जवानों को इमाम अली की वसीयतें अन्तिम भाग

जवानों को इमाम अली की वसीयतें अन्तिम भाग

5. आत्मा की आवाज़

इमाम (अ) अपने बेटे से फ़रमाते हैं:

 ِِ يابنِِي اجعل نفسک مِِيزانا فِِيما بِِينک و بِِين غِِيرک

बेटा, ख़ुद को अपने और दूसरों के बीच फ़ैसले का मेयार क़रार दो, अगर समाज में सब लोग ज़मीर की पुकार के साथ एक दूसरे से रिश्ता रखें, एक दूसरे के हक़, फ़ायदे और हैसियत का आदर करें तो समाज के संबंधों में दृढ़ता, मज़बूती, शाँति और अम्न पैदा हो जायेगा। एक हदीस में आया है कि एक शख़्स पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पास आया और कहा ऐ अल्लाह के नबी मैं अपनी तमाम शरई ज़िम्मेदारियों को पूरा करता हूँ लेकिन एक गुनाह है जो मुझ से छूट नही पा रहा है वह नाज़ायज़ ताअल्लुक़ है। यह बात सुन कर सारे सहाबी बहुत ग़ुस्से में आ गये लेकिन आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया आप लोग इसको कुछ न कहें मैं ख़ुद इससे बात करता हूँ उसके बाद आपने फ़रमाया:ऐ शख़्स क्या तेरी माँ बहन या कोई इज़्ज़त व सम्मान है या नही? उसने कहा हाँ या रसूलल्लाह, आपने फ़रमाया तू यह चाहता है कि लोग भी तेरे घर की इज़्ज़त से ऐसे ही ताअल्लुक़ रखें? उसने कहा हरगिज़ नही तो आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया तो तू ख़ुद में कैसे हिम्मत पैदा करता है कि इस तरह का पाप करे? उस शख़्स ने सर झुका लिया और कहा ऐ अल्लाह के नबी आज के बाद मैं वादा करता हूँ कि यह पाप नही करूगा।19

इमाम सज्जाद (अ) फ़रमाते हैं लोगों का यह हक़ है कि उनको परेशान करने और तकलीफ़ पहुचाने से बचो और उनके लिये वही पसंद करों जो अपने लिये पसंद करते हो और वही जो अपने लिये नापसंद करते हो उनके लिये भी नापसंद करो। क़ुरआने हकीम में जो नफ़्से लव्वामा की सौगंध ख़ाई गई है यह वही इंसानी ज़मीर की आवाज़ है इरशाद होता है:

لا اقمس بِِيوم القِِيامه و لا بالنفس اللوامه (القِِيامه ۱-۲ )

क़सम है क़यामत के दिन की और क़सम है उस नफ़्स की जो इंसान को गुनाह और पाप करने पर सख़्ती से रोकता और बुरा भला कहता है।

6. अनुभव प्राप्त करना

इमाम अली (अ) इसी वसीयत नामे में अपने बेटे इमाम हसन (अ) से फ़रमाते हैं:

اعرض علِِيه اخبار الماضِِين و ذکره بما اصاب من کان قبلک من الاولِِين و سرفِِي دِِ ياربم و آثار بم فانظر فِِيما فعلوا و عما انتقلوا وِِ اين حلوا و نزلو

अपने दिल के सामने पिछले लोगो की ख़बरें और उनके हालात को रखो जो कुछ उन पर तुम से पहले गुज़र चुका है उसको याद करो उनकी क़ब्रों और वीरानों, खंडरों को देखो कि उन्होने क्या किया। वह लोग कहाँ से आये और कहाँ चले गये और कहाँ हैं।

एक जवान को चाहिये कि वह इतिहास को पढ़े और अपने लिये उनके अनुभवों को जमा करे क्योकि

1. जवान क्योकि कम उम्र होता है उसका ज़हन कच्चा और अनुभव से ख़ाली होता है उसने ज़माने के सर्द व गर्म नही देखे होते और ज़िन्दगी की मुश्किलों का सामना नही किया होता। यही कारण है कि किसी समय एक जवान का दिली सुकून तबाह हो जाता है और वह मायूसी या उसके बर ख़िलाफ़ तबीयत की सख़्ती और तेज़ी की शिकार हो जाता है।

2. ख़्यालात और वहम जवानी के ज़माने की विशेषताएँ हैं जो कभी तो जवान को वास्तविकता से भी दूर कर देते हैं जबकि अनुभव इंसान के वहम के पर्दों का फाड़ वास्तविक ज़िन्दगी में ले आता है। इमाम (अ) फ़रमाते हैं:

التجارب علم مستفاد ۲۰

इँसानी अनुभव एक फ़ायदेमंद ज्ञान होता है।

3. बावजूद इसके कि जवान की इल्मी सलाहियत और क़ाबिलियत इसी तरह विभिन्न फ़न और महारतें सीखने की सलाहियत बहुत ज़्यादा होती है लेकिन ज़िन्दगी का अनुभव न होने के कारण बिना सोचे फ़ैसले करता है और यह चीज़ उसको दूसरों के जाल में फाँस देती है। इमाम फ़रमाते हैं:

من قلت تجرِِ يته خدع۲۱

 जिसके पास अनुभव कम हो वह धोखा खा जाता है। इमाम (अ) फ़रमाते हैं: अनुभवी इंसानों के साथ रहो क्योकि उन्होने अपनी क़ीमती चीज़ अनुभव को अपनी सबसे क़ीमती चीज़ यानी उम्र को दे कर हासिल किया है जबकि तुम इस क़ीमती चीज़ को बहुत कम क़ीमत पर आसानी से हासिल कर सकते हो।22

अनुभव प्राप्त करने का एक बहुत बड़ ज़रिया पिछली क़ौमों के इतिहास का अध्धयन करना है। इतिहास, भूतकाल और वर्तमान काल के बीच में संबंध स्थापित करता है बल्कि भविष्यकाल के लिये रास्ते के दिये की तरह होता है। इमाम अली (अ) फ़रमाते हैं पिछली सदियों के इतिहास में तुम्हारे लिये बहुत बड़ी बड़ी इबरत पाई जाती है।23

7. समाजी रहन सहन और दोस्ती

इसमें शक नही है कि दोस्ती के बाक़ी रहने के लिये उसकी सीमा और समाजी रहन सहन का ख़्याल रखा जाये। दोस्त बनाना आसान और दोस्ती निभाना मुश्किल है।

अमीरुलमोमिनीन (अ) इमाम हसन (अ) से फ़रमाते हैं: सबसे कमज़ोर इंसान वह है जो दोस्त न बना सके और उससे भी कमज़ोर वह है जो दोस्त को खो दे।24

कुछ जवान दोस्ताना संबंधों के बाक़ी न रह पाने या टूट जाने की शिकायत करते हैं। इस सिलसिले में अगर हम इमाम अली (अ) की नसीहतों पर अमल करें तो यह मुश्किल हल हो सकती है।

इमाम (अ) की हदीस में महत्वपूर्ण नुक्ते

अ. दोस्ती में संतुलन आवश्यक है:

जवानी के दिनों में अकसर देखने में आता है कि जवान दोस्ती की सीमा को पार कर जाते हैं और इसकी दलील जवानी के ज़माने के अहसासात हैं। कुछ जवान दोस्ती में हद से ज़्यादा मुहब्बत का इज़हार करते हैं जबकि जुदाई के दिनों में उसके बर ख़िलाफ़ शदीद विरोध और दुश्मनी का मुज़ाहेरा करते हैं यहाँ तक कि कुछ तो ख़तरनाक काम तक कर डालते हैं।

हज़रत फ़रमाते हैं:अपने दोस्त से हद में रहते हुए दोस्ती और मुहब्बत का इज़हार करो हो सकता है वह किसी दिन तुम्हारा दुश्मन बन जाये और इसी तरह से उस पर नफ़रत और ग़ुस्सा करते समय नर्मी और मुहब्बत का मुज़ाहेरा करो चूँकि मुम्किन है कि वह तुम्हारा दोस्त बन जाये। 25

इस पत्र में इमाम (अ) फ़रमाते हैं अगर तुम चाहते हो कि अपने भाई से ताअल्लुक़ात ख़त्म कर लो तो कोई एक रास्ता उस के लिये ज़रुर छोड़ दो ताकि अगर किसी दिन वह लौटना चाहे तो लौट सके।

शेख सादी इस बारे में कहते हैं कि अपने हर राज़ को अपने दोस्त के सामने बयान न करों क्या मालूम कि एक दिन वह तुम्हारा दुश्मन बन जाये और तुम्हे वह नुक़सान पहुचाएँ जो दुश्मन भी नही पहुता सकता जबकि यह भी मुम्किन है कि किसी समय दोबारा तुम से फिर से दोस्ती हो जाये। 26

ब. जवाब में मुहब्बत का इज़हार

दोस्ती और मुहब्बत की बुनियाद एक दूसरे से मुहब्बत और दोस्ती के इज़हार पर है। अगर दोनों में से एक तो दोस्ती चाहता हो जबकि दूसरा ऐसा न चाहता हो तो उसका नतीजा बेइज़्ज़ती के अलावा कुछ नही हो सकता।

इसी लिये अमीरुल मोमिनीन (अ) अपने इस पत्र में इमाम हसन (अ) से फ़रमाते हैं:

لا ترغبن فِِيمن زهد عنک

जो तुम से संबंध नही रखना चाहता उससे मुहब्बत का इज़हार न करो।

स. दोस्ताना संबंधों की सुरक्षा

इमाम अली (अ) दोस्ताना संबंधों की रक्षा के बारे ज़ोर देते हैं और उसके कारणों को बयान फ़रमाते हैं जो दोस्ती की मज़बूती प्रदान करते हैं। फ़रमाते हैं अगर तुम्हारा दोस्त तुम से दूरी इख़्तियार करे तो तुम्हे चाहिये कि तुम उसे तोहफ़े दो और जब वह दूर हो तो तुम नज़दीक हो जाओ जब वह सख़्ती करे तो तुम नर्मी से काम लो। जब वह ग़लती या पाप करे और बहाना बनाए तो उसकी बात को मान लो।

कुछ लोग चूँकि बहुत छोटे दिल के होते हैं और अहसान का नतीजे दूसरे को नीचा दिखाना और ख़ुद को अक़्लमंद ख़्याल करते हैं इसलिये आप इसके आगे इरशाद फ़रमाते हैं इन सारे मौक़ों की नज़ाकतों को पहचानो और बहुत अहतियात से काम लो कि जो कुछ कहा गया है उसको केवल उसके सही समय पर अँजाम दो। इसी तरह उस शख़्स के बारे में अँजाम न दो जो अहमियत नही रखता।

इमाम (अ) इसी तरह एक और नसीहत इरशाद फ़रमाते हैं:

अपने दोस्त के साथ ख़ुलूस के साथ भलाई करो चाहे यह बात उसको पसंद आये या न आये।

****************
हवाले:

19. अख़लाक़ व तालीम व तरबीयत इस्लामी, लेखक ज़ैनुल आबेदीन क़ुरबानी पेज 274

20. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 1 पेज 260

21. ग़ुररुल हिकम व दुररुल हिकम जिल्द 5 पेज 185

22. शरहे नहजुल बलाग़ा इब्ने अबिल हदीद जिल्द 20 पेज 335

23. नहजुल बलाग़ा ख़ुतबा 181

24. बिहारुल अनवार जिल्द 74 पेज 278

25. नहजुल बलाग़ा कलिमाते क़िसार 260

26. गुलिस्ताने सादी 8 वा अध्याय

नई टिप्पणी जोड़ें