ईदे फ़ित्र

ईदे फ़ित्र

शव्वाल महीने की सुबह हो चुकी है चारों ओर खुशी और ईद का वातावरण है। मोमिन व्यक्तियों के दिलों में खुशी और दुःख दोनों हैं। मोमिन इसलिए खुश हैं कि आज ईद का दिन है और दुःखी इसलिए हैं क्योंकि असंख्य विभूतियों व अनुकंपाओं का पावन महीना रमज़ान बीत गया। वातावरण में अध्यात्म का वह वातावरण नहीं है जो अभी कल तक था। आज का दिन पवित्र ईदों में से एक है। क्योंकि रोज़ेदार को एक महीने तक रोज़ा रखने और दूसरी उपासना करने का परितोषिक मिलती है। ईदे फित्र, रमज़ान महीने की समाप्ति की ईद नहीं है। ईद का मतलब वास्तव में इंसान का पुनर्जन्म है। जिस तरह से एक काल्पनिक अमर या मायापक्षी अपनी जली हुई राख से दोबारा जन्म लेता है। क्योंकि रमज़ान और उसमें की जानी वाली उपासनाएं मनुष्य को दूसरा मनुष्य बना देती हैं। अगर हम दिल से सुनें तो हमें ईश्वर और उसके फरिश्तों द्वारा मोमिनों पर सलाम भेजने की आवाज़ सुनाई देगी।

इस्लामी संस्कृति में शव्वाल महीने की पहली तारीख हो चुकी है और इस महीने की पहली तारीख को ईदे फित्र कहा जाता है जिसका अर्थात मनुष्य की अपनी प्रवृत्ति की ओर वापसी की ईद है। क्योंकि  रमज़ान के पवित्र महीने भर रोज़ेदार महान ईश्वर की उपासना करता है, अपने पापों से प्रायश्चित करता है, पवित्र कुरआन की ज्यादा से ज्यादा तिलावत करता है। पापों से दूरी करता है और आत्मा को हर प्रकार के पापों का दूर रखने का यथासंभव प्रयास करता है। इस प्रकार इंसान अपनी वास्तविक प्रवृत्ति की ओर पलट जाता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एक ईदे फित्र के अवसर पर खुत्बा दिया और मोमिनों को शुभ सूचना देते हुए कहा हे लोगो! यह वह दिन है जिस दिन भले लोगों को परितोषिक दी जायेगी और घाटा उठाने वाले उसमें निराश होगें और यह बड़ी सीमा तक प्रलय के दिन से मिलता जुलता है। तो जब अपने अपने घरों से ईदगाह के लिए निकलो तो ईश्वर की सेवा में खड़े होने को याद करो और जब अपने अपने घरों को वापस लौटो तो स्वर्ग की ओर लौटने को याद करो। हे ईश्वर के बंदो! सबसे न्यूनतम चीज़ जो रोज़ा रखने वाली महिलाओं और पुरूषों को दिया जायेगा यह है कि रमज़ान के अंतिम महीने में उन्हें आवाज़ दी जायेगी कि तुम्हें शुभ सूचना दी जाती है कि हे ईश्वर के बंदो तुम्हारे पहले के पापों को माफ कर दिया गया है तो अब तुम अपने भविष्य के बारे में सोचो कि शेष बचे दिनों को किस प्रकार गुज़ारगे।

नैतिक शिष्टाचार और इस्लामी परिज्ञान के उस्ताद मिर्ज़ा जवाद आक़ा मलकी तबरीज़ी ने ईदे फित्र के बारे में कहा है कि ईदे फित्र वह दिन है जिसे ईश्वर ने दिनों के मध्य से चुना है और उसे अपने बंदों को पुरस्कार देने के लिए बनाया है। ईश्वर ने उन्हें अनुमति दे दी है कि वे इस दिन उसकी सेवा में एकत्रित हों और उसकी दया के दस्तरखान पर बैठें और बंदगी के शिष्टाचार को अंजाम दें और उससे आशा लगायें और अपनी गलतियों के लिए उससे माफी मांगे। अपनी आवश्यकता का हाथ उसकी ओर बढायें और अपनी आकांक्षों को उससे मांगे और उनको यह शुभ सूचना दी गयी है कि उनकी मांगे स्वीकार कर ली गयी हैं और जिस चीज़ की वे ईश्वर से आशा रखते हैं उससे अधिक उन्हें प्रदान कर दिया गया है”

पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के कथनों में बल देकर कहा गया है कि ईदे फित्र के दिन रोज़ा नहीं रखना चाहिये। बेहतर यह है कि इंसान आज के दिन बहुत अधिक दुआ करे, ईश्वर को याद करे और अपने दिन को व्यर्थ में न गुजारे और महान ईश्वर से लोक- परलोक की भलाई मांगे परंतु आज के दिन से हर मुसलमान समान रूप से लाभान्वित नहीं होता। क्योंकि हर व्यक्ति अपने ज्ञान और ईमान के अनुसार रमज़ान के पवित्र महीने में लाभ उठाता है और उसे आज के दिन उसी के अनुसार पारितोषिक दिया जायेगा।  महान परिज्ञानी मलकी तबरीज़ी ईदे फित्र के दिन से रोज़ादारों के लाभान्वित होने के बारे में इस प्रकार कहते हैं” कुछ लोग अपनी आदत के अनुसार रोज़ा रखते हैं और रमज़ान के पवित्र महिने में भी दूसरे महीनों की भांति निश्चेत रहते हैं और उसमें पाप करते हैं और आदत के अनुसार ईदे फित्र भी मनाते हैं। इस प्रकार के लोग ईदे फित्र के सम्मान में या कुछ अच्छे लोगों के कार्यो के कारण संभव है कि एसे लोगों पर ईश्वर की दया दृष्टि हो जाये और उन्हें माफ कर दिया जाये या यह भी संभव है कि उनके ग़लत कार्यों के कारण उन पर ईश्वर की कृपा न हो और ईश्वर की बारगाह में उनका हिसाब- किताब घाटा उठाने वालों के साथ हो।

कुछ लोगों की स्थिति इससे बेहतर है परंतु वे रोज़े को एक दायित्व से अधिक कुछ नहीं समझते और केवल खाने- पीने से परहेज़ करने का कष्ट उठाते हैं। उन लोगों ने अपने शरीर के अंगों को पापों से नहीं बचाया और झूठ बोलकर, पीठ पीछे बुराई करके, लोगों को कष्ट पहुंचा कर रोजा रखने के अपने पुण्य को गवां दिया। रोचक बात यह है कि यह लोग बड़े विश्वास और संतोष के साथ स्वंय को ईश्वर का आज्ञा पालक समझते हैं और यह लोग यह भी सोचते हैं कि उन्होंने रोज़ा रखकर ईश्वर पर उपकार किया है पंरतु यह नहीं जानते कि वे अपने पापों और अज्ञानता के कारण बुद्धिमान लोगों के निकट अपमानित हो जाते हैं और उनके रोज़े को ईश्वर स्वीकार नहीं करता है पंरतु इस प्रकार के लोग भी अगर ईदे फित्र के दिन महान ईश्वर के बारे में अच्छा खयाल रखें और अपनी ईद की नमाज़ में अपने पालनहार से अपने पापों की क्षमा मांगे तो शायद ईश्वर उनके पापों को भी क्षमा कर दे और वे भी महान ईश्वर की असीम कृपा के पात्र बन जायें।

मिर्ज़ा जवाद मलेकी तबरीज़ी आगे कहते हैं कि लोगों का एक गुट एसा भी है जो इस बात से अवगत है कि रमज़ान का पवित्र महीना ईश्वर की ओर से उन पर अनुकंपा है और रोज़ा रखने के कारण वे ईश्वर को अपना ऋणी नहीं समझते हैं। यानी वे नहीं समझते कि रोज़ा रखकर उन्होंने ईश्वर पर एहसान किया है बल्कि वे यह समझते हैं कि रोज़ा रखने का सामर्थ्य प्रदान करके ईश्वर ने उप पर एहसान किया है। इसी तरह वे इस बात को भी जानते हैं कि परिपूर्ण रोज़ा वह रोज़ा है जो परहेज़गारी के साथ हो। इस आधार पर वे अपने शरीर के अंगों के प्रति भी सावधान रहते हैं यानी अपने अंगों से एसा काम नहीं करते जो ईश्वर की अवज्ञा व पाप हो परंतु कभी उनसे पाप हो जाता है और वे कठिनाई के साथ रोज़ा रखते हैं और जितना हो सकता है वे मुस्तहब अर्थात बेहतर व सुन्नत कार्यों को अंजाम देते हैं परंतु इस प्रकार के लोगों से कुछ पाप भी हो गये हैं इसलिए वे लज्जा और शर्मिन्दगी के साथ ईदे फित्र मनाते हैं। ईश्वर इस प्रकार के लोगों के पापों को माफ कर देगा और उसने उनके पापों को अच्छे कार्यों में परिवर्तित करने का वादा किया है और उन्हें उनकी उपासनाओं का प्रतिदान उनकी अपेक्षाओं से भी अधिक प्रदान करेगा।  

यहां ईश्वर पर ईमान रखने वाले मोमिनीन का एक दूसरा गुट भी है जिसने ईश्वर के निमंत्रण का उत्तर दिया है और अपनी पूरी क्षमता के साथ ईश्वरीय आदेशों का पालन किया है और ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए उसने अच्छे कार्यों को अंजाम दिया, बहुत सारी उपासनाएं की जबकि उसके दिल इस बात से अवगत थे कि इस महीने में जिस तरह से उपासना करनी चाहिये थे उस तरह से उसने अंजाम नहीं दिया और वह ईश्वर का आभार व्यक्त करता है कि ईश्वर ने उसे उपासना और अपना सामिप्य प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया है। ईश्वर भी इस गुट की  उपासनाओं को स्वीकार करेगा और उसे नाना प्रकार की अपनी अनुकंपाएं प्रदान करेगा। पहले से अधिक उसकी समस्याओं का समाधान करेगा और उसे अपने अच्छे बंदों में शामिल कर लेगा। इस बीच सबसे अच्छे व बेहतर वे लोग हैं जिन्होंने रमज़ान के महीने में ईश्वरीय निमंत्रण को स्वीकार किया और उसकी मिठास ने भूख और प्यास की कठिनाइ को समाप्त कर दिया और वे ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने के लिए गम्भीरता से प्रयास करते हैं। ईश्वर ने उन्हें अच्छी तरह स्वीकार कर लिया है, उन्हें अपना सामिप्य प्रदान कर दिया है और स्वर्ग में अपने चुने हुए अच्छे बंदों के साथ बिठायेगा और स्वर्ग में उन्हें अपने जाम से तृत्प करेगा और उन्हें सुन्दरता, प्रकाश और वह खुशी प्राप्त होगी जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी और उसे किसी नेत्र ने नहीं देखा होगा और उसके बारे में किसी ने कुछ कहा भी नहीं होगा।

जी हां रमज़ान का पवित्र महीना समाप्त हो गया। जो लोग इस पवित्र महीने में रोज़ा रखते थे ईश्वरीय ग्रंथ पवित्र कुरआन की तिलावत करते थे, दुआ करते थे, धैर्य से आत्म निर्माण करते थे आज वे लोग ईद और खुशी मना रहे हैं क्योंकि उन्होंने जेहादे अकबर अर्थात बड़ा जेहाद किया है और अपने गंतव्य तक पहुंच गये हैं। निः संदेह इससे बड़ी और क्या खुशी हो सकती है कि इंसान अपनी गलत इच्छाओं पर नियंत्रण कर ले। कार्यक्रम के अंत में हम महान ईश्वर की बारगाह में दुआ करते हैं कि हे हमारे पालनहार इस दिन का वास्ता जिसे तूने ईद करार दिया है मोहम्मद व आले मोहम्मद पर दुरूद व सलाम भेज और हमें हर भलाई प्रदान कर और हमें हर उस बुराई से दूर रख जिससे तूने मोहम्मद व आले को दूर रखा है।

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