वहाबियत, इस्लाम को मिटाने की एक बहुत बड़ी साज़िश 3
वहाबियत, इस्लाम को मिटाने की एक बहुत बड़ी साज़िश 3
सैय्य्द ताजदार हुसैन ज़ैदी
इस्लाम को मिटाने के लिये शत्रुओं की 27 चालें
हम आपके सामने इस्लाम को मिटाने के लिये विश्व की साम्राजी शक्तियों और अंतर्राष्ट्रीय ज़ायोनियों की तरफ़ से की जाने वाली साज़िशों के बारे में बयान कर रहे थे जिनका नतीजा यह हुआ था कि इन्होंने इस्लाम को समाप्त करने के लिये एक नक़्ली धर्म और इस्लाम में एक नया पथभ्रष्ट सम्प्रदाय पैदा किया जो वहाबियत है, जो यहूदियों और साम्राजी शक्तियों की पैदावार है, जो आले सऊद की गंदी सोंच का नतीजा है जो आले यहूद हैं। इन आले सऊद और आले यहूद ने मुसलमानों के पहले क़िब्ले के साथ साथ दूसरे क़िब्ले को भी क़ब्ज़े में कर लिया है।
इन्ही साम्राजी शक्तियों ने इस्लाम के विरुद्ध जो कार्य किये हैं उनके बारे में कुछ ऐतेराफ़ भी किये हैं जिनको हम अपने आज के प्रोग्राम में आप को सामने पेश करेंगे।
वह कहते हैं कि हमको इस्लाम को समाप्त करने के लिये इन 21 कार्यों को अंजाम देना चाहिये। और जब हम इस्लामी समाज को देखते हैं तो हमको हर तरफ़ इन साज़िशों की झलक दिखाई देती है।
1. मुसलमानों के बीच ग़ैर इस्लामी मापदंडों को रिवाज दिया जाए। राष्ट्रीय, नस्ली, क़ौमी, कबीलाई मापदंड, और कोशिश की जाए कि यह लोग अपने इलाही और ईश्वरीय मापदंडों को छोड़ दें, हम मुसलमानों के बीच राष्ट्रीय हीरोज़ को बढ़ावा दें। वह अली, हसन व हुसैन को अपना हीरो न समझें और उनके अंदर राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ावा दिया जाए ताकि यह लोग अपने राष्ट्रीय हीरो को ही अपने लिये रोल माडल समझें। अगर हम ईरान और इराक़ की जंग में शहीद होने वालों के वसीयतनामों का अध्ययन करें तो हमको हर तरफ़ केवल इस्लाम की बात नज़र आती है कही भी राष्ट्रीयता की कोई झलक नहीं है, लेकिन आज कुछ लोग इस जंग को राष्ट्रीय सोंच के साथ मिला रहे हैं और यह कह रहे हैं कि यह जो शहीद हुए हैं वह देश की धरती के लिये शहीद हुए हैं, जब्कि वास्तविक्ता यह है कि यह शहीद किसी धरती के लिये नहीं बल्कि सच्चाई और हक़ के लिये शहीद हुए हैं शहीद जो ईराक़ी बअसियों से युद्ध कर रहा था वह अफ़्रीक़ा के पीड़ितों और मज़लूमों के हक़ का झंढा भी उठाए हुए था। लेकिन यह लोग इसको एक राष्ट्रीय मुद्दा बनाना चाहते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि यह जंग हक़ और बातिल की जंग थी सत्य और असत्य की जंग थी।
2. जहां तक संभव हो सके हमें इस्लामी समाज में, शराब, जुआ, वेश्यावृत्ति, सुवर के गोश्त को बढ़ावा दिया जाए। इनमें से जो भी समाज में रिवाज पा जाए उसके बाद उस समाज की बरबादी निश्चिंत है।
3. इस्लाम को समाप्त करने के लिये हमें चाहिये की हम इस्लामी समाज के अल्पसंख्यकों के साथ सहयोग करें , उनको पैसा दें, उनका समर्थन करें और कुछ ऐसा करें कि ऐसा प्रतीत हो कि इस्लामी समाज में मुसलमान अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन हो रहा है। उसके बाद कहता है कि किताब में यह कहा गया है कि ब्रिटेन के दूतावास से संबंधित लोगों को चाहिये कि छिपकर और खुले इन कार्यों को अंजाम दें और जितना भी संभव हो सके उसके लिये पैसा ख़र्च करें।
आज हम देखते हैं कि एक यहूदी, एक ईसाई, एक ग़ैर मुसलमान मुसलमानों के समाज में आराम से जीवन व्यतीत करता है, और वह एक जुर्म करता है जिसके मुक़ाबले में उसको सज़ा दी जानी है, लेकिन जैसे ही इस्लामी हुकूमत उसके सज़ा देने का इरादा करती है साम्राजी शक्तियों और मानवाधिकार संगठनों की आवाज़ें बुलंद हो जाती हैं और चीख़ने लगते हैं कि एक ईसाई, यहूदी को इस्लामी समाज़ में कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है, जब्कि वास्तविक्ता यह है कि उसने एक जुर्म किया है जिसकी उसे सज़ा मिल रही है और इसका उसके धर्म से कोई लेनादेना नहीं है, बल्कि अगर कोई मुसलमान भी यह जुर्म करता तो उसको भी यही सज़ा मिलती।
4. मुसलमानों के बीच हम सूदखोरी को बढ़ावा दें क्योंकि सूदखोरी अर्थव्यवस्था को चौपट कर देती है, एक सूदख़ोर जिसके पास पैसा है वह अपने पैसे के माध्यम से बिना कोई आर्थिक कार्य किये पैसा कमा रहा है लेकिन एक व्यक्ति जिसने उससे पैसा लिया है अगरचे वह आर्थिक कार्य कर रहा है लेकिन वह ग़रीब होता जा रहा है क्योंकि उसको अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा उस सूदखोर को देना होता है। यह सूदखोर अर्थव्यवस्था को अपने पैसे से चौपट करता है। इसलिये हमको चाहिये की हम सूदखोरी को बढ़ावा दें क्योंकि जब सूदखोरी बढ़ेगी तो अर्थव्यवस्था चौपट हो जाएगी, और जब अर्थव्यवस्था चौपट होगी तो ग़रीबी बढ़ेगी और जब ग़रीबी बढ़ेगी तो क़ुफ़्र और बेदीनी बढ़ेगी।
और दूसरी बात यह है कि चूँकि सूदखोरी एक बहुत बड़ा पाप और ईश्वर से युद्ध करने के बराबर है तो अगर कोई एक पाप कर लेगा तो उसको दूसरे पापों में डालना और उससे दूसरे पाप करवाना आसान हो जाएगा।
और सोंचने की बात यह है कि वह यह भी बताता है कि हम मुसलमानों के बीच सूदखोरी को किस प्रकार बढ़ावा दें वह कहता है कि आप लोग क़ुरआन की इस आयत का प्रयोग करें जिसमें ईश्वर फ़रमाता है لاَ تَأْكُلُواْ الرِّبَا أَضْعَافًا مُّضَاعَفَةً कई बराबर सूद न खाओ, यानी थोड़ा सूद ले सकते हो, अगर दोनों राज़ी हो तो ले सकते हो, इस प्रकार इस आयत के माध्यम से लोगों के दिलों में शंका डालों और उनको सूदखोर बनाओ
5. हम कुछ ऐसा करें कि मुसलमानों का संपर्क उनके ओलेमा और विद्वानों से टूट जाए, इंसान को ईश्वर से संपर्क करने के लिये आवश्यकता यह है कि वह उसकी बात को उसके कलाम को समझे और यह कार्य उह धर्म के विद्वान और ओलेमा करते हैं, और अगर यह संपर्क टूट जाए तो समाज में कुछ भी बाक़ी न रह जाएगा।
इसके लिये हमें चाहिये कि हम सबसे पहले ओलेमा पर आरोप प्रत्यारोप लगाएं, उनको भ्रष्ट करें और अगर यह संभव न हो सके तो हम स्वंय कुछ लोगों को ओलेमा के भेस में समाज में भेजें जो बुरे कार्य करें ताकि जब लोग इन लोगों के बुरे कार्यों को देखें तो वह सारे ओलेमा को बुरा समझें और इस प्रकार समाज और ओलामे के बीच दूरी पैदा की जा सके। और इसी प्रकार हम ऐसे टीचरों को तैयार करें तो मुसलमान बच्चों के दिलों में उनके ओलेमा के विरुद्ध शत्रुता और दुश्मनी का बीज बो सकें और उनके दिलों में यह डालें कि यह सब अपने पेट के चक्कर में लगे रहते हैं, इस्लामी पैसे को केवल अपने लिये ख़र्च करते हैं, अय्याशी करते हैं.....।
6. हम कुछ ऐसा करें कि जिहाद का आदेश समाप्त हो जाए और लोग जिहाद को छोड़ दें। इसमें दो प्रकार की साजिशें की जा रहीं है एक तो यह कि जिहाद के नाम पर तालेबान, अलक़ायदा, ISIS बोकोहराम जैसे संगठन पैदा हो रहे हैं और दूसरी तरफ़ जो वास्तव में जिहाद करने वाले हैं उनको यह कह कर बिठाया जा रहा है कि जिहाद मख़सूस है पैग़म्बर और इमाम से जब तक यह न हों जिहाद नहीं हो सकता है।
7. हमकों मुसलमानों के दिलों में यह बिठाना है कि अहले किताब नजिस नहीं है, अगर यह दिलों में बैठ जाएं कि ईसाईयों और यहूदियों के साथ रहने में कोई बुराई नहीं है तो वह उनके रहन सहन को अच्छा समझने लगेंगे और हम अपने तरीक़ों से उनको अपने धर्म की तरफ़ ला सकेंगें।
हमें मुसलमानों के दिलों में यह डालना है कि पैग़म्बर की एक यहूदी पत्नी थी जिसका नाम सफिया था एक ईसाई पत्नी थी जिसका नाम मारिया था तो अगर अहले किताब नजिस होते तो पैग़म्बर की पत्नी यहूदी और ईसाई कैसे हो सकती थी?
8. हमको कुछ ऐसा करना चाहिये कि इस्लाम का अर्थ बदल जाए और इस्लाम का मापदंड मोहम्मदी होना न रह जाए बल्कि मुसलमान होना हो जाए जिसका अर्थ यह होगा कि चाहे कोई सुन्नी हो या शिया बहाई हो या वहाबी जो भी कलमा पढ़ ले वह मुसलमान है और उसकी आख़ेरत सुधर गई है।
9. हम कुछ ऐसा करें कि मुसलमानों के बीच चर्च जाने की हुरमत और वर्जित होना समाप्त हो जाए, और लोग चर्च और मठ जाने लगें ताकि इस प्रकार वह हमारे विद्वानों तक पहुँच सकें और फिर उनके दिलों में शंकाएं डाली जाएं जिनका वह उत्तर न दे सकें और बाद में उनको अधर्मी किया जा सके।
10. हमको कुछ ऐसा करना चाहिये कि अरबी धरती पर यहूदी, ईसाई, काफ़िर और मुशरिक पहुंच सकें, आज जो हम यह कह रहे हैं कि यह आले सऊद आले यहूद हैं यह ख़ाएनुल हरमैन हैं उसका कारण यह है कि, हदीस में है कि
اخرجوا الیهود من جزیره العرب
लेकिन इन वहाबियों ने हज के दिनों में मुसलमानों की हत्या करने के लिये जर्मनी से एक यहूदी को ईश्वर की पवित्र धरती पर बुलाया और आज यह अमरीका और इस्राईल का गढ़ बन चुका है।
11. हम कुछ ऐसा करें कि लोग इबादत से दूर हो जाएं लोग ईश्वर की उपासना न करें, हमें चाहिये कि हम लोगों के दिलो में यह डालें कि ईश्वर को तुम्हारी इबादत की आवश्यकता नहीं है।
12. हम कुछ ऐसा करें कि मुसलमान धार्मिक सम्मेलनों में इकट्ठा न हों, नमाज़े जमाअत, इमाम हुसैन की मजलिसों, अज़ादारी, ज़ियारतगाहों आदि मे लोगों को पहुंचने से रोकें।
आज हम देखते हैं कि ईराक़ में अरबईन हुसैनी के मौक़े पर दुनिया का सबसे बड़ा जमावड़ा होता है अगरचे दुनिया की सारी मीडिया यह प्रयत्न करती है कि इसको सेंसर करे, लेकिन फिर भी हम देखते हैं कि आतंकवादी धमकियों, सेंसर, ख़तरों के बाद भी लोग करोड़ों की संख्या में वहां पहुँचते हैं, यह एक चमत्कार है, अगर इन साम्राजी शक्तियों को कहीं एक लाख लोगों को भी एकट्ठा करना होता है तो यह महीनों पहले से प्रचार करते हैं और फिर भी अपने प्रयत्न में कामियाब नहीं होते हैं लेकिन आप अरबईन को देख लें, यह कलमा पढ़ने वालों की शक्ति को दिखाता है और इसी से साम्राजी शक्तियां डरी हुई हैं और इस प्रकार की चीज़ों को समाप्त करना चाहती हैं, कभी शिक्र और बिदअत बता के तो कभी जान का खतरा दिखा कर।
13. हमको इस्लाम की अर्थ व्यवस्था के बारे में शंकाएं पैदा करनी चाहिये, और कुछ ऐसा करना चाहिये कि लोग खुम्स और ज़कात न दें और अगर यह रुक गया तो इनके धार्मिक कार्य रुक जाएंगे।
14. हमको इस्लाम को नाअमनी, अत्याचार, अव्यवस्था, चोरी चकारी, आतंकवाद के धर्म के तौर पर प्रचारित करना चाहिये।
15. हमको चाहिये कि हम मुसलमान बच्चों का प्रशिक्षण करें और उनको उनके माता पिता और उनके ओलेमा के हाथों से निकाले, और आज हम अपने समाज में यही होता देख रहे हैं कि मुसलमान बच्चे यहूदी और ईसाई स्कूलों में पढ़ने जा रहे हैं उनका कल्चर सीख रहे हैं और हम इसमें फ़ख़्र महसूस कर रहे हैं।
16. हमको मुसलमानों के बीच बेहिजाबी को बढ़ाना चाहिये, जब बेहिजाबी बढ़ेगी, और शादियां कठिन हो जाएंगी तो फ़साद और बुराई समाज में बढ़ जाएगी।
17. लोगों को नमाज़ से दूर किया जाएं। किसी को अज़ादारी के नाम पर नमाज़ से दूर किया जाए तो किसी के दिल में यह बिठाया जाए कि ईश्वर को तुम्हारी नमाज़ों की आवश्यकता नहीं, नमाज़ों के बेरूह कर दिया जाए, जल्दबाज़ी भरी तेज़ी से पढ़ी जाने वाली नमाज़ें हो जिनका नमाज़ पढ़ने वाले को कोई फ़ाएदा न हो।
18. हमको ईश्वरीय दूतों की क़ब्रों को ध्वस्त करना चाहिये और अगर ऐसा न कर सकें तो लोगों के दिलों में यह संदेह डालना चाहिये कि कैसे पता कि यहां पर जिसकी क़ब्र बताई जा रही है उसी की क़ब्र है? हम आपके सामने उनकी बातों के कुछ नमूने पेश कर रहे हैं कि वह कहते हैं कि कैसे पता कि यह क़ब्र पैग़म्बर, इमाम या मासूम की है क्योंकि पैग़म्बर अपनी माँ की क़ब्र के पास दफ़्न हुए और अबू बक्र व उमर बक़ी में दफ़्न हुए उस्मान की क़ब्र का पता नहीं है अली बसरा में दफ़्न हुए और नजफ़ में जो क़ब्र है वह मुग़ैरा बिन शोअबा की हुसैन का सर हन्नाना में दफ़्न है और शरीर का पता नहीं मशहद में हारून की क़ब्र है न कि इमाम रज़ा की और इसी प्रकार दूसरी बातें।
19. हमको सादात के सैय्यद होने के बारे में संदेह पैदा करना चाहिये, हमको चाहिये कि नक़्ली सैय्यदों को पैदा करें ताकि लोग अस्ली सादात के बारे में भी संदेह में पड़ जाएं।
20. हमको इमामबाड़ों को बिदअत और शिर्क की निशानी बताकर मिटा देना चाहिये, जैसा कि हम आज वहाबियत के नजिस हाथों से ऐसा होता हुआ देख रहे हैं।
21. मिंबरों को समाप्त करना और उनको सरकारी करना ताकि वह वहीं कहें जो उनको कहने को कहा जाए और दीन के प्रचार का एक बड़ा माध्यम समाप्त किया जा सके।
22. हमको चाहिये कि लोगों के बीच यह सोंच पैदा करें कि हर इंसान अपने दीनी कार्यों में पूर्ण रूप से स्वतंत्र है और अगर ऐसा हो गया तो अम्रबिल मारूफ़ और नही अनिल मुनकर समाप्त हो जाएगा।
23. हमको ऐसा करना चाहिये जिससे मुसलमानों की नस्ल कम हो जाए और उनके बीच में यह सोंच पैदा करनी चाहिये कि कम संतान सुखी इंसान।
24. हम यह फैलाएं कि इस्लाम केवल अरबों का धर्म है और दूसरों के लिये नहीं है।
25. हमको क़ुरआन मे तहरीफ़ करनी चाहिये और वह आयतें जो यहूदियों ईसाईयों काफ़िरों, और जिहाद आदि के बारे में हैं क़ुरआन से हटा देना चाहिये।
26. हमको चाहिये कि लोगों के बीच ऐसे क़ुरआन को बढ़ावा दें जिसमें अरबी न हो, यानी उर्दू वाले के लिये उर्दू में हिंदी वाले के लिये हिंदी में .... जिसका प्रभाव यह होगा कि क़ुरआन में तहरीफ़ की जा सकेगी।
27. और हमको चाहिये की हदीसों के बारे में संदेह पैदा करें कि यह सही है या ग़लत यह मासूम ने कहा भी है या नहीं इस हदीस का अर्थ क्या है आदि।
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