हदीस शास्त्र का महत्व
हदीस शास्त्र का महत्व
हदीस शास्त्र महत्वपूर्ण शास्त्रों में से एक है। मशहूर व प्रसिध्द और सही हदीसों में एक हदीसे सक़लैन है।
(जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम(स) ने अल्लाह की किताब और अपने अहले बैत को एक यादगार और क़यामत तक के लिये अपनी नबूवत की बक़ा के तौर पर छोड़ा है।)
जिसने हदीस के ऐतेबार को हमारे लिये साफ़ कर दिया है क्योकि अहले बैत की विशेषताओं में एक विशेष चीज़ उनके कथन हैं और यह जो जनाब रय शहरी साहब ने कहा कि दारुल हदीस भी
दारुल क़ुरआन है वास्तव में ऐसा ही है क्योकि यह दोनो एक दूसरे से अलग नही हो सकते। लय यफ़तरेक़ा हत्ता यरेदा अलय्यल हौज़।
इस बुनियाद पर क़यामत तक अहले बैत (अ) की बरकतें और दुनिया में उनका वुजूद ख़त्में नुबूवत की बक़ा की ज़िम्मेदार हैं।
इसकी एक साफ़ और आम सी निशानी अहले बैत (अ) के कथन हैं जो आज भी लोगों के पास मौजूद हैं इससे ज़्यादा इँसान को और क्या चाहिये?
इन ही बातों के कारण पैग़म्बरे अकरम (स) (जिन पर यह क़ुरआन उतरा है) ने हदीस के सही और मोतबर होने को क़ुरआन के बराबर क़रार दिया है।
हदीस की पहचान होने की आवश्यकता
हमें हदीस को पहचानना चाहिये आज को दौर में हमारे बहुत से बड़े उलामा जो विभिन्न शास्त्रों में महारत रखते हैं, हदीस के बारे में जानकारी नही रखते सिवाए फ़िक़ह की हदीसों के,
वह भी इस लिये कि फ़िक़्ह में दलील लाते समय उनकी ज़रुरत पड़ती है लोग सवाल करते हैं फ़क़ीह को उनके सवालों के जवाब देना पड़ता है अत: वह किताबों को देखने पर मजबूर होत हैं।
हदीस की तरफ़ उनका ध्यान देना अस्ल में फ़िक्ह की तरफ़ ध्यान देना होता है। लाखों हदीसों की ख़ज़ाना जो हमारा पास मौजूद है उनमें से फ़िक़ही हदीसों की संख्या कितनी है?
फ़िक़ह की हदीसों की संख्या बहुत सीमित है जबकि हदीसों की बड़ी संख्या विभिन्न शास्त्रों और शिष्टाचार (यह कभी मुसतहब होता है और कभी उससे भी बढ़ कर होता है)
के बारे हैं और आईम्म ए मासूमीन (अ) के बारे में हैं। शास्त्रों की हदीसें (तौहीद, क़यामत, इमामत, नबूवत, इंसानी मसायल, जब्र व इख़्तियार) ऐसे महत्वपूर्ण विषय हैं
जो एक इस्लामी स्कालर के ज़हन पर सही असर डाल सकते हैं। जो इन नूरानी कथनों की फ़ज़ा में इस्लामी शिष्टाचार को हासिल करने की कोशिश कर सकता है
या उन्ही आदाब व अहकाम के मसायल में जो मैंने बयान किये अहले बैत (अ) की हदीसों का ख़ज़ाना, ज़िन्दगी के अहकाम व आदाब, समाजी रहन सहन के तौर तरीक़े.
इंसानों के आपसी संबंध, राजा का प्रजा से संबंध और इंसान का प्राकृति से संबंध के बारे में मासूमीन (अ) की हदीसें बहुत ज़्यादा हैं। उन हदीसों में इस क़दर ज़्यादा मतलब बयान हुए हैं
कि अगर इँसान उनमें विचार करना चाहे तो उसका ज़हन जवाब दे जाता है लेकिन अफ़सोस कि कोई उनके महत्व को नही समझता। केवल ख़ुतबा व वायज़ीन ही
उनका अध्ययन करते हैं लेकिन इल्मी माहौल और हमारे हौज़ ए इल्मिया (दीनी मदरसों में) में हदीस की तरफ़ ज़्यादा ध्यान नही दिया जाता, मैं उनकी बुराई नही कर रहा हूँ
(क्योकि फ़ोक़हा के लिये लाज़िम है कि वह माहिर हों, एक माहिर फक़ीह को फ़िक़ह के उसूल व क़ानूनों में विचार करने की ज़रुरत होती है जिसमें बहुत समय लगता है
इसलिये उनसे इस बात की आशा नही करनी चाहिये कि एक धर्मशास्त्र का ज्ञानी हदीस शास्ज्ञ का ज्ञानी भी हो) हम अपने उमूमी हौज़ ए इल्मिया की निंदा करते हैं कि
हम फ़िक्ह व उसूले फ़िक़ह पर इस क़दर पैसा ख़र्च करते हैं मगर हदीस को अनदेखा कर देते है।
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