शियों का बग़दाद धार्मिक शिक्षण संस्थान

शियों का बग़दाद धार्मिक शिक्षण संस्थान

हौज़ ए इल्मिया बग़दाद शियों का एक पुराना हौज़ा है। यह हौज़ा हज़रत इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के समय मे शुरू हुआ। इस हौज़े ने कलाम व फ़िक़्ह के क्षेत्र मे महान कार्य किये अगर यह कहा जाय तो ग़लत न होगा कि बग़दाद का हौज़ा शिया सम्प्रदाय का कलाम व फ़िक़्ह का सबसे पहला हौज़ा है। बग़दाद के हौज़े ने कलाम व फ़िक़्ह के विश्व विख्यात विद्वान पैदा किये। बग़दाद मे शिया शुरू से ही आबाद थे शियों का इतिहास सलमान फारसी के समय से मिलता है। अबुल इस्हाक़ नामक मुनज्जिम (नक्षत्रों का ज्ञान रखने वाला) जो कि शिया थे वह पहले व्यक्ति थे जिसने नक्षत्रों की चाल के अनुसार हिसाब लगा कर मंसूर को बग़दाद शहर बसाने के लिए सही समय बताया था। ( दायरतुल मुआरिफ़ तशय्यो जिल्द 4 पेज 26-27)

 इस प्रकार बग़दाद की संस्कृति मे पहले दिन से ही शियों का काफ़ी योगदान रहा है। यह शहर शियों के एक केन्द्र के रूप मे जाना जाता था।

अब्बासी खलीफ़ा का व्यवहार बग़दाद के शियों के प्रति दूसरो स्थानों से भिन्न था। क्योकि यहाँ पर शिया स्वतन्त्रता पूर्वक जीवन यापन कर रहे थे इस लिए इस शहर का बहुत अधिक संस्कृतिक विकास हुआ। और जब से इस शहर मे शियों पर अत्याचार होने शुरू हुए और उनको क़त्ल किया जाने लगा इस शहर का संस्कृतिक पतन आरम्भ हो गया। आले बोया का शासन काल चौथी शताब्दी हिजरी व पाँचवी शताब्दी हिजरी का प्रथम चरण इतिहास मे शियों का सवर्णिम युग समझा जाता है। इस काल मे शियों की हदीस की चार किताबें (1) काफ़ी (2) मन ला यहज़रूल फ़क़ीह (3) तहज़ीब (4) इस्तबसार लिखी गईं। इसी प्रकार इल्मे रिजाल की वह किताबें जो शिया प़ुक़्हा के समीप शरीअत का केन्द्र बिन्दु समझी जाती हैं। जैसे अलफ़हरिस्त, रिजाले तूसी, रिजाले नजाशी, रिजाले कश्शी इत्यादि इसी काल मे लिखी गईं। इस काल मे बारह इमामी शिया विचार धारा विकसित हुई और धीरे धीरे यह विचार धारा सबईया व ग़ुल्लात  से अलग हो गई तथा मोतज़ेला,वाक़फ़िया व अन्य विचार धाराऐं इस शिया विचार धारा मे विलीन हो गई। इस प्रकार एक विशाल और दृढ़ शिया विचारधारा का उदय हुआ। ग़ैबते सुग़रा के शुरू होने के बाद से चौथी शताब्दी हिजरी के अन्त तक  शियों के हौज़ ए इल्मिया पर अखबारी विद्वानो का क़बज़ा था। इस दौर मे महदवियत एक महत्वपूर्ण मसला बनी हुई थी। और दुशमन इसको आधार बना कर शियों पर तरह तरह के हमले कर रहे थे और इलज़ाम लगा रहे थे। आले बोया के शासन की स्थापना से ईरान व इराक़ मे फ़लसफ़े व कलाम के बहुत से मदारिस स्थापित हुए। और इस प्रकार इल्मे कलाम के शिया विद्वान का एक विशाल समूह मैदान मे उतरा और उन्होने अखबारी लोगों से बहसो मुबाहिसा कर के और तसहीहुल ऐतिक़ाद, मक़ाबीसुल अनवार फ़ी रद्दे अला अहलिल अखबार (शेख मुफ़ीद अलैहिर्रहमा) रिसाला फ़ी रद्दे अला असहाबिल अदद (शरीफ़ मुर्तज़ा) जैसी किताबें लिखीं। इससे अखबारी लोगों की पकड़ धीरे धीरे कम होती गई और इनके स्थान पर अहले अक़्ल और असहाबे इजतिहाद शक्तिशाली होते गये। (मजल्ला होज़े 78, 1375 हिजरी शम्सी, 146)

सन् 334 हिजरी क़मरी मे अलमुतीओ बिल्लाह अब्बासी के शासन काल मे  बग़दाद पर माज़ुद्दौला अहमद बुबही ने क़ब्ज़ा कर लिया  इससे शियों को शक्ति प्राप्त हुई और जनता की स्वतन्त्रा के साथ साथ ज्ञान के क्षेत्र मे भी काफ़ी विकास हुआ इल्मे कलाम, फलसफ़ा, (दर्शन शास्त्र) चिकित्सा, नजूम (नक्षत्र ज्ञान) इरफ़ान, गणित व अन्य अनेकों ज्ञान विकसित हुए।

बग़दाद के होज़े के कुछ प्रमुख ज़ईम (कुल पति) इस प्रकार हैं----

1 सेक़तुल इस्लाम अबु जाफ़र मुहम्मद पुत्र याक़ूबे कुलैनी जो प्रसिद्ध किताब काफ़ी के लेखक हैं।

2 शेख़ुल मशाइख़ अबु अब्दुल्लाह मुहम्मद (शेख मुफ़ीद)

3 इल्मुल हुदा शरीफ़ मुर्तज़ा

4 शेख अबु जाफ़र मुहम्मद तूसी

उस समय शियों का बग़दाद का हौज़ा धर्म ज्ञानियों, मुजतहिदों, फ़क़ीहों व इल्मे कलाम के विद्वानो के एक महान प्रशिक्षण केन्द्र के रूप मे पहचाना जाता था। इस हौज़े ने हज़ारों की संख्या मे ऐसे  विद्वान पैदा किये जिन्होने संसार के कोने कोने में अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम के विचारों को फैलाया।

चूँकि शिया विचार धारा अब्बासी शासकों के अत्याचार के बावजूद मुसलमानों के मध्य एक उच्च स्थान प्राप्त कर चुकी थी। अतः इससे अब्बासी खलीफ़ा के दरबार को खतरा पैदा हुआ और अन्ततः सुन्नी तुर्क सरदारों ने ईरानी शिया सरदारों के विरूद्ध आपस मे एक समझौता किया। इस समझौते का परिणाम यह हुआ कि मावरा- उन्नहर खुरासान का क्षेत्र जिस पर समानियान का शासन था। अलपुतकिन नामक ग़ज़नवी के एक तुर्क सरदार द्वारा व आले बोया का शासन सलाजक़ा के द्वारा समाप्त हो गया। जब सन् 447 हिजरी क़मरी मे बग़दाद पर तग़रल बेग सलजूक़ी का क़बज़ा हुआ तो शियों के हौज़ ए इल्मिया और उनके किताब खानों को आग लगा दी गई। इनमे मुख्य रूप से इल्मुल हुदा का किताब खाना जिसमे अस्सी हज़ार किताबें थीं व अबू नस्र शाहपुर का किताब खाना उल्लेखनीय है। इसी प्रकार शेख तूसी के घर व किताब खाने को आग लगादी गई और उनकी दरसे कलाम की कुर्सी को क्रख़ के मैदान मे रख कर जला दिया गया। शेख तूसी न चाहते हुए छुप कर कर्बला के हौज़े चले गये। कुछ समय वहाँ रुकने के बाद नजफ़ चले गये और वहाँ पर अपने मदरसे की बुनियाद रखी।

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