रमज़ान के महीने की फज़ीलत
रमज़ान के महीने की फज़ीलत
रसूले अकरम (स) ने फरमायाः आसमान के दरवाज़े रमज़ान की पहली रात को खुलते हैं और आखरी रात तक बंद नही होते। (बिहारुल अनवार - जिल्द 93, पेज 344)
रमज़ान के महीने की अहमियत
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (स) ने फरमायाः अगर बंदों को यह मालूम होता कि रमज़ान का महीना क्या है, यानि किन बर्कतों और रहमतों का महीना है, वह चाहता कि पूरा साल ही रमज़ान होता। (बिहारुल अनवार - जिल्द 93, पेज 346)
रोज़े की अहमियत पर कुछ हदीसें
रोज़ा और क़यामत की याद
इमाम रज़ा अलैहिस सलाम फरमाते हैं - लोगों को रोज़ा रखने का अम्र हुआ है ताकि वह भूक और प्यास के दुख को जान लें और इस तरह आखिरत की नादारी और हाजत-मंदी का अहसास करें और समझें। (वसाईलुश्शिया - जिल्द 4, पेज 4, ह 5)
शरीर के अंगो का रोज़ा
हज़रते ज़हरा (स) फरमाती हैं – वह रोज़ेदार जिसने अपनी ज़बान, कान, आँख और बदन के आज़ा व जवारेह को गुनाहों से दूर नही रखा है, उसका रोज़ा किस काम का। यानि उसके रोज़े की कोई क़ीमत नही। (बिहारुल अनवार - जिल्द 93, पेज 295)
रमज़ान रहमत का महीना
रसूले अकरम (स) ने फरमायाः रमज़ान वह महीना है जिसकी शुरुआत रहमत दरमियान के दिन मग़फिरत और आखिर जहन्नम की आग से आज़ादी है। (बिहारुल अनवार,जिल्द 93, पेज 342)
क़ुरआन और रमज़ान का महीना
इमाम रज़ा अलैहिस सलाम फरमाते हैं – जो शख्स रमज़ान के महीने में क़ुर्आन की एक आयत की तिलावत करेगा गोया उसने दूसरे महीनों में पूरे क़ुर्आन की तिलावत की है। (बिहारुल अनवार,जिल्द 93, पेज 346)
शबे क़द्र में तमाम रात इबादत करना
फुज़ैल इब्ने यसार कहते हैं इमाम बाक़िर (अ) रमज़ान की इक्कीसवीं और तेईसवीं की रातों को दुआ और इबादत में मशग़ूल हो जाया करते थे हत्ता कि रात गुज़र जाती और जब सुबह होती तो फज्र की नमाज़
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