इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के मार्गदर्शक कथन

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के मार्गदर्शक कथन

ख़ुदा की रहमत के साय में होगा

قَالَ الإمامُ موسى بن جعفر الكاظم ( عليه السَّلام ) : ثَلاهثَةٌ يَسْتَظِلُّونَ بِظِلِّ عَرْشِ اللهِ يَوْمَ الْقِيَامَةِ يَوْمَ لَا ظِلَّ إِلَّا ظِلُّهُ رَجُلٌ زَوَّجَ أَخَاهُ الْمُسْلِمَ أَوْ أَخْدَمَهُ أَوْ کَتَمَ لَهُ سِرّاً

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं तीन लोग ख़ुदा के अर्श के साये में होंगे उस दिन जिस दिन ख़ुदा के अर्श के सिवा और कोई साया नहीं होगा

1. वह आदमी जो अपने मुसलमान भाई के लिए शादी में उसकी सहायता करे

2. या उसके लिए कोई दास का प्रबंध करे।

3. या उसके राज़ों को छिपाए।

स्पष्ट रहे कि इस हदीस में जो अर्शे ख़ुदा का साया कहा गया है उसका तात्पर्य ख़ुदा की रहमत है, यानी ऐसा व्यक्ति क़यामत के दिन ख़ुदा की रहमत में होगा।

दुनिया

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम दुनिया के बारे में फ़रमाते हैं

قَالَ الإمامُ موسى بن جعفر الكاظم ( عليه السَّلام ) : إِنَّ مَثَلَ الدُّنْیَا مَثَلُ الْحَیَّةِ مَسُّهَا لَیِّنٌ وَ فِی جَوْفِهَا السَّمُّ الْقَاتِلُ یَحْذَرُهَا الرِّجَالُ ذَوُو الْعُقُولِ وَ یَهْوِی إِلَیْهَا الصِّبْیَانُ بِأَیْدِیهِمْ

निःसंदेह दुनिया की मिसाल सांप के जैसी है उसको छूना और उसपे हाथ फेरना नर्म एहसास देता है (यानी दुनिया का ज़ाहिर धोखा देने वाला है) लेकिन उसके अंदर मार देने वाला विष है, समझदार और अक़्लमंद लोग उससे दूर रहते हैं और बच्चे उसके हाथ में उठाते हैं और उसकी तरफ़ बढ़ते हैं।

यानी इस संसारिक इच्छाओं की तरफ़ ग़ैर आक़िल उसी प्रकार बढ़ता है जैसे एक बच्चा रंगबिरंगी चीज़ों को देख कर उनकी तरफ़ बढ़ता हैं और यह नहीं देखता है कि वह ख़तरे की तरफ़ बढ़ रहा है जबकि समझदार इन्सान देखता है और जिस तरफ़ ख़तरा होता है उसकी तरफ़ नहीं जाता है।

इसीलिए हदीसों में दुनिया के बारे में कहा गया है कि दुनिया हर बुराई की जड़ है।

 

सदक़ा

इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम सदक़े की फ़ज़ीलत और सदक़ा किसे कहते है को बयान करते हुए फ़रमाते हैं

قَالَ الإمامُ موسى بن جعفر الكاظم ( عليه السَّلام ) : " عَوْنُكَ لِلضَّعِيفِ مِنْ أَفْضَلِ الصَّدَقَةِ

तुम्हारा कमज़ोर की सहायता करना बेहतरीन सदक़ा है।

अगर ध्यान दिया जाए तो इमाम इसमें सदक़े की सीमाओं को बता रहे हैं, हम यह समझते हैं कि सदक़े का अर्थ यह होता है कि हम किसी इन्सान को पैसा दें, कोई फ़क़ीर आ जाए तो उसको आटा, चावल या इसी प्रकार की कोई चीज़ दे दें, लेकिन इमाम इस हदीस में बता रहे हैं कि सदक़ा केवल पैसा देना ही नहीं है बल्कि किसी कमज़ोर की सहायता करना सदक़ा है और यह सहायता कभी पैसा देकर होती है तो कभी किसी को सम्मान और शक्ति देकर और कभी किसी और तरीक़े से।

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