इमाम अली नक़ी (अ) के कथन भाग 4
इमाम अली नक़ी (अ) के कथन भाग 4
हज़रत अब्दुल अज़ीम हसनी ने अपने धार्मिक अक़ीदों को दसवें इमाम के सामने प्रस्तुत कियाः
31- عن عبدالعظيم بن عبدالله الحسني، قال دخلت علي سيدي علي بن محمد بن علي بن موسي بن جعفر بن محمد بن علي بن الحسين ابن علي ابن ابي طالب عليهم السلام فلما بصر بي قال لي
مرحباً بك يا أباالقاسم أنت ولينا حقاً.
قال قلت له: يابن رسول الله إنّي أريد أن أعرض عليك ديني فإن كان مرضياً ثبتت عليه حتي ألقي الله عزوجل.
فقال: هات يا أباالقاسم.
فقلت: إنّي أقول إنّ الله تعالي واحد ليس كمثله شي ء خارج عن الحدين حد الإبطال و حد التشبيه أنّه ليس بجسم و لا صورة و لا عرض و لا جوهر، بل مجسِّم الأجسام و مصوِّر الصور و خالق الأعراض و الجواهر و رَبُّ كلِّ شيءٍ و مالكه و جاعله و مُحدِثُهُ.
و أنّ محمداً عبده و رسوله خاتم النبيين فلا نبيَّ بعده إلي يوم القيامة و أنّ شريعتَهُ خاتِمَةُ الشرايع فلا شريعةَ بعدها إلي يوم القيامة و أقول أنّ الإمام و الخليفة و وليّ الأمر بعده أميرالمؤمنين علي بن أبي طالب ثم الحسن ثم الحسين ثم علي بن الحسين ثم محمد بن علي ثم جعفر بن محمد ثم موسي بن جعفر ثم علي بن موسي ثم محمد بن علي ثم أنت يا مولاي.
فقال علي بن محمد عليه السلام: و مِن بعدي الحسن ابني، فكيف للناس بالخَلَفِ من بعده.
قال: و قلت و كيف ذالك يا مولاي؟
قال: لأنّه لا يُري شخصُهُ و لا يحلُّ ذكره باسمه حتي يخرج فيملأ الأرض قسطاً و عدلاً كما ملئت ظلماً و جوراً.
قال فقلت: أقررت و أقول إنّ وليهم ولي الله و عدوهم عدو الله و طاعتهم طاعة الله و معصيتهم معصية الله.
و أقول أنَّ المعراجَ حقٌّ و المُسائَلَةُ في القبر حقٌّ و أنَّ الجنةَ حقّ و النار حقّ و الصراط حقّ و الميزان حقّ و أن الساعة آتية لا ريب فيها و أن الله يبعث من في القبور و أقول أنَّ الفرائض الواجبةَ بعد الولاية الصلوة و الزكوة و الصوم و الحج و الجهاد و الأمر بالمعروف و النهي عن المنكر.
فقال علي بن محمد عليه السلام: يا اباالقاسم هذا و الله دين الله الذي ارتضی لعباده فأثبِت عليه ثَبَّتَكَ الله بالقول الثابت في الحياة الدنيا و الآخرة.
शेख़ सदूक़ ने अपनी पुस्तक अमाली और कमालुद्दीन में रिवायत की है कि हज़रत अब्दुल अज़ीम ने फ़रमायाः मैं अपने आक़ा और मौला हज़रत इमाम अली नक़ी (अ) की ख़िदमत में पहुंचा
जब आपने मुझे देखा तो फ़रमायाः शाबाश हो तुम पर हे अबुल क़ासिम तुम वास्तम में हमारे सच्चे दोस्त और चाहने वाले हो।
मैंने उनसे कहाः हे पैग़म्बर के बेटे मैं चाहता हूँ कि अपने धार्मिक अक़ीदों को अपके सामने पेश करूँ और अगर वह सही हों तो मैं उन पर बाक़ी रहूँ ताकि उसी हालत में ईश्वर से मुलाक़ात करूँ।
आपने फ़रमायाः पेश करों और अपने धार्मिक अक़ीदों को बयान करों।
मैंने कहाः मेरा अक़ीदा और विश्वास है कि ईश्वर एक है और उसके जैसा कोई नहीं है और वह अबातिल और तश्बीह की हदों से बाहर है, उसका शरीर, चेहरा चौड़ाई और मूल नहीं है (वह शरीर और उसकी आवश्यकताओं से पवित्र है) उसने शरीरों को शरीर दिया और वह स्वंय शरीर और जिस्म से पवित्र है, वह सारी सृष्टि को बनाने और उसको सूरत देने वाला है और वह स्वंय चेहरे और सूरत से पवित्र है, वह हर अरज़ और जौहर को पैदा करने वाला है (और स्वंय जौहर एवं अरज़ से पवित्र है) वह हर चीज़ का परवरदिगार है (और स्वंय इस चीज़ से पवित्र है कि कोई उसका परवरदिगार हो) वह हर चीज़ का मालिक है (और इस चीज़ से पवित्र है कि कोई उसका मालिक हो) वह हर चीज़ और सारी सृष्टि को क़रार देने वाला है (और स्वंय इस बात से पवित्र है कि कोई उसको क़रार दे) वह सारे संसार और सृष्टि को पैदा करने वाला और बनाने वाला है और स्यंव इस बात से पवित्र है कि किसी ने उसको बनाया हो वह सदैव से है।
मेरा विश्वास है कि हज़रत मोहम्मद (स) बंदे और ईश्वर के दूत (रसूल) हैं, वह अन्तिम नहीं हैं और इसीलिये क़यामत तक उनके बाद कोई पैग़म्बर नहीं होगा और आपकी शरीअत सारी शरीअतों का अंत है इसीलिये आपकी पूर्ण शरीअत के बाद क़यामत तक कोई दूसरी शरीअत नहीं आएगी।
मेरा अक़ीदा है कि पैग़म्बर के बाद इमाम और ईश्वर के वली अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) हैं और उनके बाद यह इमामत इमाम हसन (अ) से मख़सूस है और उनके बाद यह मक़ाम इमाम हुसैन (अ) के लिये हैं इसी प्रकार इमाम हुसैन के बाद सारे इमामों का नाम लिया यहां तक कि स्वंय इमाम अली नक़ी (अ) तक पहुँचे और कहा इस समय इस सारी सृष्टि में इमाम और ख़लीफ़ा आप हैं
तब इमाम अली नक़ी (अ) ने अब्दुल अज़ीम से फ़रमायाः मेरे बात इमामत और ख़िलाफ़त का मक़ाम मेरे बेटे इमाम हसन (अस्करी) के लिये हैं, तो लोगों का क्या होगा उसके बाद के ज़माने में ?
मैंने कहाः यह कैसे है? (विस्तार से समझाइये)
आपने फ़रमायाः इसलिये कि वह (इमाम ज़माना) दिखाई नहीं देगें क्योंकि वह लोगों की निगाहों से ओझल होंगे, और उनके नाम को ज़बान पर जारी करना हलाल नहीं है यहां तक कि उनका ज़ोहूर हो जाए और वह संसार को उसी प्रकार न्याय और अद्ल से भर दें जिस प्रकार वह अत्याचार और ज़ुल्म से भरा होगा।
अब्दुल अज़ीम ने कहाः मैंने स्वीकार किया और आपके बाद आने वाले इन दो इमामों की इमामत का अक़ीदा बैठा लिया, मैंने कह दिया और कहता हूँ कि मैं उन सभी का दोस्त हूँ क्योंकि इनका दोस्त ख़ुदा का दोस्त और इनका शत्रु ख़ुदा का दुश्मन है और इनका अनुसरण ईश्वर का अनुसरण और इनकी अवहेलना ईश्वर की अवहेलना है।
और मेरा अक़ीदा है कि मेराज सच है और क़ब्र में सवाल जवाब सच है, और मैं स्वर्ग और नर्क पर विश्वास रखता हूँ और सिरात एवं मीज़ान का एक़रार करता हूँ कि यह सब सच हैं और कोई संदेह नहीं है कि क़यामत आएगी और ख़ुदा सारे मुर्दों को जीवित करेगा और सभी को मबऊस करेगा जो क़ब्रों में हैं।
मेरा अक़ीदा है कि विलायत और अहलेबैत से दोस्ती के बाद वाजिबात नमाज़, ज़कात, रोज़ा हज, जिहाद, नेकी का आदेश और बुराई से रोकना (अम्र बिल मारूफ़ नही अनिल मुनकर) है।
(जब अब्दुल अज़ीम ने अपने सारे अक़ीदों को इस प्रकार बयान कर दिया तो आपने इनका सत्यापन करते हए) फ़रमायाः हे अबुल क़ासिम ख़ुदा की क़सम ईश्वर का दीन यह है जिसको ख़ुदा ने अपने बंदों के लिये पसंद किया है, इन्हीं अक़ीदों पर बाक़ी रहो और उनके लिये दुआ की और फ़रमायाः ख़ुदा तुमके सच्ची बात पर (सही अक़ीदे) बाक़ी रखें दुनिया और आख़ेरत के जीवन में।
32- قال الإمام الهادی علیه السلام:
ألقوا النعم بحسن مجاورتها، و التَمِسوا الزیادة فیها بالشکر علیها، و اعلموا أنَّ النَّفس أقبلُ شیء لما أعطیت و أمنعُ شیء لما منعت.
इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः
अल्लाह की नेमतों का सही प्रयोग करो (ईश्वर की मर्ज़ी में उनका प्रयोग करो) और ख़ुदा से उन नेमतों का शक्र करके उनकी अधिकता की ख़ुदा से दुआ करो और जान लो कि इन्सान की आत्मा जो कुछ उसको दिया जाए स्वीकार कर लेती है और जो उससे दूर रखा जाए उसको छोड़ देती है।
(बिहारुल अनवार जिल्द 78, पेज 370)
33- قال الإمام الهادی علیه السلام:
أشد الناس تواضعاً أعظمهم حلماً.
इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः
सबसे अधिक तवाज़ो करने वाला व्यक्ति वह है जिसका धैर्य दूसरों से अधिक हो।
34- قال الإمام الهادی علیه السلام:
إن الظالم الحالم یكاد أن یُعفی علی ظُلمه بحلمه و إن المُحِقَّ السّفیه یكاد أن یُطفِئَ نورَ حقِّهِ بسَفَهِهِ.
इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः
धैर्य रखने वाला अत्याचारी बहुत संभव है कि अपने धैय्र के कारण अपने ज़ुल्म से क्षमा कर दिया जाए, और बेअक़्ल हक़दार आपने बेअक़्ली के कराण बहुत संभव है कि अपने हक़ के नूर को बुझा दे।
(तोहफ़ुल उक़ूल पेज 512)
35- قال الإمام الهادی علیه السلام:
الغِنی قِلَّةُ تَمَنّیکَ والرِّضا بما یکفیک، الفقرُ شَرَّةُ النَّفسِ و شِدَّةُ القُنُوط.
इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः
दौलतमंदी यह है कि तुम अपरी आरज़ुओं को कम करो, और जितना तुम्हारे लिया काफ़ी हो उस पर प्रसन्न रहो, फ़क़ीरी यह है कि नफ़्स का स्वीकार न करना और गंभीर निराशा।
(मीज़ानुल हिकमा जिल्द 2, पेज 977)
इमाम ने दौलतमंदी और ग़रीबी को बहुत अच्छे शब्दों में बयान कर दिया है, हम लोग यह समझते हैं कि दौलतमंदी का अर्थ यह है कि हमारे पास जितनी अधिक सम्पत्ति हो हम उतने ही दौलतमंद है, लेकिन इसका उलटा प्रभाव होता है जो दुनिया का लोभी होता है उसके पास जितनी भी सम्पत्ति हो उसका पेट नहीं भरता है, वास्तविक दौलतमंदी और ग़रीबी दिल को दुनिया से दूर करने में है।
36- قال الإمام الهادی علیه السلام:
اَلعِتابُ مِفتاحُ الثِّقالِ وَالعِتابُ خَيرٌ مِنَ الحِقدِ؛
इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः
दूसरों की आलोचना, और निंदा दिल के टूटने का कारण है लेकिन दिल में बुराई और कीना रखने से बेहतर है।
(बिहारुल अनवार जिल्द 78, पेज 369)
37- قال الإمام الهادی علیه السلام:
الغضب على من تَملِكُ لُؤمٌ.
इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः
ऐसे व्यक्ति पर क्रोध दिखाना जिसके हाथ में तुम्हारा कंट्रोल है, आलोचना का कारण है।
38- قال الإمام الهادی علیه السلام:
الجَهْلِ، وَ البُخْلُ اَذَمُّ اْلاَخْلاقِ؛
इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः
अज्ञानता और कंजूसी आदमी का सबसे बड़ा अवगुण है।
39- قال الإمام الهادی علیه السلام:
إنّ الله إذا أراد بِعَبْدٍ خیراً إذا عُوتِبَ قَبِلَ.
ईश्वर जब किसी बंदे की अच्छाई चाहता है तो (तो उसके अंदर यह गुण पैदा कर देता हे कि) जब भी उसकी आलोचना की जाती है तो वह स्वीकार कर लेता है।
(वसाएलुश्शिया जिल्द 2, पेज 18)
40- عن عبدالعظیم الحسنی عن الهادی علیه السلام:
لمّا کلَّمَ اللهَ عزّوجلّ موسی بن عمران علیه السلام، قال موسی علیه السلام: إلهی! فما جزاء من قام بين يديك يُصَلّي؟
قال: يا موسي! أُباهي به ملايكتي راكعاً و ساجداً و قائماً و قاعداً، و من باهيتُ به ملايكتي لم أعذِّبه.
قال موسي: الهي! فما جزاء من أطعم مسكيناً ابتغاء وجهك؟
قال: يا موسي! آمُرُ منادياً ينادي يوم القيامة علي رؤوس الخلايق: إنّ فلان بن فلان من عتقاء الله من النار.
قال موسي: الهي! فما جزاء من وصل رَحِمَهُ؟
قال: يا موسي! أنسی لَهُ أجَلَهُ، و أهونُ عليه سَكَرات الموت، و يُناديه خزنة الجنة: هَلُمَّ إلينا، فادخُل مِن أيِّ أبوابها شِئتَ.
हज़रत अब्दुल अज़ीम हसनी इमाम अली नक़ी (अ) से रिवायत करते हैं कि आपने फ़रमायाः
जब मूसा बिन इमरान (अ) ने ईश्वर को संबोधित किया, कहाः
हे ईश्वर, उस व्यक्ति का सवाब क्या है जो तेरे समक्ष खड़ा होता है और नमाज़ पढ़ता है?
ईश्वर ने कहाः हे मूसा, उसके सजदे रुकूअ, क़याम और बैठने पर अपने फ़रिश्तों के सामने उस पर फ़ख़्र करता हूँ, और जिसके लिये मैं अपने फ़रिश्तों के सामने फ़ख़्र करता हूँ उस पर अज़ाब नहीं करता हूँ।
मूसा ने कहाः हे ईश्वर, जो व्यक्ति ग़रीब और फ़क़ीर को तेरी प्रसन्नता के लिये खाना खिलाए उसका इन्आम क्या है?
फ़रमायाः हे मूसा, मैं क़यामत के दिन पुकाने वाले को आदेश दूँगा कि लोगों के सामने पुकार, कि जान लो फ़ला का बेटा फ़लां नर्क की अग्नि से आज़ाद है।
मूसा ने पूछाः हे ईश्वर जो सिल ए रहम (परिवार वालों से संबंध स्थापित करना) करे उसका सवाब क्या है?
फ़रमायाः हे मूसा उसकी आयु बढ़ा देता हूँ, मौत की सख़्तियों को उसके लिये आसान कर देता हूँ, और स्वर्ग के ख़ज़ानची उसके आवाज़ लगाते हैः हमारी तरफ़ जिस द्वार से भी चाहों प्रवेश कर जाओ।
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