अहले बैत (अ) की धरोहर

अहले बैत (अ) की धरोहर

मकतबे शियत के पास पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की हदीसों का एक बहुत बड़ा ख़ज़ाना मौजूद है जो इस मकतब को आइम्मा- ए- मासूमीन अलैहिम अस्सालाम के ज़रिये हासिल हुआ हैं। इस के अलावा हज़रत अली अलैहिस्सलाम व दिगर आइम्मा के अक़वाल  फ़रवान भी मौजूद हैं जो इस वक़्त शिया फ़िक़्ह व मआरिफ़ के असली मनाबे शुमार होते हैं।

शिया मकतब में हदीस की चार किताबे मोतबर समझी जाती हैं जो कुतुबे अरबा के नाम से मशहूर है जिन के नाम इस तरह हैं-

(1) काफ़ी

(2) मन ला यहज़ुरुहु अलफ़क़ीह

(3) तहज़ीब

(4) इस्तबसार

लेकिन यहाँ पर इस बात का ज़िक्र ज़रूरी है कि कोई यह न समझे कि हमारी इन चारों किताबों या दूसरी मोतबर किताबों में जो हदीसें मौजूद हैं, वह सब मोतबर हैं। नही ऐसा नही है, बल्कि हर हदीस का एक सनदी सिलसिला है रिजाल की किताबों की मदद से सनद में मौजूद हर इंसान के बारे में छानबीन होती है जिस रिवायत के तमाम रावी मोरिदे यक़ीन होते हैं उस हदीस के हम सही मानते हैं और जिस रिवायत के तमाम रावी मोरिदे इतमिनान नही होते हम उस हदीस को ज़ईफ़ व मशकूक मानते हैं।

रिजाल की छानबीन का यह काम सिर्फ़ उलमा-ए- इल्मे रिजाल व हदीस से मख़सूस है। यहाँ से यह बात अच्छी तरह रौशन हो जाती है कि शियों की हदीस की किताबें अहले सुन्नत की हदीस की किताबों लसे मुताफ़ावित है।

क्योँकि अहले सुन्नत की कुतुबे सहा मखसूसन सही बुख़ारी व सही मुस्लिम के मोल्लिफ़ों का दावा यह है कि हम ने जो इन किताबों में हदीसे जमा की हैं हमारे नज़दीक वह सब सही व मोतबर हैं। इसी बिना पर इन हदीसो में से किसी के ज़रिये भी अहले सुन्नत के अक़ीदेह को समझा जा सकता है।

इस के बर ख़िलाफ़ शिया मुहद्देसीन ने इस बात पर बिना रखी कि अहले बैत अलैहिम अस्सलाम से मंसूब जो भी हदीसें मिलें उनको जमा कर लिया जाये और इनके सही या ग़लत होने की शनाख़्त का काम उलमा-ए-रिजाल के हवाले कर दिया जाये।

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