमला करके उन्हें गिरफ्तार और उनके विरुद्ध कार्यवाही करती है।

इस समय सऊदी अरब में 3700 से अधिक मस्जिदें हैं और विश्व के दूसरे क्षेत्रों में उसने 1600 से अधिक मस्जिदों का निर्माण किया है पंरतु इस देश के शिया मुसलमानों को अपने लिए एक मस्जिद के भी निर्माण की अनुमति नहीं है। यही नहीं सऊदी अरब के विभिन्न नगरों में शीयों की मस्जिदों और इमामबाड़ों को ध्वस्त कर दिया गया है, बहुत से शीयों ने गोपनीय ढंग से अपने घरों को मस्जिद या इमामबाड़े में परिवर्तित कर दिया है।

सऊदी अरब के एक वरिष्ठ शिया धर्मगुरू आदिल बुखमसीन इस देश में शिया धार्मिक शिक्षा केन्द्रों की स्थिति के बारे में कहते हैं स्वाभाविक रूप से इन शिक्षा केन्द्रों को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त नहीं है और वे देश की परिस्थितियों के कारण सीमित हैं। धार्मिक शिक्षा केन्द्रों को पुस्तकालय जैसी संभावनाओं की आवश्यकता है ताकि छात्र उनसे लाभ उठा सकें परंतु किताबों तक पहुंच और उन्हें सऊदी अरब में ले जाना बहुत कठिन व सीमित है। इसके अतिरिक्त इन शिक्षा केन्द्रों को लिखने-पढ़ने और शैक्षिक बहसों के लिए उचित वातावरण की आवश्यकता है परंतु हमें सीमाओं का सामना है।“

मदरसों, स्कूलों और यहां तक कि विश्व विद्यालय के स्तर पर भी शीयों को भेदभाव का सामना है। शिया छात्रों को वह्हाबी शिक्षकों की खुली शत्रुता का सामना है और वे हमेशा शिया छात्रों को काफिर, अनेकेश्वरवादी और राफज़ी कहते हैं जिससे इन छात्रों को बहुत दुःख होता है। इसी तरह शिया छात्रों को बड़ी मुश्किल से विश्व विद्यालयों में प्रवेश मिलता है। पवित्र नगर मदीना के इस्लामी विश्व विदयालय या मोहम्मद बिन सऊद विश्व विद्यालय में जो छात्र अपना थीसेज शीयों के विरुद्ध लिखते हैं उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है और उनके थीसेज को सरकारी खर्चों पर छपवाया व प्रकाशित किया जाता है।

सऊदी अरब के मदरसों की स्थिति विश्व विद्यालयों से भी बदतर है और शिया शिक्षकों व छात्र दोनों को दबाव और भेदभाव का सामना है। क्लासों में छात्रों से कहा जाता है कि वे शीयों को राफज़ी कहें और वहाबी धर्मगुरू स्कूलों में पढ़ाने के लिए जो पुस्तकें व व्याख्यायें तैयार व प्रकाशित करते हैं वे शत्रुतापूर्ण बातों से भरी होती हैं। इन किताबों में शीयों को बुरा भला कहा गया है और उन पर लानत भेजती गयी है और उन्हें काफिर बताया गया है। शिया शिक्षकों को चेतावनी दी गयी है कि वे अपनी आस्थाओं को व्यक्तिगत रूप में सुरक्षित रखें वरना उनके विरूद्ध कार्यवाही की जायेगी। कार्यालयों में उनकी पदोन्नति नहीं होती है और उनमें से किसी को भी प्रबंधक या निदेशक नहीं बनाया जाता है।

आर्थिक दृष्टि से भी सऊदी अरब के शिया मुसलमान बहुत सी प्राथमिक सुविधाओं से वंचित हैं जबकि वे सऊदी अरब के पूर्वी क्षेत्र में रहते हैं और यह विश्व में तेल का सबसे बड़ा भंडार है। सऊदी अरब में शिया आबादी वाले क्षेत्रों की गणना इस देश के निर्धनतम क्षेत्रों में होती है। इस देश की राजशाही सरकार ने चिकित्सा और सड़क निर्माण जैसे विकास के कार्यों पर दूसरे प्रांतों की अपेक्षा पूर्वी प्रांत में बहुत कम ख़र्च किया है। शिया आवासीय क्षेत्र व नगर अब भी चिकित्सा की आधुनिकतम संभावनाओं से वंचित हैं और अधिकांश शीयों को भेदभाव का सामना है।

तेल और उससे जुड़े कार्यों के बड़े भाग को शिया अंजाम देते हैं यानी सऊदी नरेश की आमदनी के बड़े भाग का उत्पादन शीयों के हाथ में है फिर भी उन्हें दूसरे क्षेत्रों की अपेक्षा पूर्वी क्षेत्रों में अन्यायपूर्ण बटवारे का सामना है और यह क्षेत्र वह्हाबियों द्वारा किये जा रहे भेदभाव का प्रतीक है।

राजनीतिक दृष्टि से भी धार्मिक अल्पसंख्यकों का सरकार में कोई स्थान नहीं है। सऊदी शासकों ने समस्त महत्वपूर्ण पदों को अपने मध्य बांट रखा है। इस मध्य शिया मुसलमान दूसरे वर्गों व सम्प्रदायों से अधिक वंचित हैं। शिया मुसलमानों को सेना, सुरक्षा बलों और रक्षा आदि में न केवल रोका जाता है बल्कि कंपनियों और महत्वपूर्ण सरकारी विभागों में काम करने या विमान चालक बनने में विभिन्न प्रकार की रुकावटों का सामना है।

शिया मुसलमानों के साथ सऊदी अरब की राजशाही सरकार का व्यवहार भेदभाव और उनके अधिकारों के हनन का स्पष्ट उदाहरण है और यह भेदभाव उस स्थित में है जब अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुसार धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिये और अंतरराष्ट्रीय कानूनों में उनके अधिकारों का समर्थन किया गया है। संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणापत्र की बुनियाद भी धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव न किये जाने पर रखी गयी है। राष्ट्रसंघ के घोषणापत्र के अनुसार इस संघ की समस्त सदस्य सरकारें मानवाधिकार और सबके लिए किसी प्रकार के जाति,लिंग,भाषा या धार्मिक भेदभाव के बिना आज़ादी का ध्यान रखने के प्रति वचनबद्ध हैं।

इसी प्रकार मानवाधिकार घोषणा पत्र के अनुसार जाति, रंग, भाषा,धर्म, राजनीतिक या ग़ैर राजनीतिक विश्वास व विचार, इसी प्रकार राष्ट्रीयता और सामाजिक स्थिति आदि किसी प्रकार की विशिष्टता को ध्यान में रखे बिना हर व्यक्ति को समस्त वह अधिकार प्राप्त हैं जिनका उल्लेख इस घोषणापत्र में किया गया है।

अंतरराष्ट्रीय कन्वेशन राजनीतिक एवं नागरिक अधिकारों के अलावा सरकारों के लिए यह भी अनिवार्य करता है कि वे रंग, जाति, भाषा, धर्म या राजनीति आदि किसी प्रकार के भेदभाव के बिना उन अधिकारों व कानूनों को लागू करें जिनका उल्लेख इस घोषणापत्र में किया गया है। इसी प्रकार यह कन्वेशन सरकारों के लिए आवश्यक करता है कि वे अपने क़ानूनों में हर प्रकार की राष्ट्रीय, जातिय या घार्मिक घृणा को मना करें जो भेदभाव, शत्रुता और हिंसा में वृद्धि का कारण बनती है।

सऊदी अरब की सरकार द्वारा अल्पसंख्यक शिया मुसलमानों के साथ भेदभाव मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कन्वेन्शन का खुला हनन है। इस सबके बावजूद पश्चिमी सरकारें अपने राजनीतिक एवं आर्थिक हितों और सऊदी शासकों की सम्पत्ति के कारण इस देश में मानवाधिकारों की स्थिति पर ध्यान नहीं देते हैं। जो वास्तविकता है वह यह है कि सऊदी अरब में बहुत से लोग अपने प्राथमिक अधिकारों से भी वंचित हैं। इस देश में रहने वाले शिया मुसलमानों को कठिन परिस्थितियों  का सामना है और उनके नेताओं को किसी प्रकार की आपत्ति भी करने का अधिकार नहीं है। उन राजनीतिक एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जाता है जो इस देश की तानाशाही सरकार की नीतियों के विरोधी होते हैं और उन्हें प्रताड़ित किया जाता है और अंत में उन्हें मृत्युदंड भी दिया जाता है। आले सऊद शासन घुटन का वातावरण उत्पन्न करने और विरोधियों के दमन को जारी रखे  हुए है और दिन- प्रतिदिन अधिक इंसान भेंट चढ़ रहे हैं। अंत में जो चीज़ आज़ाद इंसानों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संयुक्त राष्ट्रसंघ की ज़िम्मेदारी बनती है वह उन नागरिकों का समर्थन है जिन्हें बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों के उल्लंघन व हनन का सामना है।

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