समय का सही उपयोग, इमाम अली की निगाह में
समय का सही उपयोग, इमाम अली की निगाह में
हर व्यक्ति के लिए समय बहुत मूल्यवान होता है और वास्तव में मनुष्य के पास यह एक ऐसी पूंजी है जो लौट के कभी नहीं आती। यह ईश्वर की प्रदान की हुई महापूंजी उसी समय मनुष्य के लिए लाभदायक सिद्ध हो सकती है जब इसका सही रूप से संचालन किया जाए। मनुष्य सही रूप से समय का संचालन करके इस ईश्वरीय अनुकंपा से सही ढंग से लाभान्वित हो सकता है। इस कल्पना के विपरीत कि समय को सही ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। वास्तव में हर घंटा और हर दिन, समय का भाग है जिसे प्राथमिकता के आधार पर व्यवस्थित ढंग से भरा जाना चाहिए। इस प्रकार से निठल्ले समय का कोई अर्थ ही नहीं है और आयु के हर क्षण के लिए कार्यक्रम बनाया जाना चाहिए। यह कार्य इतना महत्त्वपूर्ण है, जैसा कि इस्लामी इतिहासों में आया है उसके अनुसार, प्रलय के दिन जिन चीज़ों के बारे में पहले प्रश्न किया जाएगा उनमें से एक आयु की अनुकंपा है। इस आधार पर ग़लत सोच का जैसा कि क्योंकि कल आने वाला है, इसलिए कल के बारे में सोचो, इस्लामी शिक्षाओं में स्थान नहीं है। इसीलिए हमें अपने समस्त क्षणों से लाभ उठाना चाहिए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का नहजुल बलाग़ा में कहना है कि अवसर, बादलों की भांति गुज़र जाते हैं, इसीलिए अवसरों से लाभ उठाओ।
समय इतना महत्त्वपूर्ण मूल्यवान है कि ईश्वर ने विभिन्न आयतों में इसकी ओर संकेत किया है और सूरए अस्र में इसकी सौगंध खाई है। पवित्र क़ुरआन की विभिन्न आयतें एक वास्तविकता को बयान करती हैं और वह यह है कि मनुष्य की आयु बहुत कम है। अलबत्ता मनुष्य जब इस वास्तविकता को पहचानता है तो काफ़ी समय गुज़र चुका होता है और उसकी मौत का दिन निकट होता है और दुनिया उससे छुट रही होती है। उस समय उसे आभास होता है कि दुनिया में उसके रहने का समय कितना कम था। मानो उसने दुनिया में एक दिन या एक रात से अधिक समय नहीं गुज़ारा। या वह कल्पना करता है कि एक दिन के केवल कुछ घंटे ही दुनिया में रहा है।
पवित्र क़ुरआन, मनुष्य को समय का महत्त्व बताने के लिए मृत्यु के बाद की कुछ घटनाओं को बयान करता है। इन्हीं लोगों में से कुछ लोग मरने के बाद दुनिया में फिर से पलटाए जाने की कामना व्यक्त करते हैं ताकि वह कर्म करें जो छोड़ दिया था। इन लोगों ने चूंकि अपनी आयु को बेकार की चीज़ों में गुज़ारा था, जीवन के सूर्यास्त के समय यह कामना करते हैं कि काश उनके पास और भी समय होता। किन्तु ईश्वर किसी भी मनुष्य की मौत के नियत समय को विलंबित नहीं करता। यह वही लोग हैं जिन्होंने अपनी आयु के महत्त्व को नहीं समझा और जीवन में अपनी परिपूर्णता की समस्त संभावनाओं व क्षमताओं से लाभान्वित नहीं हुए और इस प्रकार वह अपने पर अत्याचार जारी रखे रहे। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैह व आलेही व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों और क़ुरआने करीम ने सदैव अपने समय और अपनी आयु से सही ढंग से लाभ उठाने की ओर से सचेत किया है और इस बारे में चिंतन मनन करने का अह्वान किया है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्ललाहो अलैह व आलेही व सल्लम का कहना है कि अपनी जमा पूंजी की रक्षा से अधिक अपनी आयु की रक्षा में कंजूसी करो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने भी ईश्वर की इस महा अनुकंपा की ओर संकेत करते हुए कहा कि तुम्हारे जीवन के समय, क्षण क्षण तुम्हारी आयु है, तो प्रयास करो कि तुम्हारे जीवन का कोई भी क्षण, तुम्हारी मुक्ति के मामलों के अतिरिक्त किसी अन्य चीज़ में व्यतीत न हों।
हर लक्ष्य और कार्यक्रम के व्यवहारिक होने के लिए एक उचित समय की आवश्यकता होती है। उदाहरण स्वरूप हर उपासना के लिए एक विशेष समय की आवश्यकता होती है जिसे समय के पहले अंजाम नहीं दिया जा सकता। जैसे अनिवार्य हज केवल ज़िलहिज्जा के महीने में ही हो सकता है और रोज़ा, पवित्र महीने में ही अनिवार्य है। इसी प्रकार हर नमाज़ के लिए भी एक निर्धारित समय है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा के पत्र क्रमांक 27 में लिखते हैं कि हर नमाज़ को उसके निर्धारित समय पर पढ़ो, न यह कि ख़ाली समय में समय से पहले ही पढ़ लो, और व्यस्त रहने या किसी काम में उलझे रहने के कारण विलंबित कर दो। इस आधार पर समय का प्रबंधन जल्दी काम को अंजाम देना और जल्दबाज़ी नहीं है बल्कि कुछ मामलों को अंजाम देने के लिए चिंतन मनन व सोच विचार की आवश्यकता होती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनानुसार समय आने से पहले काम में जल्दबाज़ी से बचा जाना चाहिए और जब काम का समय आ जाए तो उसको अंजाम देने में लापरवाही नहीं करनी चाहिए और हर काम को उसके विशेष समय और स्थान पर ही अंजाम दिया जाना चाहिए।
इस्लाम की दृष्टि में वह आयु जो ईश्वर के मार्ग पर ख़र्च होती है उसका महत्त्व है कितना अच्छा होता कि यह इस प्रकार की आयु दीर्घ हो। यही कारण है कि ईश्वर के नेक बंदे और महापुरुष सदैव ईश्वर से अपनी लंबी आयु मांगते थे ताकि इस पूंजी को जितना अधिक हो सके ईश्वर के मार्ग में ख़र्च करें किन्तु लंबी आयु भी अवधि के अधिक होने के बावजूद जल्दी गुज़र जाती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने भाषण में बारम्बार समय की कमी और अल्पायु की ओर संकेत किया है। वे अपने एक भाषण में कहते हैं कि कल, आज की तुलना में बहुत निकट है, दिनों के घंटे कितनी जल्दी गुज़र जाते हैं और दिन कितनी जल्दी व्यतीत हो जाते हैं, महीने कितनी तेज़ी से गुज़रते हैं और वर्ष जीवन में कितनी तेज़ी से गुज़रते हैं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बयान के अनुसार, आयु का आधार नष्ट होना है और मनुष्य पर गुज़रने वाला हर दिन और आने वाला हर नया दिन, उससे एक दिन छीन लेता है। वे नहजुल बलाग़ा के भाषण क्रमांक 145 में कहते हैं कि आयु का कोई दिन नहीं गुज़रता किन्तु उस दिन के विनाश से जो उसके लिए एक अवसर रहा है। इस आधार पर चिंतन मनन और कार्यक्रम बनाकर तथा प्राथमिकताओं का ध्यान रखकर समय की बेकारी और ईश्वर की ओर से प्रदान किए गये अवसर को बेकार जाने से बचाया जा सकता है।
जीवन के तीन काल होते हैं अतीत, वर्तमान और भविष्य। अतीत उसका अनुभव होता है, वर्तमान, फ़ैसला लेने का समय है और भविष्य, लक्ष्यहीन कार्यक्रम के कारण अस्पष्ट हो जाएगा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उन लोगों को बुद्धिमान मानते हैं जिन्होंने बहुत अच्छे ढंग से अपने अतीत से अनुभव उठाया और इस सीमित समय का सही संचालन करके परलोक के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए ईश्वरीय अनुसरण के मार्ग में अपने वर्तमान से लाभ उठाया। नहजुल बलाग़ा के भाषण क्रमांक 83 में आया है कि ईश्वर से उस बुद्धिमान की भांत डरो जो चिंतन मनन करता है। वह बेहतरीन शैली से दुनिया के पुल से गुज़रा, अपने अच्छे कर्मों को पहले ही भेज चुका है और परलोक के भय से सुकर्म करने में सबसे अग्रणी रहा। जीवन को ईश्वर के अनुसरण में जल्दी जल्दी व्यतीत किया और ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए दिल से प्रयास किया। बुराइयों से दूर रहा, आज उसने कल के जीवन का ध्यान रखा और अब अपने भविष्य को देख रहा है।
समय के प्रबंधन के महत्त्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक लक्ष्य व उद्देश्य का निर्धारण है। इस्लाम की दृष्टि में यह लक्ष्य, ईश्वरीय प्रसन्नता और लोक परलोक का कल्याण प्राप्त करने के लिए होना चाहिए। इस विचारधारा में केवल मनुष्य ही है जो अपनी कम आयु में, पास मौजूद क्षमताओं से लाभ उठाकर, परलोक में कल्याणमयी जीवन के लिए भूमिका प्रशस्त कर सकता है और इससे पहले के अवसर उसके हाथ से निकल जाए और कमज़ोरी व अक्षमता उसे आकर जकड़ ले, परलोक के लिए स्वयं को तैयार कर लेता है और अपने गंतव्य तक पहुंच जाता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी मूल्यवान शिक्षाओं में संसार को नश्वर और शीघ्र गुज़रने वाला बताते हैं कि जिसका आनंद व कठिनाइयां किसी के लिए भी स्थायित्व नहीं है और बहुत जल्दी समाप्त हो जाती हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अनुसार मनुष्य इस दुनिया में उस यात्री के भांति है जो बहुत कम अवधि के लिए विश्राम हेतु रास्ते में रुकता है और उसके बाद अपना बोरिया बिस्तरा बांध के निकल जाता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम संसार के नश्वर होने और उसकी कम आयु और इसके मुक़ाबले में परलोक के सदैव रहने के बारे में कहते हैं कि संसार ने पीठ घुमाकर अपनी विदाई की घोषणा कर दी है और परलोक उसके सामने आने वाला है। होशियार रहो! आज अभ्यास और तैयार होने का दिन है और कल का दिन प्रतिस्पर्धा का है, गंतव्य स्वर्ग का द्वार है और जो वहां तक नहीं पहुंच पाएगा, नरक में जाएगा। जान लो कि तुम ऐसे दिनों में जीवन व्यतीत कर रहे हो, जो भविष्य के लिए अवसर बनाने के लिए है और उसके बाद के दिन मौत के हैं। इसी लिए आवश्यक है कि इस सफलता की प्राप्ति के लिए संसार की अनुकंपाओं व अवसरों को हाथ से गवाएं और उस समय का सही ढंग से प्रबंधन करें ताकि यथासंभव ईश्वर के अनुसरण के मार्ग के मार्ग से बेहतरीन ढंग से जो हमारी सृष्टि का मुख्य लक्ष्य है, लाभ उठा सकें।
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