इमाम सादिक़ (अ) की शहादत पर विशेष
इमाम सादिक़ (अ) की शहादत पर विशेष
आज उस महान हस्ती की शहादत का दुःखद दिन है जो सच्चाई और कल्याण का दीपक था। २५ शव्वाल वर्ष १४८ हिजरी कमरी का दिन था जब इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम इस नश्वर संसार से परलोक सिधार गये। उस समय इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम की आयु ६५ वर्ष थी और उन्हें अब्बासी शासन श्रृंखला के दूसरे अत्याचारी खलीफा मंसूर दवानकी ने ज़हर देकर शहीद करवा दिया।
पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने राजनीतिक और सामाजिक परिस्थिति के अनुसार लोगों के मार्गदर्शन के लिए विभिन्न शैलियां अपनाई परंतु हर परिस्थिति में उनका प्रयास यह होता था कि धार्मिक शिक्षाओं पर अमल हो और समाज में लोग धार्मिक शिक्षाओं पर अमल करें। इस संबंध में ईरानी बुद्धिजीवी एवं विचारक उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी लिखते हैं” इस्लामी मार्गदर्शक हर काल में इस्लाम और लोगों की भलाई व हितों को ध्यान में रखते थे। चूंकि हर काल और स्थान की परिस्थिति बदलती रहती थी इसलिए चाहे -अनचाहे रूप में वे वही व्यवहार करते थे जो समय की मांग होती थी। हर समय में संघर्ष का विशेष व नया मोर्चा अस्तित्व में आता था और पूरी दूरदर्शिता के साथ वे उन मोर्चों की पहचान करते थे।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल की एक विशेषता विभिन्न राजनीतिक एवं आस्था के गुटों का अस्तित्व में आ जाना था। यह विशेषता इस बात का कारण बन गयी कि उनकी इमामत के काल एक को इतिहास का महत्वपूर्ण काल समझा जाता है। समस्त गुटों एवं दलों के संबंध में इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम का एक दृष्टिकोण था और वह अपने पूर्वजों से ली गयी शिक्षाओं का परिणाम था। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम धार्मिक शिक्षाओं के प्रचार- प्रचार के लिए बहुत प्रयास करते थे और वह इस प्रयास में थे कि विशुद्ध इस्लाम धर्म की शिक्षाएं हर प्रकार की हेरा- फेरी और दिग्भ्रमिता से सुरक्षित रहें।
इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम ने हदीस अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों, धर्मशास्त्र और पवित्र कुरआन की व्याख्या जैसे ज्ञानों को बयान करने में बुनियादी भूमिका निभाई है और सबको अपने अथाह ज्ञान के सागर से तृप्त किया है।
इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम लोगों को एक दूसरे के साथ संबंध रखने के लिए प्रोत्साहित करते थे। खुद सुन्नी विद्वानों के साथ इमाम के बहुत अच्छे संबंध थे। इमाम की दृष्टि में फूट, इस्लाम और मुसलमानों के कमज़ोर होने का कारण है। इमाम सब लोगों से प्रेम और भाइचारे की सिफारिश करते थे और इमाम ने अपने एक निकटवर्ती अनुयाइ से इस प्रकार कहा था कि हमारे चाहने वालों को सलाम पहुंचा दो और उनसे कहो कि ईश्वर उस बंदे पर दया करे जो लोगों को अपना दोस्त बनाये”
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का मानना था कि समाज के विभिन्न धार्मिक गुट इस्लामी समाज के सदस्य हैं। उनका सम्मान व समर्थन किया जाना चाहिये ताकि वे अत्याचारी शासकों के अत्याचार से सुरक्षित रहें। अतः इंसानों पर आवश्यक है कि वे आपस में संबंध रखें और जो लोग आवश्यकता रखते हैं उनकी आवश्यकताओं को दूर करने का प्रयास करें। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सला स्वयं एसा ही व्यवहार करते थे और अपने अनुयाइयों से इसी प्रकार की इच्छा व आशा रखते थे।
एक बार की बात है। दो व्यक्तियों के बीच किसी बात पर कुछ मामलों पर मतभेद थे जिसे लेकर वे एक दूसरे से बहस करके झगड़ रहे थे। इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के एक अनुयाई मुफज्जल वहां से गुज़रे। वह उन लोगों के मध्य झगड़े के दृश्य को देखने लगे। वे उन दोनों को अपने घर ले गये और उन लोगों से कहा कि इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम ने मुझे आदेश दिया है कि जहां भी दो इंसानों को लड़ते झगड़े देखो उनके मध्य सुलह सफाई करा दिया करो और अगर इस कार्य के लिए इमाम के धन में से देना पड़े तो उन्हें दे दो। इस समय यह चार सौ दिरहम ले लो और अपनी ऊर्जा का प्रयोग सही कार्यों में करो”
पैग़म्बरे इस्लाम के प्राणप्रिय पौत्र इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम इस प्रकार अमल नहीं करते थे कि उन्हें किसी विशेष सम्प्रदाय का मार्गदर्शक समझा जाये और दूसरे सम्प्रदाय के लोग उनसे लाभ न उठायें। पैग़म्बरे इस्लाम का प्राणप्रिय पौत्र होना, ज्ञान, व्यवहार, ईश्वरीय भय और दूसरे समस्त सदगुणों का प्रतिमूर्ति होना वे कारण थे जिनकी वजह से हर धर्म और सम्रपदाय के लोग उनसे लाभ उठाते थे। जैसाकि इतिहासों में आया है कि हज के मौसम में इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम विशेष स्थान पर बैठते थे और आम लोग इमाम से विभिन्न प्रश्न करते थे। विभिन्न धर्मों और सम्प्रदाय के लोगों का इतना अधिक इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम से संबंध था कि समय का अत्याचारी शासक मंसूर लोगों के निकट इमाम की लोकप्रियता से चिंतित हो गया। सुन्नी मुसलमानों का एक प्रसिद्ध नेता व विद्वान अबू हनीफा इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम को लोगों में सबसे अधिक फक़ीह अर्थात धर्मशास्त्री बताता है और अपनी बात को सिद्ध करने के लिए बड़ी रोचक व सच्ची कहानी बयान करता है। वह कहता है एक दिन मंसूर ने मुझसे कहा कि लोग इमाम सादिक़ के श्रृद्धालु बन गये हैं तू अपने कठिन प्रश्नों को तैयार करके उनसे शास्त्रार्थ कर। जब शास्त्रार्थ करने के लिए बैठक तैयार हो जाये तो उनमें से मैं हर एक प्रश्न को पुछूंगा और इमाम कहेंगे कि इस प्रश्न के बारे में आप की राय यह है और इस मामले के बारे में मदीनावासियों का दृष्टिकोण यह है जबकि हमारा दृष्टिकोण यह है। अबू हनीफा आगे कहता है कुछ मामलों में इमाम का दृष्टिकोण हमारे दृष्टिकोण जैसा था और कुछ मामलों में मदीनावासियों जैसा था जबकि कुछ मामलों में दोनों के विरुद्ध था। मैंने जो चालिस प्रश्न पूछा था उन्होंने उन सबका उत्तर दिया और किसी एक प्रश्न को भी निरुत्तर नहीं छोड़ा। क्या वह लोगों में सबसे अधिक ज्ञानी नहीं हैं जो समस्त धर्मों व सम्प्रदायों के मतभेदों से पूर्णतः अवगत हैं?
यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम के चार हज़ार शिष्यों में से अधिकांश सुन्नी धर्म के अनुयायी थे और अबू हनीफा भी इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के शिष्यों में था। इसी कारण विभिन्न क्षेत्रों में सुन्नी विद्वान, धर्मगुरू और मार्गदर्शक पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के ज्ञान से लाभ उठाते थे। इतिहास में इस बात का उल्लेख है कि सुन्नी मुसलमानों के जो न्यायधीश होते थे वे भी न्याय और न्याय से जुड़े बहुत से मामलों को पूछने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की सेवा में जाते थे। उदाहरण स्वरूप मसअदा बिन सदक़ा एक सुन्नी न्यायधीश था और वह न्याय सहित बहुत से मामलों में इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम की सेवा में जाता था। पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन समस्त लोगों के साथ बहुत ही अच्छा व्यवहार करते थे चाहे उनका संबंध किसी भी जाति, धर्म और संप्रदाय से हो। बीमार लोगों को देखने के लिए जाते थे और उनकी कठिनाइयों के समाधान में सहायता करते थे ताकि लोग शीया और सुन्नी मुसलमानों के मध्य किसी फासले का आभास न करें। इस प्रकार से कि पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजन मानव समाज के लिए एक हितैषी पिता की भांति थे और वे अपना परमदायित्व समझते थे कि अपनी संतान को हर प्रकार की दिग्भ्रमिता के खतरे से सुरक्षित रखें।
सुन्नी धार्मिक नेताओं में अबू हनीफा और मालिक बिन अनस इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के समय में थे और वे इमाम की सेवा में जाते थे। अबू हनीफा जो इमाम जाफर के शिष्यों में था, इमाम के ज्ञान की महानता के बारे में कहता है “मैंने जाफर बिन मोहम्मद से बड़ा विद्वान नहीं देखा है” सुन्नी मालेकी संप्रदाय के मार्गदर्शक मालिक बिन अनस इमाम सादिक अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैं” कुछ दिनों तक मैं जाफर बिन मोहम्मद की सेवा में आता- जाता था और मैंने सदैव उन्हें तीन में से एक हालत में देखा। वे या नमाज़ पढ़ते थे या रोज़ा होते थे या कुरआन की तिलावत करते थे और कभी भी मैंने नहीं देखा कि वज़ू के बिना उन्होंने कोई हदीस बयान की हो। ज्ञान, उपासना और सदाचारिता में जाफर बिन मोहम्मद से बढकर किसी आंख ने नहीं देखा है किसी कान ने नहीं सुना है और किसी इंसान के दिल में नहीं आया है”
इमाम सादिक अलैहिस्सलाम अपने पूरे जीवन में दूसरे साधारण लोगों की भांति जीवन व्यतीत करते थे। ज्ञान, अध्यात्म और दूसरे समस्त क्षेत्रों में इमाम का स्थान बहुत अधिक ऊंचा होने के बावजूद वह लोगों से बहुत ही विन्रमता से पेश आते थे और लोगों की कठिनाइयों के समाधान में उनकी सहायता करते थे परंतु एक दिन वह अशुभ दिन आ ही गया जब इमाम अत्याचारी शासक मंसूर दवानकी के षडयंत्रों का शिकार हो गये और उसने उन्हें ज़हर देकर शहीद करवा दिया। शहादत के बाद उन्हें अपने पिता अर्थात इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की भांति पवित्र मदीना नगर की प्रसिद्ध कब्रिस्तान जन्नतुल बकीअ में दफ्न कर दिया गया। समूचा इस्लामी जगत शोकाकुल हो गया और सबकी आंखें सजल हो गयीं परंतु उन्होंने जो अनथक प्रयास किये हैं वह आज भी बाक़ी हैं और आने वाली पीढियां उससे सदैव लाभान्वित होती रहेंगी।
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