फ़ातेमा ज़हरा और ख़ुत्ब ए फ़िदकिया
ताजदार हुसैन ज़ैदी
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) का वास्तविक़ हक़ यानी फ़िदक जब आप से छीन लिया गया और किसी भी प्रकार उस समय की हुकूमत उसको देने के लिए राज़ी नहीं थी तो आपने अपने हक़ को साबित करने और प्रतिक्रिया दिखाने के तौर पर मस्जिद में वह प्रसिद्ध ख़ुतबा दिया जिसको आज हम लोग ख़ुत्ब ए फ़िदकिया के नाम से जानते हैं।
जिस समय मस्जिद में मुहाजिर और अंसार महत्वपूर्ण कार्य के लिए एकत्र हुए थे तब आप मस्जिद में प्रवेश करती हैं और आप ने वह महान ख़ुतबा दिया कि जो आज तक अनछुआ हैं और विद्वान एवं उलेमा जितना भी इसके बारे में चिंतन करें लेकिन उसकी हक़ीक़त तक नहीं पहुंच सकते हैं।
याद रखिए कि हम उस फ़ातेमा (स) के बारे में बात कर रहे हैं किसकी प्रसन्नता ईश्वर की प्रसन्नता है और जिसका क्रोध ईश्वर का क्रोध है, फ़ातेमा (स) की बात को स्वीकार न करना ऐसा ही है जैसे क़ुरआन का इन्कार करना, आयते ततहीर का विरोध करना, रसूल (स) की बेटी को दूसरे आम लोगों की भाति जानना। वह फ़ातेमा (स) जिससे झूठ, ग़लत चीज़ का दावा... आदि की संभावना भी नहीं है। वह फ़ातेमा (स) जो मासूम हैं।
आपने लोगों को जागरूक करने उस समय जब मुहाजिर और अंसार मस्जिद में एकत्र थे तब आप मस्जिद में आती हैं और आपने मस्जिद में एक कोहराम मचा दिया. जब आपने ख़ुतबा देना आरम्भ किया तो वहां मौजूद सभी लोगों ने रोना और विलाप करना शुरू कर दिया लोग इतना रोए कि आप काफ़ी देर तक चुप रहीं ताकि लोग दिल भर के रो सकें। और यह वही स्थान है जब हर अहलेबैत (अ) के चाहने वाले की निगाहों के सामने शाम के दरबार में हज़रत ज़ैनब (स) का ख़ुतबा कौंध जाता है। आपके शब्द बादलों का गरज और चमक की भाति सोए हुए लोगों को जगा देते हैं।
रिवायत कहती है
لما بلغ فاطمه عليهاالسلام اجماع ابي بكر علي منعها فدك، لاثت خمارها، و اقبلت في لمه من حفدتها و نسا قومها، تطا في ذيولها، ماتخرم مشيتها مشيه رسول اللَّه صلي اللَّه عليه و آله حتي دخلت علي ابي بكر و قد حشد الناس من المهاجرين و الانصار، فضرب بينها و بينهم ريطه بيضا
जब हज़रत फ़ातेमा (स) को अबू बक्र के इस इरादे के बारे में पता चला कि वह फ़िदक को ना देने का इरादा कर चुका है (नहजुल बलाग़ा इबने अबिल हदीद जिल्द 16 पेज 211) (हम किस फ़ातेमा (स) के बारे में बात कर रहे हैं, वह फ़ातेमा (स) जिसका कहना यह था कि औरत की मस्जिद उसका घर है, जिसके घर पर अगर मांगने वाला अंधा भी गया तो द्वार के पीछे से उसको दिया, जिसका कहना यह था कि औरत के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि न वह किसी मर्द को देखे और न वह किसी मर्द को देख, तो आख़िर ऐसा क्या हुआ कि यही फ़ातेमा (स) मुहाजिर और अंसार से भरी हुई मस्जिद में आने को मजबूर हो गई?) आप मस्जिद में एक अजीब हैबत के साथ आती हैं कुछ औरतों के झुरमुठ में फ़ातेमा (स) मस्जिद में प्रवेश करती हैं उनकी चाल रसूल की चाल के जैसे थी यहां तक कि आप अबीबक्र के पास तक पहुंची और वह उस समय मुहाजिरों और अंसार के बीच में थे , जब फ़ातेमा (स) वहां पहुंची तो मर्दों और औरतों के बीच एक सफ़ेद कपड़ा बांध दिया गया।
फिर आपने ख़ुतबा शुरू किया
ثم انت انة ارتجت لها القلوب م ظرفت لها العیون اءجهش القوم لها بالبکاء والنهیب ثم امهلت هنیة حتی سکن نشیج القوم
आपने एक चीख़ मारी जिसने दिलों को थरथरा दिया आँखों से आँसू जारी हो गए सभी ने रोना आरम्भ कर दिया आपने लोगों को काफ़ी समय दिया ताकि यह लोग ख़ूब रो लें यहां तक कि यह लोग चुप हो गए
افتتحت الکلام بحمد الله والثناء علیه و الصلاة علی رسوله فعاد القوم فی بکائهم
आपने अपनी बात आरम्भ की ख़ुदा की हम्द और उसके रसूल पर सलवात से, लोगों ने फिर से रोना आरम्भ कर दिया।
कहा जा सकता है कि हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) के ख़ुतबे की यह प्रस्तावना भर था, आपका यह ख़ुतबा एक बहुत ही तवील ख़ुतबा है जिसमें विभिन्न पड़ाव हैं जिसके बाद आप उस स्थान पर पहुंचती हैं जो आपका मक़सद था।
आप इस ख़ुतबे को ईश्वर की प्रशंसा से आरम्भ करती है उसके बाद अक़ाएद ... आदि को बयान करती हैं, जिनमें से सभी को हम अपने इस लेख में बयान नहीं कर सकेंगे, लेकिन अगर हम आपके इस महान ख़ुतबे को संक्षेप में बयान करना चाहें और आपके इस ख़ुतबे पर हेडिंग लगाना चाहें और आपके ख़ुतबे को कुछ भागों में बांटना चाहें, और अगर यह बताना चाहें कि आख़िर आपने क्यों आपने ख़ुतबे को ईश्वर की प्रशंसा और एकेश्वरवाद से आरम्भ किया क्या इस्लाम में कोई ऐसी तबदीली हो गई थी कि आपको तौहीद से आरम्भ करना पड़ा नबूवत को बयान करना बड़ा। उस युग में ऐसा क्या हो रहा था?
तो हम आपके इस ख़ुतबे को इन भागों में बांट सकतें हैं।
1. ईश्वर की प्रशंसा
2. एकेश्वरवाद और तौहीद का एक़रार
3. पैग़म्बर की रिसालत का बयान।
4. स्रष्टि के पैदा किए जाने की हिकमत
5. इन्सान पर तकलीफ़ (वाजिब और हराम आदि) की हिकमत
6. नबियों के भेजे जाने की फ़लसफ़ा और हिकमत
7. ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम के बारे में आपने कहा
8. तारीख़े इस्लाम
9. लोगों के भूत और साबेक़े का बयान।
10. क़ुरआन और अहलेबैत के बीच संबंध
संक्षेप में यह कहा जाए कि आपने अपने ख़ुतबे के आरम्भ में इस्लामी अक़ाएद को संक्षेप में बयान किया है। अपने लोगों से कहा कि तुम वह लोग थे जिन्होंने इस्लाम के लिए यह यह कार्य किए, फ़िर आपने वास्तविक इस्लाम को पहचनवाया वह इस्लाम जिसका आधार अहलेबैत (अ) हैं, रिवायत में आया है कि अली (अ) क़ुरआन के साथ हैं और क़ुरआन अली के साथ है।
आपने इस ख़ुतबे के एक भाग में अपने आप को पहचनवाया है।
ऐसा लगता है कि लोगों ने आपकी बात को इस लिए अस्वीकार कर दिया कि आपको पहचानते नहीं हैं ऐसा लगता है कि वह नहीं जानते हैं कि फ़ातेमा (स) मासूम हैं, इसीलिए आप लोगों के बीच अपने आप को पहचनवा रही हैं।
उसके बाद आप इस्लाम के बारे में पैग़म्बर (स) और अली (अ) के कार्यों और सवाबिक़ को बयान करती हैं, जब एक व्यक्ति कहता है कि हे बीबी काश आपने पहले यह बातें हमसे कही होती, अब तो हमने बैअत कर ली है तो आप ने उसके उत्तर में फ़रमाया कि ग़दीर के बाद और जब तुमने अली (अ) की बैअत कर ली तो कहने की क्या बात रह जाती है (हदीस को अपने शब्दों में बयान किया गया है यह वास्तविक अनुवाद नहीं है)
आप अपने ख़ुतबे के एक भाग में उन मसलों और चीज़ों के बारे में जो घटित हो रही थी याद दहानी कराती हैं, वह फ़ितने की आग तो अभी गर्भवती हैं और भविष्य में जिसके बच्चे होंगे और जो पूरी इस्लामी दुनिया को अपने घेरे में ले लेगी।
फ़िर आप फ़िदक के बारे में बोलती हैं, अपनी मीरास के बारे में कहती हैं, और एक समय आप पैग़म्बर (स) की क़ब्र की तरफ़ चेहरा करती हैं और आपसे फ़रियाद करती हैं ..... फ़िर पहले ख़लीफ़ा वही पुरानी हदीस कि पैग़म्बर ने फ़रमाया है कि हम मीरास नहीं छोड़ते हैं पढ़ते हैं (कुछ रिवायतों के अनुसार आप इसके उत्तर में कहती हैं कि यह क़ुरआन के विरुद्ध है और पैग़म्बर क़ुरआन के विरुद्ध बात नहीं कहते हैं)
जब आप मस्जिद से अपने घर की तरफ़ वापस लपटती हैं तो रास्ते में राफे इब्ने रोफ़ाआ नामक व्यक्ति कहता है कि आपने यह बातें हमको पहले क्यों नहीं कहीं ? तो आपने उत्तर में कहा कि ग़दीर के बाद किसी के लिए कोई बहाना नहीं रह जाता है।
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