हज़रत अब्बास (अ) के जन्मदिवस के अवसर पर विशेष
हज़रत अब्बास (अ) के जन्मदिवस के अवसर पर विशेष
आज एक ऐसे महान व्यक्ति की जन्म तिथि है जिसके नाम से इतिहास में बलिदान व वफ़ादारी रची बसी है और जिस की साहसपूर्ण जीवनी इतिहास के पन्नों पर जगमगा रही है।
हिजरी क़मरी कैलेन्डर के शाबान महीने की चार तारीख़ अली के पुत्र हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के जन्म दिवस से सजी हुई है। उन्हें उनके अत्यधिक सदगुणों के कारण अबुलफज़्ल अर्थात गुणों के पितामाह की उपाधि दी गयी थी।
हम कर्बला के तपते मैदान पर साहस व वीरता व त्याग के बलिदान की अमर गाथा लिखने वाले हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के शुभ जन्मदिन की आप सब को हार्दिक बधाई पेश करते हैं।
वर्ष २६ हिजरी क़मरी चार शाबान को हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम का जन्म हुआ उनकी माता का नाम फ़ातेमा था और उनका संबंध बनी केलाब क़बीले से था। इस क़बीले को साहस व वीरता में पूरे अरब जगत में ख्याति प्राप्त थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने , पैग़म्बरे इस्लाम की पुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के शहीद होने के कुछ वर्षों के बाद हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की माता फातेमा केलाबिया से विवाह किया था । उन के चार बेटे थे और इस लिए उन्हें उम्मुलबनीन अर्थात पुत्रों की माता की उपाधि दी गयी थी। उम्मुलबनीन के पुत्रों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महाआन्दोलन में बड़ी वीरता से उनका साथ दिया और सब के सब शहीद हुए।
हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम अत्याधिक सुन्दर मुख और शरीर के कारण क़मर बनी हाशिम , अर्थात हाशिम क़बीले के चांद के नाम से प्रसिद्ध थे । सारे लोग ही उनका गुणगान करते थे और उन्हें इस उपाधि के योग्य समझते थे। प्रसिद्ध इतिहासकार इब्ने शहरआशूब ने अपनी किताब मनाक़िब में लिखा हैः
उन्हें स्वाभाव व शरीर के गुणों के कारण क़मरे बनी हाशिम कहा जाता था क्योंकि उपासना व सदभावना का तेज उनके चेहरे से फूटता प्रतीत होता था।
हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम का जन्म ऐसे घर में हुआ था जो ज्ञान व तत्वदर्शिता का केन्द्र था। उन्होंने अपने पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ १४ वर्ष जो बिताए थे उसके दौरान उन्होंने अपने पिता के ईमान व व्यक्तित्व तथा गुणों से अत्याधिक लाभ उठाया और उनके गुणों व विचारों का हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम पर अत्याधिक प्रभाव पड़ा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम भी अपने बेटे हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम पर विशेष रूप से ध्यान देते थे और उनके मानसिक प्रशिक्षण के साथ ही साथ उन्हें शारीरिक रूप से भी शक्तिशाली व दक्ष बनाने की ओर ध्यान दिया। इसी लिए हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम को तीर व तलवार चलाने जैसे रणकौशल का प्रशिक्षण दिया और वे इन सब में दक्ष हो गये। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के जीवन का एक अत्यन्त ध्यान योग्य आयाम यह है कि वे अपने भाईयों विशेषकर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से अत्याधिक लगाव रखते थे। उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महान व्यक्तित्व से अत्याधिक लाभ उठाया और हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के आध्यात्मिक विकास में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अत्यधिक भूमिका रही है।
हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम ईश्वर पर अत्याधिक ईमान रखने वाले व्यक्ति थे और इस ईमान के लक्षण व चिन्ह उनके विशेष व्यवहार में दिखाई देते थे । हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के आध्यात्मिक स्थान व ज्ञान क बारे में इतिहास में आया है कि वे अत्याधिक धार्मिक तथा पवित्र स्वभाव के थे और लोग उनपर अत्याधिक विश्वास करते थे। सब लोग उन्हें भलाई व उपकार करने वाले के रूप में जानते थे। उनका मधुर स्वभाव लोगों को अपनी ओर खींच लेता था। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की दूरदर्शिता व ज्ञान इस बात का कारण था कि लोग अपने कामों में उनसे सलाह लें। वे लोगों के ज्ञान संबंधी प्रश्नों का उत्तर देते थे और उन का इस्लामी ज्ञान अत्याधिक व्यापक था। लोगों की सहायता करना और उनकी समस्याओं का निवारण हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की महत्वपूर्ण दिनचर्या थी। इसी लिए उन्हें बाबुल हवाएज अर्थात आवश्यकताओं की पूर्ति का द्वार कहा जाता है। अर्थात वह एसे व्यक्ति थे जो दूसरों की आवश्यकताओं की पूर्ति करते थे।
हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम अत्याधिक विनम्र और शिष्ट थे। उनका गंभीर शिष्ट व संयमपूर्ण व्यक्तित्व हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस कथन की याद दिलाता था कि शिष्टाचार से बड़ी कोई विरासत नहीं होती। वे अपने भाई इमाम हसन व इमाम हुसैन अलैहिमुस्सलाम के सेवा में बिना उनकी अनुमति के कभी बैठते नहीं थे उन्होंने अपनी ३४ वर्ष की पूरी आयु में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को जो उनके भाई थे , पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र और स्वामी कह कर संबोधित किया।
त्याग व बलिदान हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व का सब से महत्वपूर्ण आयाम है जिसकी चरमसीमा का प्रदर्शन उन्होंने कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के महान आन्दोलन के दौरान किया। यहां तक कि आशूरा की महान घटना में हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम का नाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के नाम के साथ जुड़ गया। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की छोटी सी सेना के इस वीर व साहसी सेनापति ने रणक्षेत्र में वीरता व साहस के साथ ही साथ शिष्टाचार व नैतिकता का ऐसा उदाहरण पेश किया जिसे आज भी कर्बला की अमर घटना के अटूट अंश के रूप में याद किया जाता है। उन्होंने युद्ध के मध्य जब देखा कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बच्चे प्यासे हैं तो उनके लिए पानी लाने वे अकेले ही शत्रु की सेना में घुस गये और उनके घेरे को तोड़ते हुए फुरात नदी में घुस गये । वे स्वंय भी कई दिनों से प्यासे थे फुरात नदी का शीतल जल , कर्बला की तपते रेगिस्तान में उन के क़दमों में बह रहा था उन्होंने चुल्लू में पानी उठाया किंतु इमाम हुसैन और उनके बच्चों की प्यास याद करके उसे नदी में फेंक दिया । अपनी छागल पानी से भरी और घोड़े पर सवार होकर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिजनों के शिविरों की ओर बढ़न लगे किंतु मार्ग में यज़ीद के असंख्य सिपाहियों ने उन्हें घेर लिया और वे शहीद हो गये। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम पर उनके पिता हज़रत अली का यह कथन यथार्थ होता है कि सब से श्रेष्ठ मोमिन वह होता है जो अपने प्राण , धन व परिजनों का बलिदान देने में सब से श्रेष्ठ हो।
हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम का त्याग व बलिदान व साहस वास्तव में धर्म पर गहरी दृष्टि व ईश्वर की पहचान का परिणाम था। यह गहरी विचार धारा ही उन की भावनाओं का दिशा प्रदान करती थी। उनके पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उन्हें सिखाया था कि जीवन लक्ष्यपूर्ण होना चाहिए तो फिर यह कितनी अच्छी बात है कि मनुष्य का जीवन मानवीय मूल्यों के विस्तार तथा अन्याय व भ्रष्टाचार के उन्मूलन में व्यतीत हो।
प्रसिद्ध इतिहासकारों व विद्वानों ने हज़रत अब्बास के बारे में कहा है कि वे उस समुद्र की भांति हैं जिसमें भलाई की लहरे उठती हैं और जिस का तट , दान व दया से भरा है।
हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमारे शरीर व आत्मा को , गुणों व पवित्रता के स्रोत से जोड़ दे।
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