ईश्वर का इम्तेहान

ईश्वर का इम्तेहान

ईश्वर उन लोगों की परीक्षा लेना चाहता है जो लोग उस पर आस्था का दावा करते हैं। ईश्वर के निकट केवल दावा पर्याप्त नहीं है बल्कि वह परीक्षा लेगा ताकि सच्चों को झूठों से अलग किया जा सके। इस संदर्भ में पवित्र क़ुरआन के अंकबूत सूरे की आयत क्रमांक 2 और 3 में ईश्वर कह रहा हैः क्या लोग यह सोचते हैं कि ईश्वर पर आस्था का दावा करने से उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाएगा और उनकी परीक्षा नहीं ली जाएगी, ऐसा नहीं है।

इस बात में संदेह नहीं कि जो लोग इनसे पहले थे हमने उनकी परीक्षा ली। ईश्वर सच बोलने वालों और झूठ बोलने वालों को पहचानता है। इन परीक्षाओं में से एक पैसों की परीक्षा है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कठिन परीक्षा से बचने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे हैं कि उन्हें अधिक धन-संपत्ति न दे कि कठिन परीक्षा से गुज़रना पड़े। यह प्रार्थना हम सके लिए पाठ लेने योग्य है। बहुत से लोग अपनी अपनी निर्धनता की स्थिति में कहते हैः यदि ईश्वर हमें धन दे तो उसे दान करेंगे और भलिभांति अपने कर्तव्य का निर्वाह करेंगे।

शायद ऐसा कहते समय उनका मन पवित्र हो किन्तु उन्हें ज्ञात नहीं कि धन-संपत्ति उनके विचारों को बदल देती है और वित्तीय परीक्षा में विफल हो जाएं और सदैव के लिए दुर्भाग्य का शिकार हो जाए। पैग़म्बरे इस्लाम के साथ  सालबा बिन हातिब की एक से परीक्षा ली गयी और इस परीक्षा में वह विफल हो गए। वह अपनी निर्धनता के दौर में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पास पहुंचे और कहाः ईश्वर से मुझे धन देने के लिए दुआ कीजिए। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने कहाः हे सालबा! वह थोड़ा धन जिसका शुक्र अदा कर सको उस अधिक धन से बेहतर है

जिसकी ज़िम्मेदारी उठाने की तुममें क्षमता न हो। सालबा फिर पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में उपस्थित हुए और इस बार उन्होंने इस प्रकार अनुरोध कियाः जिस ईश्वर ने आपको दूत नियुक्त किया मैं सौगन्ध खाता हूं यदि ईश्वर ने मुझे धन दिया तो जिसका जो हक़ है उसे अदा करुंगा। तब पैग़म्बरे इस्लाम ने ईश्वर से दुआ की कि सालबा को धन दे दे। ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम दुआ स्वीकार कर ली। सालबा के मवेशियों की संख्या इतनी बढ़ गयी कि अब उनके लिए मदीना में रहना मुश्मिल हो गया। वही मदीना से मिली एक घाटी में रहने लगे और वहीं अपने मवेशियों की देख-भाल करने लगें।

कुछ दिनों बाद वह जगह भी उनके लिए कम पड़ने लगी। वहां से वह दूसरे स्थान चले गए ताकि मवेशियों की देख-भाल कर सकें। कुछ समय बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने ज़कात वसूलने वालों को सालबा के पास भेजा किन्तु सालबा की नियत में खोट आ गया और उन्होंने कहाः ज़कात को लगान के सिवा कुछ और नहीं है और लगान ग़ैर मुसलमान को देना होता है। इसलिए मैं ज़कात नहीं दूंगा। जब यह बात पैग़म्बरे इस्लाम ने सुनी तो उन्होंने कहाः अफ़सोस है सालबा पर! तब ईश्वरीय संदेश वही उतरीः जो मुसलमान ईश्वर कोज्ञ वचन देते हैं कि यदि अपनी कृपा से मुझे मालाधन बना देगा तो दान करुंगका और सदाचारियों में रहूंगा और जब ईश्वर ने उन कृपा की तो कंजूसी की और अपने कर्तव्य से पीछे हट गए। यही कारण है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ईश्वर से यह प्रार्थना करते हैः हे पालनहार! मेरी धन-संपत्ति को बढ़ा कर मेरी परीक्षा न ले।

बग़दाद में जुनैद बग़दादी नामक एक प्रसिद्ध उपासक व आत्मज्ञानी रहते थे। एक दिन जुनैद बग़दादी अपने कुछ श्रद्धालुओं के साथ बग़दाद से बाहर घूमने निकले। मार्ग में जुनैद बग़दादी के साथियों ने उनसे बोहलोल के बारे में बताया कि वह पागल है। वे नहीं जानते थे कि बोहलोल एक बुद्धिमान हस्ती है जिन्होंने अब्बासी शासक हारून रशीद के डर से इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के आदेश पर पागलपन का स्वांग रचा था ताकि उनकी जान सुरक्षित रहे। जुनैद बग़दादी की बोहलोल से मिलने की जिज्ञासा बढ़ गयी।

 उन्होंने अपने श्रद्धालुओं से बोहलोल को ढूंढने के लिए कहा। जुनैद बग़दाद के श्रद्धालु बोहलोल को ढूंढने निकल पड़े और उनके मिलने का स्थान जुनैद को बताया। जुनैद बोहलोल के पास पहुंचे और उन्हें सलाम किया। बोहलोल ने सलाम का जवाब दिया और पूछा कौन हो? उन्होंने कहाः मैं जुनैद बग़दादी हूं। बोहलोल ने कहाः आप ही वह शैख़ बग़दादी हैं जो लोगों को उपदेश देते हैं। जुनैद ने कहाः जी हां। बोहलून ने पूछाः खाना कैसे खाते हैं? जुनैद ने उत्तर दियाः पहले बिस्मिल्लाह कहता हूं और फिर अपने सामने से खाना उठाता हूं। छोटा लुक़मा खाता हूं, मुंह के दाहिने भाग से धीरे-धीरे चबाता हूं, दूसरों को नहीं देखता और खाते वक़्त ईश्वर को याद रखता हूं और हर लुक़्मे पर बिस्मिल्लाह कहता हूं। खाने के शुरु और अंत में हाथ धोता हूं।

बोहलोल उठे और कहाः तुम लोगों के उपदेशक बनना चाहते हो हालांकि तुम खाना खाने का शिष्टाचार नहीं जानते। जुनैद समझ गए कि बोहलोल एक तत्वदर्शी व्यक्ति है और पागलपन का दिखावा कर रहे हैं, हंसे और कहाः सही बात दीवाने से सुनन चाहिए और फिर वह बोहलोल के पीछे चल पड़े। बोहलोल ने पूछा कौन हो? उत्तर दियाः शैख़ बग़दादी जो खाने का शिष्टाचार नहीं जानता। बोहलोल ने पूछाः किस तरह बात करते हो? जुनैद ने कहाः नाप-तोल कर बोलता हूं। सामने वाले की समझ के अनुसार बात करता हूं।

लोगों को ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम की ओर बुलाता हूं। ऐसी बात नहीं करता जिससे लोगों को दुख पहुंचे। बोहलोल यह कह कर आगे बढ़ गएः खाने की बात छोड़ो तुम बात करना भी नहीं जानते! जुनैद फिर बोहलोल के पीछे चल पड़े यहां तक कि उनके पास पहुंच गए। बोहलोल ने कहाः मुझसे क्या काम है तुम तो खाना खाने और बात करने का शिष्टाचार तक नहीं जानते! क्या तुम सोने का शिष्टाचार जानते हो? जुनैद बग़दादी ने कहाः जी हां! बोहलोल ने पूछाः किस प्रकार सोते हो?

जुनैद ने उत्तर दियाः जब इशा की नमाज़ पढ़ लेता हूं तो सोने वाला कपड़ा पहनता हूं और फिर जुनैद ने सोने का शिष्टाचार पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के कथनानुसार बयान कर दिया। बोहलोल ने कहाः मैं समझ गया, तुम्हें तो सोने का शिष्टाचार भी नहीं मालूम। यह कह कर बोहलोल चल पड़े। जुनैद ने बोहलोल का रास्ता रोक लिया और कहाः हे बोहलोल! मैं कुछ नहीं जानता। ईश्वर के लिए मुझे सिखाओ!

बोहलोल ने कहा चूंकि तुमने अपनी अज्ञानता को स्वीकार कर लिया है तो तुम्हें सिखाता हूं। जान लो कि यह बातें जो तुमने बताई वह सब द्वितीय श्रेणी महत्व की हैं खाने खाने की मूल बात यह है कि जो लुक़्मा खाओ वह हलाल हो। यदि हराम होगा तो इस प्रकार के शिष्टाचार का कोई फ़ायदा नहीं है, इससे मन और अंधकार में डूब जाता है। बात करते समय मन पवित्र हो, नियत सही हो और बात करने का उद्देश्य ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करना हो। यदित बात करने का लक्ष्य सांसारिक हो या बात निरर्थक हो तो उससे बेहतर है कि मौन धारण किए रहो। सोने के बारे में जो तुमने बताया वह भी द्वितीय श्रेणी महत्व की बात है। मूल बात यह है कि सोते समय तुम्हारे मन को हर प्रकार के द्वेष और ईर्ष्या से पाक होना चाहिए ताकि स्वच्छ मन के साथ सोओ।

इस भाग में हज़रत अली अलैहिस्ससलाम अपने बेटे को एक पत्र में जो वसीयत की है उसका एक भाग आपको सुना रहे हैं। हज़रत अली अलैहिस्ससलाम कहते हैः इस दुनिया से केवल इतनी मात्रा में तुम्हारा धन है जिससे तुम अपने परलोक के ठिकाने को ठीक कर सको। यदि हाथ से जाने वाली हर चीज़ पर दुखी व व्याकुल होते हो तो फिर उस चीज़ के लिए भी दुखी हो जो तुम्हें नहीं मिली। हज़रत अली अलैहिस्ससलाम अपने इस कथन में इस वास्तविकता की ओर इशारा करते हैं कि दुनिया की धन-संपत्ति आती है और चली जाती है और कही दूसरों के पास पहुंच जाती है जबकि प्रलय के दिन उसका हिसाब मनुष्य की गर्दन पर होगा और दुनिया में उसका सुख वारिस लेते हैं। इनमें से कोई भी मनुष्य की वास्तविक संपत्ति नहीं है केवल इतनी मात्रा में उसकी वास्तविक संपत्ति है जितनी उसने अपने परलोक के ठिकाने को ठीक करने के लिए भेजी है।

इसी संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का एक कथन हैः जो कुछ तुमने खाकर ख़त्म किया, पहन कर पुराना किया या दान-दक्षिणा दिया और उसे परलोक के लिए सुरक्षित किया, उसके अतिरिक्त तुम्हारा है ही क्या? इसके अतिरिक्त जो कुछ तुम्हारे पास है सब तुम्हारे वारिसों का है।

अर्थात मनुष्य धन संपत्ति के वास्तव में केवल दो भाग हैं। एक भाग जिसे वह इस दुनिया में प्रयोग करता है और दूसरा भाग वह है जिससे वह प्रलय के दिन के लिए भंडारण करता है। बाक़ी धन कभी किसी दुर्घटना में हाथ से चला जाता है या बच जाता है तो वारिस उसके स्वामी हो जाते हैं।

हज़रत अली अलैहिस्ससलाम अपनी वसीयत में एक महत्वपूर्ण बिन्दु की ओर संकेत करते हैं जिसे मुनष्य को हर दिन याद रखना चाहिए। वह महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि यदि मनुष्य हाथ से चली जाने वाली चीज़ पर दुखी होता है

तो फिर उसे हर उस चीज़ पर दुखी होना चाहिए जो उस तक नहीं पहुंच सकी है। ऐसे बहुत से लोग हैं जो हाथ से चले गए धन और पद पर बहुत दुखी होते हैं। उनका दुख न यह कि कई दिन बल्कि महीनों और वर्षों बाक़ी रहता है किन्तु उस धन या पद के लिए कदापि ऐसे दुखी नहीं होते जो उन तक नहीं पहुंचा है हालांकि यदि चिन्तन करें तो दोनों ही स्थिति एक समान प्रतीत होगी।

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