आले सऊद के संचारिक प्रोपेगैंडे
आले सऊद के संचारिक प्रोपेगैंडे
शायद 24 सितम्बर को मिना में कुछ हाजियों की बेहोशी और उनके दम घुटने के समाचार प्रसारित होने के बाद आरंभ में किसी को विश्वास ही नहीं होगा कि मिना त्रासदी इतनी भयावह और विस्तृत होगी किन्तु मिना त्रासदी के बाद जैसे जैसे गुज़रते जा रहे हैं, इस त्रासदी के नये नये आयाम सामने आते जा रहे हैं। विभिन्न संचार माध्यमों की रिपोर्ट के आधार पर मिना त्रासदी में हताहत होने वाले हाजियों की संख्या अब तक लगभग पांच हज़ार बतायी जा चुकी है। यद्यपि हज से पहले पवित्र नगर मक्के में क्रेन दुर्घटना ने कि जिस में बहुत से हाजी हताहत हुए, आले सऊद शासन के कुप्रबंधन के स्पष्ट कर दिया किन्तु मिना त्रासदी ने इस बात की और अधिक पुष्टि कर दी है। मिना त्रासदी से पूरे इस्लामी जगत की भावनाएं आहत हुई हैं और पूरी दुनिया के मुसलमानों ने आले सऊद शासन की कड़े शब्दों में आलोचना की। इन सबके बावजूद इस संवेदनशील स्थिति में रियाज़ प्रशासन ने मिना त्रासदी को मध्यपूर्व के राजनैतिक मामलों से जोड़ना आरंभ कर दिया और संचार माध्यमों का सहारा लेकर मिना त्रासदी पर ही पर्दा डालने का प्रयास किया।
मिना त्रासदी के बाद सऊदी अरब के निवासियों ने सबसे पहला काम लोगों में मतभेद पैदा करने का प्रयास किया और सोशल मीडिया पर मिना त्रासदी के लिए मुख्य रूप से ईरानी हाजियों को ज़िम्मेदार ठहराना आरंभ कर दिया। यद्यपि यह पहले से ही अनुमान लगाया जा रहा था कि अतीत की भांति इस बार भी सऊदी प्रशासन इस घटना का आरोप भी ईरान पर ही लगायेगा।
उदाहरण स्वरूप हैशटैग, ट्वीटर और फ़ेसबुक जैसे विभिन्न सोशल मीडिया पर मिना त्रासदी के हवाले से विभिन्न कमेंट आने लगे जैसे ईरान हाजियों का क़ातिल, ईरान हाजियों का हत्यारा। इन सब कमेंट में ईरान पर मिना त्रासदी का आरोप मढ़ा गया।
लंदन से प्रकाशित होने वाले सऊदी अरब के समाचार पत्र अश्शरक़ुल अवसत ने दावा किया कि मिना त्रासदी ईरानी हाजियों के मध्य समन्वय न होने के कारण घटी। आले सऊद के दरबार से निकट और ईरान से दुश्मनी में प्रसिद्ध इस समाचार पत्र ने एक आश्चर्यजनक कार्यवाही करते हुए दावा किया कि एक ईरानी अधिकारी ने स्वीकार किया है कि एक ईरानी हाजियों की टीम, मिना में जाने के मार्ग पर उलटा लौट रही थी जिसके कारण धक्का मुक्की शुरु हुई और उसके बाद भगदड़ मच गयी जबकि यह समाचार सिर्फ़ और सिर्फ़ झूट का पुलिंदा है लेकिन बात यहीं पर समाप्त नहीं हुई, बल्कि सऊदी अरब के एक टीवी चैनल अलअरबिया ने यह रिपोर्ट देते हुए कि हज के दौरान काफ़ी संख्या में ईरानी हाजी लापता हुए हैं, दावा किया कि यह लोग सऊदी अरब आये ही नहीं, या अन्य समाचारों में सऊदी मीडिया ने कहा कि मिना त्रासदी में लिप्त होने के कारण लगभग तीस ईरानी हाजियों को गिरफ़्तार कर लिया गया जिससे उनके इस समाचार की भी पोल खुल गयी और ईरानी अधिकारियों ने भी इसका कड़ाई से खंडन कर दिया।
अलअरबिया ने 26 सितम्बर को घोषणा की कि सऊदी अरब के सरकारी सूत्रों ने आज के दिन बताया है कि हज के दौरान भीड़ के जमा होने और भगदड़ मचने के कारण की जांच यथावत जारी है। इस टीवी चैनल ने झूट मढ़ते हुए ईरानी हज टीम के अधिकारी के हवाले से दावा किया कि शैतानों के प्रतीक को मारने के दौरान ईरानी हाजी उल्टी दिशा में जा रहे थे, इसीलिए जहां एक ओर से हाजी शैतान को कंकड़ी मारने आ रहे थे और यह ईरानी हाजी कंकड़ी मार कर वापस जा रहे थे, एक स्थान पर भीड़ एकट्ठा हो गयी और उसके बाद भगदड़ मच गयी जिसके दौरान हमारे 169 लोग मारे गये और यही लोग मिना त्रासदी के मुख्य ज़िम्मेदार हैं।
लेकिन वॉल स्ट्रीट जरनल ने एक दूसरा ही दृष्टिकोण अपनाया और उसने अपनी रिपोर्ट में सऊदी अरब के हज मंत्रालय और इस मंत्रालय के कुछ अधिकारियों के आपसी सतभेद के कारण त्यागपत्र को मुख्य ज़िम्मेदार क़रार दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि मिना त्रासदी का मुख्य ज़िम्मेदार सऊदी अरब का हज मंत्रालय है जिसके भीतर कुछ महीने से भीषण मतभेद पाये जाते रहे हैं। यह समारचार पत्र लिखता है कि लगभग दसियों वर्ष का अनुभव रखने वाले यह अधिकारी “ एज़ाम ईकाई नामक संस्था में काम करते थे जिनकी ज़िम्मेदारी मिना से शैतान के प्रतीक को कंकड़ी मारने के संस्कार को अंजाम देने के लिए जाने के दौरान हाजियों की गतिविधियों पर नज़र रखना होता है।
वॉल स्ट्रीट जरनल के पूर्व पत्रकार जिन्हें अतीत में हज का सौभाग्य प्राप्त हुआ था, मिना त्रासदी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखते हैं कि मुझे पूरा विश्वास है कि यह मुसलमानों के लिए बेहतरीन अवसर है ताकि मक्के और मदीने की पवित्र मस्जिदों के मुतवल्ली के रूप में सऊदी सरकार का जिसने स्वयं ही नैतिक संरक्षण प्राप्त कर रखा है, बहिष्कार करें। भारतीय मूल की अमरीकी पत्रकार असरा नौमानी ने इस पत्रिका के माध्यम से सऊदी अरब पर दबाव डालने और इस प्रशासन का बहिष्कार करने की मांग की है। उनका कहना था कि वह मिना त्रासदी की जांच कर रही हैं और सऊदी अधिकारियों के कठोर बयान को जिसमें उन्होंने हाजियों और मुसलमान अफ़्रीक़ी देशों के हाजियों पर मिना त्रासदी का आरोप लगाया है, सुना है।
नौमानी लिखती है कि मैंने हज के दौरान सऊदी हज संस्था के कुप्रबंधन को निकट से देखा है। वे लिखती हैं कि वह देश जो केवल हज से अरबों डॉलर कमाता है, खेदजनक रूप से मानवाधिकार का घोर हनन करता है, महिलाओं को मतदान का अधिकार नहीं देता, हज के दिनों में इस प्रकार की त्रासदी उत्पन्न होने का कारण बनता है और पूरी दुनिया में आईएसआईएल या दाइश के हिंसा पर आधारित इस्लाम की व्याख्या फैलाता है। वर्तमान समय में मिना त्रासदी के बाद सऊदी सरकार इस बात का बहुत अधिक प्रयास कर रही है कि मीडिया को ख़ामोश करके, अपनी अधिक खिल्ली न उड़ने दे।
अमरीकी टीवी चैनल सीएनएन ने सऊदी अरब के संचार माध्यमों का अनुसरण करते हुए कहा कि हाजियों के दो गुटों के आपस में मिलने के कारण मिना त्रासदी उत्पन्न हुई और जो हाजी उस दिशा में गये उन्हें त्रासदी का ज़िम्मेदार बताया। इसी प्रकार शैतानों के प्रतीक को कंकड़ी मारने के आरंभिक दिन में इस संस्कार को अंजाम देने में हाजियों की जल्दबाज़ी, हाजियों की भीड़भाड़ और भीषण गर्मी को मिना त्रासदी का मुख्य कारण बताया। इस संचार माध्यम ने सऊदी सुरक्षाकर्मियों की लापरहवाही और उनके मूकदर्शक बने रहने पर आधारित हज़ारों चित्रों पर न तो कोई प्रतिक्रिया व्यक्त की और न ही इन चित्रों को दिखाया।
अलबत्ता कुछ संचार माध्यमों की सऊदी संचार माध्यमों से सांठगांठ केवल इसी घटना में ही सीमित नहीं है बल्कि इससे पहले यह प्रमाण सामने आए थे कि किस प्रकार सऊदी प्रशासन पैसे देकर संचार माध्यमों को चुप रखता है या उन्हें अपना समर्थक बनाता है। विकिलीक्स की ओर से पिछले जुलाई में जारी दस्तावेज़ों से पता चलता है कि रियाज़ सरकार, अधिकांश अरब देशों के लोगों और उनके संचार माध्यमों को आकृष्ट करने के लिए पैसों का सहारा लेती है। इन दस्तावेज़ों में इस बात को भी उजगार किया गया है कि यदि यह लोग और संचार माध्यम, सऊदी प्रशासन का अनुसरण नहीं करते तो उनके पैसे काट लिये जाते हैं।
2012 में लेबनान के एलबीसी टीवी चैनल के साथ यही सब कुछ हुआ। चूंकि लेबनान में नियुक्त सऊदी राजदूत ने अपने पत्र के माध्यम से इस लेबनानी चैनल के सैटेलाइट पर प्रसारण को रोकने की मांग की क्योंकि इस चैनल ने सऊदी प्रशासन का कहना नहीं माना। इसी प्रकार इन दस्तावेज़ों में लेबनान के प्रसिद्ध समाचारपत्र अस्सफ़ीर के मुख्य संपादक से संपर्क स्थापित करने और उन्हें सऊदी अरब जाने का निमंत्रण देने का सुझाव भी दिया गया था किन्तु इस शर्त के साथ कि संभव है कि उन्हें अपने समाचार पत्र की नीतियों में कुछ परिवर्तन करना पड़ेगा।
मोरक्को के लेखक और पत्रकार मुहम्मद क़ासिमी इस संबंध में अपने लेख में लिखते हैं कि अरब इलेक्ट्रानिक मीडिया दो गुटों में विभाजित होते हैं। एक गुट लोगों की समस्याओं और उनके मामलों को उठाता है और अत्याचारग्रस्त लोगों का समर्थक है और दूसरा गुट अमरीकी सरकार और यूरोपीय देशों की बातों को पेश करता है और यह सोमालिया, लेबनान, इराक़ और फ़िलिस्तीन में प्रतिरोधकर्ता गुटों के प्रतिरोध को कम दिखाने का प्रयास करता है। इन दोनों गुटों के सबसे अच्छे चरितार्थ अलआलम टीवी चैनल और अलअरबिया टीवी चैनल हैं। कंलक की बात है कि अलअरबिया चैनल का यह नाम है और इसी प्रकार बहुत ही लज्जाजनक व खेदजनक है कि यह इन मुद्दों पर मौन धारण किए रहता है। यह चैनल अपनी घटिया और लज्जाजनक ज़िम्मेदारियों के दृष्टिगत, धीरे धीरे जनमत को भटकाने और इस्लामी जगत की महान हस्तियों के दृष्टिकोण को ख़राब करने के प्रयास में है।
सऊदी अरब के एक लेखक नासिर अनक़ावी ने 2009 में मरकज़ुल हरमैन नामक साइट पर एक आलेख लिखा जिसमें उन्होंने ईरान से सऊदी अरब की शत्रुता का कारण मीडिया का दृष्टिकोण बताया है। वे लिखते हैं कि ईरान से संबंध स्थापित करने बारे में सऊदी अरब को कोई रुचि नहीं है, सऊदी अरब ईरान से सहयोग के बजाए टकराव का रुझहान रखता है, अर्थात हालिया दशकों में हम देख रहे हैं कि रियाज़ प्रशासन तेहरान से तनाव समाप्त करने के बजाए तनाव पैदा करने के प्रयास में रहा है। सऊदी अरब ने ईरान के विरुद्ध पश्चिमी देशों के दृष्टिकोणों में कठोरता आने के बाद अपने भी दृष्टिकोणों को कठोर कर दिया है। इसी प्रकार सऊदी मीडिया ने भी ईरान के विरुद्ध प्रोपेगैंडे करते हुए इस मैदान में सबको पीछे छोड़ दिया है।
वे अंत में ईरान से सऊदी अरब की अप्रसनता का कारण बयान करते हुए लिखते हैं कि क्षेत्र में सऊदी अरब का प्रभाव तेज़ी से कम हो गया है और सऊदी नागरिक एक स्वच्छ व अच्छी प्रतिस्पर्धा के लिए पूरी तरह अक्षम हैं इसीलिए इसकी भरपाई के लिए सऊदी सरकार ने मीडिया के प्रोपेगैंडों का सहारा लिया है।
खेद की बात यह है कि पिछले चालीस वर्षों के दौरान मक्के में होने वाली विभिन्न घटनाओं में सात हज़ार से अधिक हाजियों और तीर्थयात्रियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। सऊदी प्रशासन के अधिकारी सदैव इन घटनाओं के बाद प्रोपेगैंडे करके बार बार घटने वाली इन घटनाओं में अपनी अयोग्यता पर पर्दा डालने का प्रयास करते हैं और इन घटनाओं का मुख्य कारण, हज संस्था की ओर से हाजियों और तीर्थयात्रियों को दिये गये दिशा निर्देशों की अनदेखी बताते हैं। उनका कहना होता है कि हाजियों और तीर्थयात्रियों को जो दिशा निर्देश दिए जाते हैं उन पर वे अमल नहीं करते। उदाहरण स्वरूप इस वर्ष हज के दौरान क्रेन दुर्घटना की ज़िम्मेदारी क्रेन कंपनी पर डाल दी गयी और इस दुर्घटना के बहुत ही आश्चर्यजनक कारक बयान करने का प्रयास किया गया किन्तु इन हृदय विदारक घटनाओं का बारंबार होना इस बात की पुष्टि है कि हज के संचालन में आले सऊद शासन पूरी तरह अयोग्य है। शायद यह कहा जा सकता है कि इन संकटों से मुक्ति प्राप्त करने का एक मात्र मार्ग यह है कि समस्त इस्लामी देशों को मिलाकर एक संयुक्त समिति बनायी जाए जो इन पवित्र स्थलों का संचालन करे। इन पवित्र स्थलों पर दुनिया के समस्त मुसलमानों का बराबर अधिकार है और उन्हें यह भी अधिकार है कि वे इसके संचालन के बारे में अपने दृष्टिकोण बयान करें।
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