जो मुझको चाहता है वह मुझे भूलता नहीं है

जो मुझको चाहता है वह मुझे भूलता नहीं है

ईश्वर ने अपने दूत हज़रत मूसा को संबोधित करते हुए कहा कि हे मूसा! जो भी मुझको चाहता है वह मुझको भूलता नहीं है और जो भी मेरे उपकार के प्रति आशावान रहता है वह अपनी मांग पर अडिग रहता है। है मूसा मैं अपने बंदों से बिल्कुल भी निश्चेत नहीं हूं लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरे फरिश्ते, मेरे बंदों की दुआओं के मधुर वाणी को सुनें।

प्रबल आंतरिक इच्छाओं के मुक़बालने में रोज़ा एक सुदृढ़ ढाल की भांति मज़बूत बाधा है। रोज़े के माध्यम से वह इनको नियंत्रित रखने में सक्षम सिद्ध होता है। रोज़ा रखकर मनुष्य स्वयं को अनुचित इच्छाओं से दूर रखता है और इसी प्रकार वह उन आंतरिक बुराइयों को बाहर निकाल फेकने में सफल रहता है जो हृदय के अंधकार का कारण बनती हैं। अगर देखा जाए तो यह बहुत बड़ी बात है।  यह एसी विभूति है जिसे प्राप्त करने के लिए लोगों को वर्षों का समय लग जाता है। कहते हैं कि यदि कोई आत्म नियंत्रण प्राप्त करने का गुर सीख जाए तो फिर वह लोक-परलोक में सफल जीवन व्यतीत कर सकता है। हम इस बात की आशा करते हैं कि पवित्र रमज़ान के बचे हुए दिनों में अपने विचारों और कार्यों को बुराइयों से सुरक्षित रख सकें।

जो लोग चश्मे का प्रयोग करते हैं वह समय-समय पर उसे साफ भी करते रहते हैं।  चश्मे की अगर सफाई न की जाए तो उसके शीशों पर गंदगी लगी रह जाती है परिणाम स्वरूप चश्मा लगाने पर हर चीज़ धुंधली दिखाई देती है। दिखाई देने वाली चीज़ चाहे स्वयं साफ हो किंतु गंदे चश्मे से उसे देखने पर वह धुंधली ही दिखाई देगी। मनुष्यों की स्थिति भी इसी प्रकार है।  प्रत्येक व्यक्ति संसार को अपने विचारों के चश्मे से देखता है। अब व्यक्ति की जैसी मानसिकता होगी उसको सबकुछ वैसा ही दिखाई देगा। अच्छी मानसिकता वाले को हर ओर अच्छाई दिखाई देगी और बुरी मानसिकता वाले को बुराई।  हम अपनी मानसिकता के अनुसार ही निर्णय लेते हैं।

एक बार में एयरपोर्ट पर था। एयरपोर्ट के भीतर की एक दुकान से मैंने बिस्कुट का पैकेट ख़रीदा और एक दूसरी दुकान से किताब। विमान पर सवार होने की प्रतीक्षा में मैं एक कुर्सी पर बैठ गया। अपने किनारे रखे बिस्कुट को मैने खाना शुरू किया। मैं किताब भी पढ़ता जा रहा था और साथ में बिस्कुट खा रहा था। मैने देखा कि वह व्यक्ति जो मेरे निकट बैठा हुआ है उसने भी मेरा एक बिस्कुट उठाया और बिना मेरी अनुमति के उसे खाना आरंभ कर दिया। जब मैंने उसे देखा तो मुझको बहुत बुरा लगा। इसी बीच मैंने देखा कि जब मैं अपने लिए बिस्कुट उठाता तो वह व्यक्ति भी अपने लिए एक बिस्कुट उठाकर खाने लगता। मुझे यह देखकर बहुत ग़ुस्सा आ रहा था। अंत में मैने देखा कि उस व्यक्ति ने पैकेट का आखिरी बिस्कुट उठाया और उसके दो टुकड़े किये। एक टुकड़ा मुझको दिया और दूसरा स्वयं उठाकर खाने लगा। मैं उस व्यक्ति की इस हरकत से बहुत क्रोधित हुआ किंतु बिना कुछ कहे उसे घूरता हुआ वहां से उठकर चल दिया।  थोड़ी ही देर में हवाई जहाज़ में मै सवार हुआ। जहाज़ में बैठने के बाद मैंने पढ़ने के लिए अपने पर्स से किताब निकालनी चाही। यह देखकर मुझको बहुत आश्चर्य हुआ कि मेरा बिस्कुट का पैकेट, पर्स में ही है। अब मुझको ज्ञात हुआ कि मैं किसी दूसरे के बिस्कुट को अपना समझकर खा रहा था और उसी पर क्रोधित भी हो रहा था। अब मुझको अपने व्यवहार पर बहुत पछतावा हो रहा था।

हमको यह बात स्वीकार करनी चाहिए कि हमारे दैनिक जीवन में होने वाली छोटी-बड़ी घटनाओं का संबन्ध हमारे विचारों और हमारी सोच से संबन्धित है। धर्म हमे इस प्रकार के निराधार विचारों से दूर रहने की प्रेरणा देता है। इस्लामी शिक्षाओं में सूएज़न अर्थात भ्रांति की बहुत निंदा की गई है। किसी के बारे में बिना-सोचे समझे बुरे विचार रखना ग़लत है। हमको किसी भी विषय पर पूर्वाग्रह में ग्रस्त नहीं होना चाहिए। मनुष्य को अपने मन व मस्तिष्क को हर बुराई से दूर रखना चाहिए। पवित्र क़ुरआन में एक स्थान पर कहा गया है कि उनमें से अधिकांश भ्रांतियों में ग्रस्त रहते हैं जबकि भ्रांति किसी भी स्थिति में मनुष्य को सच्चे मार्ग से आवश्यकता मुक्त नहीं करती। वास्तव में ईश्वर उसे जानता है जिसे तुम करते हो।
हमें इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि विचारों को बनाने और सोच को निर्मित करने में सुनी हुई बातों की भूमिका बहुत अधिक होती है।  इसीलिए हर सुनी हुई बात पर विश्वास नहीं करना चाहिए बल्कि पहले उसकी पुष्टि करनी चाहिए फिर विश्वास करना चाहिए। इस्लाम कहता है कि तुमसे यदि कोई किसी की अच्छाई करे तो उसे ध्यान से सुनो किंतु यदि कोई बुराई करे तो उसकी बात को खोजबीच और जांच परख से पहले स्वीकार न करो न ही केवल बुराई सुनकर किसी के बारे में कोई विचार अपने मन में बनाओ।

इस्लाम में शुक्र या आभार व्यक्त करने को बहुत महत्व प्राप्त है। आभार व्यक्त करने वाला व्यक्ति सदैव ही ईश्वर की अनुकंपाओं और उसकी विभूतियों के प्रति आभार व्यक्त करता रहता है। वह ईश्वर की असंख्य अनुकंपाओं पर आभार व्यक्त करते हुए ईश्वर के मुक़ाबले में स्वयं को बहुत तुच्छ समझता है। जो व्यक्ति ईश्वर की अनुकंपाओं का आभार व्यक्त करता है तो यह आभार केवल मौखिक नहीं होता बल्कि मनुष्य के हाव-भाव से भी इसका पता चलता है। इस्लामी शिक्षाओं में कहा गया है कि ईश्वर की आध्यात्मतिक अनुकंपाओं में से धर्म और ईमान है। दूसरे शब्दों में इस्लाम में ईमान और धर्म को बहुत अधिक महत्व प्राप्त है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम इस बारे में कहते हैं कि ईमान का प्रकाश एसी विभूति है जिससे उसने मुझको सुसज्जित किया है और मेरे सिर पर सम्मान का मुकुट रखा है।  इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने अपनी दुआओं में, जिसमें बड़ी सुन्दर उपमाएं देखने को मिलती हैं, ईमान के प्रकाश को एसे आभूषणों की संज्ञा दी है जो मनुष्य के सुन्दर दिखने का कारण बनते हैं। वे ईश्ववरीय उपकार को एसा ताज बताते हैं जिसे मनुष्य के सिर पर रख दिया गया है। यह बातें ईमान के आंतरिक रूप को बताती हैं। अपनी दुआ के एक अन्य भाग में इमाम सज्जाद कहते हैं कि हे ईश्वर जिस प्रकार से तूने अपनी कृपा करते हुए हमें अनुकंपाए दी हैं, उन्हें बाक़ी रख और हमसे दुखों को दूर कर दे।  वे कहते हैं कि प्रशंसा का पात्र केवल तू है और सारी प्रशंसाएं केवल तेरे लिए ही हैं।

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