अय्यामे बीज़ (13,14,15 रजब) के आमाल
तेरहवीं की रात के आमाल
रजब, शाबान और रमज़ान के महीने में मुस्तहेब है कि दो रकअत नमाज़ पढ़ी जाए जिसकी हर रकअत में एक बार अलहम्द और यासीन और मुल्क और तौहीद का सूरा पढ़ा जाए।
और चौदहवी की रात को चार रकअत नमाज़ पढ़ी जाए (दो दो रकअत करके चार रकअत) उसी प्रकार जैसे तेरहवीं का रीत के लिए बताई गई है, और बंदरहवीं की रात को बताए गए तरीक़े के साध 6 रकअत नमाज़ पढ़ी जाए।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत है कि जो भी इस अमल को अंजाम दे उसको इन तीनों महीनों की सारी फ़ज़ीलतों को पा जाएगा, शिर्क के अतिरिक्त उसके सारे पाप क्षमा कर दिए जाएंगे।
तेरहवीं का दिन
यह अय्यामे बीज़ का पहला दिन है और इस दिन और इसके बाद के दो दिनों में रोज़ा रखने का बहुत सवाब बयान किया गया है, और अगर कोई अमले उम्मे दाऊद करना चाहे तो उसके यह रोज़े रखने चाहिए।
यही इसी महान दिन पर पैग़म्बरे इस्लाम की सच्चे उत्तराधिकारी, जिन्होंने हर समय पर पैग़म्बर का साथ दिया और इस्लाम को फ़ैलाने के लिए अपना सारा जीवन झोंक दिया, जब अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम का जन्म दिवस भी।
रजब की चौदहवीं की रात के आमाल
1. गुस्ल।
2. पूरी रात इबादत में जागना।
3. ज़ियारते इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पढ़ना अगर पास से न हो सके तो दूर से ही पढ़ी जाए।
4. 6 रकअत नमाज़ जिसके बारे में तेरहवीं की रात में बताया गया है।
5. तीस रकअत नमाज़ पढ़ना जिसकी हर रकअत में अलहम्द और 10 बार सूरा तौहीद पढ़ा जाए, इस नमाज़ की बहुत फज़ीलत है।
6. बारह रकअत नमाज़ (दो दो करके) जिसकी हर रकअत में सूरा अलहम्द, और दूसरा सूरा पढ़े और नमाज़ समाप्त होने के बाद चार बार तौहीद फ़लक़, नास, आयतुल कुर्सी और क़द्र चार बार पढ़े, फिर चार बार पढ़े
«سُبْحانَ اللهِ وَالْحَمْدُ لِلّهِ وَلا اِلهَ اِلا اللهُ وَاللهُ اَكْبَرُ »
उसके बाद यह कहे
«اَللهُ اَللهُ رَبّى لا اُشْرِكُ بِهِ شَیْئا وَ ما شاَّءَ اللهُ لا قُوَّةَ اِلاّ بِاللهِ الْعَلِىِّ الْعَظیمِ»
27 रजब को भी यह अमल करने के बारे में कहा गया है।
15वीं रजब के दिन के आमाल
1. गुस्ल।
2. ज़ियारते इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम। अबी बसीर कहते हैं कि मैंने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से पूछा किस महीने में इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत करूँ
आपने फ़रमायाः15वी रजब और 15वीं शाबान
3. नमाज़े सलमान पढ़ना, जैसा की पहली रजब के दिन पढ़ने के लिए बताया गया है।
4. दो दो रकअत कर के चार रकअत नमाज़ पढ़ना।
और नमाज़ के बाद अपने हाथों को उठाकर कहेः
«اَللّهُمَّ یا مُذِلَّ كُلِّ جَبّارٍ ؛ وَ یا مُعِزَّ الْمُؤْمِنینَ اَنْتَ كَهْفى حینَ تُعْیینِى الْمَذاهِبُ؛ وَ اَنْتَ بارِئُ خَلْقى رَحْمَةً بى وَ قَدْ كُنْتَ عَنْ خَلْقى غَنِیّاً وَ لَوْ لا رَحْمَتُكَ لَكُنْتُ مِنَ الْهالِكینَ وَ اَنْتَ مُؤَیِّدى بِالنَّصْرِ عَلى اَعْداَّئى وَ لَوْ لا نَصْرُكَ
اِیّاىَ لَكُنْتُ مِنَ الْمَفْضُوحینَ یا مُرْسِلَ الرَّحْمَةِ مِنْ مَعادِنِها وَ مُنْشِئَ الْبَرَكَةِ مِنْ مَواضِعِها یا مَنْ خَصَّ نَفْسَهُ بِالشُّمُوخِ وَالرِّفْعَةِ فَاَوْلِیاَّؤُهُ بِعِزِّهِ یَتَعَزَّزُونَ وَ یا مَنْ وَضَعَتْ لَهُ الْمُلُوكُ نیرَ الْمَذَلَّةِ عَلى اَعْناقِهِمْ فَهُمْ مِنْ سَطَواتِهِ خاَّئِفُونَ اَسئَلُكَ بِكَیْنُونِیَّتِكَ الَّتِى اشْتَقَقْتَها مِنْ كِبْرِیاَّئِكَ وَ اَسئَلُكَ بِكِبْرِیاَّئِكَ الَّتِى اشْتَقَقْتَها مِنْ عِزَّتِكَ وَ اَسئَلُكَ بِعِزَّتِكَ الَّتِى اسْتَوَیْتَ بِها عَلى عَرْشِكَ فَخَلَقْتَ بِها جَمیعَ خَلْقِكَ فَهُمْ لَكَ مُذْعِنُونَ اَنْ تُصَلِّىَ عَلى مُحَمَّدٍ وَ اَهْلِ بَیْتِهِ .
रिवायत में आया है कि अगर किसी को कोई ग़म और वह यह दुआ पढ़े तो अल्लाह उसके दुख को दूर कर देता है।
अमले उम्मे दाऊद
5. इस दिन (15 रजब) के सबसे महत्वपूर्ण अमलों में से एक अमले उम्मे दाऊद है, जिसको दुआओं की पूर्ति ग़मों को दूर करने अदि के लिए बहुत प्रभावी है।
तरीक़ा
इसका तरीक़ा शेख़ कफ़अमी की पुस्तक मिस्बाह में आया है कि जो यह अमल करना चाहता है उसको चाहिए कि 13, 14, और 15 रजब को रोज़ा रखे, और 15 को ज़ोहर के समय ग़ुस्ल करे और ज़वाल के समय, ज़ोहर और अस्र की नमाज़ पढ़े और उसके रुकूअ और सजदों को बेहतरीन प्रकार से अंजाम दे और किसी ऐसे स्थान पर बैठे जहां कोई उसका ध्यान न भटका सके और किसी से बात न करे, जब नमाज़ समाप्त हो जाए तो क़िबले की तरफ़ चेहरा करके बैठ जाए और सौ बार सूरा अलहम्द, सौ बार सूरा तौहीद (क़ुल हुवल्लाहो अहद), दस बार आयतुल कुर्सी पढ़े, फिर सूरा अनआम (सूरा नम्बर 6), सूरा बनी इस्राईल (असरा, 17), कहफ़ (18), लुक़मान (31), यासीन (36), साफ़्फ़ात (37), हामीम सजदा (फ़ुस्सेलत 41), हामीम ऐन सीन क़ाफ़ (सूरा शूरा 42), दोख़ान (44), फ़त्ह (48), वाक़ेआ (56), मुल्क (67), नून (सूरा क़लम 68), एज़स्समाउन शक़्क़त (इनशेक़ाक़ 84), और उसके बाद क़ुरआन के अंत तक सारे सूरों को पढ़े, यह पढ़ने के बाद इस दुआ को पढ़े
صَدَقَ اللهُ الْعَظیمُ الَّذى لا اِلهَ اِلاّ هُوَ الْحَىُّ الْقَیُّومُ ذُو الْجَلالِ وَالاِْكْرامِ الرَّحْمنُ الرَّحیمُ الْحَلیمُ الْكَریمُ الَّذى لَیْسَ كَمِثْلِهِ شَىْءٌ وَ هُوَ السَّمیعُ الْعَلیمُ الْبَصیرُ الْخَبیرُ شَهِدَ اللهُ اَنَّهُ لا اِلهَ اِلاّ هُوَ وَالْمَلاَّئِكَةُ وَ اُولوُا الْعِلْمِ قاَّئِماً بِالْقِسْطِ لا اِلهَ اِلاّ هُوَ الْعَزیزُ الْحَكیمُ . وَ بَلَّغَتْ رُسُلُهُ الْكِرامُ وَ اَنَا عَلى ذلِكَ مِنَ الشّاهِدین.
َ اَللّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ وَ لَكَ الْمَجْدُ وَ لَكَ الْعِزُّ وَ لَكَ الْفَخْرُ وَ لَكَ الْقَهْرُ وَ لَكَ النِّعْمَةُ وَ لَكَ الْعَظَمَةُ وَ لَكَ الرَّحْمَةُ وَ لَكَ الْمَهابَةُ وَ لَكَ السُّلْطانُ وَ لَكَ الْبَهاَّءُ وَ لَكَ الاِْمْتِنانُ وَ لَكَ التَّسْبیحُ وَ لَكَ التَّقْدیسُ وَ لَكَ التَّهْلیلُ وَ لَكَ التَّكْبیرُ وَ لَكَ ما یُرى وَ لَكَ مالا یُرى وَ لَكَ ما فَوْقَ السَّمواتِ الْعُلى وَ لَكَ ما تَحْتَ الثَّرى وَ لَكَ الاْرَضُونَ السُّفْلى وَ لَكَ الاْخِرَةُ وَالاُْولى وَ لَكَ ما تَرْضى بِهِ مِنَ الثَّناَّءِ وَالْحَمْدِ وَالشُّكرِ وَالنَّعْماَّءِ .
اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى جَبْرَئیلَ اَمینِكَ عَلى وَحْیِكَ وَالْقَوِىِّ عَلى اَمْرِكَ وَالْمُطاعِ فى سَمواتِكَ وَ مَحالِّ كَراماتِكَ الْمُتَحَمِّلِ لِكَلِماتِكَ النّاصِرِ لاَِنْبِیاَّئِكَ الْمُدَمِّرِ لاِعْداَّئِكَ . اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى میكائیلَ مَلَكِ رَحْمَتِكَ وَالْمَخْلُوقِ لِرَاءْفَتِكَ وَالْمُسْتَغْفِرِ الْمُعینِ لاِهْلِ طاعَتِكَ .
اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى اِسْرافیلَ حامِلِ عَرْشِكَ وَ صاحِبِ الصُّورِ الْمُنْتَظِر لاِمْرِكَ الْوَجِلِ الْمُشْفِقِ مِنْ خیفَتِكَ . اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى حَمَلَةِ الْعَرْشِ الطّاهِرینَ وَ عَلىَ السَّفَرَةِ الْكِرامِ الْبَرَرَةِ الطَّیِّبینَ وَ عَلى مَلاَّئِكَتِكَ الْكِرامِ الْكاتِبینَ وَ عَلى مَلاَّئِكَةِ الْجِن انِ وَ خَزَنَةِ النّیرانِ وَ مَلَكِ الْمَوْتِ وَالاْعْوانِ یا ذَاالْجَلالِ وَالاِْكْرامِ .
اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى اَبینا آدَمَ بَدیعِ فِطْرَتِكَ الَّذى كَرَّمْتَهُ بِسُجُودِ مَلاَّئِكَتِكَ وَ اَبَحْتَهُ جَنَّتَكَ اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى اُمِّنا حَوّاَّءَ الْمُطَهَّرَةِ مِنَ الرِّجْسِ الْمُصَفّاتِ مِنَ الدَّنَسِ الْمُفَضَّلَةِ مِنَ الاِْنْسِ الْمُتَرَدِّدَةِ بَیْنَ مَحالِّ الْقُدُْسِ . اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى هابیلَ وَ شَیْثٍ وَ اِدْریسَ وَ نُوحٍ وَ هُودٍ وَ صالِحٍ وَ اِبْراهیمَ وَ اِسْماعیلَ وَ اِسْحقَ وَ یَعْقُوبَ وَ یُوسُفَ وَالاْسْباطِ وَ لُوطٍ وَ شُعَیْبٍ وَ اَیُّوبَ وَ مُوسى وَ هارُونَ وَ یُوشَعَ وَ میشا وَالْخِضْرِ وَ ذِى الْقَرْنَیْنِ وَ یُونُسَ وَ اِلْیاسَ وَالْیَسَعَ وَ ذِى الْكِفْلِ وَ طالُوتَ وَ داوُدَ و َسُلَیْمانَ وَ زَكَرِیّا وَ شَعْیا وَ یَحْیى وَ تُورَخَ وَ مَتّى وَ اِرْمِیا وَ حَیْقُوقَ وَ دانِیالَ وَ عُزَیْرٍ وَ عیسى وَ شَمْعُونَ وَ جِرْجیسَ وَالْحَوارِیّینَ وَالاْتْباعِ وَ خالِدٍ وَ حَنْظَلَةَ وَ لُقْمانَ . اَللّهُمَّ صَلِّ عَلى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَارْحَمْ مُحَمَّداً وَ آلَ مُحَمَّدٍ وَ بارِكْ عَلى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ كَما صَلَّیْتَ وَ رَحِمْتَ وَ بارَكْتَ عَلى اِبْرهیمَ وَ آلِ اِبْرهیمَ اِنَّكَ حَمیدٌ مَجیدٌ .
اَللّهُمَّ صَلِّ عَلَى الاْوْصِیاَّءِ وَالسُّعَداَّءِ وَالشُّهَداَّءِ وَ اَئِمَّةِ الْهُدى اَللّهُمَّ صَلّ عَلَى الاْبْدالِ وَالاْوْتادِ وَالسُّیّاحِ وَالْعُبّادِ وَالْمُخْلِصینَ وَالزُّهّادِ وَ اَهْلِ الجِدِّ وَالاِْجْتِهادِ وَاخْصُصْ مُحَمَّداً وَ اَهْلَ بَیْتِهِ بِاَفْضَلِ صَلَواتِكَ وَ اَجْزَلِ كَراماتِكَ وَ بَلِّغْ رُوحَهُ وَ جَسَدَهُ مِنّى تَحِیَّةً وَ سَلاماً وَزِدْهُ فَضْلاً وَ شَرَفاً وَ كَرَماً حَتّى تُبَلِّغَهُ اَعْلى دَرَجاتِ اَهْلِ الشَّرَفِ مِنَ النَّبِیّینَ وَالْمُرْسَلینَ وَالاْفاضِلِ الْمُقَرَّبینَ اَللّهُمَّ وَ صَلِّ عَلى مَنْ سَمَّیْتُ وَ مَنْ لَمْ اُسَمِّ مِنْ مَلاَّئِكَتِكَ وَ اَنْبِی اَّئِكَ وَ رُسُلِكَ وَ اَهْلِ طاعَتِكَ وَ اَوْصِلْ صَلَواتى اِلَیْهِمْ وَ اِلى اَرْواحِهِمْ وَاجْعَلْهُمْ اِخْوانى فیكَ وَ اَعْوانى عَلى دُعاَّئِكَ .
اَللّهُمَّ اِنّى اَسْتَشْفِعُ بِكَ اِلَیْكَ وَ بِكَرَمِكَ اِلى كَرَمِكَ و َبِجُودِكَ اِلى جُودِكَ وَ بِرَحْمَتِكَ اِلى رَحْمَتِكَ وَ بِاَهْلِ طاعَتِكَ اِلَیْكَ وَ اَسئَلُكَ الّلهُمَّ بِكُلِّ ما سَئَلَكَ بِهِ اَحَدٌ مِنْهُمْ مِنْ مَسْئَلَةٍ شَریفَةٍ غَیْرِ مَرْدُودَةٍ وَ بِما دَعَوْكَ بِهِ مِنْ دَعْوَةٍ مُجابَةٍ غَیْرِ مُخَیَّبَةٍ
یااَللهُ یا رَحْمنُ یا رَحیمُ یا حَلیمُ یا كَریمُ یا عَظیمُ یا جَلیلُ یا مُنیلُ یا جَمیلُ یا كَفیلُ یا وَكیلُ یا مُقیلُ یا مُجیرُ یا خَبیرُ یا مُنیرُ یا مُبیرُ یا مَنیعُ یا مُدیلُ یا مُحیلُ یا كَبیرُ یا قَدیرُ یا بَصیرُ یا شَكُورُ یا بَرُّ یا طُهْرُ یا طاهِرُ یا قاهِرُ یا ظاهِرُ یا باطِنُ یا ساتِرُ یا مُحیطُ یا مُقْتَدِرُ یا حَفیظُ یا مُتَجَبِّرُ یا قَریبُ یا وَدُودُ یا حَمیدُ یا مَجیدُ یا مُبْدِئُ یا مُعیدُ یا شَهیدُ یا مُحْسِنُ یا مُجْمِلُ یا مُنْعِمُ یا مُفْضِلُ یا قابِضُ یا باسِطُ یا هادى یا مُرْسِلُ یا مُرْشِدُ یا مُسَدِّدُ یا مُعْطى یا مانِعُ یا دافِعُ یا رافِعُ یا باقى یا واقى یا خَلاّقُ یا وَهّابُ یا تَوّابُ یا فَتّاحُ یا نَفّاحُ یا مُرْتاحُ یا مَنْ بِیَدِهِ كُلُّ مِفْتاحٍ یا نَفّاعُ یا رَؤُفُ یا عَطُوفُ یا كافى یا شافى یا مُعافى یا مُكافى یا وَفِىُّ یا مُهَیْمِنُ یا عَزیزُ یاجَبّارُ یا مُتَكَبِّرُ یا سَلامُ یا مُؤْمِنُ یا اَحَدُ یا صَمَدُ یا نُورُ یا مُدَبِّرُ یا فَرْدُ یا وِتْرُ یا قُدُّوسُ یا ناصِرُ یا مُونِسُ یا باعِثُ یا وارِثُ یا عالِمُ یا حاكِمُ یا بادى یا مُتَعالى
یا مُصَوِّرُ یا مُسَلِّمُ یا مُتَحَبِّبُ یا قاَّئِمُ یا داَّئِمُ یا عَلیمُ یا حَكیمُ یا جَوادُ یا بارِىءُ یا باَّرُّ یا ساَّرُّ یا عَدْلُ یا فاصِلُ یا دَیّانُ یا حَنّانُ یا مَنّانُ یا سَمیعُ یا بَدیعُ یا خَفیرُ یا مُعینُ یا ناشِرُ یا غافِرُ یا قَدیمُ یا مُسَهِّلُ یا مُیَسِّرُ یا مُمیتُ یا مُحْیى یا نافِعُ یا رازِقُ یا مُقْتَدِرُ یا مُسَبِّبُ یا مُغیثُ یا مُغْنى یا مُقْنى یاخالِقُ یا راصِدُ یا واحِدُ یا حاضِرُ یا جابِرُ یا حافِظُ یا شَدیدُ یا غِیاثُ یا عاَّئِدُ یا قابِضُ یا مَنْ عَلا فَاسْتَعْلى فَكانَ بِالْمَنْظَرِ الاْعْلى یا مَنْ قَرُبَ فَدَنا وَ بَعُدَ فَنَاى وَ عَلِمَ السِّرَّ وَ اَخْفى یا مَنْ اِلَیْهِ التَّدْبیرُ وَ لَهُ الْمَقادیرُ وَ یا مَنِ الْعَسیرُ عَلَیْهِ سَهْلٌ یَسیرٌ یا مَنْ هُوَ عَلى ما یَشاَّءُ قَدیرٌ یا مُرْسِلَ الرِّیاحِ
یا فالِقَ الاِْصْباحِ یا باعِثَ الاْرْواحِ یاذَاالْجُودِ وَالسَّماحِ یا راَّدَّ ما قَدْ فاتَ یا ناشِرَ الاْمْواتِ یا جامِعَ الشَّتاتِ یا رازِقَ مَنْ یَشاَّءُ بِغَیْرِ حِسابٍ وَ یا فاعِلَ ما یَشاَّءُ كَیْفَ یَشاَّءُ وَ یا ذَاالْجَلالِ وَالاِْكْرامِ یا حَىُّ یا قَیُّومُ یا حَیّاً حینَ لا حَىَّ یا حَىُّ یا مُحْیِىَ الْمَوْتى یا حَىُّ لا اِلهَ اِلاّ اَنْتَ بَدیعُ السَّمواتِ وَالاَْرْضِ یا اِلهى وَ سَیِّدى صَلِّ عَلى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَارْحَمْ مُحَمَّداً وَ آلَ مُحَمَّدٍ وَ بارِكْ عَلى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ كَما صَلَّیْتَ وَ بارَكْتَ وَ رَحِمْتَ عَلى اِبْرهیمَ وَ آلِ اِبْرهیمَ اِنَّكَ حَمیدٌ مَجیدٌ وَارْحَمْ ذُلىّ وَ فاقَتى وَ فَقْرى وَانْفِرادى وَ وَحْدَتى وَ خُضُوعى بَیْنَ یَدَیْكَ وَاعْتِمادى عَلَیْكَ وَ تَضَرُّعى
اِلَیْكَ اَدْعُوكَ دُعاَّءَ الْخاضِعِ الذَّلیلِ الْخاشِعِ الْخاَّئِفِ الْمُشْفِقِ الْباَّئِسِ الْمَهینِ الْحَقیرِ الْجائِعِ الْفَقیرِ الْعاَّئِذِ الْمُسْتَجیرِ الْمُقِرِّ بِذَنْبِهِ الْمُسْتَغْفِرِ مِنْهُ الْمُسْتَكینِ لِرَبِّهِ دُعاَّءَ مَنْ اَسْلَمَتْهُ ثِقَتُهُ وَ رَفَضَتْهُ اَحِبَتُّهُ وَ عَظُمَتْ فَجیعَتُهُ دُعاَّءَ حَرِقٍ حَزینٍ ضَعیفٍ مَهینٍ باَّئِسٍ مُسْتَكینٍ بِكَ مُسْتَجیرٍ اَللّهُمَّ وَ اَسئَلُكَ بِاَنَّكَ مَلیكٌ وَ اَنَّكَ ما تَشاَّءُ مِنْ اَمْرٍ یَكُونُ وَ اَنَّكَ عَلى ما تَشاَّءُ قَدیرٌ
وَ اَسئَلُكَ بِحُرْمَةِ هذَا الشَّهْرِ الْحَرامِ وَالْبَیْتِ الْحَرامِ وَالْبَلَدِ الْحَرامِ وَالرُّكْنِ وَالْمَقامِ وَالْمَشاعِرِالْعِظامِ وَ بِحَقِّنَبِیِّكَ مُحَمَّدٍ عَلَیْهِ وَ آلِهِ السَّلامُ یا مَنْ وَهَبَ لاِدَمَ شَیْثاً وَ لاِِبْراهیمَ اِسْماعیلَ وَ اِسْحاقَ وَ یا مَنْ رَدَّ یُوسُفَ عَلى یَعْقوُبَ وَ یا مَنْ كَشَفَ بَعْدَ الْبَلاَّءِ ضُرَّ اَیُّوبَ یا راَّدَّ مُوسى عَلى اُمِّهِ وَ زاَّئِدَ الْخِضْرِ فى عِلْمِهِ
وَ یا مَنْ وَهَبَ لِداوُدَ سُلَیْمانَ وَ لِزَكَرِیّا یَحْیى وَ لِمَرْیَمَ عیسى یا حافِظَ بِنْتِ شُعَیْبٍ وَ یا كافِلَ وَلَدِ اُمِّ مُوسى اَسئَلُكَ اَنْ تُصَلِّىَ عَلى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَ اَنْ تَغْفِرَ لِى ذُنُوبى كُلَّها وَ تُجیرَنى مِنْ عَذابِكَ وَ تُوجِبَ لى رِضْوانَكَ وَ اَمانَكَ وَ اِحْسانَكَ وَ غُفْرانَكَ وَ جِنانَكَ وَ اَسئَلُكَ اَنْ تَفُكَّ عَنّى كُلَّ حَلْقَةٍ بَیْنى وَ بَیْنَ مَنْ یُؤْذینى وَ تَفْتَحَ لى كُلَّ بابٍ وَ تُلَیِّنَ لى كُلَّ صَعْبٍ وَ تُسَهِّلَ لى كُلَّ عَسَیرٍ وَ تُخْرِسَ عَنّى كُلَّ ناطِقٍ بِشَرٍّ وَ تَكُفَّ عَنّى كُلَّ باغٍ
وَ تَكْبِتَ عَنّى كُلَّ عَدُوٍّ لى وَ حاسِدٍ وَ تَمْنَعَ مِنّى كُلَّ ظالِمٍ وَ تَكْفِیَنى كُلَّ عاَّئِقٍ یَحُولُ بَیْنى وَ بَیْنَ حاجَتى وَ یُحاوِلُ اَنْ یُفَرِّقَ بَیْنى وَ بَیْنَ طاعَتِكَ وَ یُثَبِّطَنى عَنْ عِبادَتِكَ یا مَنْ اَلْجَمَ الْجِنَّ الْمُتَمَرِّدینَ وَ قَهَرَ عُتاةَ الشَّیاطینِ وَ اَذَلَّ رِقابَ الْمُتَجَبِّرینَ وَ رَدَّ كَیْدَ الْمُتَسَلِّطین عَنِ الْمُسْتَضْعَفینَ اَسئَلُكَ بِقُدْرَتِكَ عَلى ما تَشاَّءُ وَ تَسْهیلِكَ لِما تَشاَّءُ كَیْفَ تَشاَّءُ اَنْ تَجْعَلَ قَضاَّءَ حاجَتى فیما تَشاَّءُ.
इसके बाद सजदे में जाए और अपने दोनों गालों को ज़मीन पर रखे और कहे
اَللّهُمَّ لَكَ سَجَدْتُ وَ بِكَ امَنْتُ فَارْحَمْ ذُلّى وَفاقَتى وَاجْتِهادى وَ تَضَرُّعى وَ مَسْكَنَتى وَ فَقْرى اِلَیْكَ یا رَبِّ .
बेहतर यह है कि सजदे में आखों से आँसू जारी हो जाएं चाहे सूई की नोक के बराबर ही क्यों न हों और यह दुआ क़ुबूल होने की निशानी है।
नई टिप्पणी जोड़ें