नौवे इमाम, इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का परिचय

नौवे इमाम, इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का परिचय

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की प्रमुख्य विशेषता यह थी कि उन्होंने अल्पायु में ही इमामत अर्थात मुसलमानों के ईश्वरीय मार्गदर्शन का दायित्व संभाला था।  बचपन में ही वे ज्ञान के उच्च चरण पर थे और नैतिक विशेषताओं में अपने काल में सर्वश्रेष्ठ थे।  वे जटिल वैज्ञानिक विषयों को बड़ी ही सरलता से समझाया करते थे।  पवित्र क़ुरआन के प्रख्यात व्याख्याकार तबरसी अपनी पुस्तक “एलामुल वरा” में लिखते हैं कि इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम बचपन में ही नैतिक गुणों, ज्ञान और तत्वदर्शिता में इस चरण तक पहुंच गए थे कि उनके काल के बड़े-बड़े विद्वान, उनके मुक़ाबले की क्षमता नहीं रखते थे।  अली बिन अस्बात कहते हैं कि एक दिन मैंने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को बहुत ही ध्यानपूर्वक देखा ताकि बाद में उनकी विशेषताओं को मिस्र में रहने वाले अपने मित्र को बताऊं। 

 

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को देखने के बाद मैंने मन ही मन सोचा कि यह कैसे संभव है कि इतनी अल्पायु में वे किस प्रकार जटिल वैज्ञानिक और धार्मिक प्रश्नों के उत्तर दे देते हैं और वैचारिक गुत्थियों को बड़ी सरलता से हल करते हैं।  अभी मैं यह सोच ही रहा था कि इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम मेरे निकट आए और बैठकर कहने लगे।  हे अली बिन अस्बात महान ईश्वर, जनता के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभालने वालों के लिए उसी प्रकार से तर्क प्रस्तुत करता है जिस प्रकार पैग़म्बरों की पैग़म्बरी के बारे में उसने तर्क प्रस्तुत किये हैं।  इसके पश्चात उन्होंने सूरए मरियम की १२वीं आयत पढ़ी जिसमें अल्पायु में हज़रत यहया की तत्वदर्शिता का उल्लेख किया गया है।  इस आयत में ईश्वर कहता है कि हां संभव है कि ईश्वर, किसी को बचपन में ही तत्वदर्शिता प्रदान करे और यह भी संभव है कि उसे चालीस वर्ष की आयु में दे।

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का ज्ञान इतना व्यापक एवं विस्तृत  था कि विभिन्न धर्मों के गुरू और विद्वान उनके अथाह ज्ञान पर आश्चर्य किया करते थे।  कभी-कभी लोग इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की परीक्षा के उद्देश्य से उनसे कठिन और जटिल वैज्ञानिक एवं धार्मिक विषयों के बारे में प्रश्न पूछा करते थे और इमाम बड़ी ही धैर्य तथा धीरज के साथ उनके समस्त प्रश्नों के उत्तर विस्तार से देते थे।  इतिहास में मिलता है कि एक बार हज की यात्रा पर जाने वाले ८० वरिष्ठ धर्मगुरूओं का एक दल पवित्र नगर मदीना में इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की सेवा में उपस्थित हुआ।  इस दल में विभिन्न क्षेत्रों के वरिष्ठ धर्मगुरू थे।  इन वरिष्ठ धर्मगुरूओं ने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम से विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक प्रश्न पूछे और उनके संतोषजनक उत्तर पाकर वे बहुत ही अचंभित हुए।

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का एक कथन है कि तीन विशेषताएं मनुष्य को ईश्वर से निकट करती हैं।  प्रथम यह कि पापों का अत्यधिक प्रायश्चित करना, दूसरे विनम्र रहना और लोगों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करना तथा तीसरे अत्यधिक दान-दक्षिणा करना।  लोगों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करना और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति, पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की विशेषता रही है।  वे लोग अन्य लोगों को भी इस प्रकार के कार्यों के लिए प्रेरित किया करते थे।
एक बार एक व्यक्ति ने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को पत्र लिखकर उनसे अपने लिए ईश्वर से प्रार्थना करने का अनुरोध किया।  अपने पत्र में उस व्यक्ति ने इमाम से इस बात के लिए मार्गदर्शन चाहा था कि वह अपने पिता के साथ किस प्रकार का व्यवहार करे जो अशिष्ट तथा पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का विरोधी था।  इस पत्र के उत्तर में इमाम ने लिखा कि मैं तुम्हारे लिए प्रार्थना करता हूं और तुमको सलाह देता हूं कि तुम अपने पिता के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करो तथा उनके दुखी होने के कारणों को उपलब्ध न कराओ।  पत्र के उत्तर में इमाम ने उसे ढांरस बंधाते हुए आगे लिखा था कि शिष्ट व्यवहार करो क्योंकि हर कठिनाई के पश्चात सरलता या आसानी आती है और ईश्वर से भय रखने वालों को सफलता अवश्य मिलती है।  उस व्यक्ति ने इमाम की सलाह को माना।  कुछ समय के पश्चात अपने पुत्र के स्नेहपूर्ण व्यवहार के कारण उसके पिता का व्यवहार उसके प्रति बदल गया और इमाम की सलाह के कारण वह पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की सूचि में आ गया।

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के अनुसार जनसेवा, मनुष्य पर ईश्वर की अनुकंपाओं का कारण बनती है।  इस संबन्ध में यदि कोई व्यक्ति आलस्य से काम ले तो संभव है कि वह ईश्वरी अनुकंपाओं से वंचित हो जाए।  यही कारण है कि इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति ईश्वर की अत्यधिक विभूतियों और अनुकंपाओं से लाभान्वित नहीं होता मगर यह कि उस व्यक्ति से लोगों की आवश्यकताएं बढ़ जाती हैं।  हर वह व्यक्ति जो इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयास न करे और इस मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को सहन न करे तो उसने ईश्वरीय अनुकंपाओं को स्वयं से दूर किया है।

पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के एक साथी, जो ईरान में रहते थे, इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैं कि हज करने के उद्देश्य से मैं मक्का गया हुआ था।  वहां पर मैं अपनी समस्या बताने तथा उनके व्यक्तित्व से लाभ उठाने के उद्देश्य से इमाम की सेवा में उपस्थित हुआ।  मैंने इमाम से कहा कि सरकार ने हमपर बहुत अधिक कर लगा दिया है जिसके अदा करने की क्षमता मुझमे नहीं है।  आपसे अनुरोध करता हूं कि आप सीस्तान प्रांत के गवर्नर को पत्र लिखकर उससे कहें कि वे लोगों के साथ विनम्रता के साथ पेश आए।  इसके उत्तर में इमाम ने कहा कि मैं उसको नहीं पहचानता।  मैंने कहा कि वह तो आपके चाहने वालों में से हैं इसलिए मुझको पूर्ण विश्वास है कि आपकी अनुशंसा अवश्य ही लाभदायक सिद्ध होगी।  इसपर इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने उस गवर्नर को इस प्रकार पत्र लिखा।  बिस्मिल्ला हिरर्रहमा निर्ररहीम।  तुमपर और ईश्वर के अच्छे दासों पर भी मेरा सलाम हो।  हे सीस्तान के राज्यपाल, सत्ता ईश्वर की एक अमानत है जिसे उसने तेरे अधिकार में दे दिया है ताकि तुम उसके दासों की सेवा कर सको।  सत्ता के माध्यम से तुम अपने धार्मिक बंधुओं की सहायता करो।  तुम्हारे बाद जो एकमात्र चीज़ बाक़ी रह जाएगी वह, वे अच्छाइयां हैं जो तुमने लोगों के साथ की हैं।  होशियार रहो कि प्रलय के दिन ईश्वर तुम्हारे समस्त कर्मों का लेखाजोखा पूछेगा और तुम्हारा कोई भी काम उससे छिपा हुआ नहीं रहेगा चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो।

व्यक्ति ने कहा कि मैं इमाम का पत्र लेकर अपनी मातृभूमि सीस्तान गया।  इमाम के पत्र की सूचना पहले ही सीस्तान के गवर्नर को मिल चुकी थी।  क्योंकि वह इमाम जवाद के चाहने वालों में से था इसलिए इमाम का पत्र लेने के लिए वह मेरे स्वागत को आया।  इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का पत्र पढ़ने के पश्चात उसने मेरे कामों की जांच की और उसके बाद से वह न केवल मेरे साथ बल्कि सभी लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करने लगा।

इमाम जवाद या इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम, कठिनाइयों में फंसे हुए लोगों के लिए शरणस्थल के रूप में थे।  वे इतना अधिक दान-दक्षिणा किया करते थे कि उन्हें “जवाद” की उपाधि दी गई जिसका अर्थ होता है बहुत अधिक दानी।  लोगों के बीच इमाम की लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि जब भी इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम का नाम लिया जाता था, तो हृदय उनसे भेंट करने के लिए व्याकुल हो जाते थे।  इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम अपने काल में, विशेषकर जब वे मदीना नगर में थे, लोगों की स्थिति पर विशेष दृष्टि रखते थे।  इमाम द्वारा लोगों की समस्याओं के समाधान के संदर्भ में मुहम्मद बिन सहले क़ुम्मी कहते हैं कि एक बार की बात है मैं मक्के में रह रहा था।  उस समय मेरी आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब हो गई।  एसे में मैंने मदीने जाकर इमाम से भेंट करने का निर्णय लिया ताकि वे मेरी सहायता करें।  मेरी आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब थी कि मैं अपने लिए कपड़े भी नहीं ख़रीद सकता था।  मैंने सोचा कि इमाम से कपड़े मांगूं ताकि मेरी आवश्कता की पूर्ति हो जाए और उनके कपड़ों को मैं उपहार के रूप में अपने पास रखूं।  जब मैं इमाम की सेवा में उपस्थित हुआ तो लज्जावश मैं इमाम से अपनी बात नहीं कह सका।  मैंने सोचा कि अपनी बात को पत्र के माध्यम से इमाम तक पहुंचाऊं।  इसी बीच मेरे मन में विचार आया कि मैं अपने पत्र को फाड़ दूं और उसे इमाम को न दूं।  इस प्रकार मैं ख़ाली हाथ वापस मक्के की यात्रा पर निकल पड़ा।  मैं अभी रास्ते में ही था कि किसी व्यक्ति ने मुझको पुकारा।  वह इमाम का सेवक था जिसके हाथ में एक थैला था।  वह मेरे निकट आया और उसने कहा कि यह थैला तुम्हारे लिए है जिसे इमाम ने तुम्हे भेजा है।  यह सुनकर मुझको बहुत आश्चर्य हुआ।  जब मैंने उस थैले को खोला तो उसमें वैसे ही कपड़े थे जिनकी मुझको आवश्यकता थी।  उसे देखकर मैंने ईश्वर का आभार व्यक्त किया और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों पर सलाम भेजा।  मैं स्वयं से कहने लगा कि वास्तव में स्पष्ट तथा अस्पष्ट दोनो प्रकार का ज्ञान पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के पास है।

इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के कथन तथा उनसे संबन्धित एतिहासिक प्रमाण एवं पत्र और इसी प्रकार से उनके मुक़ाबले में अब्बासी शासन की प्रतिक्रियाएं, इस वास्तविकता को दर्शाती हैं कि वे अब्बासी शासन के उस विरोधी राजनीतिक एवं वैचारिक संगठन के नेतृत्वकर्ता थे जो बड़ी ही सूक्ष्मता से इस्लामी देशों में सक्रिय था।  हालांकि सरकार विरोधी गतिविधयां गोपनीय ढंग से ही की जाती थीं।  बहुत ही कम आयु में इमाम को शहीद करवाना, इमाम के प्रति अब्बासी शासन के द्वेष और शत्रुता को दर्शाता है और साथ ही यह विषय जनता के बीच इमाम की लोकप्रियता का भी परिचायक है।  श्रोताओ, कार्यक्रम का अंत हम इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के स्वर्ण कथन से कर रहे हैं।  इमाम कहते हैं कि वे पापी जो पाप करने से नहीं रुकते मानो स्वयं को ईश्वरीय प्रकोप से सुरक्षित मानते हैं जबकि एसा सोचने वाले घाटे में हैं।

नई टिप्पणी जोड़ें