रोज़ा गुनाहों को धो देता है
रोज़ा गुनाहों को धो देता है
रोज़े की शर्त
रोज़ा केवल यह नहीं है कि इन्सान खाना पीना छोड़ दे बल्कि उसमें नियत की शर्त है यानी भूख और प्यास ख़ुदा के हुक्म से उससे क़रीब होने के लिये हो, मान लीजिए अगर एक दिन आप बारह घण्टे, पन्द्रह घण्टे यूँ ही भूखे रहें तो आपको कोई सवाब नहीं मिलेगा लेकिन अगर उसी भूख प्यास के पीछे नियत हो तो उसका रूप ही बदल जाएगा।
रोज़े की शर्त नियत है। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब यह है कि रोज़ा, यह भूख और प्यास, दूसरी बहुत सी चीज़ों से ख़ुद को रोकना और यह सब कुछ उस नियत से करें कि खुदा की आज्ञा का पालन करना। यह चीज़ हमारे हर काम को महानता देती है। रमज़ानुल मुबारक की पहली रात की दुआ में हम पढ़ते हैं:
’’اَللّٰھُمَّ اجعَلنَا مِمَّن نَویٰ فَعَمِلَ وَ لَا تَجعَلنَا مِمَّن شَقَیٰ فَکَسِلَ‘‘
ख़ुदाया, हमें न लोगों जैसा बना जो पहले नियत करते हैं फिर कोई काम करते हैं और उन लोगों जैसा न बना जिनके दिल पत्थर हो गए और उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करने में सुस्ती की।
साँसे, तसबीह और सोना इबादत
रोज़े में ज़ाहिरी तौर पर कुछ करना नहीं होता लेकिन वास्तव में यह एक बहुत बड़ा काम है। चूँकि जब इन्सान नियत कर लेता है और सुबह की अज़ान से रात की अज़ान तक बहुत से कामों को छोड़ देता है, या पूरे दिन इबादत की हालत में होता है यहाँ तक कि अगर रोज़े की हालत में सो भी जाए तो भी इबादत कर रहा होता है। उसका उठना बैठना और चलना फिरना भी इबादत होता है जैसा कि रसूले अकरम स. फ़रमाते हैं-
’’اَنفَاسُکُم فِیہِ تَسبِیح وَ نَومُکُم فِیہِ عِبَادَۃ‘‘
तुम्हारी साँसे इसमें तसबीह और तुम्हारा सोना इबादत है।
इन्सान का सोना कैसे इबादत हो सकता है? सांस लेना किस तरह सुब्हानल्लाह के बराबर होता है? इसका कारण यह है कि जब इन्सान ख़ुदा की नियत से रोज़ा शुरू करता है तो वह कोई काम न भी कर रहा हो तो भी इबादत की हालत में होता है।
एक दूसरी रिवायत में आया है-
’’نَوم ُ الصَّائِمِ عِبَادَۃ وَ صُمتُہُ تَسبِیح‘‘
रोज़ेदार का सोना इबादत और उसकी ख़ामोशी इबादत है। रोज़ेदार ख़ामोश भी हो तो भी जैसे वह सुबहानल्लाह पढ़ रहा हो।
’’عَمَلُہُ مُتَقَبّل وَ دُعَا ئُہُ مُستَجَاب‘‘
उसका हर अमल और दुआ अल्लाह के यहाँ क़ुबूल होती है।
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