क्या सऊदी अरब आत्महत्या करना चाहता है, समीक्षा + तस्वीरें
लेबनान की अलमनार न्यूज़ एजेंसी ने यमन पर सऊदी अरब के हमले का विश्लेषण किया है जिसका हिंदी अनुवाद हम टीवी शिया के माध्यम से आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं।
यमन और सऊदी अरब के संबंध बहुत ही बेचीदा संबंधों में से हैं जिसके बारे में कहा जा सकता है कि यह इन दोनों देशों बल्कि दुनिया के सबसे पेचीदा संबंधों में से है। इन संबंधों पर एक उचटती दृष्टि डालने मात्र से ही पता चलता है कि जब से सऊदी अरब की स्थापना हुई है तब से अब तक उसने यमन को अपनी प्राथ्मिकता में रखा है और सऊदी अरब के बादशाह सदैव अपने देश की दक्षिणी सीमाओं पर होने वाली तबदीलियों पर गंभीर थे, गंभीरता जो कि अब्दुल अज़ीज़ आले सऊदी (सऊदी अरब की संस्थापक) की तरफ़ से अपने बेटों को की जाने वाली वसीयत का पालन करने से पैदा होती है जिसमें उसने अपने बेटों को चेतावनी दी थी और कहा था कि तुम्हारी अच्छाई और बुराई दोनों यमन से हैं।
ऐसे वसीयत कि जो अगर सही हो और जिसके सही होने की संभावना भी बहुत अधिक है अपने पड़ोसी के लिये रियाज़ के शत्रुतापूर्ण रवैय्ये की तफ़सीर करता है।
इतिहास गवाह है कि सऊदी अरब केवल उसी समय सुकून से बैठा है कि जब यमन कमज़ोर, और अव्यवस्थित था और इसीलिये दसियों सालों में सऊदी अरब के अधिकारियों ने यमन में नस्लीय, क़बीलाई और क्षेत्रीय मतभेदों को हवा दी है और उनको बढ़ावा दिया है और अपने इस कार्य में वह सैन्य हस्तक्षेप से भी पीछे नहीं हटे हैं।
क्यों यमन?
बहुत से अरबी और पश्चिमी विश्लेषकों ने सऊदी अरब की यमन की तरफ़ से होने वाली इस परेशानी और सदैव के डर और इन दसियों सालों में दोनों देशों के बीच होने वाली जंगों जिसमें सऊदी अरब का यमन पर हालिया आक्रमण भी शामिल है के बारे में अध्ययन किया है।
अमरीकी के फ्रेमोंट विश्वविद्यालय (University of Fremont) के राजनीति विज्ञान (Political Science) के प्रोफ़ेसर ग्रेगरी जोस (Gregory joush) अपने अध्ययन में कहा थाः सऊदी अरब के यमन में दो लक्ष्य है
1. यमन में राष्ट्रीय एकता को रोकना, क्योंकि यह एकता 1934 की संधि को तोड़ सकता है।
2. सऊदी अरब नहीं चाहता है कि दूसरे देशों का यमन में प्राभावी ठिकाना हो, क्योंकि यह यमन और अरब प्रायद्वीप में होने वाली घटनाओं पर प्रभाव डाल सकता है और दूसरी तरफ़ रियाज़ चाहता है कि सारा अरब प्रायद्वीप बादशाही रहे और यमन के साथ उसका संबंध फ़ारस की खाड़ी के दूसरे बादशाह शासित देशों की तरह रहे।
दूसरी तरफ़ श्रीमती सारा फ़िलिप्स (Sarah Phillips) सिडनी यूनिवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन केंद्र में अपने भाषण में कहती है: यमन और सऊदी अरब के बीच के संबंध दो देशों के संबंध नहीं है। सऊदी अरब कभी भी यमन का सहयोगी देश नहीं रहा है, बल्कि वह केवल विशेष केन्द्रों और संस्थानों के साथ संबंध में है ताकि उनके माध्यम से यमन की राजनीति पर असर डाल सके।
ग्रेगरी जोस कहते हैं: केन्द्र शासित मज़बूत सत्ता का अर्थ क़बीलों की आज़ादी और हुकूमत का राष्ट्रीय संस्थानों की व्यवस्था और देखरेख पर शक्ति रखना है, जिसका नतीजा सऊदी अरब पर आर्थिक निर्भरता की समाप्ति है और यह वह चीज़ जिसको निसंदेह रियाज़ नहीं चाहता है, क्योंकि यमन का आर्थिक रूप से रियाज़ पर निर्भर होना सऊदी ख़ानदान के लिये यमन और अरब प्रायद्वीप में लोकतंत्र के लिये होने वाली कोशिशों को रोकने के लिये बेहतरीन गारंटी है।
हमले जारी रहेंगें..... लेकिन
सालों पहले प्रकाशित होने वाली यह बातें यमन पर आज के वहाबी सऊदी अरब के हमले का उत्तर दे सकती हैं और यह रियाज़ और उससे बिके हुए मीडिया के दावों का जवाब हो सकते हैं जिसमें कहा गया है कि ईरान यमन में ख़ुफ़िया प्रोग्राम चला रहा है, क्योंकि सच्चाई यह कि इन हमलों का वास्तविक कारण यह है कि रियाज़ यह नहीं चाहता है कि यमन एक शक्तिशाली और मुत्तहिद देश बने।
यमन पर वहाबी सऊदी अरब के वहशियान हमलों के बावजूद बहुत सी निशानियां है जो यह बताती हैं कि सऊदी अरब का यह हस्तक्षेप अंधकारमय होगा।
यूएई के राजनीतिक शात्र के प्रोफेसर अब्दुल खालिक़ अब्दुल्लाह कहते हैं: बावजूद इसके कि सऊदी अरब क्षेत्र की एक बड़ी शक्ति है लेकिन उसने यह आक्रमण करके बहुत बड़ा रिस्क उठाया है।
अमरीका के एक बड़े अधिकारी ने रोएटर्ज़ से बात करते हुए इस बारे में कहाः हाल की घटनाएं, भावनात्मक रिएक्शन और यमन में तेज़ी से बदलते हुए हालात के बारे में रियाज़ के डर का नतीजा है और यही कारण है कि यमन के विरुद्ध यह गठबंधन इनती तीव्रता के साथ गठित हुआ, और बहुत से विश्लेषकों का मत है कि यह गठबंधन संदिग्ध है।
रायटरज़ (Reuters) लिखता हैः अगर हौसी और अंसारुल्लाह आन्दोलन सऊदी अरब के हमलों के बावजूद कुछ दिनों पर “अदन” पर कंट्रोल कर लेते हैं और मंसूर हादी को देश में वापस आने से रोक लेते हैं तो दस देशों के गठबंधन का वास्विक लक्ष्य हार का मज़ा चखेगा।
रायटरज़ (Reuters) आगे लिखता हैः इस प्रकार की कोई भी घटना गंठबंधन बलों के लिये बड़ा इम्तेहान होगी जो इसी समय ठहता जा रहा है क्योंकि पाकिस्तान ने सऊदी अरब द्वारा पाकिस्तान के इस गठबंधन में शामिल होने इन्कार किया है और कहा है कि पाकिस्तान ने अभी इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं किया है।
रॉबर्ट फिस्क (Robert Fisk) इन्डिपेंडेन्ट समाचार (Independent) पत्र से बात करते हुए कहते हैं: किस ने यह फ़ैसला किया है कि अरब के सबसे ग़रीब देश पर इस प्रकार की जंग लादी जाए? सऊदी अरब जो सारी दुनिया में प्रसिद्ध है वह अपने बाले में एक सही फ़ैसला भी नहीं कर सकता है? या सऊदी अरब की सेना के अधिकारी यह बात के चक्कर में है कि अपने इस कार्य से सऊदी ख़ानदान के प्रति अपनी वफ़ादारी साबित कर सकें?
साइमन हेंडरसन (Simon Henderson) ने फ़ारेन पालीसी (Foreign Policy) में एक नोट में कहाः यमन संकट मलिक सलमान की विदेश नीति के भविष्य को दिखाता है और अगर सऊदी अरब मंसूर हादी को दोबारा यमन के राष्ट्रपति भवन पहुँचाने में नाकाम रहे तो यह यमन में रियाज़ की अभियान की हार होगी।
निशानिया और विश्लेषण बताते हैं कि यमन में सऊदी अरब की हार क़रीब है और हम फ़ारस की ख़ाड़ी के देशों के रवय्ये देखकर इस होती हुई हार को देख रहे हैं और कुछ खाड़ी देशों के अधिकारियों ने फ़्रांस की एक न्यूज़ एजेंसी से कहा है कि यमन पर हमला संभव है कि 6 महीने तक चले जब्कि निशानिया यह दिखाती हैं कि यह एक महीने से अधिक नहीं चलने वाला है।
अनुवादकः सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
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