मासूमीन की विलादत और शहादत पर मीलाद और मजलिस करने के फ़ायदे
मासूमीन की विलादत और शहादत पर मीलाद और मजलिस करने के फ़ायदे
जश्न व महफ़िल मुनअक़िद करने और औलिया ए इलाही की याद मनाने में बहुत सी बरकतें और फ़वायद हैं जिनमें से चंद चीज़ों की तरफ़ इशारा किया जाता है:
इस तरह के जश्न व महफ़िल में मोमिनीन अपने दीन व मज़हब की बुनियाद रखने वालों से दोबारा अहद व पैमान बाँधते हैं कि उनकी राह को आगे बढ़ायेगें और उनके अंदर यह अहसास पैदा होता है कि हमें अपने अज़ीम इमाम और मुक़तदा की राह पर कदम बढ़ाना चाहिये। उनसे मुहब्बत के इज़हार और बातिनी राब्ते के ज़रिये उन हज़रात के मअनवी फ़ैज़ और बरकतों से बहरा मंद होना। शिया उन महफ़िलों के ज़रिये दर हक़ीक़त अपने दुश्मनों को पैग़ाम देते है
कि हमारे मौला व रहबर अली (अ) हैं। वह ज़ुल्मे सतीज़ और ज़ुल्म का मुक़ाबला करने वाले थे, वह अहकामे इलाही को नाफ़िज़ करने में किसी की रिआयत नही करते थे वग़ैरह वग़ैरह लिहाज़ा हम भी उसी रास्ते पर चलते हैं और उन्ही की पैरवी करते हैं।
हर साल उस रोज़ पैग़म्बरे अकरम (स) और औलिया ए इलाही को याद करके उनकी निस्बत मुहब्बत में इज़ाफ़ा होता है। इन महफ़िलों में उन हज़रात के बाज़ फ़ज़ायल व कमालात की तौज़ीह व तशरीह की जाती है और मोमिनीन उनकी पैरवी करते हुए ख़ुदा वंदे आलम से नज़दीक होते हैं। ख़ुशी व मुसर्रत के इज़हार से पैग़म्बरे अकरम (स) और औलिया ए इलाही के ईमान का इज़हार करके उसको मुसतहकम करते हैं। जश्न व महफ़िल के आख़िर में मिठाई या खाना खिलाने से सवाबे इतआम से बहरा मंद होते हैं और बाज़ ग़रीबों को इस तरह के जश्न से माद्दी फ़ायदा होता है। इस तरह की महफ़िलों में ख़ुदा की याद ज़िन्दा होती है
और क़ुरआनी आयात की तिलावत होती है। ऐसे मवाक़े पर मोमिनीन पैग़म्बरे अकरम (स) पर बहुत ज़्यादा दुरुद व सलाम भेजते हैं। ऐसे मवाक़े पर लोगों को ख़ुदा और उसके अहकाम की तरफ़ दावत देने का बेहतरीन मौक़ा होता है।
नई टिप्पणी जोड़ें