हक़ अली के साथ है

हक़ अली के साथ है

पैगम्बरे इस्लाम (स.) की पत्नियां उम्मे सलमा और आइशा कहती हैं कि हमने पैगम्बरे इस्लाम (स.) से सुना है कि उन्होंने फ़रमाया “अलीयुन मअल हक़्क़ि व हक़्क़ु मअल अलीयिन लन यफ़तरिक़ा हत्ता यरदा अलय्यल हौज़”

अनुवाद – अली हक़ के साथ है और हक़ अली के साथ है। और यह कदापि एक दूसरे से जुदा नही हो सकते जब तक होज़े कौसर पर मेरे पास न पहुँच जाये।

यह हदीस अहले सुन्नत की बहुत सी प्रसिद्ध किताबों में पायी जाती है। अल्लामा अमीनी ने इन किताबों का ज़िक्र अलग़दीर की तीसरी जिल्द में किया है।[1]

अहले सुन्नत के प्रसिद्ध मुफ़स्सिर (क़ुरआन की व्याख्या करने वाले) फ़ख़रे राज़ी ने तफ़सीरे कबीर में सूर -ए- हम्द की तफ़सीर के अंतर्गत लिखा है कि “हज़रत अली अलैहिस्सलाम बिस्मिल्लाह को बुलन्द आवाज़ से पढ़ते थे। और यह बात तवातुर से साबित है कि जो दीन में अली का अनुसरण करता है वह हिदायत पा गया है। और इसकी दलील पैगम्बर (स.) की यह हदीस है कि आपने फ़रमाया “अल्लाहुम्मा अदरिल हक़्क़ा मअ अलीयिन हैसु दार।”  ऐ अल्लाह तू हक़ को उधर मोड़ दे जिधर अली मुड़े।[2]

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[1] इस हदीस को मुहम्मद बिन अबि बक्र व अबुज़र व अबु सईद ख़ुदरी व दूसरे लोगों ने पैगम्बर (स.) से नक़्ल किया है। (अल ग़दीर जिल्द 3)

[2] तफ़सीरे कबीर जिल्द 1/205

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