विश्व क़ुद्स दिवस, फ़िलिस्तीन की आज़ादी का दिन
विश्व क़ुद्स दिवस
फिलिस्तीन एक एसी जगह है जहां यहूदी, ईसाई और इस्लाम धर्म की बहुत सी पवित्र मान्यताएं मौजूद हैं। दूसरे शब्दों में अगर फिलिस्तीन को यहूदी ईसाई और इस्लाम धर्म की मान्यताओं का पालना कहा जाये तो अनुचित न होगा। यह एक पवित्र भूमि है। फिलिस्तीन का एक नगर बैतुल मुकद्दस है जो ईश्वरीय धर्मों के उदय के साथ पवित्रता से मिश्रित हो गया है। क्योंकि यह नगर पूरे इतिहास में ईश्वरीय दूतों व पैग़म्बरों के प्रचार का केन्द्र था। इस नगर में महान व बड़े पैग़म्बरों की जो यादें मौजूद हैं वे इस नगर की आध्यात्मिक स्थान की सूचक हैं। इस मध्य मुसलमानों के निकट इस भूमि के आध्यात्मिक स्थान का संबंध इतिहास से है। बैतुल मुकद्दस मुसलमानों का पहला किबला था। इस प्रकार से कि जब पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पैग़म्बरी की घोषणा की थी उसके आरंभिक १३ वर्षों में मक्का में रहे और मदीना पलायन करने के १७ महीनों तक पैग़म्बरे इस्लाम और मुसलमान मस्जिदुल अक्सा की तरफ नमाज पढ़ते रहे। मक्का और मदीना के बाद कुद्स तीसरा पवित्र नगर है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनानुसार यह पवित्र स्थान दुनिया में स्वर्ग के चार महलों में से एक है। एक मस्जिदुल हराम, दूसरे मस्जिदुन्नबी, तीसरे मस्जिदे बैतुल मुकद्दस और चौथे मस्जिदे कूफा है। मस्जिदुल अक्सा दूसरे पहलुओं से भी मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण है। पैग़म्बरे इस्लाम मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक्सा गये थे और वहां से वह मेराज अर्थात आसमान पर गये थे। हज़रत इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से आया है कि मस्जिदुल अक्सा इस्लाम की एक महत्वपूर्ण मस्जिद है और उसमें उपासना की बहुत विशेषता है।
पवित्रता के अलावा जिस चीज़ ने बैतुल मुकद्दस को मुसलमानों के लिए महत्वपूर्ण बना रखा है वह पश्चिमी और युरोपीय देशों के समर्थन से जायोनी शासन द्वारा उसका अतिग्रहण है।
बैतुल मुकद्दस की भूमियों को नीलाम कर देना और उस कब्जा कर लेने का संबंध प्रथम विश्व युद्ध के बाद के काल से है। उस समय साम्राज्यवादी सरकारों ने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निर्दोष फिलिस्तीनी बच्चों, महिलाओं और पुरूषों की हत्या में संकोच से काम नहीं लिया। नवंबर १९१७ को ब्रिटेन के तत्कालीन विदेशमंत्री जेम्स बिलफौर ने इस देश में जायोनी फेडरेशन के प्रमुख लार्ड रोचेल्ड के नाम पत्र में फिलिस्तीन में एक यहूदी देश व सरकार की स्थापना के प्रति लंदन की सहमति की घोषणा की। प्रथम विश्व युद्ध के बाद भी फिलिस्तीन ब्रिटेन के नियंत्रण में रहा और धीरे धीरे इस भूमि पर जायोनियों के अतिग्रहण की भूमि प्रशस्त हो गयी।
वर्ष १९४८ में जायोनी शासन के गठन के बाद अरब देशों और जायोनी शासन के मध्य कई युद्ध हुए जो विफल रहे। उसके बाद धीरे धीरे कुछ अरब सरकारों ने जायोनी शासन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना आरंभ कर दिया। यह वह समय था जब शायद फिलिस्तीनियों को अपनी मातृभूमि की स्वतंत्रता में किसी का समर्थन प्राप्त नहीं था और वह अकेले रह गये थे परंतु वर्ष १९७९ इस्लामी जगत और फिलिस्तीनी परिवर्तन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। ईरान की इस्लामी क्रांति स्वर्गीय इमाम खुमैनी के नेतृत्व मे सफल हुई। यह एसी क्रांति थी जिसने अतिग्रहणकारी जायोनी शासन और विश्व की साम्राज्यवादी सरकारों से किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं किया। इस संबंध में ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने पवित्र कुरआन की शिक्षाओं का पालन करते हुए अत्याचारग्रस्त लोगों के समर्थन में आवाज़ उठायी और जायोनी शासन के मुकाबले में कुद्स की स्वतंत्रता के लिए रमज़ान महीने के अंतिम शुक्रवार को कुद्स दिवस का नाम रखा। स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने अगस्त १९७९ को अपने एक महत्वपूर्ण संदेश में घोषणा की कि मैंने वर्षों तक अतिग्रहणकारी इस्राईल के खतरे से मुसलमानों को आगाह किया और विश्व के आम मुसलमानों तथा इस्लामी सरकारों से मांग करता हूं कि वे इस अतिग्रहणकारी शासन और इसके समर्थकों के प्रभाव को कम करने के लिए एकजुट हो जायें और मैं विश्व के समस्त मुसलमानों का आह्वान करता हूं कि पवित्र रमज़ान महिने के अंतिम शुक्रवार को कुद्स दिवस के रूप में मनायें और मुसलमानों के कानूनी अधिकारों के प्रति अपने समर्थन की घोषणा करें। हम नास्तिकों के मुकाबले में मुसलमानों की सफलता चाहते हैं। स्वर्गीय इमाम खुमैनी के इस कदम का उद्देश्य फिलिस्तीन समस्या की ओर विश्व जनमत विशेषकर मुसलमानों का ध्यान आकर्षित करना था। इस दिन विश्व के समस्त मुसलमान और ग़ैर मुसलमान कुद्स और अवैध अधिकृत भूमियों की स्वतंत्रता के लिए फिलिस्तीनियों के समर्थन में प्रदर्शन करते और रैलियां निकालते हैं।
वास्तव में स्वर्गीय इमाम खुमैनी द्वारा रमज़ान के पवित्र के अंतिम शुक्रवार को विश्व कुद्स दिवस घोषित किये जाने से फिलिस्तीन इस्लामी जगत की सबसे महत्वपूर्ण इस्लामी समस्या में परिवर्तित हो गया। स्वर्गीय इमाम खुमैनी फरमाते हैं” कुद्स का दिन एक अंतर्राष्ट्रीय दिन है यह एसा दिन है जो केवल कुद्स से विशेष है कमज़ोरों का अत्याचारियों से मुकाबले का दिन है यह एसा दिन है जिस दिन कमज़ोरों को तैयार होना चाहिये। साम्राज्यवादियों के सामने साम्राज्यवादियों की नाक रगड़ देनी चाहिये। कुद्स वह दिन है जिस दिन कमज़ोर राष्ट्रों का भविष्य स्पष्ट होना चाहिये, कमज़ोर राष्ट्रों को चाहिये कि वे साम्राज्यवादियों के मुकाबले में अपने अस्तित्व की घोषणा करें। इमाम खुमैनी ने इस्राईल से संघर्ष को फिलिस्तीन की अत्याचारग्रस्त जनता के अधिकारों की प्राप्ति का बेहतरीन मार्ग बताया और इससे हटकर हर प्रकार के मार्ग को जैसे अरब राष्ट्रवाद को फिलिस्तीन की स्वतंत्रता के मार्ग में गलत मार्ग बताया।
स्वर्गीय इमाम खुमैनी ने फिलिस्तीन के विषय पर जो इतना अधिक बल दिया है वह उसके महत्व के कारण है।
यहां इस बात का उल्लेख आवश्क है कि जायोनिज़्म की जो विचारधारा है उसका यहूदी धर्म से कोई लेना देना नहीं है। इस गलत विचारधारा का लक्ष्य मध्यपूर्व पर वर्चस्व जमाना और मुसलमानों के मध्य फूट डालना है। इस संबंध में स्वर्गीय इमाम खुमैनी फरमाते हैं” इस्राईल पूरब और पश्चिम की साम्राज्यवादी सरकारों के साथ सांठ गांठ से अस्तित्व में आया है और उसे इस्लामी राष्ट्रों के दमन के लिए पैदा किया गया और आज समस्त साम्राज्यवादियों की ओर से उसका समर्थन किया जा रह है। अमेरिका और ब्रिटेन इस्रराईल को राजनैतिक एवं सैनिक दृष्टि से मज़बूत कर रहे हैं, उसके अधिकार में नाना प्रकार के खतरनाक हथियारों को देकर अरबों तथा मुसलमानों के विरुद्ध अपराध करने के लिए उन्हें उकसा रहे हैं”
जायोनी शासन मध्यपूर्व में अपने अस्तित्व को बाकी रखने के लिए मुसलमानों के मध्य फूट डालने की चेष्टा करता रहता है। क्योंकि जब से यह अवैध शासन अस्तित्व में आया है यह मध्यपूर्व में साम्राज्यवादी दृष्टिकोणों के व्यवहारिक बनाने और डिवाइड एंव रुल नीति का हथकंडा बन गया है। अतः इसलिए हम आज इस बात के साक्षी हैं कि तकफीरी आतंकवादी अपने सीरियाई और इराक़ी मुसलमान भाइयों की कितने निर्मम ढंग से हत्या कर रहे हैं जबकि यही आतंकवादी गुट इस्राईल के अपराधों के मुकाबले में मौन धारण किये हुए हैं।
ध्योनयोग्य बिन्दु यह है कि तकफीरी आतंकवादी इस्लाम की शिक्षाओं के संचालन व लागू करने का दावा करते हैं जबकि इस्लाम की प्राथमिक शिक्षाओं पर भी ध्यान नहीं दे रहे हैं। ईश्वरीय धर्म इस्लाम कहता है कि अत्याचारग्रस्त लोगों की सहायता व समर्थन करो और किसी भी निर्दोष की हत्या न करो चाहे उसका संबंध किसी भी धर्म व जाति से हो परंतु यही आतंकवादी सीरिया और इराक में जो कुछ कर रहे हैं वह इस्लाम की शिक्षाओं के बिल्कुल विपरीत है और इस्राईल द्वारा फिलिस्तीनियों की जा रही हत्या पर अर्थपूर्ण मौन धारण किये हुए हैं। उसकी भर्त्सना में एक विज्ञप्ति तक जारी नहीं करते। दूसरे शब्दों में यह तकफीरी आतंकवादी अमेरिका, ब्रिटेन और इस्राईल की ही उपज हैं और इन्हीं साम्राज्यवादी शक्तियों ने इस्लामी जगत में फूट डालने तथा इस्लाम और मुसलमानों को खत्म करने के लिए इन्हें बनाया है।
जो चीज़ अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में जायोनी शासन के अस्तित्व के बाक़ी रहने के लिए खतरा है वह मुसलमानों की एकता व एकजुटता है। अतः जायोनी शासन हर कुछ समय पर फिलिस्तीन की निर्दोष जनता पर बम और प्रक्षेपास्त्र से हमला करता है और मुसलमानों के मध्य फूट डालने के लिए नाना प्रकार की चालें चलता है। जायोनी शासन यह सोचता है कि वह नित्थे फिलिस्तीनी बच्चों, महिलाओं और पुरुषों की हत्या करके फिलिस्तीनी जनता एवं फिलिस्तीनी राष्ट्र के संघर्षकर्ताओं में भय व आतंक उत्पन्न कर देगा। यद्यपि जायोनी शासन के हमले से प्रतिरोध की भावना के और अधिक मज़बूत होने के अतिरिक्त कोई अन्य परिणाम नहीं निकलेगा यहां तक कि अमेरिका से संबंधित एक शोध केन्द्र ने इस्राईल के अंतिम समय के बारे में अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि वर्ष 2025 में इस्राईल का अस्तित्व खत्म हो जायेगा।
चूंकि जायोनी शासन और विश्व साम्रराज्यवादियों के मुकाबले में सफलता का रहस्य केवल मुसलमानों के मध्य एकता है इसलिए स्वर्गीय हज़रत इमाम खुमैनी ने अपनी दूरगामी सोच से रमज़ान के पवित्र महीने के अंतिम शुक्रवार को कुद्स दिवस घोषित कर दिया। यह एसा दिन है जो मुसलमानों के मध्य एकता का कारण बना है। पाकिस्तानी बुद्धिजीवी डाक्टर परवेज़ शफीअ कहते हैं” कुद्स दिवस न केवल फिलिस्तीन की आकांक्षा के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि मुसलमानों के मध्य एकता के लिए भी उसका विशेष महत्व है। इमाम खुमैनी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इस दिन की बुनियाद रखी। क्योंकि कुद्स की आज़ादी का विषय इस्लामी जगत के गिने चुने विषयों में से एक है जिस पर शीया और सुन्नी दोनों एकमत हैं। इस्राईल कभी भी मध्यपूर्व की तथाकथित शांति प्रक्रिया के सफल होने का इच्छुक नहीं है। इस आधार पर मुसलमानों के लिए जो एकमात्र रास्ता बचता है वह प्रतिरोध है और अगर मुसलमान इस प्रक्रिया में डटे रहें तो भविष्य में उन्हें अवश्यक सफलता मिलेगी और भविष्य उनके हित में होगा”
परंतु इस वर्ष विश्व कुद्स दिवस एसी स्थिति में आयोजित होगा जब गज़्जा पट्टी के लोग जायोनी शासन 0के बमों और हमलों के दौरान रोज़ा रख कर इफ्तार कर रहे हैं। हर कुछ देर के बाद वे अपने निकट परिजनों और दूसरे फिलिस्तीनी बच्चों, महिलाओं और पुरूषों की शहादत के साक्षी हैं। इस दौरान मानवाधिकार की रक्षा का झूठा दम भरने वाले देश और संगठन अर्थपूर्ण मौन धारण किये हुए हैं और गज्ज़ा पट्टी के अत्याचारग्रस्त लोगों की नज़रे मुसलमानों पर लगी हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस वर्ष विश्व कुद्स दिवस की रैलियां व प्रदर्शन क्षेत्र की घटनाओं के दृष्टिगत विशेष महत्व रखती हैं। एसी स्थिति में कि जब जायोनी शासन अपने अंत की ओर बढ़ रहा है कुद्स दिवस के अवसर पर मुसलमानों की व्यापक उपस्थिति से उसके अवैध अस्तित्व पर एक और कुठारा घात लगेगा और इस शासन के क्षेत्रीय तथा क्षेत्र से बाहर के समर्थकों को ज्ञात हो जायेगा कि मुसलमानों की एकता व एकजुटता हर प्रकार के बम और दूसरे हथियारों से अधिक शक्तिशाली है और इस खोखले एवं अवैध शासन का अंत होकर रहेगा।
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