इमाम अली नक़ी (अ) के कथन भाग 1

इमाम अली नक़ी (अ) के कथन भाग 1

सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी

بسم الله الرحمن الرحیم

 1- قال الإمام الهادی علیه السلام:

إِنَّ لِلّهِ بِقاعًا یُحِبُّ أَنْ یُدْعی فیها، فَیَسْتَجیبَ لِمَنْ دَعاهُ وَ الْحَایرُ مِنْها:

इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः
निःसंदेह ईश्वर के लिये एक स्मारक है कि जिसमें वह चाहता है कि उससे प्रार्थना की जाए और वह प्रार्थना करने वाले की प्रार्थना को स्वीकार करे, और इमाम हुसैन (अ) का रौज़ा उन (स्मारकों में से) एक है।
(बिहारुल अनवार जिल्द 98, पेज 113)

2- قال الإمام الهادی علیه السلام:

مَنْ اتَّقی الله یُتَّقی، وَ مَنْ أطاعَ الله یُطاع، و من أطاعَ الخالق لم یبال سَخَطَ المَخْلُوق، و مَنْ اَسْخَطَ الخالق فَلییقنَ أن یحِلَّ به سَخَطَ المَخلوقین؛

इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः
जो भी ईश्वर से डरे, लोग उससे डरते हैं, जो भी ईश्वर के आदेशों का पालन करे, लोग उसका अनुसरण करते हैं, और जो भी पैदा करने वाले का अनुसरण करता हो वह मख़लूक़ (सृष्टि) की नाराज़गी से नहीं डरता है, और जो पैदा करने वाले को क्रोधित कर दे उसके विश्वास रखना चाहिए कि वह मख़लूक़ के क्रोध का पात्र बनेगा।
(बिहारुल अनवार जिल्द 68 पेज 182)

3- قال الإمام الهادی علیه السلام:

مَنْ هانَتْ علیه نَفْسَهُ فلاتَأمَنْ شَرَّهُ؛

इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः

जो स्वंय को तुच्छ समझे (जिसकी निगाहों में स्वंय का सम्मान न हो) उसकी बुराई निश्चित न रहो। (यानी तुमको उससे होशियार रहना चाहिए वह किसी भी समय तुमको हानि पहुंचा सकता है)

(बिहारुल अनवार जिल्द 72, पेज 300)

4- قال الإمام الهادی علیه السلام:

من اَمِنَ مَکرَ الله و اَلیمَ اَخْذِهِ، تَکَبَّرَ حَتی یحلَّ به قضاؤه و نافَذَ اَمْرُهُ، وَ مَنْ کان علی بیّنَة مِنْ رَبَّهِ هانَتْ علیه مَصائِبُ الدنیا و لو قُرِضَ و نُشِرَ؛

इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः

जो भी ईश्वर के मक्र और उसको दर्दनाक हिसाब मुतमईन हो जाए, अहंकार करे यहां तक कि ईश्वर का आदेश और उसकी मर्ज़ी उसको घेर ले, और जो भी ईश्वर के रास्ते पर दृण और मज़बूत हो, दुनिया की कठिनाईयां उसके लिये आसान हो जाती हैं, चाहे (उसका शरीर) कैंची से काट के टुकड़े टुकड़े कर दिया जाए।

(तोहफ़ुल उक़ूल, पेज 483)

5- قال الإمام الهادی علیه السلام:

اَلشَّاکِرُ اَسْعَدُ بِالشُّکْرِ مِنْهُ بِالنِّعْمَةالَّتِی اَوْجَبَتِ الشُّکْرَ لِاَنَّ النِّعَمَ مَتاعٌ وَ الشُّکْرَ نِعَمٌ وَ عُقْبی؛

इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः

धन्यवाद करने वाला व्यक्ति अपने शुक्र के कारण और भी भाग्यवान हो जाता है उस अनुकंपा के कारण जो धन्यवाद का कारण बनी है, क्योंकि अनुकंपा संसारिक चीज़ है और धन्यावाद लोक एवं परलोक की अनुकंपा।

(बिहारुल अनवार जिल्द 71, पेज 417)

6- قال الإمام الهادی علیه السلام:

إنّ الله جَعَلَ الدنیا دار بلوی و الآخرة دار عقبی، و جَعَلَ بَلْوَی الدنیا لِثوابِ الآخرة سَبَباً و ثوابَ الآخرة مِنْ بَلْوی الدنیا عِوَضاً؛

इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः

निःसंदेह ईश्वर ने दुनिया को परीक्षा और परीक्षण के केन्द्र और आख़ेरत को ठहरने का स्थान, और संसारिक कठिनाईयों को आख़ेरत के सवाब का माध्यम और आख़ेरत के सवाब को संसारिक कठिनायों का बदला बनाया है।

(बिहारुल अनवार जिल्द 75 पेज 365)

7- قال الإمام الهادی علیه السلام:

مَنْ جَمَعَ لَکَ وَدَّهُ وَ رَأیَهُ فَاجْمَعْ له طاعَتَکَ؛

इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः

जो भी तुम्हारे लिये मोहब्बत और राय को एक स्थान पर इकट्ठा कर दे, उपनी इताअत (अनुसरण) को उसके लिये इकट्ठा कर दो।

(तोहफ़ुल उक़ूल पेज 483)

8- قال الإمام الهادی علیه السلام:

اَلدُّنْیا سُوقٌ رَبِحَ فیها قَوْمٌ وَ خَسِرَ آخَروُنَ؛

इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः

संसार बाज़ार है जिसमें कुछ लोग लाभ उठाते हैं और कुछ हानि।

(बिहारुल अनवार, जिल्द 75 पेज 366)

9- قال الإمام الهادی علیه السلام:

اَلَنَّاسُ فی الدنیا بالأموالِ و فی ‌الآخرة بالأعمال؛

इमाम अली नक़ी (अ) ने फ़रमायाः

संसार में इन्सानों का सम्मान उनकी सम्पत्ति और आख़ेरत में उनके कर्मों से है।

(बिहारुल अनवार जिल्द 75 पेज 368)

10- عن أحمد بن هلال قال:

سألت أبا الحسن الاخير علیه السلام عن التوبة النصوح ما هى؟

فکتب علیه السلام: أن یکون الباطن کالظاهر و أفضل من ذلک.

अहमद बिना हिलाल से रिवायत है कि आपने फ़रमायाः

इमाम अली नक़ी (अ) से तौबा नुसूह (बेहतरीन तौबा) के बारे में प्रश्न किया गया

इमाम ने उत्तर में लिखाः तौबा करने वाले की आत्मा (और बातिन) उसके ज़ाहिर और शरीर की भाति बल्कि उससे अच्छी हो।

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