फ़िदक, ख़लीफ़ाओं के विरोधाभास बायान
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी
जैसा कि हम सबको मालूम है कि फ़िदक पैग़म्बर की सम्पत्ति थी और आपने उसे फ़ातेमा ज़हरा के दिया था लेकिन बाद में इस फ़िदक को आपसे छीन लिया गया। जिसके बारे में सुन्नी किताबों ने लिखा है कि अबूबक़्र ने फ़ातेमा से फ़िदक ले लिया
ان ابا بکر انتزع من فاطمة فدکا
और हज़रते ज़हरा ने उसको वापस पाने के लिए सबसे पहले पैग़ाम भेजा कि फ़िदक मेरा है मुझे वापस कर दो।
उसके बाद आपने कहा कि पैग़म्बर ने इसे मुझे उपहार स्वरूप दिया था, जिसके लिए आपसे (स) गवाह मांगा गया और आपने इमाम अली, उम्मे एमन और पैग़म्बर के ग़ुलाम रेबाह को गवाह के तौर पर पेश किया गया लेकिन इन लोगों की गवाही स्वीकार नहीं की गई।
फ़िर इसके बाद आपने कहा कि फ़िदक मेरी मीरास है
जिसके उत्तर में पहले ख़लीफ़ा ने यह हदीस पढ़ी "हम नबी मीरास नहीं छोड़ते हैं हमसे जो भी बाक़ी बचता है वह सदक़ा है"
इस हदीस के बारे में हमने अपने लेखों में बहुत से तर्कों से साबित किया है यह एक जाली हदीस है पैग़म्बर ने इस प्रकार की कोई भी हदीस नहीं फ़रमाई हैं। इन्हीं तर्कों में से एक तर्क यह है कि यह हदीस क़ुरआन के विरुद्ध है क्योंकि क़ुरआन में फ़रमाया गया है कि नबीं मीरास छोड़ते हैं, और यह कैसे संभव है कि वह नबी जिसको काफ़िरों तक ने सच्चा कहा हो वह क़ुरआन के विरुद्ध कोई बात कहें?
और ख़ुद वह ख़लीफ़ा जो पैग़म्बर के बाद आए जिसमें से पहले ख़लीफ़ा अबूबक्र भी है ने भी इस हदीस के विरुद्ध कार्य किया है और इनका इस प्रकार अपने जीवन में इस हदीस का विरोध करना दिखाता है कि यह हदीस पैग़म्बरे ने नहीं कही है।
हीदीसे लानुवर्रिस का सहाबियों ने विरोध किया
सही मुस्लिम जिल्द 5 पेज 157 पर अमीरुल मोमिनीन और अब्बास की पहले और दूसरे ख़लीफ़ा के बारे में सोंच को दूसरे ख़लीफ़ा इस प्रकार बयान कर हे हैं
فرایتماه کاذبا عاصما قادرا خائنا
दूसरे ख़लीफ़ा कहते हैं कि अब्बास और अली की सोंच पहले और दूसरे ख़लीफ़ा के बारे में यह हैः इन लोगों ने पैग़म्बर की तरफ़ झूठ गढ़ा, पाप किया, पैमान तोड़ने वाले और ख़यानत करने वाले हैं।
अब प्रश्न यह है कि सही मुस्लिम सही कह रही है, या दूसरे ख़लीफ़ा सही कह रहे हैं? इन दोनों में से सच कौन बोल रहा है? यह सोंचने वाली बात है, और हमको इस बात पर ग़ौर करना चाहिए।
लानोवर्रिस हदीस का विरोध दोनों ख़लीफ़ा ने अपने अमल से किया
1. ख़ुद अबू बक्र ने हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के लिए पत्र और दस्तावेज़ लिखा कि यह फ़िदक फातेमा का हक़ है।
2. उमर बिने ख़त्ताब एक स्थान पर कुछ शर्तों के साथ अमीरुल मोमिनीन को फ़िदक वापस करते हैं (सही मुस्लिम, किताबुल जेहाद बाबुल फ़ैइ, जिल्द 5, पेज 152)
बहुत सी रिवायतें हैं जो यह बयान करती है कि ख़ुद पहले ख़लीफ़ा को भी यह पता था कि पैग़म्बर मीरास छोड़ते हैं और आपने इस बात को स्वीकार भी किया है।
इन रिवायतों के लिए इन किताबों को देखा जा सकता है मुसनदे अबी अला, मुसनदे जामे, मुसनदे अहमद बिन हंबल... इन किताबों में लिखा है कि हज़रते ज़हरा प्रश्न करती है कि जिसका पहले ख़लीफ़ा उत्तर देते हैं, और यह उत्तर बताता है कि पहले ख़लीफ़ा स्वीकार कर रहे हैं कि पैग़म्बर मीरास छोड़ते हैं और आपको मीरास मिलेगी।
हज़रते फ़ातेमा ज़हरा फ़रमाती हैं
انت ورثت رسول الله ام اهله
तुम पैग़म्बर से मीरास पाओगे या उनके अहल
पहले ख़लीफ़ा एक उत्तर देते हैं अपने विचार के अनुसार तो उनको कहना चाहिए था कि पैग़म्बर मीरास ही नहीं छोड़ते हैं तो मीरास पाने का क्या सवाल, लेकिन वह यह नहीं कहते हैं, वह कहते हैं:
قال بل اهله
उनके अहल पाएंगे।
इबने अबिलहदीद ने जब इसको अपनी पुस्तक में लिखा तो केवल लिख कर चुप हो गए उनको समझ नहीं आया कि क्या कहें, क्योंकि एक तरफ़ तो ख़ुद पहले ख़लीफ़ा कह रहे हैं कि पैग़म्बर मीरास नहीं छोड़ते हैं और दूसरी तरफ़ कह रहे हैं कि उनके अहल उनकी मीरास पाएंगे
कुछ नुक्ते
फ़िदक का मसअला अहलेबैत की मासूमियत पर प्रश्नचिन्ह लगाना है। यानी यह कि हज़रते ज़हरा जो कि क़ुरआन के अनुसार मासूम हैं, उम्मे एमन जिनको पैग़म्बर ने स्वर्ग की नारी कहा है और अमीरुल मोमिनीन (अ) एक ग़लत बाद का दावा कर रहे हैं, उस चीज़ को मांग रहे हैं जो उनकी नहीं है।
क्या कोई ऐसा मुसलमान है जो यह कह दे कि यह लोग झूठ बोल रहे हैं?
क्योंकि पहले ख़लीफ़ा की बात मानने का अर्थ यह है कि हम फ़ातेमा की बात को ठुकरा दें जो कि मासूम हैं, जैसे कि बुख़ारी ने कहा है कि जब अबूबक्र ने यह हदीस सुनाई तो हज़रत ज़हरा क्रोधित हो गई, और हुकूमत से दूरी बना ली और यहां तक की आपने यह वसीयत कर दी कि इन लोगों में से कोई मेरे जनाज़े पर नमाज़ ना पढ़े।
पहले ख़लीफ़ा की बात मानने का अर्थ यह है कि हम पैग़म्बर की बात को ठुकरा दें। पैग़म्बर ने फ़रमाया है किः
علی مع الحق و الحق مع العلی یدور الحق حیث ما دار العلی
अली सच्चाई के साथ हैं और सच्चाई अली के साथ।
सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि हर तारीख़ ने कहा है कि फ़िदक फ़ातेमा के पास था, अगर सवाल यह हो कि कोई सम्पत्ति किसी के पास हो और दूसरा कोई आकर उससे छीन ले तो गवाह किससे मांगे जाएंगे? उस व्यक्ति से जो छीनने वाला है? या उस व्यक्ति से जिसके पास माल था?!!!
कितनी तअज्जुब की बात है कि फ़िदक फ़ातेमा के पास था और उनसे छीनने के बाद उन्हीं से कहा जा रहा है कि आप गवाह लाइये और साबित कीजिए कि फ़िदक आपका हक़ है!!!!
जब हम इतिहास को इस निगाह से देखते हैं तो हमको समझ में आता है कि क्यों एक समय में पैग़म्बर की हदीसों को लिख़ने और बयान करने पर पाबंदी लगाई गई थी। क्योंकि अगर यह पाबंदी ना लगाई जाती तो यह अपने झूठ को साबित कैसे करते, सच्चाई सबके सामने आ जाती।
सीरए लहबी जिल्द 3 पेज 488 पर हज़रते ज़हरा और अबूबक्र की बातचीत को लिखते हुए लिखता है किः हज़रते ज़हरा ने अबूबक्र से कहाः
افی کتاب الله ان ترثک ابنتک ولا ارث ابی
क्या यह क़ुरआन में लिखा है कि तेरी बेटी तुझसे मीरास पाए और मैं अपने बाप की मारास की हक़दार ना हों
उसके बाद कहता है कि अबूबक्र रोने लगे, फिर आपनेः
ثم نزل فکتب لها بفدک
एक दस्तावेज़ लिखा कि फ़िदक फ़ातेमा का हक़ है।
فدخل... عمر فقال ما هذا فقال کتاب کتبته لفاطمة بمیراثها من ابیها. قال فماذا تنفق علی المسلمین قد حاربتک العرب کما تری ثم اخذ عمر الکتابا....
उमर दाख़िल हुए, और कहा यह क्या है? कहा कि यह पत्र है जो मैने फ़ातेमा के लिए लिख़ा है कि वह उनके पिता की मीरास है। तो (उमर ने) कहा तो मुसलमानों पर क्या ख़र्च करोगे? तमाम अरब तुमसे जंग करेगें फ़िर उमर ने वह पत्र लिया और...
इन सारे कार्यों और कथनों से पता चलता है कि "पैग़म्बर मीरास नहीं छोड़ते" हदीस एक गढ़ी हुई और जाली हदीस हैं और पैग़म्बर ने इस प्रकार की कोई भी हदीस नहीं फ़रमाई है।
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