ज़हूर का समय क्यों निश्चित नहीं है?
ज़हूर का समय क्यों निश्चित नहीं है?
जिस वक़्त ज़हूर की बातें होती हैं तो इंसान के दिल में एक बहुत सुन्दर एहसास पैदा होता है जैसे वह नहर के किनारे किसी हरे भरे बाग में बैठा हुआ है और मधुर स्वर बुलबुलों की आवाज़ सुन रहा है। जी हाँ ! अच्छाइयों का प्रकट होना और अच्छाइयों का फैलना, थकी हारी रुहों व आत्माओं को ख़ुशिया प्रदान करता है, और इससे उम्मीदवारों की आँखों में बिजली सी चमक उठती है।
हम इस हिस्से में हज़रत इमाम महदी (अ) के ज़हूर और उनके हुज़ूर के मौक़े पर घटने वाली घटनाओं का वर्णन करेंगे। और उस बेमिसाल जमाल को ग़ैबत का पर्दा उठाते हुए देखेंगे।
ज़हूर का ज़माना
हमेशा से लोगों के ज़ेहनों में यह सवाल पैदा होता है कि इमामे ज़माना (अ) कब ज़हूर फरमायेंगे ? और क्या ज़हूर के लिए कोई वक़्त निश्चित है ?
इस सवाल का जवाब मासूमीन (अ) वर्णित रिवायत के आधार यह है कि ज़हूर का ज़माना निश्चित नहीं है।
इस बारे में हज़रत इमाम सादिक़ (अ) फरमाते हैं कि
“हमने न तो कभी पहले ज़हूर के लिए कोई वक़्त निश्चित किया है और न ही इसके लिए भविष्य में कोई वक़्त निश्चित करेंगे...।”[1]
इस आधार पर ज़हूर के लिए कोई वक़्त निश्चित करने वाले लोग झूठे व धोखेबाज़ हैं और विभिन्न रिवायतों में इस बात की पुष्टी भी की गई है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाकिर (अ) के एक सहाबी ने उनसे ज़हूर के बारे में सवाल किया तो उन्होंने फरमाया :
जो लोग ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करें वह झूटे हैं।[2]
अतः इस तरह की रिवायतों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि हमेशा ही कुछ लोग शैतानी वसवसों के कारण इमाम (अ) के ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करते रहे हैं और ऐसे लोग भविष्य में भी पाये जायेंगे। इसी वजह से अइम्मा ए मासूमीन (अ) ने अपने शियों को यह पैगाम दिया है कि वह कभी भी ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करने वालों के सामने खामोश न रहें बल्कि उनके झूट को उजागर करने की कोशिश करें।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ) इस बारे में अपने एक सहाबी से फरमाते हैं कि
“ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करने वालों को झुठलाने में किसी भी तरह की पर्वा न करो, क्योंकि हम ने किसी के सामने ज़हूर का वक़्त निश्चित नहीं किया है।”[3]
ज़हूर के वक़्त को छुपाने का राज़
जैसा कि ऊपर उल्लेख हो चुका है कि ख़ुदा वन्दे आलम ने किसी ख़ास वजह से हज़रत इमाम महदी (अ) के ज़हूर के वक़्त को हम से छुपा कर रखा है। बेशक इस मसले कुछ हिकमतें पाई जाती हैं, जिनमें से कुछ की तरफ़ हम यहाँ इशारा कर रहे हैं।
उम्मीद को बाक़ी रखना
जब ज़हूर का ज़माना मालूम नहीं होता तो इन्तेज़ार करने वालों के दिलों में हर वक़्त उम्मीद की किरणे मौजूद रहती हैं और वह उस उम्मीद के साथ ग़ैबत के ज़माने में हमेशा परेशानियों के मुक़ाबले में सब्र व दृढ़ता से काम लेते हैं। वास्तव में अगर पिछली शताब्दियों के शियों से कहा जाता कि तुम्हारे ज़माने में इमाम (अ) का ज़हूर नहीं होगा, बल्कि कुछ शताब्दियों बाद ज़हूर होगा तो फिर वह किस उम्मीद के साथ अपने ज़माने की मुशकिलों का मुक़ाबला करते और किस तरह ग़ैबत के ज़माने के तंग व अँधेरे रास्ते को सही तरह से तय करते ?
ज़हूर के रास्तों को हमवार करना
बेशक इन्तेज़ार उसी सूरत में बेहतरीन कामों का कारण बन सकता है जब ज़हूर का ज़माना मालूम न हो, क्यों कि अगर ज़हूर का ज़माना निश्चित हो जाये तो फिर जिन लोगों को मालूम है कि हम ज़हूर के ज़माने तक नहीं रहेंगे तो फिर उनके अन्दर रास्ता हमवार करने का शौक पैदा नहीं होगा और वह बुराइयों के सामने हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहेंगे।
जबकि अगर ज़हूर का ज़माना मालूम न हो तो इंसान हर वक़्त इस उम्मीद में रहता है कि न जाने कब ज़हूर हो जाये और वह ज़हूर के ज़माने को प्राप्त कर ले। अतः वह इसी कारण ज़हूर के लिए रास्ता हमवार करने की कोशिशें करता है और अपने समाज को नेक समाज में परिवर्तित करने के लिए प्रयासरत रहता है।
इसके अलावा ज़हूर का वक़्त निश्चित होने की सूरत में अगर कुछ कारणों से निश्चित समय पर ज़हूर न हो सका तो फिर कुछ लोग हज़रत इमाम महदी (अ) के अक़ीदे में शक करने लगेंगे।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) से सवाल किया गया कि क्या ज़हूर के लिए कोई वक़्त निश्चित है ? तो उन्होंने फरमाया :
जो लोग ज़हूर के लिए वक़्त निश्चित करें वह झूठे हैं। इमाम ( अ) ने इस जुमले को दो बार कहा जिस वक़्त जनाबे मूसा (अ) ख़ुदा के बुलाने से तीस दीन के लिए अपनी क़ौम के बीच से चले गए और ख़ुदा वन्दे आलम ने उन तीस दिनों में दस दिन और बढ़ा दिये तो उस वक़्त जनाबे मूसा (अ) की क़ौम ने कहा : मूसा ने अपने वादे को वफ़ा नहीं किया है। अतः वह उन कामों को करने लगे जो उनको नहीं करने चाहिए थे। वह दीन से फिर गए और गाय की पूजा शुरु कर दी।[4]
इन्केलाब का आरम्भ
सब लोग ये जानना चाहते हैं कि हज़रत इमाम महदी (अ) के इस विश्वव्यापी इंकेलाब में क्या क्या घटनाएं घटित होंगी ? इमाम का यह आन्दोलन कहाँ से और कैसे शुरु होग ? हज़रत इमाम महदी (अ) अपने मुखालिफ़ों से कैसा व्यवहार करेंग ? वह किस तरह पूरी दुनिया पर क़ब्ज़ा करेंगे ? और तमाम महत्वपूर्ण कामों की बाग ड़ोर अपने हाथों में कैसे संभालेंगे ? यह सवाल और इन्हीँ से मिलते जुलते अन्य सवाल ज़हूर का इन्तेज़ार करने वाले इंसानों के ज़हन में आते रहते हैं। लेकिन हक़ीक़त यह है कि इंसानों की आखरी उम्मीद के ज़हूर के घटनाओं के बारे में बात करना बहुत मुशकिल काम है। क्योंकि भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के बारे में साधारण रूप से गहरी जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकती है।
अतः हम इस हिस्से में जो कुछ उल्लेख करेंगे वह हज़रत इमाम महदी (अ) के ज़हूर के ज़माने की वह घटनाएं हैं जिनका वर्णन अनेकों किताबों में हुआ हैं और जिन में इमाम (अ) के ज़हूर के ज़माने की घटनाओं की एक झक मिलती है।
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[1] . ग़ैबते तूसी, फसल न. 7, हदीस न. 412, पेज न. 426
[2] . ग़ैबते तूसी, फसल न. 7, हदीस न. 411, पेज न. 425
[3] . ग़ैबते तूसी, फसल न. 7, हदीस न. 414, पेज न. 426
[4] . गैबते नोमानी, बाब न. 16, हदीस न. 13, पेज न. 305
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