रजब महीने की महानता और आमाल
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
ग़ौरतलब है कि इस्लामी कैलेंडर में रजब, शाबान और रमज़ान के महीनों को बहुत अहमियत हासिल है और बहुत सी रिवायतों में इनकी श्रेष्ठता और फ़ज़ीलत के बारे में बयान हुई हैं। जैसा कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया है कि रजब का महीना ईश्वर के नज़दीक बहुत महत्वता रखता है, कोई भी महीना पवित्रता और फ़ज़ीलत में इसके बराबर नहीं और इस महीने में काफ़िरों से युद्ध करना हराम है। याद रखो रजब ख़ुदा का महीना है, शाबान मेरा महीना है और रमज़ान मेरी उम्मत का महीना है, रजब में एक रोज़ा रखने वाले को ख़ुदा की महान प्रसन्नता प्राप्त होती है, ईश्वर का क्रोध उससे दूर जो जाता है, और नर्क के द्वारों में से एक द्वार उसपर बंद हो जाता है।
इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:
रजब के महीने में रोज़ा रखने से नर्क की आग एक साल की दूरी तक दूर हो जाती है।
इसी प्रकार आप फ़रमाते हैं:
रजब स्वर्ग में एक नहर है जिसका पानी दूध से अधिक सफ़ेद और शहद से अधिक मीठा है और जो व्यक्ति इस महीने में एक दिन का रोज़ा रखे तो वह उस नहर से तृप्त होगा।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सला मे रिवायत है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः
रजब मेरी उम्मत के लिए इस्तेग़फ़ार (पापों की क्षमा याचना) का महीना है, इसलिए इस महीने में अधिक से अधिक पापों की क्षमा मांगो कि ईश्वर बहुत देने वाला और कृपालु है। रजब को असब भी कहा जाता है क्योंकि इस महीने में मेरी उम्मत पर ख़ुरा की रहमत बहुत अधिक बरसती है, इसलिए इस महीने में बहुत अधिक कहा करो
اَسْتَغْفِرُ اﷲ وَ اَسْئَلُہُ التَّوْبَۃَ
मैं ईश्वर से क्षमा चाहता हूँ और तौबा की तौफ़ीक़ मांगता हूँ
इबने बाबवैह से सही सनद के साथ सालिम से रिवायत है कि उन्होंने कहाः
मैं रजब के अन्तिम दिनों में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्ससलाम के पास पहुंचा और उन्होंने मेरी तरफ़ देखते हुए फ़रमायाः इस महीने में रोज़ा रखा है? मैंने कहा हे पैग़म्बर (स) के बेटे वल्लाह नहीं! तब आपने फ़रमायाः तुम इतने सवाब से दूर रहे हो जिसकी मात्रा ईश्वर के अतिरिक्त कोई नहीं जानता क्योंकि यह वह महीना है जिसकी फ़ज़ीलत सारे महीनों से अधिक और सम्मान बड़ा है और ईश्वर ने इसमें रोज़ा रखने वाले का सम्मान अपने ऊपर वाजिब किया है।
मैंने कहाः हे पैग़म्बर (स) के बेटे अगर मैं इसके बाक़ी बचें दिनों में रोज़ा रखूं तो क्या मुझे वह सवाब मिल जाएगा?
आपने फ़रमायाः हे सालिम जो व्यक्ति रजब के अंत में एक रोज़ा रखे तो अल्लाह उसको मौत की सख़्तियों और उसके बाद की भयानकता और क़ब्र के अज़ाब से सुरक्षित रखेगा, जो व्यक्ति रजब के अंत में दो रोज़े रखे वह पुले सिरात से आसानी से निकल जाएगा, और जो रजब के अंत में तीन रोज़े रखे उसे क़यामत में भयानक डर, तंगी और ख़ौफ़ से सुरक्षित रखा जाएगा और उसके नर्क की आग से आज़ादी दी जाएगी।
स्पष्ट रहे की रजब के महीने में रोज़ा रखने की फ़ज़ीलत बहुत अधिक है जैसा कि रिवायत है कि अगर कोई व्यक्ति रोज़ा न रख सकता हो तो अगर वह हर दिन सौ बार तस्बीह पढ़े तो उसको रोज़ा रखने का सवाब प्राप्त होगा।
سُبْحانَ الْاِلہِ الْجَلِیلِ سُبْحانَ مَنْ لاَ یَنْبَغِی التَّسْبِیحُ إلاَّ لَہُ سُبْحانَ الْاَعَزِّ الْاَکْرَمِ
पवित्र है वह माबूद जो बड़ी शान वाला है वह कि जिसके अतिरिक्त कोई तस्बीह के योग्य नहीं है पवित्र है वह जो बड़ा इज़्ज़त वाला और महानता वाला है।
سُبْحانَ مَنْ لَبِسَ الْعِزَّ وَھُوَ لَہُ ٲَھْلٌ ۔
पवित्र है वह जिसने इज़्ज़त के कपड़ों पहने हैं और वही उसके योग्य है।
रजब के महीने के संयुक्त आमाल
यह रजब के महीने के वह आमाल है जो संयुक्त है और किसी विशेष दिन के मख़सूस नहीं है। और यह आमाल निम्न लिखित हैं
1. रजब के महीन में हर दिन पढ़ी जाने वाली दुआ
रजब के पूरे महीने में यह दुआ पढ़ता रहे और रिवायत में है कि रजब के महीने में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने यह दुआ हजर के स्थान पर यह दुआ पढ़ी
"یَا مَنْ یَمْلِكُ حَوَائِجَ السَّائِلِینَ وَ یَعْلَمُ ضَمِیرَ الصَّامِتِینَ لِكُلِّ مَسْأَلَةٍ مِنْكَ سَمْعٌ حَاضِرٌ وَ جَوَابٌ عَتِیدٌ اللَّهُمَّ وَ مَوَاعِیدُكَ الصَّادِقَةُ وَ أَیَادِیكَ الْفَاضِلَةُ وَ رَحْمَتُكَ الْوَاسِعَةُ فَأَسْأَلُكَ أَنْ تُصَلِّىَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَ أَنْ تَقْضِىَ حَوَائِجِى لِلدُّنْیَا وَ الْآخِرَةِ إِنَّكَ عَلَى كُلِّ شَىْءٍ قَدِیرٌ ."
2. इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत यह दुआ।
रिवायत में है कि इमाम सादिक़ (अ) इस दुआ को रजब के महीने में पढ़ा करते थे।
«خَابَ الْوَافِدُونَ عَلَى غَیْرِكَ وَ خَسِرَ الْمُتَعَرِّضُونَ إِلا لَكَ وَ ضَاعَ الْمُلِمُّونَ إِلا بِكَ وَ أَجْدَبَ الْمُنْتَجِعُونَ إِلا مَنِ انْتَجَعَ فَضْلَكَ بَابُكَ مَفْتُوحٌ لِلرَّاغِبِینَ وَ خَیْرُكَ مَبْذُولٌ لِلطَّالِبِینَ وَ فَضْلُكَ مُبَاحٌ لِلسَّائِلِینَ وَ نَیْلُكَ مُتَاحٌ لِلْآمِلِینَ وَ رِزْقُكَ مَبْسُوطٌ لِمَنْ عَصَاكَ وَ حِلْمُكَ مُعْتَرِضٌ لِمَنْ نَاوَاكَ عَادَتُكَ الْإِحْسَانُ إِلَى الْمُسِیئِینَ وَ سَبِیلُكَ الْإِبْقَاءُ عَلَى الْمُعْتَدِینَ اللَّهُمَّ فَاهْدِنِى هُدَى الْمُهْتَدِینَ وَ ارْزُقْنِى اجْتِهَادَ الْمُجْتَهِدِینَ وَلا تَجْعَلْنِى مِنَ الْغَافِلِینَ الْمُبْعَدِینَ وَ اغْفِرْ لِى یَوْمَ الدِّینِ .»
3. शेख़ ने मिस्बाह में फ़रमाया है कि मोअल्लाह बिन ख़ुनैस ने इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः रजब के महीने में यह दुआ पढ़ा करो।
«اللَّهُمَّ إِنِّى أَسْأَلُكَ صَبْرَ الشَّاكِرِینَ لَكَ وَ عَمَلَ الْخَائِفِینَ مِنْكَ وَ یَقِینَ الْعَابِدِینَ لَكَ اللَّهُمَّ أَنْتَ الْعَلِىُّ الْعَظِیمُ وَ أَنَا عَبْدُكَ الْبَائِسُ الْفَقِیرُ أَنْتَ الْغَنِىُّ الْحَمِیدُ وَ أَنَا الْعَبْدُ الذَّلِیلُ اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ وَ امْنُنْ بِغِنَاكَ عَلَى فَقْرِى وَ بِحِلْمِكَ عَلَى جَهْلِى وَ بِقُوَّتِكَ عَلَى ضَعْفِى یَا قَوِىُّ یَا عَزِیزُ اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِهِ الْأَوْصِیَاءِ الْمَرْضِیِّینَ وَ اكْفِنِى مَا أَهَمَّنِى مِنْ أَمْرِ الدُّنْیَا وَ الْآخِرَةِ یَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِینَ.»
4. शेख़ फ़रमाते हैं कि इस दुआ को हर दिन पढ़ना मुस्तहेब है।
اَللّٰھُمَّ یَا ذَا الْمِنَنِ السَّابِغَۃِ وَالاَْلاَئِ الْوَازِعَۃِ وَالرَّحْمَۃِ الْوَاسِعَۃِ، وَالْقُدْرَۃِ الْجَامِعَۃِ وَالنِّعَمِ الْجَسِیمَۃِ وَالْمَواھِبِ الْعَظِیمَۃِ وَالْاَیادِی الْجَمِیلَۃِ َالْعَطایَا الْجَزِیلَۃِ یَا مَنْ لاَ یُنْعَتُ بِتَمْثِیلٍ وَلاَ یُمَثَّلُ بِنَظِیرٍ وَلاَ یُغْلَبُ بِظَھِیرٍ یَا مَنْ خَلَقَ فَرَزَقَ وَٲَلْھَمَ فَٲَنْطَقَ وَابْتَدَعَ فَشَرَعَ، وَعَلا فَارْتَفَعَ، وَقَدَّرَ فَٲَحْسَنَ، وَصَوَّرَ فَٲَتْقَنَ، وَاحْتَجَّ فَٲَبْلَغَ، وَٲَنْعَمَ فَٲَسْبَغَ، وَٲَعْطی فَٲَجْزَلَ، وَمَنَحَ فَٲَفْضَلَ یَا مَنْ سَمَا فِی الْعِزِّ فَفاتَ نَواظِرَ الْاَ بْصارِ، وَدَنا فِی اللُّطْفِ فَجازَ ھَواجِسَ الْاَفْکارِ یَا مَنْ تَوَحَّدَ بِالْمُلْکِ فَلا نِدَّ لَہُ فِی مَلَکُوتِ سُلْطَانِہِ وَتَفَرَّدَ بِالاَْلاَئِ وَالْکِبْرِیائِ فَلاَ ضِدَّ لَہُ فِی جَبَرُوتِ شَٲْنِہِ یَا مَنْ حارَتْ فِی کِبْرِیائِ ھَیْبَتِہِ دَقائِقُ لَطائِفِ الْاَوْہامِ، وَانْحَسَرَتْ دُونَ إدْراکِ عَظَمَتِہِ خَطَائِفُ ٲَبْصَارِ الْاَنامِ ۔ یَا مَنْ عَنَتِ الْوُجُوھُ لِھَیْبَتِہِ، وَخَضَعَتِ الرِّقابُ لِعَظَمَتِہِ، وَوَجِلَتِ الْقُلُوبُ مِنْ خِیفَتِہِ ٲَسْٲَلُکَ بِھَذِہِ الْمِدْحَۃِ الَّتِی لاَ تَنْبَغِی إلاَّ لَکَ وَبِما وَٲَیْتَ بِہِ عَلَی نَفْسِکَ لِداعِیکَ مِنَ الْمُؤْمِنِینَ وَبِما ضَمِنْتَ الْاِجابَۃَ فِیہِ عَلَی نَفْسِکَ لِلدَّاعِینَ یَا ٲَسْمَعَ السَّامِعِینَ، وَٲَبْصَرَ النَّاظِرِینَ، وَٲَسْرَعَ الْحَاسِبِینَ، یَا ذَا الْقُوَّۃِ الْمَتِینَ صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ خَاتَمِ النَّبِیِّینَ وَعَلَی ٲَھْلِ بَیْتِہِ وَاقْسِمْ لِی فِی شَھْرِنا ہذَا خَیْرَ مَا قَسَمْتَ وَاحْتِمْ لِی فِی قَضَائِکَ خَیْرَ مَا حَتَمْتَ، وَاخْتِمْ ِی بالسَّعادَۃِ فِیمَنْ خَتَمْتَ وَٲَحْیِنِی مَا ٲَحْیَیْتَنِی مَوْفُوراً وَٲمِتْنِی مَسْرُوراً وَمَغْفُوراً وَتَوَلَّ ٲَنْتَ نَجَاتِی مِنْ مُسائَلَۃِ البَرْزَخِ وَادْرٲْ عَنِّی ُنکَراً وَنَکِیراً، وَٲَرِ عَیْنِی مُبَشِّراً وَبَشِیراً، وَاجْعَلْ لِی إلَی رِضْوَانِکَ وَجِنانِکَ مَصِیراً وَعَیْشاً قَرِیراً، وَمُلْکاً کَبِیراً، وَصَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَآلِہِ کَثِیراً ۔
लेखक कहते हैं कि यह दुआ मस्जिदे सअसआ में भी पढ़ी जाती है जो मस्जिदे कूफ़ा के पास है।
5. शेख़ ने रिवायत की है कि पवित्र नाहिया में (इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम) से इमाम के वकील शेख़ कबीर अबू जाफ़र मोहम्मद बिन उस्मान बिन सईद के माध्यम से यह तौक़ीअ यानी लेख आया है।
रजब के महीने में यह दुआ हर दिन पढ़ा करो
بِسْمِ اﷲِ الرَّحْمنِ الرَّحِیمِ
اَللّٰھُمَّ إنِّی ٲَسْٲَلُکَ بِمَعانِی جَمِیعِ مَا یَدْعُوکَ بِہِ وُلاۃُ ٲَمْرِکَ الْمَٲْمُونُونَ عَلَی سِرِّکَ الْمُسْتَبْشِرُونَ بٲَمْرِکَ، الْواصِفُونَ لِقُدْرَتِکَ، الْمُعْلِنُونَ لِعَظَمَتِکَ، ٲَسْٲَلُکَ بِما نَطَقَ فِیھِمْ مِنْ مَشِیئَتِکَ فَجَعَلْتَھُمْ مَعادِنَ لِکَلِماتِکَ وَٲَرْکاناً لِتَوْحِیدِکَ وَآیاتِکَ وَمَقاماتِکَ الَّتِی لاَ تَعْطِیلَ لَھَا فِی کُلِّ مَکَانٍ یَعْرِفُکَ بِھَا مَنْ عَرَفَکَ، لاَ فَرْقَ بَیْنَکَ وَبَیْنَہا إلاَّ ٲَ نَّھُمْ عِبادُکَ وَخَلْقُکَ، فَتْقُہا وَرَتْقُہا بِیَدِکَ، بَدْؤُہا مِنْکَ وَعَوْدُہا إلَیْکَ، ٲَعْضادٌ وَٲَشْہادٌ وَمُناۃٌ وَٲَذْوَادٌ وَحَفَظَۃٌ وَرُوَّادٌ، فَبِھِمْ مَلاََْتَ سَمَائَکَ وَٲَرْضَکَ حَتَّی ظَھَرَ ٲَنْ لاَ إلہَ إلاَّ ٲَ نْتَ، فَبِذلِکَ ٲَسْٲَ لُکَ وَبِمَواقِعِ الْعِزِّ مِنْ رَحْمَتِکَ وَبِمَقاماتِکَ وَعَلامَاتِکَ، ٲَنْ تُصَلِّیَ عَلَی مُحَمَّدٍ وَآلِہِ وَٲَنْ تَزِیدَنِی إیماناً وَتَثْبِیتاً یَا بَاطِناً فِی ظُھُورِہِ وَظَاھِراً فِی بُطُونِہِ وَمَکْنُونِہِ یَا مُفَرِّقاً بَیْنَ النُّورِ وَالدَّیجُورِ، یَا مَوْصُوفاً بِغَیْرِ کُنْہٍ، وَمَعْرُوفاً بِغَیْرِ شِبْہٍ، حَادَّ کُلِّ مَحْدُودٍ، وَشَاھِدَ کُلِّ مَشْھُودٍ وَمُوجِدَ کُلِّ مَوْجُودٍ وَمُحْصِیَ کُلِّ مَعْدُودٍ وَفاقِدَ کُلِّ مَفْقُودٍ لَیْسَ دُونَکَ مِنْ مَعْبُودٍ، ٲَھْلَ الْکِبْرِیائِ وَالْجُودِ، یَا مَنْ لاَ یُکَیَّفُ بِکَیْفٍ، وَلاَ یُؤَیَّنُ بِٲَیْنٍ، یَا مُحْتَجِباً عَنْ کُلِّ عَیْنٍ، یَا دَیْمُومُ یَا قَیُّومُ وَعالِمَ کُلِّ مَعْلُومٍ، صَلِّ عَلَی مُحَمَّدٍ وَآلِہِ وَعَلَی عِبادِکَ الْمُنْتَجَبِینَ وَبَشَرِکَ الْمُحْتَجِبِینَ، وَمَلائِکَتِکَ الْمُقَرَّبِینَ وَالْبُھْمِ الصَّافِّینَ الْحَافِّینَ وَبارِکْ لَنا فِی شَھْرِنا ہذَا الْمُرَجَّبِ الْمُکَرَّمِ وَمَا بَعْدَھُ مِنَ الْاَشْھُرِ الْحُرُمِ وَٲَسْبِغْ عَلَیْنا فِیہِ النِّعَمَ وَٲَجْزِلْ لَنا فِیہِ الْقِسَمَ وَٲَبْرِرْ لَنا فِیہِ الْقَسَمَ بِاسْمِکَ الْاَعْظَمِ الْاَعْظَمِ الْاَجَلِّ الْاَکْرَمِ، الَّذِی وَضَعْتَہُ عَلَی النَّھَارِ فَٲَضائَ وَعَلَی اللَّیْلِ فَٲَظْلَمَ وَاغْفِرْ لَنا مَا تَعْلَمُ مِنَّا وَمَا لاَ نَعْلَمُ، َاعْصِمْنا مِنَ الذُّنُوبِ خَیْرَ الْعِصَمِ، وَاکْفِنا کَوافِیَ قَدَرِکَ، وَامْنُنْ عَلَیْنا بِحُسْنِ نَظَرِکَ، وَلاَ تَکِلْنا إلَی غَیْرِکَ، وَلاَ تَمْنَعْنا مِنْ خَیْرِکَ، وَبَارِکْ لَنَا فِیما کَتَبْتَہُ لَنَا مِنْ ٲَعْمارِنا، وَٲَصْلِحْ لَنا خَبِیئَۃَ ٲَسْرَارِنا وَٲَعْطِنَا مِنْکَ الْاَمانَ، وَاسْتَعْمِلْنا بِحُسْنِ الْاِیمَانِ، وَبَلِّغْنَا شَھْرَ الصِّیامِ، وَمَا بَعْدَھُ مِنَ الْاَیَّامِ وَالْاَعْوامِ، یَا ذَا الْجَلاَلِ وَالْاِکْرامِ ۔
ग़ौर तलब है कि इन दुआओं के अतिरिक्त और भी दुआएं हैं जो इस महीने में पढ़ने के लिए किताबों में आई हैं जिसके लिए मफ़ातीहुल जनान में आमाले माहे रजब के भाग को देखा जा सकता है
6. रसूले ख़ुदा (स) से रिवायत है कि जो भी रजब के महीने में सौ बार कहे
أَسْتَغْفِرُ اللَّهَ الَّذِى لا إِلَهَ إِلا هُوَ وَحْدَهُ لا شَرِیكَ لَهُ وَ أَتُوبُ إِلَیْهِ
और उसके सदक़े से समाप्त करे (सदक़ा दे) तो अल्लाह उसपर रहमत करता है और पापों को क्षमा कर देता है और जो चार सौ बार कहे उसके लिए शहीद का सवाब लिखा जाता है।
7. पैग़म्बरे इस्लाम (स) से रिवायत है कि जो रजब के महीने में एक हज़ार बार कहे
"لا إِلَهَ إِلا اللهُ"
अल्लाह उसके लिए एक लाख नेकियां लिखता है और उसके लिए स्वर्ग में सौ शहर बनाता है।
8. इस महीने में हज़ार बार कहा जाए
: أَسْتَغْفِرُ اللهَ ذَا الْجَلالِ وَ الْإِكْرَامِ مِنْ جَمِیعِ الذُّنُوبِ وَ الْآثَامِ
9. सैय्यद इबने ताऊस ने इक़बाल में पैग़म्बरे इस्लाम (स) से सूरा क़ुल हुवल्लाहो अहद पढ़ने की बहुत फ़ज़ीलत बयान की है कि इस महीने में दस हज़ार बार या हज़ार बार या सौ बार यह सूरा पढ़े, इसी प्रकार रिवायत है कि जो भी रजब के महीने में शुक्रवार के दिन सौ बार यह सूरा बढ़े क़यामत के दिन उसके लिए एक नूर होगा जो स्वर्ग में उसके ले जाएगा।
10. इस महीने के तीन दिन जो गुरुवार शुक्रवार और रविवार हैं रोज़ा रखा जाए. क्योंकि रिवायत में हैं कि जो भी हराम महीनों में इन तीन रोज़ों को रखे अल्लाह उसके लिए नौ सौ साल की इबादत का सवाब लिखता है।
रजब की पहली रात और दिन के विशेष आमाल
पहली रात के आमाल
यह बहुत पवित्र रात है और इसके लिए कुछ आमाल बताए गए हैं
1. जब इस महीने का चाँद दिखाई दे तो कहे
اللَّهُمَّ أَهِلَّهُ عَلَیْنَا بِالْأَمْنِ وَ الْإِیمَانِ وَ السَّلامَةِ وَ الْإِسْلامِ رَبِّى وَ رَبُّكَ اللهُ عَزَّ وَ جَلَّ.
और पैग़म्बरे इस्लाम (स) से रिवायत है कि जब रजब का चाँद दिखाई दे तो कहे
اللَّهُمَّ بَارِكْ لَنَا فِى رَجَبٍ وَ شَعْبَانَ وَ بَلِّغْنَا شَهْرَ رَمَضَانَ وَ أَعِنَّا عَلَى الصِّیَامِ وَ الْقِیَامِ وَ حِفْظِ اللِّسَانِ وَ غَضِّ الْبَصَرِ وَلا تَجْعَلْ حَظَّنَا مِنْهُ الْجُوعَ وَ الْعَطَشَ
2. ग़ुस्ल
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमायाः जो भी रजब के महीने को पाए और उसके आरम्भ बीच और अन्त में ग़ुस्ल करे वह अपने पापों से पवित्र हो जाता है इस प्रकार कि जैसे अपनी माँ के पेट से पैदा हुआ हो।
3. इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत
4. मग़रिब की नमाज़ के बाद बीस रकअत (दो दो रकअत करके दस नमाज़े) पढ़े ताकि वह ख़ुद उसका परिवार और औलाद सुरक्षित रहें और क़ब्र के अज़ाब से दूर रहें।
5. इशा की नमाज़ के बाद इस तरह से दो रकअत नमाज़ पढञे
पहली रकअत में अलहम्द और अलम नशरह एक बार और क़ुलहुवल्लाह तीन बार पढ़े और दूसरी रकअत में अलहम्द और अलम नशरह और क़ुलहुवल्लाह और क़ुलअऊज़ो बेरब्बिन नास और फ़लक़ पढ़े और फ़िर सलाम के बाद तीस बार कहे लाइलाहा इल्लललाह और तीस बार सलवात पढ़े
अगर ऐसा करे तो उसके गुनाह इस प्रकार क्षमा हो जाएंगे कि वह अपनी माँ के पेट से आज ही पैदा हुआ हो
पहली रजब के दिन के आमाल
1. रोज़ा
रिवायत में है कि हज़रत नूह (अ) इसी दिन कश्ती में सवार हुए और जो उनके साथ थे उनको रोज़ा रखने का आदेश दिया कि जो भी इस दिन रोज़ा रखेगा उससे नर्क की आग एक साल की दूरी भर दूर जो जाएगी।
2. ग़ुस्ल
3. इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से रिवायत है कि जो भी पहली रजब के दिन इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत करे अल्लाह उसको माफ़ कर देता है।
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