धार्मिक रूप से अप्रिशिक्षित लोग आध्यात्म कैसे प्राप्त करें
धार्मिक रूप से अप्रिशिक्षित लोग आध्यात्म कैसे प्राप्त करें
अध्यात्मिक स्वास्थ्य वह चीज़ है जिसके महत्त्व को हालिया दशक में विश्ववासियों ने स्वीकार कर लिया है और इसे स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण मापदंड बताया है। इस्लाम धर्म ने आरंभ से ही सभी लोगों को ईश्वर से निकट करने और अध्यात्म व परिपूर्णता तक पहुंचाने का निमंत्रण दिया और इसे सफलता और शांति की प्राप्ति का मार्ग बताया है। इस्लाम की उच्च शिक्षाएं लोगों को ईश्वर की उपासना का निमंत्रण देती हैं कि यदि मनुष्य स्वयं को ईश्वर की शरण में दे दे और अपने समस्त मामलों में ईश्वर पर भरोसा करे, उसके मन को शांति मिलेगी और परिणाम में अधिक स्वास्थ्य से संपन्न होगा। धर्म की इस विचारधारा से परेशानियां, कठिनाइयां और बीमारियां मनुष्य को जीवन से निराश नहीं करती बल्कि ईश्वर पर उसके विश्वास को बढ़ाकर जीवन को सरल बना देती हैं। मोमिन और धर्मपरायण लोग पवित्र क़ुरआन की इस बात पर गूढ़ विश्वास रखते हैं कि जान लो कि कष्ट के साथ सरलता भी है, निसंदेह कठिनाई के साथ आसानी भी है।
आस्था के इस चरण में पहुंचना ईश्वर पर दृढ़ ईमान और विश्वास पर निर्भर है। मनुष्य पक्के ईमान के साथ ही ईश्वर के प्रेम व अध्यात्म की वादी की सैर कर सकता है। अध्यात्म भी वही पक्का व सुदृढ़ संपर्क है जो अनदेखे संसार से संपर्क स्थापित करता है और क्षणिक आनंदों और भौतिक सुख सुविधाओं को छोड़ने से प्राप्त होता है। निसंदेह धर्म वास्तविक शांति और अध्यात्मक तक पहुंचने का सबसे बेहतरीन और विश्वासनीय मार्ग है।
आजकल मानसिक दबाव एक सभ्य बीमारी का नाम ग्रहण कर चुका है और इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए इस्लाम धर्म में पवित्र क़ुरआन ने बहुत ही अच्छे नुस्खे बयान किए हैं। इस्लाम धर्म का ढांचा, एक ऐसा ढांचा है जो जीवन को अर्थ प्रदान करता है और अध्यात्म और शिखर पर पहुंचने के लिए व्यक्ति के इस्लामी जीवन शैली का मार्गदर्शन करता है। इस्लाम धर्म के उदय से आज तक इस धर्म ने विश्व के विभिन्न क्षेत्रों से अनेक जातियों से संबंध रखने वाले लाखों लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है और उसकी जीवन शैली को भौतिक से अध्यात्म की ओर परिवर्तित करके अनन्य ईश्वर की उपासना उसे उपहार स्वरूप प्रदान की है।
अमरीका के प्रसिद्ध गायक Chauncey Hawkins ने जो लून के नाम से प्रसिद्ध हैं, इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद अपना नाम अमीर जुनैदा मुहद्दिस रख लिया। वह इस संबंध में कहते हैं कि मैं गाना गाने के कारण अमरीका में प्रसिद्ध हुआ और सर्वेक्षण के अनुसार टाप टेन गायकों में मेरी गणना होती थी और यह ख्याति दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी किन्तु यह ख्याति और मेरी आर्थिक स्थिति मुझे भीतरी शांति प्रदान न कर सकी किन्तु जैसे ही मैं इमारात की राजधानी अबू ज़बी में इस्लामी संस्कृति से परिचित हुआ मेरा सब कुछ बदल गया। मैंने उन लोगों को देखा कि जो आज़ान की आवाज़ पर मस्जिद जाते और नमाज़ पढ़ते। मैंने उनके भीतर अच्छा व्यवहार व आचरण देखा, तभी मैंने फ़ैसला ले लिया कि मैं उस इस्लाम धर्म के बारे में जिसने लोगों की राष्ट्रीयता और जातपात व समस्त विशिष्टताओं को समाप्त कर दिया, अध्ययन करूंगा। वह आगे कहते हैं कि मैंने व्यापक व विस्तृत अध्ययन के बाद इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया और गाना बजाने का काम जो सत्तरह वर्षों से मैं करता चला आ रहा था, छोड़ दिया। अब मैं एक अद्भुत प्रकार की शांति का आभास कर रहा हूं।
धर्म को केन्द्र मानना, ईश्वर तक पहुंचने और अध्यात्म को बढ़ाने के बेहतरीन मार्ग हैं। यदि इस प्रकार का व्यक्ति बचपने से ही धर्म के मार्ग पर न हो और वह धार्मिक व शिष्टाचारिक प्रशिक्षण से दूर हो तो उसे ईश्वर की विभूतियों से कभी भी निराश नहीं होना चाहिए क्योंकि दयालु ईश्वर के क्षमा और प्रायश्चित का द्वार सदैव के लिए खुला रहता है। ईश्वर ने उन लोगों पर क्षमा के द्वार खोल दिए हैं जो अपने किए पर पछताते हैं ताकि वह उससे प्रविष्ट हों और ईश्वर की महाकृपा से लाभान्वित हों।
प्रायश्चित, पाप करके पछतावे और उसकी स्वीकारोक्ति का नाम है। मनुष्य अपने पापों को स्वीकार और ईश्वर से अपने पापों की क्षमा मांग कर तथा पापों को छोड़ने के दृढ़ संकल्प से पापों से दूर रह सकता है। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम प्रायश्चित के बारे में कहते हैं कि ईश्वर की सौगंध, बंदा पाप पर आग्रह करके पाप से नहीं निकल सकता और बंदा कभी भी पाप से नहीं निकल सकता किन्तु वह ईश्वर के निकट अपने पापों को स्वीकार करे। अलबत्ता इस्लाम की दृष्टि में ईश्वर के निकट ही पापों की स्वीकारोक्ति वैध है और किसी को भी इस बात का अधिकार नहीं है कि वह अन्य लोगों के सामने अपने पापों को बयान करे और अपनी मानवीय प्रतिष्ठा को कम कर दे।
पापियों द्वारा पाप की स्वीकारोक्ति और प्रायश्चित, ईश्वरीय मार्ग का आरंभ है। उसके बाद से उस व्यक्ति में स्वयं की पहचान बढ़ जाती है और चिंतन मनन द्वारा अपने लक्ष्य और मार्ग को पा लेता है। ऐसे व्यक्ति को अपना मार्ग जारी रखने और श्रेष्ठता व परिपूर्णता तक पहुंचने के लिए आदर्श प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।
मनोचिकित्सकों का भी यही मानना है कि मनुष्य की अध्यात्मिक,धार्मिक व शिष्टाचारिक प्रगति का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्व यही है। इसी परिधि में इस्लाम धर्म ने लोगों के सामने विशुद्ध आदर्श पेश किये हैं। यह लोग पैग़म्बरे इस्लाम सलल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम और उनके परिजनों में बारह इमाम हैं जिन्होंने अपने व्यवहार और तथा करनी व कथनी से लोगों के सामने बेहतरीन आदर्श जीवन शैली पेश किया। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के स्वर्ण कथन और प्रकाशमयी बातें, जीवन के अंधकार में लोगों के उच्च स्थान पर पहुंचने का उज्जवल दीपक हैं।
डायना ट्रान्को एक ईसाई महिला है जिन्होंने इस्लाम स्वीकार करने के बाद अपना नाम हाजर हुसैनी रखा। वह अपनी सफलताओं को इस्लाम धर्म के महान आदर्शों का ऋणि मानती हैं और वर्तमान ईसाई धर्म को ख़ाली फ़्रेम की संज्ञा देती हैं। उनका मानना है कि इस्लाम धर्म ने जीवन के समस्त आयामों के लिए एक रोड मैप पेश किया है और इसने लोगों को सीधे मार्ग की ओर मार्गदर्शन किया है। वह कहती हैं कि मैंने इस्लाम स्वीकार करके अंधकार से प्रकाश की ओर पलायन किया है।
वह इस्लाम धर्म स्वीकार करने का महत्त्वपूर्ण कारण वह आदर्श और मार्ग को बताती हैं जो इस्लाम धर्म में पाया जाता है और यह ईसाई धर्म में नहीं है। वह कहती हैं कि वह विषय जिनका समाधान ईसाई धर्म ने नहीं किया इस्लाम ने हल कर दिया है।
कल की डायना और आज की हाजर जो एक शीया मुसलमान हो चुकी हैं, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बारे में अपनी भावनों को एक आदर्श और बेहतरीन आचरण के रूप में बयान करती हैं। सत्य बात यह है कि मैं इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बारे में अपनी भावनाओं को बयान नहीं कर सकती, क्या आप वास्तविकताओं के चरम को बयान कर सकते हैं? इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम वास्तविकता का चरम हैं।
उन महापुरुषों के जीवन से जिन्होंने अध्यात्म और शिष्टाचार में शिखर को प्राप्त कर लिया, आदर्श का पाठ सीखना सरल नहीं है बल्कि व्यक्ति इस मार्ग में अपनी संसार मोही आत्मा से संघर्ष करे और उसका प्रशिक्षण करे। दूसरे शब्दों में मनुष्य को अपने दिल को ईश्वर की ओर मोड़ना चाहिए। अलबत्ता प्रायश्चित करने वाले व्यक्ति के लिए अपने हृदय और अपने रुझहानों का संचालन कठिन काम है और इसके लिए मज़बूत इरादे की आवश्यकता है। उसे बुराई का आदेश देने वाली अपनी आत्मा से संघर्ष करना चाहिए और अपनी बुराई पर पछताने वाली आत्मा को मज़बूत करना चाहिए ताकि ग़लत काम करते समय वह उसे सचेत करे। इस स्थान पर विचारों और बुद्धि के प्रशिक्षण के महत्त्व का पता चलता है। बुद्धि एक कारख़ाने की भांति है जिसमें विभिन्न पदार्थ लगाकर अच्छे पदार्थों का उत्पादन किया जा सकता है। अर्थात यदि आरंभिक वैचारिक पदार्थ भौतिकता का होगा तो उसका उत्पादन भी भौतिक होगा और यदि आरंभिक पदार्थ अध्यात्मिक होगा तो उत्पादन भी अध्यात्मिक होगा। मनुष्य का अध्यात्मिक आयाम जो ईश्वरीय प्रकाश की हल्की सी झलक होती है, सामने आता है। उसके बाद इस्लाम धर्म के अधिक अध्ययन और धर्म की बेहतरनी पहचान से मनुष्य को अधिक अध्यात्म का सौभाग्य प्राप्त होता है।
इस्लामी परिज्ञान व दर्शनशास्त्र के ईरानी प्रोफ़ेसर डाक्टर अली मुहम्मद साबेरी का कहना है कि स्वस्थ्य मनुष्य श्रेष्ठ आत्मिक व अध्यात्मिक आहार का प्रयास करते हैं और स्वाभाविक रूप से ज़मीन की सभा को आकाश की प्रकाशमयी सभा में परिवर्तित करते हैं।
अध्यात्मिक कमियों को पूरा करने के मार्गों में से एक स्नेहपूर्ण और ईश्वर को पसंद आने वाले व्यवहारों का अधिक से अधिक अभ्यास करना है। अच्छी आदतों और अच्छे व्यवहार सीख कर मनुष्य एक आदर्श पुरुष बन सकता है और व्यवहार उसके भीतर की बुराईयों की भरपाई कर देते हैं। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के सूरए अस्र की एक से लेकर तीसरी आयत में आया है कि समय की सौगंध मनुष्य घाटे में है सिवाय उन लोगों के जो ईश्वर पर ईमान लाये और नेक काम किए और एक दूसरे को धैर्य और सत्य की अनुशंसा करते हैं।
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