इमाम अली अलैहिस्सलाम की शान में नाज़िल होने वाली आयतें

इमाम अली अलैहिस्सलाम की शान में नाज़िल होने वाली आयतें

आयते मुबाहेला

ख़ुदा वंदे आलम फ़रमाता है:

فَمَنْ حَاجَّكَ فِيهِ مِن بَعْدِ مَا جَاءَكَ مِنَ الْعِلْمِ فَقُلْ تَعَالَوْا نَدْعُ أَبْنَاءَنَا وَأَبْنَاءَكُمْ وَنِسَاءَنَا وَنِسَاءَكُمْ وَأَنفُسَنَا وَأَنفُسَكُمْ ثُمَّ نَبْتَهِلْ فَنَجْعَل لَّعْنَتَ اللَّـهِ عَلَى الْكَاذِبِينَ

(सूरा आले इमरान आयत 61)

ऐ पैग़म्बर, इल्म के आ जाने के बाद जो लोग तुम से कट हुज्जती करें उनसे कह दीजिए कि (अच्छा मैदान में) आओ, हम अपने बेटे को बुलायें तुम अपने बेटे को और हम अपनी औरतों को बुलायें और तुम अपनी औरतों को और हम अपनी जानों को बुलाये और तुम अपने जानों को, उसके बाद हम सब मिलकर ख़ुदा की बारगाह में गिड़गिड़ायें और झूठों पर ख़ुदा की लानत करें।

मुफ़स्सेरीन का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि इस आयते शरीफ़ा में (अनफ़ुसना) से मुराद अली बिन अबी तालिब (अ) हैं, पस हज़रत अली (अ) मक़ामात और फ़ज़ायल में पैग़म्बरे अकरम (स) के बराबर हैं, अहमद बिन हंमल अल मुसनद में नक़्ल करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयते शरीफ़ा नाज़िल हुई तो आँ हज़रत (स) ने हज़रत अली (अ), जनाबे फ़ातेमा और हसन व हुसैन (अ) को बुलाया और फ़रमाया: ख़ुदावंदा यह मेरे अहले बैत हैं। नीज़ सही मुस्लिम, सही तिरमिज़ी और मुसतदरके हाकिम वग़ैरह में इसी मज़मून की रिवायत नक़्ल हुई है।

(मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 185, सही मुस्लिम जिल्द 7 पेज 120, सोनने तिरमिज़ी जिल्द 5 पेज 596, अल मुसतदरके अलल सहीहैन जिल्द 3 पेज 150)

आयते मवद्दत

हज़रत अली (अ) उन हज़रात में से हैं जिनकी मवद्दत और मुहब्बत तमाम मुसलमानों पर वाजिब की गई है जैसा कि ख़ुदा वंदे आलम ने फ़रमाया:

قُل لَّا أَسْأَلُكُمْ عَلَيْهِ أَجْرً‌ا إِلَّا الْمَوَدَّةَ فِي الْقُرْ‌بَىٰ

(सूरा शूरा आयत 23)

तर्जुमा, आप कह दीजिए कि मैं तुम से इस तहलीग़े रिसालत का कोई अज्र नही चाहता सिवाए इसके कि मेरे क़राबत दारों से मुहब्बत करो।

सुयूतीस इब्ने अब्बास से रिवायत करते हैं: जब पैग़म्बरे अकरम (स) पर यह आयत नाज़िल हुई तो इब्ने अब्बास ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह आपके वह रिश्तेदार कौन है जिनकी मुहब्बत हम लोगों पर वाजिब है? तो आँ हज़रत (स) ने फ़रमाया: अली, फ़ातेमा और उनके दोनो बेटे।

(अहयाउल मय्यत बे फ़ज़ायले अहले बैत (अ) पेज 239, दुर्रे मंसूर जिल्द 6 पेज 7, जामेउल बयान जिल्द 25 पेज 14, मुसतदरके हाकिम जिल्द 2 पेज 444, मुसनदे अहमद जिल्द 1 पेज 199)

आयते  विलायत

हज़रत अली (अ) की ज़ात वह है जिनकी शान में आयते विलायत नाज़िल हुई है:

إِنَّمَا وَلِيُّكُمُ اللَّـهُ وَرَ‌سُولُهُ وَالَّذِينَ آمَنُوا الَّذِينَ يُقِيمُونَ الصَّلَاةَ وَيُؤْتُونَ الزَّكَاةَ وَهُمْ رَ‌اكِعُونَ

(सूरा मायदा आयत 55)

तर्जुमा, ईमान वालों, बस तुम्हारा वली अल्लाह है और उसका रसूल और वह साहिबाने ईमान जो नमाज़ क़ायम करते हैं और हालते रुकू में ज़कात देते हैं।

सुन्नी व शिया मुफ़स्सेरीन का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि यह आयत हज़रत अली (अ) की शान में नाज़िल हुई है और पचास से ज़्यादा अहले सुन्नत उलामा ने इस हक़ीक़त की तरफ़ इशारा किया है।

(दुर्रे मंसूर जिल्द 2 पेज 239)

आयते ततहीर

हज़रत अली (अ) का शान में आयते ततहीर नाज़िल हुई है चुँनाचे ख़ुदा वंदे आलम का इरशाद है:

إِنَّمَا يُرِ‌يدُ اللَّـهُ لِيُذْهِبَ عَنكُمُ الرِّ‌جْسَ أَهْلَ الْبَيْتِ وَيُطَهِّرَ‌كُمْ تَطْهِيرً‌ا

(सूरा अहज़ाब आयत 33)

ऐ (पैग़म्बर के) अहले बैत, ख़ुदा तो बस यह चाहता है कि तुम को हर तरह की बुराई से दूर रखे और जो पाक व पाकीज़ा रखने का हक़ है वैसा पाक व पाकीज़ा रखे।

मुस्लिम बिन हुज्जाज अपनी मुसनद के साथ जनाबे आयशा से नक़्ल करते हैं कि रसूले अकरम (स) सुबह के वक़्त अपने हुजरे से इस हाल में निकले कि अपने शानों पर अबा डाले हुए थे, उस मौक़े पर हसन बिन अली (अ) आये, आँ हज़रत (स) ने उनको अबा (केसा) में दाख़िल किया, उसके बाद हुसैन आये और उनको भी चादर में दाख़िल किया, उस मौक़े पर फ़ातेमा दाख़िल हुई तो पैग़म्बर (स) ने उनको भी चादर में दाख़िल कर लिया, उस मौक़े पर अली (अ) आये उनको भी दाख़िल किया और फिर इस आयते शरीफ़ा की तिलावत की।

(सही मुस्लिम जिल्द 2 पेज 331)

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